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सजा---एक अनोखी प्रेम कथा

दरोगा अनवर तैयार होकर थाने के लिए निकल पड़ा।घर से थाने तक का रास्ता सड़क से होकर लम्बा था।लेकिन एक छोटा रास्ता भी था,जो सुनसान जंगल के बीच से जाता था।यह रास्ता कच्चा था।इस रास्ते से इक्के दुक्के लोग ही जाते थे।
दरोगा अनवर चुपचाप चला जा रहा था।अचानक उसे खुसुर पुसुर की आवाज सुनाई पड़ी।इन आवाजो को सुनकर उसके पुलसिया कान सतर्क हो गए।जिस तरफ से आवाज आ रही थी।अनवर दबे कदमो से उस तरफ बढ़ गया।पास पहुचने पर आवाजे साफ सुनाई देने लगी।ये आवाजे औरत आदमी की थी।आगे बढ़ने पर उसे झाड़ियों के पीछे कुछ हरकत नज़र आई।वह फुर्ती से झाड़ियों के पीछे जा पहुंचा।वहां का दृश्य देखकर वह ठगा सा रह गया।एक युवक और एक युवती वासना का खेल खेल रहे थे।दरोगा रौबदार आवाज में बोला,"यह क्या कर रहें हो तुम?"
आवाज सुनते ही वे हड़बड़ाकर अलग हो गए।उन्होंने खड़े होकर देखा तो दंग रह गए।उनके सामने दरोगा अनवर खड़ा था।लम्बे तगड़े दरोगा को देखकर उनके होश उड़ गए।
"सर् सर् आप?"युवक की जुबान लड़खड़ा गई।
"क्या नाम है तुम्हारा?"
"सलीम".
"क्या करते हो तुम?"
"मेडिकल स्टूडेंट हूँ।"
"और ये कौन है?"
"आयशा।नर्स है।"
"तो दोनों इस जंगल मे चोरी छिपे प्यार का खेल खेल रहे थे,"अनवर रौबदार आवाज में बोला,"जानते हो हमारे देश मे अवैध संबंध बनाने की सजा क्या है"?
"जानता हूँ सर्"।युवक गर्दन झुकाकर बोला।
"जानते हो फिर भी?"
"हम दोनों एक दूसरे को चाहते है।प्यार करते है और एक दूसरे के बिना नही रह सकते।"
"प्यार करते हो तो शादी क्यो नही कर लेते?"दरोगा अनवर व्यंग्य मिश्रित स्वर में बोला,"शादी कर लोगे तो इस तरह चोरी छिपकर प्यार करने की जरूरत नही पड़ेगी।"
"इसमें सबसे बड़ी अड़चन मेरे अब्बा है।"
"क्यों?उन्हें क्या ऐतराज है?"
"एक तो आयशा विधवा है।दूसरे गरीब।मेरे अब्बा ऐसी लड़की से मेरा निकाह करना चाहते है।जो साथ मे ढेर सारा दहेज़ भी लाये।"
"और तुम क्या चाहते हो?"
"मैं आयशा के बिना नही रह सकता,"सलीम आयशा की तरफ मख़ातिबहोकर बोला,"इसके अम्मी अब्बा गुज़र चुके है।शौहर के इन्तकाल के बाद ससुराल वालों ने भी इसे निकाल दिया है।इसे मैं अपनी बनाना चाहता हूँ।"
"और तुम?"अनवर ने आयशा से पूछा था।
"मैं सलीम को जी जान से चाहती हूँ।"
"थाने चलो।"अनवर दोनो की बात सुनकर बोला।
"सर् हमे थाने मत ले चलो।"सलीम और आयशा ने खूब मिन्नते,खुशामद की लेकिन वह नही माना और दोनों को थाने ले आया।अनवर ने सलीम से नंबर लेकर उसके अब्बू को फोन मिलाया।रफीक सरकारी मुलाजिम था।तुरंत दौड़ा चला आया।
"दरोगा जी मेरे बेटे ने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया।जो आप उसे थाने ले आये।"
"थाने मे तो उसे ही लाया जाता है, जो जुर्म करता है।"
"मेरे बेटे ने चोरी की है।डाका डाला है या किसी का खून किया है।"
"मियां आपके बेटे ने ऐसा कुछ नही किया,"अनवर बोला,"आपके साहेबजादे जंगल मे इस औरत के साथ रंगरेलियां मना रहे थे।
"क्या?शर्म नही आयी बदजात ऐसी घिनोनी नीच हरकत करते हुए,"रफीक अपने बेटे को डांटते हुए बोला,"पैर पकड़कर तौबा कर।बोल अब कभी ऐसी नीच हरकत नही करूँगा।"
"मियां माफी मांगने से कुछ नही होगा।आप तो जानते है।नाजायज सम्बन्ध बनाने की सजा हमारे देश मे क्या है?"
"ऐसा मत करिए दरोगाजी ।मेरे तो एकलौता बेटा है।अगर इसे कुछ हो गया तो मैं तो जीते जी मर जाऊंगा।मेरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।"
"मियां रफीक मे क्या कर सकता हूं।मैं ठहरा कानून का रक्षक।मेरी तो ड्यूटी है,कानून तोड़ने वालो को सजा दिलाना।"अनवर,रफीक की बात सुनकर बोला,"मैने आपके लाडले शरीफजादे को खुलेआम इस लड़की के साथ गुलछर्रे उड़ाते हुए पकड़ा है।"
"रहम करिए दरोगाजी।मेरे बेटे की जिंदगी अब आपके हाथ मे है।आप मेरे से चाहे जितने रुपये ले ले।लेकिन मेरे बेटे को छोड़ दीजिए।"
"क्या कहा रिश्वत?अनवर को रिश्वत देने की हिमाकत आज तक किसी ने नही की।जानते हो एक पुलिस अफसर को रिश्वत देने का क्या अंजाम होता है?"दरोगा अनवर नाराज होते हुए बोला,"
"माफ करना दरोगाजी।मैं बेटे के मोह में आप से कह गया,"रफीक दरोगा से माफी मांगते हुए बोला,"मेरे बेटे की जिंदगी अब आपके हाथ मे है।चाहे टी मार दीजिये चाहे छोड़ दीजिए।"
अनवर कुछ देर बाद सोचकर बोला,"तुम्हारे बेटे की जान एक ही तरकीब से बच सकती है।"
"क्या?"
"पहले वादा करो।मैं जो कहूंगा उस पर अमल करोगे?"
"दरोगाजी जैसा आप कहेंगे वैसा ही करूँगा।"
तो ठीक है।अनवर ने थाने में ही काजी को बुला लिया।सलीम का निकाह आयशा से करा दिया।
इस सजा से अनवर ने दो प्रेमियों को मिलाने के साथ इस्लामिक कानून की सजा से बचा लिया