AYURVED EVAM ALLOPATHY books and stories free download online pdf in Hindi

आयुर्वेद तथा एलोपैथी

बाबा रामदेव! एक सफल योगगुरु! किसी परिचय की आवश्यकता नहीं! अपने दम पर योग की महिमा को पुनर्स्थापित करने में सफल! योग को स्वास्थ्य से जोड़ा! आजकल एक नए विवाद के प्रणेता बने! भारतीय आयुर्वेद बनाम एलोपैथी का! देश में बवाल मचा! पहले से ही अत्यधिक संघर्ष। अब एक नए विवाद में देश उलझा। रोगी जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहा है। हम बड़े - हम बड़े का खेल जारी। कोरोना संक्रमण से देश के तीन लाख से अधिक लोगों काल के मुख में चले जाना। कैसे इस विपदा से उबरें? इस पर मंथन के बदले एलोपैथी और आयुर्वेद के विवाद में उलझे। अभी कोरोना ने सभी पद्धतियों को मात दी है। कौन अच्छा है – बुरा है – इसका वक्त नहीं है। आज के समय में पीड़ित एलोपैथी भी लेता है साथ ही उसी वक्त आयुर्वेद की तरफ भी जाता है। इस दोनों के बीच में झूलते हुए मरीज दम तोड़ देता है। आज के समय में दोनों पद्धतियों में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिए। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। आयुर्वेद भारतीय संस्कृति का अंग है। यह पांच हजार से अधिक वर्षों से चली आ रही है। इसकी महत्ता के बारे में सभी जानते हैं। त्वरित लाभ के लिए एलोपैथी काम आती है। यह अलग बात है कि कोरोना के समय में अभी यह कारगर साबित नहीं हो रही है। गंभीर मरीजों के ऊपर एलोपैथी उतनी कारगर साबित नहीं हुई। इसके दुष्परिणाम भी ‘कवक’ के रुप में देखने को मिल रहे हैं। आज कई प्रकार के ‘कवक’ सामने आ रहे हैं। अब मरीज इसके बारे में सुनकर अपना आत्मविश्वास खो रहे हैं। शल्यक्रिया तो एलोपैथी में सर्वविदित है। नए-नए आविष्कारों से यह पद्धति विश्व में अपनी पैठ बना पाने में कामयाब है। मरीज इधर से उधर भाग-झूल रहे हैं। कोरोना की मारक प्रवृति ने तो देश के कई चिकित्सक की जान भी ले ली है। कई चिकित्सक अपने सेवाधर्म के पालन में जिन्दगी से चले गए। बाबा रामदेव के एक बयान से चिक्तिस्कों का समूह उबल पड़ा। कानूनी धमकी मिलने लगी। अभी के समय में आपसी भेदभाव भूलकर सभी मरीजों को बचाने में लग जाएं। लड़ना-झगड़ना बाद में होते रहेगा। अभी पहले दुश्मन को पराजित करने का वक्त है। आयुर्वेद के आचार्य अपनी हजारों वर्ष पुरानी वैज्ञानिक पद्धति अच्छा बताएँगे। इसे विशुद्ध भारतीय पद्धति कहेंगे। इसे सर्वोपरि बताएँगे। वैसे अभी आयुर्वेद को अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और अन्य देशों ने भी अपनाया है। हजारों वर्ष पहले जब एलोपैथी का बोलबाला नहीं था उस वक्त से आयुर्वेद स्वस्थ जीवन का मार्ग बता रहा है। प्राचीन भारत में आयुर्वेद ही रोगों के उपचार और स्वस्थ जीवन शैली व्यतीत करने का सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना जाता था। समय के साथ-साथ चिकित्सा-पद्धति बदली। एलोपैथी के क्षेत्र में अधिक निवेश पश्चिमी देशों ने किया। नयी तकनीकों की खोज हुई। यह विश्व में अपनी पैठ बना सका। अब इस मामले में एक-दूसरे को कम नहीं कर सकते हैं। जहाँ जिसकी आवश्यकता है, उसे लेकर चल सकते हैं। आयुर्वेद सात्विक दृष्टिकोण के रूप में जाना जाता है। भौतिक, मौलिक, मानसिक और आत्मिक ज्ञान से आयुर्वेद केन्द्रित होकर चिकित्सा में ध्यान लगाता है। आयुर्वेदिक उपचार अपने व्यापक प्राकृतिक उपचार के तरीकों के लिए लोकप्रिय है जो बीमारियों पर काम करते हैं और मानव शरीर और मस्तिष्क में सुधार करते हैं। आयुर्वेद वर्षों से विकसित हुआ है और अब योग सहित अन्य पारंपरिक प्रथाओं के साथ एकीकृत है। आयुर्वेद की खोज भारत में ही हुई थी और भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से आयुर्वेद का अभ्यास किया जाता है। विकासवाद जैविकी यह मान कर चलता है कि विभिन्न समाजों ने नैतिक सिद्धांत बनाए ही इसलिये हैं कि लोग एक - दूसरे के साथ सहयोग करें। नैतिक नियमों की नींव मानवीय आत्म कल्याण पर टिकी होती है. औरों के संग जीने की हमारी चाह के चलते इनमें संतुलन बैठाया जाता है. विकास के क्रम में यदि कोई व्यक्ति दूसरे की सहायता करता है तो उसे भी सहयोग मिलेगा। अतः आज के समय में हमारे आयुर्वेदाचार्य तथा एलोपैथी के चिकित्सक आपसी विवादों में न पड़ते हुए एक दूसरे के पूरक बनते हुए अपना चिकित्सक-धर्म निभाएं तथा पीड़ितों की रक्षा इस अदृश्य विषाणु से करें।