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गर्भस्य और स्त्री मन

कहानी के सन्दर्भ मे कुछ बातें......

दुनिया की हर औरत माँ बनना अपना शौभाग्य समझती हैं. उसका सपना होता हैं कि जब वो मरे  तो नाती-पोतियों वाली होकर मरे. अगर वो किसी कारण से माँ नही बन सकी है तो उसने इस सुख से पुरुष और परिवार को कभी वंचित नही रखा. चाहे उसके माँ बनने का तरीका कुछ भी रहा हो जैसे दूसरा निकाह या आईवीएफ, उसने सदैव ऐसी विकट परिस्थितीयों में अपनी स्वीकृति दी हैं. लेकिन औरत मात्र बच्चे पैदा करने की कोई मशीन नही है यह बात पुरुष कभी नही समझ पाया. भारतीय समाज में विशेष रूप से मुस्लिम समाज में आज भी एक औरत पर बच्चा पैदा करने का जो दबाव बना रहता है उसे बताने की आवशयकता नही है. वो हर समय इसी दुख के साथ जीवन जिया करती है कि बिना माँ बने कहीं उसे घर से निकाल न दिया जाये. घर में अपनी जगह बनाये रखने लिए वह हमेशा अपनी इच्छा के विरुद्ध हो जाया करती है लेकिन अपनी कोख़ से किसी बच्चे को जन्म दिए बिना भी वो ममता, दया, परोपकार और करुणा की देवी रही है इतिहास इस बात का गवाह हैं. प्रस्तुत कहानी कुछ ऐसा ही भाव अभिव्यक्त करती नज़र आती है.कहानी सच्ची घटना पर आधारित है. लेकिन स्थान और पत्रों के नाम सुविधानुसार बदल दिए गये हैं. पाठकों से निवेदन है कि कहानी को पढ़ने के पश्चात अपने भाव और विचार आवश्य साँझा करें मुझे ख़ुशी होगी.

गर्भास्य और स्त्री मन

सबीना आज अपनी जिंदगी की आखरी सांसे ले रही है. उसके यू-ट्रस्ट में कैंसर हैं. मेडिकल हॉस्पिटल में  पिछले 2 सालों से उसका इलाज चल रहा था. डॉक्टर ने बोल दिया हैं कि आप लोग सबीना को ले जा सकते हो. वह अब नहीं बचेगी हम चाहते हैं कि अपने आखिरी दिनों में वह अपने परिवार के साथ रहे. वह ज्यादा दिन तक नहीं जी सकेगी अगर आप घर ले जाना चाहते हैं तो उन्हें ले जाएं और उसकी सेवा करें.

जिंदगी के आखरी पलों में उसके चेहरे का तेज़ देखते ही बनता था. सूखे बदन के साथ बिस्तर में लिपटी सबीना मानो जीने के लिए सब से गुहार सी लगा रही हो लेकिन उसके मुंह से एक लब्ज़ तक नही निकल पा रहा हो. उसके सिरहाने के पास रखी उसकी वही पुरानी गीतों और शायरी वाली डायरी और उसके चारो ओर खड़े कुछ लोग जिसमें से उसने सिर्फ फ़िरोज़ को पहचान लिया था बाकी सब उसकी स्मरति का जैसे हिस्सा ही नही रहे गयें हों. उसके मन में संतोष और एक अजीब सा सुकून था जैसे कोई वैरागी में संसार को त्यागते वक्त होता हैं. मन में किसी के लिए ज़रा सी भी ईर्ष्या, द्वेष और कुण्ठा न थी. अपने मरने से पहले उसने सबको मानो माफ़ कर दिया हो. वो थी भी परोपकार की देवी सी. अगर कोई दुःख था तो बस यही कि वो अपनी कोख़ से किसी बच्चे को जन्म नही दे सकी. जिसकी उसे बहुत भरी कीमत भी चुकानी पड़ी थी लेकिन उसने जो ममत्व पाया था उसकी कोई मिसाल नही हो सकती.

सबीना को खुशी थी कि उसने पोते-पोतियों के साथ एक भरी पूरी जिंदगी जी और उसने कभी किसी को नाखुश नही किया. उसके पास जो भी था बस क्रमवार वो देती ही गई. वो दया, ममता, परोपकार, संतोष और ममता की देवी थी. वह नम आँखों से अपने शौहर फिरोज को देखती है उसकी आंखों में आंसुओं की धार चलने लगती है:- “क्या मैं आज भी आपको उतनी सुंदर दिखती हूँ जैसे हमारी पहेली मुलाकात में आपको लगी थी” भीगी आंखो से सबीना ने फ़िरोज़ की ओर देखते हुए कहा” “हाँ उससे भी ज्यादा खूबसूरत दिखती हो मेरे लिए तुम दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत हो” फ़िरोज़ ने भरे हुए गले से कहा.

