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रात - 3

भाग :~ 3

होली की सुबह, जब स्नेहा पैकिंग कर रही थी, तब भक्ति का फोन आया, "स्नेहा! तुम्हें और कितनी देर लगेगी? मैं तुम्हें पांचवीं बार कोल कर रही हूं। Please जल्दी आओ।" भक्ति एक साथ इतना बोल जाती हैं। स्नेहाने कहा, "भक्ति! तुम पहेले साँस ले लो। मैं तुम्हारे सामने पाँच मिनट में हाजिर हो जाऊँगी।" भक्ति बोलती है, "ठीक है, जल्दी आओ।" स्नेहा बोलती है, "हाँ मैं आ रही हूं। Ok. Bye". भक्ति बोलती है, "Ok.Bye".

स्नेहा घर से बाहर आई और रवि का इंतजार करने लगी। रवि कार लेकर आया। स्नेहा जल्दी से कार में बैठ गई। रवि कार चलाने लगा। कार में "एक तुम पे ही मरते रहेना दिल की आदत हैं" गाना बज रहा था। इस गाने को सुनकर स्नेहा और रवि रोमांटिक हो गए। वे एक-दूसरे का हाथ पकड़ना चाहते थे, लेकिन वे हिचकिचा रहे थे। रवि और स्नेहा दोनों धीरे-धीरे एक-दूसरे की तरफ हाथ बढ़ा रहे थे। फिर उन्होंने एक-दूसरे का हाथ पकड़ लिया। रवि का एक हाथ गाड़ी के हैंडल पर था और दूसरा हाथ स्नेहा के हाथ में था। जब एक कार अचानक सामने आ गई तो स्नेहा के हाथ से रवि का हाथ फिसल गया।

बस स्वर्णपुर जाने के लिए आ गई थी। विशाल, भाविन और ध्रुव आकर, रवि का इंतजार कर रहे थे। भक्ति, अवनी और रिया भी स्नेहा का इंतजार कर रही थे। रवि और स्नेहा वहाँ पहुँच गए। विशाल ने कहा, "तुम दोनों को कितना समय लगाते हो! आज तुम सब का आखिर में आये हो। चलो अब जल्दी चलो।" सभी ने एक साथ कहा, "चलो! चलो!"

श्रद्धा और साक्षी दोनों एक दूसरे से बात कर रहे थे। साक्षी का ध्यान बातचीत में नहीं था। वह किसी की ढूंढ रही थी। श्रद्धा बोली, "साक्षी! तुम किसको ढूंढ रही हो?" साक्षी बोली, "शिव सर को।" इतना कहने के बाद उसने प्रोफेसर शिव को वहाँ आते हुए देखा। वह आइशा मैडम से बात कर रहे थे। यह देखकर साक्षी को गुस्सा आ गया।

प्रोफेसर शिव ने आकर कहा, "आप सभी तैयार हो। एक रहस्यमय यात्रा के लिए?" सभी एक साथ बोले, "Yes Sir"। फिर सभी लोग बस में बैठने लगे। स्नेहा, अवनी, रिया और भक्ति एक साथ बैठे और ध्रुव, भाविन, विशाल और रवि पिछली सीट पर एक साथ बैठे। बस जाने के लिए तैयार थी। बस के स्टार्ट होते ही सभी ने एक साथ कहा, "गणपति बप्पा मोरिया"।

बस जंगल में से गुजर रही थी। पूनम की रात थी। आकाश में सोलह कलाओं से खीला हुआ चाँद अपनी रोशनी बिखेर रहा था। बस में कोई दोस्तों या सहेलियों से मस्ती कर रहा था, तो कोई गीत गा रहा था। स्नेहा बस में अपनी सहेलियों से बातें कर रही थी और रवि को देख रहीं थीं। कान में हेडफोन लगा के म्युजिक सुनते हुए रवि भी स्नेहा को देख रहा था। अचानक ही बस बंद हो गई। सब छात्र बस से नीचे उतर गये। जब ड्राइवर ने चेक किया तो बस में कोई भी प्रोब्लेम नहीं थी। प्रोफ़ेसर शिवने सब को वापस बस में बैठने को कहा।

