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चुड़ैल कहीं की

हमारे समाज में लड़की को कभी प्यार तो कभी तिरस्कार से चुड़ैल कह देने की परंपरा है पर इसका अर्थ कदापि नहीं होता कि लड़की के पैर पीछे की ओर मुड़े होते हैं या वह किसी पर सवार होकर सताती है बल्कि केश न सँवारने ,गंदा-संदा रहने या शरारती होने पर भी उसे यह उपाधि दे दी जाती है पर निश्चित रूप से 'चुड़ैल' शब्द अच्छा अर्थ नहीं देता ।चुड़ैल के मुकाबले 'भूत' शब्द कम भयावह होता है । भूत से बने मुहावरे भी खराब अर्थ नहीं देते जैसे 'भूत की तरह काम करना' अर्थात शीघ्रता से काम करना या फिर 'भूत हो जाना' अर्थात गायब हो जाना । कभी-कभी जब लड़का लापरवाह ढंग से तैयार होता है तो कह दिया जाता है --'बिल्कुल भूत लग रहे हो' । तो यह साफ हो ही गया कि चुड़ैल शब्द भूत की अपेक्षा ज्यादा खतरनाक शब्द है ।वैसे भी भूत की अपेक्षा चुड़ैलें ज्यादा पकड़ती हैं (और वह भी स्त्रियों को )और पकड़ लेती हैं तो जल्दी छोड़ती भी नहीं ।मिर्ची की धूनी और पिटाई ही उनका एकमात्र उपचार होता है । गांव- कस्बे के पुराने व कम पढ़े -लिखे लोग (कभी-कभी पढ़े-लिखे भी) बताते हैं कि उन्होंने चुड़ैल देखी है ।मीता अपने बचपन में चुड़ैलों के इतने किस्से सुन चुकी थी कि धुंधलके में या रात को अकेले घर से बाहर नहीं निकलती थी। किसी पेड़ के पास से गुजरने पर उसे चुड़ैल की सरसराहट भी सुनाई पड़ जाती थी।प्राण गले में आ फंसते और हनुमान चालीसा के बोल नहीं निकल पाते थे । एक बार तो शाम के धुंधलके में एक पेड़ के नीचे सफेद साड़ी वाली औरत को देखकर वह ऐसे जड़ हो गई कि यदि उस औरत ने पास आकर उसे आवाज ना दी होती तो उसके प्राण निकल जाते ।
उसे याद है बगल के गांव का वह युवक, जिसकी मृत्यु का कारण एक चुड़ैल मानी जाती थी । युवक का अभी -अभी गौना हुआ था।उस दिन वह शहर से लौट रहा था और अपनी नई पत्नी के लिए कांच की चूड़ियां ले आ रहा था । चूड़ियां उसने अपने दाहिने कंधे पर लटक रहे झोले में रखी थी । जब वह गांव पहुंचा ,शाम ढल चुकी थी ।खेतों की मेड़ों से होता हुआ वह उस बरगद के पेड़ के पास पहुंचा ,जिस पर चुड़ैल के होने की अफवाह थी । उसे डर लगा पर वह हनुमान- चालीस पढ़ता तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ने लगा । तेजी से चलने के कारण उसका दाहिना हाथ झोले पर पड़ता और उसमें रखी चूड़ियां खनखना उठतीं । डरा हुआ युवक उस खनखनाहट को चुड़ैल की आवाज समझ कर और तेज चलता । चूड़ियां और जोर से खनकती । परिणाम यह हुआ दहशत का मारा वह अपने घर के दरवाजे पर पहुंचते ही गिर पड़ा और फिर कभी नहीं उठा । गांव में प्रचार हो गया के उसे बरगद वाली चुड़ैल ने मार डाला ।
गांव में मान्यता है कि असमय मृत्यु को प्राप्त औरतें चुड़ैल बन जाती हैं( विशेषकर गर्भावस्था में मरने वाली )। मीता की बचपन की साथी अर्चना अपने गर्भावस्था में जाने कैसे जल मरी थी । शहर से गांव आने पर उसे इस हादसे की खबर लगी । दुःख हुआ कि हमेशा हँसते -मुस्कुराते रहने वाली,फिल्मी नगमे गाने वाली अर्चना मर गई ।

एक दिन उसे पता चला कि अर्चना की चुड़ैल उसकी मामी पर सवार हो गई है । वह मारे उत्सुकता के चुड़ैल देखने जाने लगी तो उसकी अम्मा डांटने लगी ।उन्हें डर था कि बचपन की साथी होने के कारण कहीं वह मीता को पकड़ ना ले पर वह नहीं मानी और अर्चना के घर की तरफ चल दी । अर्चना का घर मिट्टी की दीवारों और फूस से बना था ।बड़ा- सा गोबर -मिट्टी से लिपा-पुता आंगन साफ -सुथरा व शीतल लग रहा था । आंगन में बहुत भीड़ थी ।समस्या- ग्रस्त लोग अपनी समस्या का समाधान चुड़ैल से पूछने के लिए वहां मौजूद थे । ऐसी स्थिति उसने तब भी देखी है जब पड़ोस की काकी पर बाल मिया आते हैं या फिर जब काका पर दुर्गा माता सवार होती हैं।
उसने देखा कि अर्चना की मामी आंगन में यहां से वहां पलटनी खा रही है । उछल -उछल कर गिरती हैं मानो कोई उन्हें उठा -उठा कर पटक रहा हो ।उनकी कुहनियां छील गई थीं।माथे से खून रिस रहा था।
उधर सोखा आग तैयार करवाने में जुटे थे।आग तैयार हो जाने के बाद सोखा ने मामी के पति से कहा कि मामी को आग के सामने बिठाए। उन्होंने मामी के चेहरे पर एक अंगोछा लपेट दिया ।फिर वे आग में सुखी लाल मिर्च डालने लगे और गर्दन से पकड़ कर मामी का चेहरा आग पर झुका दिया। मामी छटपटाती -अफ़नाती पर सोखा के मजबूत शिकंजे से छूट नहीं पाती थीं । जाने किस आवेश में मीता चीख पड़ी --छोड़ो उन्हें ,छोड़ो !मार डालोगे क्या?
