जंगल में डेयरिंग... डरने का नहीं books and stories free download online pdf in Hindi

जंगल में डेयरिंग... डरने का नहीं

"ओये उठ न ! मुझे बाहर जाना है।" साक्षी अपनी चचेरी बहन शांति को रात के वक्त नींद से झकझोरते हुए बोली
शांति अलसाई सी उठी और बोली "चल"
"यार! रुको मुझे भी आना है !" मीनल भी आँखे मलती हुई बोली
तीनों ही कमरें से बाहर निकल आए। गांव में शौचालय वगैरह घर से बाहर ही होते है। साक्षी,मीनल दोनों बहनें अपने परिवार के साथ आजकल अपनें गावं आईं हुई है उत्तराखंड के अल्मोड़ा में स्थित एक छोटा-सा गांव।
तीनों बहनें बाहर आई,बाहर एक छोटा कमरा और था जिसमें साक्षी का छोटा भाई दिनेश और चचेरा भाई गोपाल सोए थे। लेकिन अभी दोनों ही अपनें बिस्तर पर नहीं थे।
"ये दोनों भी बाहर गए है क्या??!" मीनल बोली
"बाहर ही गए होंगे !" साक्षी ने जवाब दिया
तीनों बाहर आंगन में आईं और दाईं तरफ थोड़ी दूरी पर बने शौचालय की ओर जाने लगे।
"वो दोनों इधर भी नहीं है !! कहाँ चले गए? ?" शांति ने दिनेश और गोपाल को वहाँ न देखकर पूछा
"हमें क्या पता यार?! हम भी तो तेरे साथ ही आ रहे है न!" साक्षी कंधे उचकाते हुए बोली
"अरे! कहीं वो दोनों जंगल न चलें गए हो?"मीनल बोली
"लेकिन! इतनी रात को जंगल क्यों जाएंगे?!" शांति ने हैरानी पूछा
"मैंने गोपाल और दिनेश को बात करते हुए सुना था! जब सब सो जायेंगे तब वो दोनों जंगल के कच्चे रास्ते वाले चौराहे तक जाने की बात कर रहे थे।" मीनल ने बताया
"फिर तो पक्का! वो दोनों वहीं गए है।" साक्षी बोली
"पागल हो गए वो दोनों? इतनी रात को भला कोई जंगल जाता है क्या?" शांति बोली
"जो भी हो हमें भी जाना होगा!हमारे छोटे भाई है किसी मुसीबत में पड़ गए तो..." साक्षी बोली
"हम घरवालों को बता देते है।" शांति बोली
"पागल हो गई है? घरवाले बेकार ही परेशान होंगे! और उन दोनों को डांट पड़ेगी सो अलग!" मीनल बोली
"हमें ही जाना होगा! अभी.... वो शायद ज्यादा दूर न गए हो।" साक्षी शांति को जंगल के रास्ते की तरफ खींचती हुई बोली
"लेकिन..."
"लेकिन -वेकिन कुछ नहीं! , हमें जाना होगा मतलब जाना होगा।" साक्षी ने शांति की बात को काटते हुए कहा और मीनल को आँख मार दी

दरअसल ये सब सोच समझ कर प्लान किया हुआ था।मीनल,साक्षी ,दिनेश और दूसरे गांव का एक लड़का केशर इन सब ने मिलकर आधी रात को जंगल में मंगल का प्लान बनाया था।

केशर भी शहर में साक्षी के पड़ोस में ही रहता है गाँव आते वक़्त ही उनका प्लान था कुछ डेयरिंग करने का । यहाँ आकर उन लोगो ने फोन पर ही सारी तैयारी कर ली थी गोपाल को भी उन्होंने अपने प्लान में शामिल कर लिया था। जगह केशर ने ही तय की थी ।उसके हिसाब से जंगल के बीच में पड़ने वाला चौराहा सबसे सही जगह थी। क्योंकि वहाँ तक पहुँचने में दोनों तरफ से बराबर की दूरी थी ,केशर अपने चचेरे भाई सोनू के साथ आने वाला था।

इधर साक्षी,मीनल,दिनेश और गोपाल पूरी तरह तैयार थे लेकिन शांति के साथ थोड़ी परेशानी थी अगर उसे पहले ही बता दिया जाता तो वो बिल्कुल भी तैयार नहीं होती।
उसे छोड़कर भी नहीं जा सकते थे, अगर रात को उसकी नींद खुल गई और उसने उन सब को बिस्तर पर नहीं पाया, तब भी घर वालो तक बात पहुँचने का खतरा तो है ही इसलिए उन्होंने ये ड्रामा तैयार किया और अब वो इस ड्रामे को बखूबी पूरा कर रहे थे।

