Path of Choice - Kanta Roy books and stories free download online pdf in Hindi

पथ का चुनाव-कान्ता रॉय

पथ का चुनाव:कान्ता रॉय
पथ का चुनाव कथा संग्रह कांता रॉय की कुल 134 लघु कथाओं का संग्रह है जो ज्ञान गीता प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित है।
संग्रह की लघु कथाएं बड़े विशाल क्षेत्र में फैले कथ्य विषय को छूती हैं । इन लघुकथाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह लघु कथाएं केवल स्त्री विमर्श को ही नहीं जगाती, इन के दायरे में दलित विमर्श, पुरुष विमर्श से लेकर पशु विमर्श तक आते हैं । दांपत्य संबंधों और स्त्री पुरुष रिश्तों के प्रत्येक पक्ष को यह लघु कथाएं स्पर्श करती हैं ।कुआं और खिड़की दरवाजे भी कांता रॉय की कहानियों में स्पंदित होते हैं।
संग्रह में 14 लघु कथाएं दो पेज तक गयीं हैं , तो एक लोककथा नीरजा तीसरे पेज तक फैली है, जबकि कुल 32 लघुकथाएं तो एक पन्ने पर दो-दो के शामिल हो जाने से कुल 16 पेज पर ही छप गई हैं । बाकी समस्त लोक कथाएं एक पूरे पन्ने या आधे पर फैली हैं । इससे लघुकथाओं के आकार का एहसास होता है ।
आइए संग्रह में कुछ लघुकथाओं पर विचार करते हैं ।
एक लघुकथा में प्रेम विवाह के बाद पति के बैकग्राउंड को निरा देहाती जानते ही तुरंत ही नवविवाहिता पत्नी वापस लौटने की जिद करती है ।यह छोटी सी लघुकथा नई भवना व कथ्य प्रारंभ करती हुई खत्म हो जाती है अर्थात नई कहानियां सृजित कर देने की गुंजाइश छोड़ती है । यह लोककथा "बैकग्राउंड "बहुत छोटे आकार में ही समाप्त हो जाती है, लेकिन बहुत सारी आशाओं को जन्म दे जाती है। (बैकग्राउंड पृष्ठ 32 )
पति की उपेक्षा का शिकार "सावित्री "तीन बच्चों की मां होने के बाद भी खुद अन्य पुरुष से रिश्ते बना चुकी है और एक दिन जब पकड़ी जाती है तो उसे मोहल्ले के लोगों व पति के सामने लांछित होना उतना बुरा नहीं लगता ,जितना अपनी बच्ची को सामने पाकर वह शर्मिंदा होती है । (पतिता पृष्ठ 33)
बाकायदा ब्याह करके लाई गई रमा को गर्भवती जानकर उसका पति रणधीर सिंह उसे मार ही देना चाहता है कि रमा उससे सीधा सवाल करती है -"शादी करके लाया तो मेरी जिम्मेदारी क्यों नहीं उठाई "साथ ही सूचना देती है "मैं बाहर जाकर जात धर्म नहीं बिगाड़ लाई हूं यह तेरे घर का ही वारिस है, पूछ तेरे चाचा से!" तो घर में सबको सांप सूंघ जाता है। फिर सहसा पिता निर्णय देते हैं "मिट्टी डालो बात पर सब ठीक है !(घर की बात प्रष्ठ 100 )
कांता जी के इस संग्रह में राजनीतिक कहानियां भी हैं । विकसित हो चुके एक ग्राम के निवासियों को बुधिया और उसके पति की फूस की झोपड़ी नहीं सुहाती। उनके घर के साथ कुछ बुरा हो इसके पहले बुधिया का पति कहता है " आ रे बुधिया! अब यह फूस हटाना ही पड़ेगा। अपनी पत्नी के सवाल पर वह उत्तर देता है "कहत रहे कि फुसहा घर गांव के विकास में घोड़े की लीद पर उगे कुकुरमुत्ता के समान हैं ।(विकास यात्रा प्रश्ठ104)
एक अन्य कथा देखिए "सुना है बापू का पुनर्जन्म होने वाला है इस साल !"
"अरे हां दुनिया के ज्योतिषियों ने ही गणना करके यह समाचार जारी किया है। ना !'
"वह तो राम राम ही जपते हैं और हमारी राजनीति तो राम राम के नाम पर ही चलती है !"(अपना काम बनता है पृष्ठ 132)
कांता राय को ज्ञात है कि लघु कथा के संवाद गहरे अर्थ लिए होना चाहिए, जो छोटे भी हों, लेकिन अपनी बात पूरी कह जाते हो और लंबा अर्थ देते हों। इसीलिए एक हरे संवादों की जगह वे बहुअर्थी संवाद लिखती हैं। ऐसा संग्रह की अनेक लघुकथाओं में देखने को मिलता है।
संग्रह की एक अनूठी लघुकथा देखिए- अपने बूढ़े मां-बाप को घर आया देख स्वार्थी बेटा दरवाजे बंद कर देता है कि बहू खिड़की से बाहर अपने सास-ससुर को देख दरवाजे खोलने लगती है, कि पति साफ मना कर देता है । तब पत्नी जिदकर के द्वार खोलती है। इस लघुकथा में खिड़की और दरवाजे भी मानव मन की तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करते नजर आते हैं। यथा "दरवाजे को जब घर के बुजुर्ग के मुंह पर धकेला गया तो गुस्से से भरा हुआ वह धड़ाक से बहुत तेज आवाज कर बैठा।"
" खिड़की जोर-जोर से धड़कने लगी"
"खिड़की ने सहम कर दरवाजे की ओर देखा।"
" दरवाजा और कुंडी दोनों चहक कर खुल गए ।"
(घर के भगवान पृष्ठ 85)
कांता राय की कलम इस रचना में निष्प्राण खिड़की दरवाजे में भी प्राण का संचार कर देती है, एक कुशल रचनाकार का यह दुर्लभ गुण है ।
अनेक लघुकथाओं में कांता राय बहुत कलात्मक तरीके से एक रहस्य कथा बुनती हैं और अंत में ऐसा कुछ कह देती हैं कि पाठक ठगा सा रह जाता है। लघुकथा चेहरा के कुछ अंश देखिए
" मैं अनाथ आश्रम से भाग आई हूं , वो लोग मुझे आज रात के लिए कहीं भेजने वाले थे।" दबी जुबान से वह बड़ी मुश्किल से कह पाई !₹।
"क्या ?अब कहां जाओगी ?"