वहां खड़ी भीड़ उसे गुस्से से घूरने लगी ।शोर सुनकर उसकी अम्मा आई और उसे जबरदस्ती घर ले गई। दूसरे दिन उसने देखा कि मामी के सुंदर गाल ,गले और बाहों पर चिमटे से दागे जाने के निशान थे । वह गहरे दुख से भर गई । मामी की उम्र इस समय भी मुश्किल से 18 की होगी । जब वे ब्याह के आई थीं सिर्फ 8 वर्ष की थीं पर पति 28 का था । रात को उनके झोपड़े से चीखने- चिल्लाने की आवाजें आती थीं। वही मामी आज इतनी बड़ी रचनाकार हो गई हैं कि पूरा सीन और डायलॉग रच डालती हैं । चुड़ैल सवार हो जाने के बाद अर्चना की आवाज में वे उसकी कथा सुनाती हैं कि कैसे अर्चना के पति ने उसे जलाकर मार डाला था । यह भी बताती हैं कि अर्चना को अब भूत सताते हैं,एक जगह चैन से रहने नहीं देते इसलिए वह बार-बार अपने घर आती है ।
यह बात सुनकर मीता हँसते हँसते लोट-पोट हो गई थी कि भूतों की दुनिया में भी औरतें परेशान हैं।
मीता समझती थी कि मामी के ऊपर कैसी चुड़ैल आती है। उसका मनोविज्ञान क्या है?
भूत -चुड़ैलों के किस्से सिर्फ उसके गांव में ही नहीं , हर गांव में रचे -गढ़े जाते थे।
पर क्या आज के आज के वैज्ञानिक युग में भी इसका सिलसिला रूका है ? आजकल टीवी धारावाहिकों तथा फिल्मों में भूत और चुड़ैलों को दिखाने का फैशन चल रहा है।ऐसी फिल्में सुपर -डुपर हिट भी हो जाती हैं ।पढ़े-लिखे दर्शक भी शौक से इन्हें देखते हैं ।
प्रश्न किया जा सकता कि अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली ऐसी फिल्में क्यों बनाई जाती हैं? तो उत्तर यही मिलता है कि यह दर्शकों की मांग है पर क्या सच ही समाज को 'भूत' की ओर ले जाना उचित है?
मीता सोचती है कि कितनी मुश्किल से इंडिया आधुनिक हुआ है ।आज भी कहीं न कहीं अंधविश्वास पूर्ण घटनाएं घटती रहती हैं। इसका कारण कहीं ना कहीं लोगों की चेतना में 'भूत' का जिंदा रह जाना है । किशोर तक अंधविश्वास पूर्ण घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं । आश्रमों से बच्चे गायब कर दिए जा रहे हैं । डायन कहकर औरतों के साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा है ।क्या अब तक यह सब खत्म नहीं हो आज चाहिए था ? आखिर लड़कियों को चुड़ैल क्यों कहा जाता है ? क्या यह परंपरा सिर्फ इसी देश में है?