साक्षी,मीनल और शांति लगातार जंगल की ओर बढ़ रहे थे जबकि उनसे थोड़ी ही दूरी बनाकर उनके पीछे दिनेश और गोपाल भी आ रहे थे।
अंधेरी काली रात!चारों तरफ घोर सन्नाटा!! शांति के चेहरे पर परेशानी के भाव थे तो दूसरी ओर मीनल और साक्षी के चेहरे पर रोमांच था!!टॉर्च की रोशनी में वो तीनों जंगल की ओर बढ़ ही रहे थे कि तभी!!
"लग जा गले कि ये हंसी रात फिर हो न हो... "
साक्षी का फोन गुनगुनाने लगा ये उसके फोन की रिंगटोन थी। स्क्रीन पर केशर का नंबर फ्लैश हो रहा था ।साक्षी ने तुरन्त कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।अभी रास्ता लंबा था इसलिए वो शांति के कान में भनक तक नहीं पड़ने देना चाहती थी। पन्द्रह-बीस मिनट चलने के बाद जंगल शुरू हो गया शांति सिहर उठी " हम लोग घर वालों को बता देते है न!!"
"यार! तू भी न इतना तो आ ही गए है हम, आगे चल कर भी देख लेते है।" साक्षी बोली
"लेकिन जंगल में ऐसे रात को आना ठीक नहीं!! कहीं कुछ हो गया तो!!" शांति की आवाज में डर झलक रहा था
"कुछ भी नहीं होगा तू चल बस।" अबकी मीनल बोली
घनघोर जंगल की सीमा अब शुरू हो चुकी थी और साथ ही तरह-तरह की आवाजें भी आने लगी थी।शांति डर से सिमट कर चल रही थी तो मीनल और साक्षी बहुत खुश थे। थोड़ी-थोड़ी देर में साक्षी पीछे मुड़कर गोपाल और दिनेश को भी देख लेती थी। जंगल में अंधेरा और भी घना हो गया था!! लम्बे-लम्बे चीड़ के पेड़!! जिनकी चोटी अंधेरे आकाश में गुम हो जाती थी । सूखे पत्तों की चरमराहट!! लगातार आ रही थी ।शांति को लगा कि यही चरमराहट पीछे से भी आ रही है उसने कस कर साक्षी का हाथ पकड़ लिया। साक्षी बोली-क्या हुआ
शांति- पीछे से आवाज आ रही है!! पत्तों की चरमराहट की!!(बुरी तरह डर कर)
मीनल -पीछे से!! नहीं!! हमारे ही पैरों के नीचे से आ रही है वो आवाज ( मीनल तुरन्त बात को दबाने के लिए बोली)
साक्षी -हाँ ! पीछे से नहीं बल्कि हमारे पैरों की आवाज है वो।
शांति -लेकिन! मुझे तो!! पीछे से महसूस हो रही है!!
मीनल- तू चल! पीछे मत देख!!
शांति जैसे ही पीछे की तरफ सिर घुमाने लगी तो मीनल ने तुरन्त उसका सिर आगे की ओर कर दिया।
करीब पौने घंटे बाद वो सब लोग तय स्थान पर पहुँच गए ।केशर और उसका चचेरा भाई सोनू वहाँ पहले से ही मौजूद थे लेकिन उन्हें देखकर शांति को कुछ समझ नहीं आया। पीछे से दिनेश और गोपाल भी पहुँच गए,अब शांति और भी हैरान-परेशान हो गई।इससे पहले कि शांति कुछ बोलती मीनल ने उसे सब बता दिया।लेकिन शांति इतनी आसानी से शहरी बातों में कैसे आती वो अपने तर्क देने लगी।
शांति- जंगल में रात को आना सुरक्षित नहीं है,वापस चलते है।
साक्षी -अरे यार! अब जब आ ही गए है तो कुछ देर रुक जाते है न।
बहुत मुश्किल हुआ शांति को मनाना लेकिन आखिर उसे मानना ही पड़ा।
केशर और सोनू अब तक काफी लकड़ियां और सूखे पत्तें इक्कट्ठे कर चुके थे। सोनू ने लकड़ियों का एक छोटा सा ढेर बनाया और आग सुलगा दी।
"चलो! अब हमारी जंगल में मंगल डेयरिंग का दूसरा कदम भी पूरा हुआ। आओ सब इस आग के पास बैठ जाओ।" केशर अपना बैग रखता हुआ बोला। सभी आग के करीब आकर गोलाई में बैठ गए।
"कब से तमन्ना थी जंगल में रात बिताने की आज जाकर पूरी हुई।" साक्षी बोली
"अभी पूरी कहाँ हुई!? अभी तो पार्टी शुरू हुई है।" दिनेश बोला
"अरे! कुछ खाने को लाए भी हो! या बस यूहीं करले पार्टी।" केशर ने पूछा
"क्यों तू नहीं लाया क्या??" मीना बोली
"रुको! मैं क्या लाया हूँ अभी बताता हूँ। " केशर बोला और अपने बैग से कुछ सामान निकालने लगा ।उसने सोनू को इशारा किया और दोनों मिलकर एक पेड़ पर छोटे-छोटे बल्ब लगाने लगे । और फिर वो पेड़ जगमगा उठा।