"नहीं मालूम!"
" अब आखरी बार पूछता हूं, मेरे घर चलोगी ,हमेशा के लिए!"
उसने झट लड़की का हाथ कसकर थामा और तेज कदमों से लगभग उसे घसीटते हुए घर की तरफ बढ़ चला ।
उसके आने भर की आहट से दरवाजा खुल चुका था ।वह बहुत भौंचक्की खड़ी रही ।
"यह लो संभालो इसे !बेटी लेकर आया हूं हमारे लिए !अब हम बांझ नहीं कहलाएंगे!"( चेहरा पृष्ठ 34 )
पथ का चुनाव शीर्षक लघु कथा में बड़ी उम्र के वर से ब्याहने को विवश लड़की मंदिर के टीले पर चढ़कर आत्महत्या करने जा रही है कि उसमें जिजीविषा आ जाती है और वह लौट के अपने पिता को निर्णय सुनाती है -"पापा मैं तब तक शादी नहीं करूंगी जब तक कोई नौकरी ना मिले मुझे!" ( पथ का चुनाव पृष्ठ 35 )
यहां आकर लघु कथा समाप्त हो जाती है पर उन सवालों का जवाब नहीं दे पाती जो खुद नायिका ने अपने अंतर्द्वंद में उठाए थे, मसलन " धनहीन दुर्बल बाप' व नायिका के ब्याह हेतु हां कर देने के बाद मिलने वाले बड़ी उम्र के कमाऊ तहसीलदार के सहयोग से "दूसरी बहनों का निर्वाह "होने वाला था उसका क्या होगा ?
कुछ अन्य लघुकथाएं भी अपना पूरा सार बताए बिन समाप्त हो गई हैं ,जिनमें (मेसी पृष्ठ एक सो एक) नई राह (पृष्ठ 107) छुटकारा व रामअवतार (पृष्ठ 108) तमाशबीन (पृष्ठ 39) आदि ।
डॉक्टर मालती वसंत ने अपने अग्रलेख में ठीक लिखा है "मौन, फासले, मुक्ति ,प्रयास अस्तित्व के लिए आदि रहस्यवादी -सी लघु कथाएं पथ का चुनाव, अंतःस्मरण ,अवलंबन, जोगी का जोग,कुमारी के कितने वर,नई राह, जिंदगी का मोह,महिलाओं की अस्मिता के पक्ष में खड़ी होती लघु कथाएं हैं ।इसी प्रकार समाज की विसंगतियां उजागर करती लोक कथाएं -घर की बात, मेसी, विकास-यात्रा,मुर्दा की शोभा, काम का आदमी , ठठरी पर ईमानदारी श्रेष्ठ है। गरीबी, बेरोजगारी, बलात्कार, बेबसी, सफेदपोश ओं के दिनों की काली मां अनेक विषयों पर कांता राय की कलम चली है । प्रत्येक लोककथा चिंतन के लिए विवश करती है ।"
कांता राय के बरअक्स दूसरे अनेक लघुकथा कारों की लोककथा में एकाएक अंत में कोई आदर्श व्यक्ति लाया जाने लगा , ऐसी लघुकथाएं भी मैंने देखी जिनमें "घर के भगवान" जैसी संस्कारी बहु लाई गई या चेहरा जैसे आदर्श शराबी व्यक्ति लाया गया जो सड़क की लड़की को बेटी बनाने घर लाता है, पर ऐसे लघु कथाकार इन कहानियों को आदर्श मानकर इसी तरह की कथाएं रस डालने को ही सफलता की कुंजी मानने लगे हैं।इसलिए कान्ता रॉय की तरह उनकी लघुकथा चकमदार नहीं बन सकीं।
भाषा ,वर्तनी ,लिंग दोष और प्रूफ की बहुत थोड़ी सी गलतियों को नजरअंदाज कर देने पर यह संग्रह लघुकथा के आकार, कथ्य , कथा के शिल्प, संवाद, विजन, लेखक के कैमरे का कोण निश्चित करने आदि बिंदुओं पर एक बहुत सशक्त संकलन है । इस लघुकथा संकलन के बाद कांता राय एक सशक्त लघुकथाकार के रूप में हिंदी साहित्य में उठ खड़ी हुई हैं जिनसे आगे बहुत संभावनाएं जागती हैं।