Sahab and Nishu - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

साहब और नीशू - 5




रास्ते मे ये सब सोचते सोचते कब पाठशाला कब आ गई ये पता ही नहीं चल पाया कि तभी पाठशाला जाने के बाद मास्टरजी को देखा तो उसे सब याद आ जाता है, उसने तभी तो कुछ कहा नहीं पर उसे उस दिन की याद आने पर खुद को शर्म महसूस करने लगी। कि केसे उसने उनको चिकित्सालय के कमरे से बहार निकाला था,और खुद को कोस रही थी। उसी पल उसे वो सब याद आता है कि केसे उसने उसका ख्याल रखा था। कि उसे खाना ना खाने पर अपनी माँ की ममता के जेसे प्रेम से उसे हर रोज खाना खिलते थे, बिस्तर खराब करने पर उसे समझाते थे, उस के कपड़े खराब करने पर उसको प्यार से समझाते की एसा नहीं करना चाहिए तुम्हें, तभी उसे याद आता है कि उसके पीरियड के समय में होने की वज़ह से कितनी जहमत उठाते थे। पर कभी उन्होंने मुझसे अश्लील बर्ताव नहीं किया, ये सोच मे डूबी निशा को अचानक किसीकी आवाज़ आई उसने देखा तो दंग रह गई मास्टरजी ने पूछा कि ध्यान कहा पर हे तुम्हारा? निशा एकदम चौक गई, थोड़ी देर शांत हो गई, तभी पाठशाला की घंटी बजने की आवाज सुनाई दी और सभी बच्चे अपनी अपनी कक्षा में से बाहर आने लगे, अपने अपने घर की ओर बढ़ने लगे, निशा भी उन सभी बच्चों के साथ अपने घर की ओर बढ़ ही रही थी, तभी रास्ते में मास्टर जी का कर देख कर वहां रुक गई। और उसने याद किया कि घर की चाबियां कहां पर है। उसे याद आता है, की इस फूल छोड़ के गमले के नीचे चाबियां है, तुरंत वहा से चाबी ले कर घर को खोलती है। अंदर जाती है, वहा सब बिखरा प़डा है यह देख कर वहा सब ठीक करने लगती है , तब उससे जुड़ी सारी चीजे देख कर वो सब याद करने लगी और वहा से उस कमरे में पहुची जहा वह रहती थी, उसके वह कपड़े, उसके सारे जेवर और उसके खिलौने देख कर उसकी आँखों मे पानी आ गया। तभी डोर बेल की आवाज सुनाई देती है। वह तुरंत जा कर देखती है, तो मास्टरजी खड़े थे, वो निशा को यहा देख कर अचंभित थे कि ये यहा केसे, तभी निशा अंदर आने का कहती हैं। दोनों अंदर आते हैं, निशा के ना होने की वज़ह से मास्टरजी ने खाना भी नहीं पकाया था। सब अस्त व्यस्त बिखरा हुआ है , निशा ने सब ठीक करके खाना पकाया , पर उसे खाना अच्छे से नहीं आने की वज़ह से जला हुआ था । फिर भी दोनों ने कुछ भी कहे बगैर खाना खा लिया, फिर दोनों सोफ़े पे आके बेठे, नाही निशा कुछ बोल रही थी और नाहीं मास्टरजी ने कुछ कहा, एकदम शांति छाइ हुई थी कि तभी अचानक निशा कहती हैं कि, साहब ये शब्द मास्टरजी के कानो मे पड़ते ही वह सोच से बाहर आकार कहते हैं कि बोलो क्या कहती हो नीशू, ये सुनते ही निशा खुशी का ठिकाना नहीं रहता मानो कुछ बदला ही नहीं वहीं निशा और वहीं मास्टरजी, फिर थोड़ी देर शांति हो जाती है।
उस और निशा के पाठशाला छूट ने के बाद भी निशा घर ना आने पर सरोजिनी चिंता मे थी, तभी अचानक उन्हें कोई आके बताता है, कि निशा मास्टरजी के घर पर हे,