"वाव!! सुपर यार ये तूने अच्छा किया।" मीनल बोली और फोन में सब के साथ सेल्फी लेने लगी।
अब साक्षी ने दिनेश से बैग लिया और उसमें से चिप्स,कुरकुरे,नमकीन वगैरह निकालने लगी।
"कोल्डड्रिंक नहीं लाए क्या?? " सोनू बोल पड़ा
" लाए है बाबा! सब लाए है।" मीनल बोली और दिनेश से बैग लेकर कोल्डड्रिंक निकालने लगी। सब खाते-पीते इंजॉय कर रहे थे कभी मोबाईल पर गाने चलाकर झूमते कभी साथ में मिलकर कोई गाना गाते।
"पानी है क्या??" सोनू ने अचानक से पूछा
"ओ शिट! पानी तो लाना भूल ही गए।" दिनेश बोला
"कोई बात नहीं! पास में ही पानी का प्राकृतिक छोटा सा झरना है, मैं और दिनेश जाकर ले आते है"गोपाल बोला
"नहीं!नहीं! दिनेश नहीं, उसे रास्ते का अनुभव थोड़ा कम है हम दोनों चलते है" केशर बोला
गोपाल और केशर पानी लेने चले गए, साक्षी ने मोबाईल में टाईम देखा रात के एक बज चुके थे ,शांति अपना दुप्पटा बिछाकर जमीन पर लेट गई,जल्द ही उसे नींद भी आ गई। बाकी सब बातों में मशगूल हो गए । काफी देर तक जब गोपाल और केशर नहीं आए तब सबको चिंता होने लगी ।सोनू बोला-हमें देख कर आना होगा!
"तुम दोनों जाओ देखो शायद भटक गए हो?!" साक्षी बोली
दिनेश और सोनू चले गए।शांति नींद में थी साक्षी और मीनल को अब थोड़ी चिंता हुई, कि तभी!! पत्तों की आवाज आई जैसे कई लोग दौड़ते हुए आ रहे हो ।उन दोनों ने तुरन्त मुड़ कर देखा लेकिन कोई नहीं था,वो दोनों हैरान सी चारों तरफ देखने लगी लेकिन कुछ नजर नहीं आया।
"कहीं! वो चारों मिलकर हमें डरा तो नहीं रहे!!" मीनल बोली
"शायद! यही बात है!!" साक्षी घबराई हुई बोली
तभी एक बहुत दर्दनाक! और तेज चीख उन्हें सुनाई दी किसी लड़की की चीख।दोनों बुरी तरह डर गई अब उन्होंने शांति को जगाना ठीक जाना और उसे भी जगा दिया ।
उधर केशर और गोपाल पानी लेकर वापस आ रहे थे कि तभी!! उन्हें अपने से कुछ दूरी पर एक चीड़ के पेड़ के समान लंबी पतली और सफेद आकृति दिखाई दी। दोनों की सांसे हलक में ही अटक गई केशर ने गोपाल को खींच कर तुरन्त पेड़ की ओट में कर लिया।
उसने सुना था अहेड़ी (जंगल की चुड़ैल) के बारे में और ये भी कि उसकी एक ही आँख होती है और वो भी सिर में जिसके कारण वो नीचे अंधेरे में देख नहीं पाती। वो लम्बी पतली सफेद आकृति सरारती हुई चल रही थी उसके चलने पर हवा चलने का आभास होता था एकदम ठंडी हवा।केशर और गोपाल दम साधे पेड़ की ओट में छुपे हुए भगवान को याद कर रहे थे!
दिनेश और सोनू थोड़ा सा आगे गए ही थे कि!! उन्हें भयंकर चीख सुनाई दी! लेकिन चीख विपरीत दिशा से थी।
"कही??? लड़कियाँ किसी परेशानी में तो नहीं??!" दिनेश बोला
"लेकिन! चीख तो उस तरफ से आईं है!!" सोनू बोला
"हमें वापस जाकर देखना होगा।" दिनेश बोला और वापस मुड़ गया लेकिन! अभी कुछ कदम ही चले थे कि!! सोनू ने उसे झाड़ियों के पीछे खींच लिया ।
"ये क्या हरकत है??" दिनेश बोला
"शऽऽऽऽ आवाज नहीं!! उधर देखो!!" सोनू अंगुली से इशारा करते हुए बोला
दिनेश ने गरदन घुमाई तो देखा, एक हलकी सी रोशनी फिर दो,फिर चार और फिर आठ फिर देखते ही देखते अनगिनत रोशनियां जगमगाने लगी
"ये क्या है??!"दिनेश फुसफुसाया
"शशऽऽऽऽ... आवाज नहीं!! देखो बस!!" सोनू बोला और दोनों चुपचाप देखने लगे। वो रोशनियां खासी गरमाहट पैदा कर रही थी सोनू और दिनेश पसीने से तर हो चुके थे।
थोड़ी देर तक वो रोशनियां यूहीं जगमगाती रही कभी इधर से उधर घूमती कभी स्थिर हो जाती और फिर एक सीधी कतार में चलने लगी।सोनू ने टुअल हुरेणा (रोशनी वाली भूतों की बारात) के बारे में सुना था और आज ये मसाण सामने थे I

