Barso re megha-megha - 3 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

बरसो रे मेघा-मेघा - 3 - अंतिम भाग

भाग तीन

बरसो रे मेघा-मेघा

मरुस्थल की तपती रेत को बरसात का बेसब्री से इंतज़ार रहता है | धरती की तिड़की हुई देह आसमान को निरीह नज़रों से ताकती है कि कब बादल आयें और इस प्यासी धरती की प्यास बुझे | लेकिन बादल कहाँ आते हैं ? आते भी हैं तो बूँदें कहाँ सघन होती हैं, सघन हो भी जाएं तो बादल कहाँ भारी होते है कि बरस जाएं धरती पर | हलके बादलों को मरुस्थल की गरम हवाएं यूँ ही उड़ा कर तितर-बितर कर देती हैं और सूरज की गर्मी से बूँदें आसमान में ही सोख ली जाती हैं |

गवरी को इस गाँव में मोठ बोए पूरे पाँच साल हो गए हैं | बीज खेतों में बिखेरती है लेकिन बरसात नहीं आती तो बीज की कोंपल तक नहीं  फूटती | सूखे बीजों को चिड़िया खा जाती है और गवरी उदास हो जाती है |

मेघना को माँ ने गाँव में बुलाया है इस बार -“ आ जा मेघना ! इस बार बरसात के दिन यहाँ काट ले | तेरे घुटनों का दर्द ठीक हो जायेगा | मुंबई में बरसात का मौसम लंबा खिंच जाता है | गाँव में वैद्य से तेरे इस वात-रोग का इलाज़ भी ले लेना | अब तेरी माँ भी बूढ़ी हो चली | कुछ दिन रह जा मेरे पास | तेरी दोनों बेटियाँ तो पढ़ने गयी |” मोबाइल पर आती माँ की आवाज़ क्षीण होती चली जाती है |

मेघना को भी अहसास हुआ कि पिताजी के जाने के बाद माँ कितनी अकेली हो गयी हैं | चलो कुछ दिन रह ही आती हूँ |

पूरे 21 घंटे गाडी में और 2 घंटे बस का सफर करके गाँव पहुँची थी मेघना | सूरज के तावड़े से तप रही थी ज़मीन | दूर आसमान से बादल की एक टुकड़ी तो क्या सूरज के पीले-केसरिया रंग से आसमान का नीला रंग भी गायब था | नुपुर ने बताया था कि पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद सूरज गरम हो गया था पर क्या इतना गरम हो गया था -हाय दैया !

रास्ते में खेत खलिहान बंजर भूमि होने का विलाप कर रहे थे | मेघना के घर से चार फर्लांग पर ही तो गवरी का घर था | मेघना से दो साल ही तो छोटी थी गवरी | मेघना की शादी से एक साल पहले भंवरे से ब्याह कर आई थी इस गाँव में | मेघना गवरी के घर के दालान में घुसी तो गायों का पूरा तबेला वीरान पडा था | केवल दो गाएं चारा चर रही थी | कितनी गायें हुआ करती थी इस तबेले में |

“ कहाँ गई आपकी गायें गवरी !” मेघना ने दूर तक नज़रें दौडाते हुए पूछा |

गवरी की आँखों में नमी तैर आयी थी- “पाँच साल से बरसात नहीं हुई जिज्जी ! खेतों में अनाज नहीं बोया तो खाएं क्या ? गायों को भी चारा कहाँ से खिलाएं  | खरीद कर कहाँ से लाएं | इसलिए एक-एक करके गायें बेच दी |”

गवरी के दिल का दर्द मेघना के चेहरे पर साफ़ देखा जा सकता था |

“ काईं ठा ! थारा भंवर भाई जी कैवे है कि आ परीक्षण सूं बरसात रुकीजी है ” ( क्या पता ! आपके भंवर भैया कहते हैं कि इस परीक्षण से बरसात रुक गयी है ) गवरी ने ठेठ मारवाड़ी लहजे में कहा |

मेघना ने आश्चर्यचकित होकर पूछा- “ गवरी आपको भी पता है पोखरण का परमाणु परीक्षण ?”

“ हाँ ! क्यों नहीं, कितने दिन गर्मी छाई रही थी आसमान में | मुझे सब याद है ” गवरी ने बात आगे बढाते हुए कहा “ अब तो आपके भैया यह कहते हैं कि एक ही उपाय बचा है कि खेतों में झुण्ड लगावें, उन पेड़ों के झुण्ड की छाया में सब्जी उगाएं, तो जहां पेड़ होंगे वहाँ बारिश होगी | समस्या तो पेड़ उगाने की है | पहले पेड़ उगाने के लिए पानी खरीद कर लाना पड़ेगा | कितने लीटर पानी खप जाएगा और पैसा भी खूब लगेगा |” गवरी अनवरत बोल रही थी |

मेघना उदासी से भर गयी थी | वो दालान में चारपाई पर बैठी माँ के पैताने बैठ गयी थी | उसने गवरी से सुनी सारी बात सुनाई | माँ भी बोली “ हाँ ! गाँव में बरसात नहीं तो हमें भी पीने का पानी भी टैंकर से मंगवाना पड़ता है | तेरे पापा ने वो पानी इकटठा होने का इंतज़ाम किया था ना...”

“ अच्छा वो वाटर हार्वेस्टिंग !! ” मेघना हुलस कर बोली |

“हाँ वही ! अब बारिश नहीं तो छत पर पानी ही नहीं आता, तो कुंएं में कैसे इकट्ठा हो ? पहले तो वही पानी हम पीते थे ” माँ के चेहरे पर भी उदासी थी |

मेघना तो मुम्बई की बरसात में घुटने के उभरते दर्द से दुखी होकर गाँव आई थी कि गाँव में इलाज़ करवायेगी लेकिन उसका दर्द तो तपती रेत की उदासी से ही उभर आया था |

हे ईश्वर ! अब तो बरसात कर दे | कोई बात नहीं सह लूंगी मैं घुटनों का दर्द, दर्द का क्या है, लहर की तरह उठता है और बैठ जाता है |

उसने कुछ सालों से पैसे जोड़े हैं | पड़े है साड़ी की तह में छिपे हुए | कितने साल से कोई काम नहीं आये | अब क्या काम आयेगे मेरे ? सब तो है मेरे पास फ़्लैट, गाड़ी, कपड़े...|

वो उठी और चल पडी गवरी के घर, भंवर भैया से बात करने |

मेघों तुमको बरसना ही होगा | हाँ ! बरसो रे मेघा-मेघा !!

 

संगीता सेठी

प्रशासनिक अधिकारी

भारतीय जीवन बीमा निगम

मुम्बई