No one stays away (Part 3) in Hindi Adventure Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | दूरी न रहे कोई ( पार्ट 3 )

दूरी न रहे कोई ( पार्ट 3 )

"बोलो।"
"चाय पी लो।"
"तुम पी लो"राजन सोते हुए बोला
"मैने तुम्हारे लिए भी बनाई है"
और राजन को उठाना पड़ा।राजन चाय पीकर फिर सो गया था।इला चाय पीकर कुछ देर बैठी रही।फिर वह बाथरूम में चली गई।कपडे तो वह लाई नही थी।राजन ने कहा और वह उसके साथ आ गयी थी।बाथरूम में जाकर उसने अपने शरीर से एक एक करके सारे कपडे उतार दिए।फिर शावर चलाकर उसके नीचे खड़ी हो गई।पानी की नन्ही नन्ही बूंदे उसके सिर पर गिरकर उसके गोरे, चिकने नंगे बदन पर फैलने लगी।काफी देर तक वह नहाती रही।
वह तैयार होकर बैडरूम में आयी तब राजन जग रहा था
"अरे तुम तो तैयार हो गई।"
"हां।मैं अब चलूं?"
"कहाँ?"
"अपने काम पर।गयारह बजे बार खुलता है।वहाँ पहुंचुंगी तब तक टाइम हो जाएगा।"
"कोई जरूरत नही है वहां जाने की।"
"क्यों?"
"मुझे पसंद नही है औरत होकर बार मे काम करो।"
"अगर मैं काम नही करूँगी तो अपना पेट कैसे भरूँगी?"
"इस बात की चिंता मत करो।यहां रहकर भूखी नही रहोगी।"
इला का राजन से कोई रिश्ता नही था।बार मे आने की वजह से जान पहचान हो गई थी।लेकिन बार मे तो रोज सेकड़ो लोग आते थे,जिन्हें वह जानती थी।कुछ एक के साथ वह उनके घर भी जा चुकी थी।लेकिन किसी ने उससे ऐसे नही कहा था।और राजन की बात को वह टाल नही सकी।राजन के कहने पर इला ने काम छोड़ दिया और वह उसके साथ रहने लगीं। राजन ने अपना घर इला के हवाले कर दिया।इला ने घर की जिम्मेदारी के साथ राजन की ज़िम्मेदारी भी अपने कंधों पर ले ली।वह उसके खाने आदि सब बातों का ध्यान रखने लगी।
राजन का घर से जाने का कोई समय निश्चित नही था।कभी वह सुबह जल्दी चला जाता।कभी दोपहर में कभी शाम को और कभी जाता है नही।
एक रोज इला उठी तो देखा राजन बेड पर नही था।कब चला गया।उसे पता ही नही चला।बिना बताए कब चला गया।और वह उसके लौटने का इन्तजार करने लगी।ज्यो ज्यो समय गुज़रने लगा।उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी।राजन कज चिंता में वह परेशान घर मे इधर उधर घूमने लगी।वह किसी राजन के दोस्त को जानती भी नही थी।जो उससे पता करती।सुबह से दोपहर हुई।दोपहर जैसे तैसे कटी तो शाम और शाम का एक एक पल जैसे तैसे बिता।लेकिन रात होने पर तो उसका दिल तेज धड़कने लगा।राजन कहाँ गया।उसकी चिंता में रोने लगी।उसका दिल घबराने लगा।मन बेचैन हो गया।
ऑर रात का एक एक पल एक एक सदी के बराबर गुज़रने लगा।आखिर कार उसके इन्तजार की घड़ियां खत्म हुई।आधी रात को राजन की गाड़ी की आवाज सुनाई पड़ी।इला दौड़कर उसके पास जा पहुंची
"कहाँ चले गए थे मुझे बिना बताए?"इला उससे लिपट गई। आंसू जो अब तक बाहर नही निकले थे।बह निकले।राजन उसके साथ बैडरूम में आया।वह बहुत थका हुआ नजर आ रहा था।
"सिगरेट है?"राजन बिस्तर पर लेटते हुए बोला।
"है"और इला सिगरेट निकाल कर लायी।सिगरेट होठो के बीच मे दबाते हुए राजन बोला,"जलाओ।"
इला ने लाइटर निकाल कर सिगरेट जलाई थी।राजन सिगरेट पीने लगा।
"मेरी समझ मे अभी तक एक बात नही आई"
"क्या?"सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए राजन ने इला को देखा था।
"उस रात तुम मुझे अपने घर ले आये।यहाँ लाकर तुमने मुझे अपना घर सौंप दिया।मेरे बारे में जाने बिना
(शेष कथा अंतिम क़िस्त में

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