मीनल ,साक्षी उस चीख से डरी हुई थी!!शांति उस चीख से बेखबर बैठी हुई थी कि तभी!! जोर से हवाएं चलने लगी पानी की हल्की हल्की फुहार सी होने लगी! शांति ने आकाश की ओर देखा!आकाश में चाँद मुस्करा रहा था। शांति जैसे सबकुछ समझ गई।
वो झट से उठी ,मीनल और साक्षी का हाथ पकड़ा और बोली "जल्दी चलों!!"
मीनल और साक्षी हैरानी से उसके साथ चल दी कुछ दूरी पर झाड़ियों के पीछे जाकर उसने उन्हें बैठने का इशारा किया। दोनों चुपचाप बैठ गई।
"हुआ क्या??! तू हमें ऐसे खींच कर क्यों लाई??" साक्षी बोली
"चुप रहो!! "शांति गुस्से से बोली
मीनल और साक्षी हैरानी से उसका मुंह देख ही रहे थे कि तभी!! छप-छप की आवाज होने लगी तीनों उधर देखने लगे ।पानी जैसी दिखने वाली बहुत सी आकृतियां पत्तों पर छप की आवाज करती हुई चल रही थी। उन आकृतियों से वो आग भी बुझ गई थी और पेड़ पर लगे सारे बल्ब भी बुझ गए थे। शायद यही जल समीण थे (पानी वाला भूत या शैतान)