सभी स्टूडेंट्स बस में बैठ गये। स्नेहा अपनी सहेलियों से बातें कर रही थी तब उसे ऐसा लगा कि अचानक ही बस की बहार कुछ बहुत तेजी से गुजर रहा था। स्नेहा बस की खिड़की से बाहर देखती है। बहार कुछ भी नहीं था। स्नेहा अपना वहेम है ऐसा मान के वो फिर से अपनी सहेलियों से बातें करने लगती है। थोड़ी देर बाद बहार से कुछ डरावनी आवाज आई, स्नेहाने जब खिड़की से बाहर देखा तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गई।

अवनी ने स्नेहा को धक्का दिया और बोली, "क्या हुआ?" कुछ देर के लिए स्नेहा को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ। अवनी ने स्नेहा को फिर से धक्का दिया और कहा, "अरे .... क्या हुआ?" स्नेहा ने कहा, "कुछ नहीं।" पूरे सफर में स्नेहा अपने विचारों में खोई रही। बस स्वर्णपुर गाँव पहुँची। सभी गांव पादर में उतरे। वहां होलि जलाइ जा रही थी। लोग वहां होली के आसपास प्रदक्षिणा कर रहे थे। कॉलेज के सभी स्टूडेंट्स, प्रोफेसर शिव और आइशा मैडम भी गाँव के लोगों के साथ शामिल हुए। सब होली के आसपास प्रदक्षिणा कर रहे थे और होली के आसपास ढोल के ताल पर नाच रहे थे। रवि और स्नेहा भी एक साथ होली की प्रदक्षिणा करने लगे। स्नेहा ने होली में शक्कर के टुकड़ों का हार पहनाया और रवि ने डहेलिया, खसखस, खजूर और चनेबोर से बबूल के कांटे भरे और उसे होली में डाला। जब ध्रुव ने रवि से पूछा, "रवि, ये तुमने क्या किया?" रवि ने कहा "यह एक पुरानी परंपरा है,"। फिर सभी ने होली के आसपास डांस करना शुरू कर दिया।

सबने खूब मस्ती की। सब लंबी यात्रा और नृत्य से थक गये थे। उनके रहने की व्यवस्था गाँव की एक पुरानी हवेली में की गई थी। गांव में पहले से बताया था इसलिए हवेली, जो लंबे समय से बंद थी, उसको खोल दिया गया था और साफ किया गया था। चार छात्रों को एक कमरे में रहना था। तो भाविन, विशाल, ध्रुव और रवि एक कमरे में रहे और भक्ति, रिया, अवनी और स्नेहा एक कमरे में रहे। सब इतना थक गए थे कि उनको बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई।

हवेली में अंधेरा ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। रवि की नींद अचानक उड़ जाती है। रवि को कमरे के बाहर से एक औरत की चलने की आवाज सुनाई दी। रवि डर गया। रवि का बिस्तर खिड़की के बगल में था। अचानक खिड़की से कोई बहुत तेजी से गुजरा। रवि का डर बढ़ता जा रहा था। रवि ने दरवाजा खोला और बाहर वो गया। उसने बाहर जाकर देखा तो वहाँ कोई नहीं था। रवि कमरे में गया और उसका वहेम था ये सोचकर सो गया।

 सुबह सभी उठकर तैयार हो गए। रवि स्नेहा के कमरे में गया। कमरे में कोई नहीं था। अवनी, रिया और भक्ति वहां से चले गए थे। रवि कमरे में गया और स्नेहा के गालों को गुलाबी रंग से रंग देता है। स्नेहा ने अपना गाल रवि के गाल से लगाया और उसके गाल पर भी रंग लगा दिया। फिर वो सबके पास चले गए।

सभी गाँव के पादर में रंगों से खेल रहे थे। इसमें कॉलेज के स्टूडेंट्स भी शामिल हुए। उन्होंने गाँव में कभी होली नहीं मनाइ थी, इसलिए वो बहुत उत्साहित थे। सभी बड़े मजे से होली खेली ।

शाम को सब लोग फ्रेश हुए और हवेली की छत पर बैठ कर बातें करने लगे। रवि और स्नेहा दोनों गुमसुम थे। भक्ति ने दोनों से पूछा, "तुम दोनों कुछ क्यों नहीं कहते? क्या हुआ?" रवि और स्नेहा दोनों एक साथ कहते हैं, "कुछ नहीं"।

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