आज ही ग्लोबल वर्ल्ड पत्रिका में उसने पढ़ा कि सर्बिया नामक देश में भी चुड़ैलों का बड़ा खौफ है । एक मामले में तो वह इस देश से भी आगे बढ़ा हुआ है । इस देश में विवाह संस्था में प्रवेश देने के नाम पर लड़की की जो अमानवीय परीक्षाएं ली जाती हैं ,उनमें कम से कम चुड़ैल परीक्षा नहीं है । (डर है कि कहीं हो न जाए) वैसे लड़की को देखने आने वाले उसके पैरों का ठीक ढंग से परीक्षण किया जाता है क्योंकि कुछ विशेष किस्म के पैर ही शुभ माने जाते हैं। पर सर्बिया में लड़की को चुड़ैल टेस्ट भी देना पड़ता है ।वहां यह प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है । इसका कारण वहां के अंधविश्वासी युवक हैं । वे युवक अपनी होने वाली पत्नी को कल्पिन स्थित किले में ले जाते हैं जहां पर नौवी साद विश्वविद्यालय के इतिहासकार और लोक संस्कृति विशेषज्ञ एक प्राचीन विधि द्वारा विकसित परीक्षण से कथित रूप से वैज्ञानिक ढंग से यह प्रमाणित करते हैं कि उनकी मंगेतर चुड़ैल है या नहीं।
इस टेस्ट में एक झाड़ की मदद ली जाती है । पहले लड़की का वजन लिया जाता है फिर उसे एक बार झाड़ पर बैठाकर वजन लिया जाता है ।इसके बाद फिर एक बार बिना झाड़ के उसका वजन मापा जाता है ।अगर उसका वजन दूसरी बार बिना झाड़ के अधिक निकलता है तो उसे चुड़ैल से मुक्ति का प्रमाण -पत्र दे दिया जाता है । यही नहीं चुड़ैल -टेस्ट आज करने वाली युवतियों को अंग्रेजी में ही नहीं, बल्कि कई भाषाओं में भी प्रमाण-पत्र प्रदान किए जाते हैं ।
21वीं सदी में भी युवकों का इस कदर अंधविश्वासी होना उसे आश्चर्यचकित तो करता ही है ,लड़कियों की चुप्पी भी प्रश्न छोड़ जाती है ।क्या विवाह लड़की के लिए इतनी बड़ी अनिवार्यता है कि वह इतनी सारी परीक्षाएं दे ?पास -पड़ोस से जानकारियां , कुल -खानदान ,कुंडली,
गुण- ढंग , चाल-चलन(एच आई वी टेस्ट )और अब चुड़ैल टेस्ट भी । यह तो अति है ।ऐसी ही टेस्ट की हुई बालाएं कभी-कभी पतियों के सिर पर बला बनकर टूट पड़ती हैं। आखिर ये सब परीक्षाएं युवक क्यों नहीं देते ?क्या विवाह उनकी अनिवार्यता नहीं ,जरूरत नहीं ।हो सकता है वे भी भूत -ग्रस्त हो । वैसे भी उनकी हरकतें ,गुस्सा व कई क्रियाकलाप मनुष्य से नहीं लगते । लड़कियां पढ़- लिख जाएं ,नौकरी करके आत्मनिर्भर भी हो जाएं, तब भी विवाह के लिए अपमानजनक दौर से गुजरने को विवश है क्योंकि उनके पास विवाह के सिवा कोई विकल्प ही नहीं । 'सह- जीवन का एक विकल्प है भी मगर उसमें भी विवाह से कम 'आह' नहीं है ।
चुड़ैल अक्सर गांवों में या फिर कस्बों में होती है शहरों में उनका प्रकोप न के बराबर है ।कारण शिक्षा है
वैज्ञानिक जानकारियों का अभाव होने के कारण ही अंधविश्वास फलते -फूलते हैं । बच्चों की बलि देने की घटनाएं आज भी इक्का दुक्का सुनाई दे जाती हैं ।क्या बलि स्वीकार करने वाले देव और देवी की पूजा होनी चाहिए?सती होने की घटनाओं को भी सरकार रोक पाने में पूरी तरह सक्षम नहीं है क्योंकि उसे जबरदस्त जनमत प्राप्त है ।
चुड़ैल की धारणा भी एक ओढ़ा हुआ अंधविश्वास है वरना उसका कोई अस्तित्व नहीं ।उसने तो देखा है कि लोग अपनी इज्जत -प्रतिष्ठा के लिए भी देवी के सवार होने का नाटक करते- करवाते हैं।
मीता को अपने बचपन की एक घटना आज भी याद है ।एक बार उसके कस्बे वाले घर में ,अम्मा के गांव से 13 वर्ष की एक लड़की आई थी।जिसे ऊपर वाले कमरे में रखा गया था।बच्चों को सख्त हिदायत थी की वे ऊपर न जाएं। क्योंकि लड़की पर देवी सवार है ।अक्सर रात को लड़की के दर्द से कराहने या चीखने --चिल्लाने की आवाजें आती। सब सहम जाते ।ऊपर के कमरे में लड़की की माँ,अम्मा और बच्चा पैदा कराने वाली दाई ही जाती थी । बाद में जाना कि अवैध गर्भ को वैज्ञानिक विधि से गिराने की कोशिश के कारण लड़की चीखती थी । ऐसी जाने कितनी घटनाओं को बेचारी चुड़ैल के सिर पर डाल दिया जाता था। उसकी असलियत से घर वाले वाकिफ रहते थे लेकिन समाज को धोखा देने के लिए उसी प्रकार जाल बिछाते थे, जैसे आज के ढोंगी साधु संन्यासी या फिर नेता । महज एक कल्पना भूत आज भी जनमानस में जिंदा है और उसे जिलाए रखने की कोशिश हो रही है। इसके पीछे पुरुष मानसिकता ही जिम्मेदार है ताकि लड़की को प्रताड़ित करने का एक भी अवसर उसके हाथ से जाने न पाए। जब चुड़ैलों के अस्तित्व पर से सबका विश्वास उठ जाएगा तो लोग कैसे किसी लड़की को कहेंगे 'चुड़ैल कहीं की ।'