केशर और गोपाल हैरान हो गए जब वो लम्बी सफेद आकृति बदहवाश सी इधर उधर भटकने लगी।
"लगता है उसे हमारी सुगन्ध मिल गई है!" गोपाल बोला
अब यहाँ से निकलना ही उनकी मज़बूरी थी! वो धीरे-धीरे पेड़ो की ओट लेते हुए आगे बढ़ने लगे!!
उधर टुअल (रोशनियों वाले भूत) ने दिनेश और गोपाल को महसूस कर लिया था। टुअल भी जल्दी जल्दी जल बुझ करते हुए इधर उधर तेजी से घूम रहे थे।
गोपाल ने दिनेश का हाथ पकड़ा और झाड़ियों की ओट में ही आगे खिसकने लगा।

सभी बचते बचाते एक ही जगह पर इक्कट्ठे थे और साथ ही इक्कठ्टे थे वो खौफनाक साए। एक तरफ से पानी की फुहार!! तो दूसरी तरफ से ठंडी हवाएं!! तीसरी और से गरमाहट!! वो सारी आकृतियां बहुत हलचल मचा रही थी!!! उन्हें इंसानी खुशबू मिल चुकी थी। भयंकर गरजना पूरे जंगल को कंपा रही थी।लंबी सफेद आकृति इतनी जोर से चीखती कि कान के परदे फटते महसूस होते थे!!!
साक्षी, मीनल,शांति,गोपाल,दिनेश,सोनू और केशर सब बुरी तरह कांप रहे थे!!! अब उन्हें अपनी बेवकूफी पर पछतावा हो रहा था।वो सब भगवान से प्रार्थना कर रहे थे आज बचा ले फिर दोबारा जंगल डेयरिंग के बारे में सोचेंगे भी नहीं!
और जैसे भगवान ने उनकी पुकार सुन ली! एक-एक करके वो सारी आकृतियां गायब होती है!!
वो सब हैरानी से देखने लगे! तभी!! एक आकृति फिर से नजर आई!!
उसके हाथ में एक टॉर्च जैसी रोशनी चमक रही थी।वो सब सिहर उठे उन्हें लगा कोई दूसरे किस्म का मसाण (भूत) आ चुका है ।तभी! शांति जोर से चीखी!!
"ये! तो पंडितजी है!!"शांति बोली
शांति झाड़ियों से बाहर निकल आईं
और बाकी सब भी झट से पंडितजी के पास आ गए
"आप ने भगाया उन्हें?"साक्षी ने पूछा
"तुम लोग इस वक़्त जंगल में क्या कर रहे हो??"पण्डित जी ने साक्षी के सवाल को नजरंदाज करते हुए पूछा
"वो..हम रास्ता भटक गए थे"केशर ने झूठ बोला
"अच्छा!! मुझसे होशियारी!!तुम लोगों का सारा सामान उधर पड़ा है ,तुम लोगों के सामान को देख कर ही मुझे पता चल गया जंगल में उठते खौफनाक मंजर का कारण
इतना भयंकर और खौफनाक नजारा मैंने पहले कभी नहीं देखा तीन शक्तियों का एक जगह इक्कठा होना मतलब ! समझते हो तुम लोग!
पंडित जी घूर कर उन सबको देखने लगे
अगर मैं समय से न पहुँचता तो तुम लोगों का न जानें क्या होता??! और आगे आने वाले समय में भी तीन मसाणो का ये खौफनाक मंजर न जाने क्या तबाही मचाता!!
सब अब भी सहमे हुए थे और पंडित जी की बातों पर शर्म से धरती में नजर गड़ा कर खड़े थे।
अब सब सामान उठा लो! और चलो तुरन्त यहाँ से!!
सभी ने अपना सामान समेटा और पण्डित जी के पीछे चल दिए।
सभी बुरी तरह डरे हुए थे
"ये उनका वक़्त है! और उनकी जगह भी! इस तरह किसी की जगह पर आकर उनके वक़्त में खलल डालना ठीक नहीं।"
पंडित जी चलते चलते उनको समझाते हुए बोलते रहे
जंगल से बाहर आकर पंडित जी उन सब से बोले
"अब तुम लोग जाओ और ध्यान से जाना । इस वक़्त सभी साथ ही जाओ। सुबह के वक़्त तुम अपने गाँव के लिए निकल जाना।" सोनू और केशर की ओर देखते हुए पंडित जी बोले
सब ने चुपचाप सहमति में सिर हिला दिया।
"जाओ!" पंडित जी आदेशात्मक स्वर में बोले
सब किसी यन्त्र की भांति चलने लगे कुछ कदम आगे बढ़कर शांति बड़बड़ाई " पंडित जी का गाँव तो! हमारे गाँव से भी आगे है!फिर पंडित हमारे साथ क्यों नहीं आ रहे??!"
"क्या बोल रही है तू!!" साक्षी उसकी बात को सुनते हुए बोली
"यही की पंडित जी का गाँव हमारे गाँव से भी आगे है।" शांति थोड़ा जोर से
"अच्छा! फिर पंडित जी क्यों नहीं आए?!" मीनल हैरान होते हुए बोली
सबने पीछे मुड़ कर देखा जहाँ पंडित जी थे वहाँ पर सबकी नजर रुकी
एक सफेद! धुआं धुआं सा साया! उड़ता हुआ जंगल की ओर जा रहा था।ये देख कर सबकी घीघी बन्ध गई।
और सब दौड़ते हुए घर की तरफ जाने लगे।सब समझ गए थे कि वो पंडित जी नहीं बल्कि कोई अच्छा साया था जो पंडित जी का रूप धर कर उनके सामने उनको बचाने गया था।सब बिना रुके घर की तरफ तेज कदमों से चलने लगे।एक ही रात में उन्होंने कितना कुछ देख लिया था।

अब उनकी सारी डेयरिंग हवा हो चुकी थी।