सबीना को अपनी शादी का समय याद आता है कि कैसे फिरोज ने उसे शादी के लिए पहली नजर में ही पसंद कर लिया था हालांकि यह उनकी अरेंज मैरिज थी लेकिन फिर भी फिरोज शादी से पहले दो बार सबीना से आगरा ताजमहल में मिला था फिरोज दिल्ली से अपने दोस्त के साथ गया और सबीना जोकि आगरा की ही रहने वाली थी अपनी सहेली के साथ आई थी. सबीना को फूलकारी का बड़ा शौक था और एक छोटी सी डायरी साथ में रखने का, कहीं कोई अच्छी कविता और शायरी देखती तो फ़ौरन डायरी में लिख लेती. घर में कुछ भी प्लेन कपड़ा मिलता तो उसमें फूलकारी बना देती... इस बार एक सफ़ेद रेशम के रुमाल पर लाल रेशम के धागे से दिल आक्रति सा कुछ बनाकर और उसमें बड़े सुंदर अक्षरों में हरे रंग के धागे से लिखा था सफ़ी (SAFI). सबीना ने अपनी पहेली मुलाकात पर फ़िरोज़ को वो फूलकारी वाला रुमाल देते हुए कहा “ये आपके लिए मैंने बनाया है शायद आपको पसंद आये” अपने दोनों हाथों से वो रुमाल को थामते हुए फ़िरोज़ ने हँसते हुए कहा “अरे ये तो बहुत सुंदर फूलकारी हैं सचमुच इतनी अच्छी फूलकारी तुमने बनाई अपने हाथों से” ये सुनते ही सबीना शरमाते हुए बहुत देर तक बिना कुछ बोले उसे देखती रही.. “सफ़ी(SAFI)? ये क्या लिखा है तुमने इस रुमाल पर, इसका क्या मतलब हुआ, बड़े हैरानगी से फ़िरोज़ ने सबीना की तरफ देखते हुए पूछा”. सबीना हंसती ही जा रही थी उससे कुछ बोलते ही नही बनता था..तभी उसकी फ्रेंड जो चुपके चुपके उन्ही की बातें सुन रही थी झठ से बोली “भाईजान ये सबीना अप्पी और आपके नाम का पहला अक्षर है स से सबीना और फि से आप भाईजान, दोनों अक्षरों को मिलाकर सफ़ी लिखा है” ये सुनते ही फ़िरोज़ ठहहाका मारकर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा “अरे वाह क्या बात है सफ़ी क्या खूब लिखा है तुमने सबीना” फ़िरोज़ ने हँसते हुए कहा और सबीना अपनी फ्रेंड को आँखें दिखाते हुए जैसे ही मारने दौड़ी तभी फ़िरोज़ ने सबीना का हाथ पकड़ते हुए उसे अपने साथ बैठने को कहा. उसने पूछा “सफ़ी क्या तुम्हे मैं पसंद हूँ तुम मुझ से निकाह करोगी”? जबाव में सबीना ने धीरे से हाँ कहा. फ़िरोज़ को तो पहले से ही सबीना बहुत पसंद थी अगर ऐसा न होता तो वह इतना दूर से उससे मिलने यूँ अकेला घर में बिना किसी को कुछ न बताएं क्यों आता. फ़िरोज़ बोला तुम तो बहुत होशिहार हो. बड़ी अच्छी फूलकारी बनाती हो. लेकिन अगर तुम ये फूलकारी रुमाल की जगह मेरे कुर्ते पर बनाती तो कितना अच्छा होता. जब भी मैं फूलकारी वाला कुर्ता पहनता तो सब उसे देखते और पूछते कि कितनी अच्छी फूलकारी है. ये किसने बनाई, तो मैं बोलता कि मेरी बीबी ने बनाई है. ये सुनते ही सबीना के गाल शर्म से लाल हो गए और वो बोली “मैं आपकी बीबी”? “हाँ जैसे शांहजहाँ की बीबी मुमताज” फ़िरोज़ ने सबीना के हाथों को थामते हुए कहा. यूँही उसके हाथों को अपनी गर्म हाथेलियों में थामे हुए फ़िरोज़ सबीना की आँखों में आँखें डाले हुए बोला “पता है सबीना अगर कोई किसी को उपहार में रेशम का रुमाल दे तो वो दोनों प्रेमी आगे चलकर हमेशा के लिए जुदा हो जाते हैं मेरे एक दोस्त ने ये बात मुझे पहले कभी बोली थी”. ये सुनते ही सबीना एक दम सीरियस हो गई. उसकी आंखो में  पानी की लाल डोरी सी खीच गई जैसे अभी ही रो पड़ेगी. फ़िरोज़ से अपनी नज़र हटा कर बोली “आप सच बोल रहे हो क्या?अगर ऐसा है तो मुझे मेरा रुमाल वापिस कर दो” और सबीना के ऐसे बोलते ही एक बार फिर से फ़िरोज़ ठह्हाका मार कर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा. फ़िरोज़ ने उसके बालों को खीचते हुए बोला “अरे नही सफ़ी मैं तो मज़ाक कर रहा था तुम तो दिल पर ले गईं”.

अब धीरे धीरे शाम होने लगी थी. दोनों को घर वापिस लौटना था. फ़िरोज़ ने सबीना को घर के पास छोड़ा और वो अपने दोस्त के साथ सबीना की मीठी यादें लेकर दिल्ली वापिस आ गया. दोनों ने एक ही नजर में एक दूसरे को पसंद कर लिया था. सिर्फ दो बार की मुलाकात के बाद इनकी शादी करा दी गई. पूरी रीति रिवाज से और सबीना शादी के बाद दिल्ली आ गई. सबीना सचमुच बहुत ही खूबसूरत थी उसकी सुंदरता के चर्चे उसके ससुराल में कई महीनों तक होते रहे. उसकी सास उसको देखती और बहुत गर्व महसूस करती कि मेरे इकलौते बेटे को चांद जैसी खूबसूरत बीबी मिली है. मेरी बरसों की मुराद पूरी हो गई. अब बस मेरी एक ही मुराद है कि मरने से पहले मैं अपनी गोद में पोते-पोतियों को खिलाऊँ.

अपनी बहु की सुंदरता को देखकर फिरोज की मां को लगता. मेरे पोते-पोती भी उतने ही खूबसूरत होंगे और वह पहले ही दिन से अपने दादी बनने के सपने देखने लगी थी. अब वह ना ज्यादा सबीना से घर के काम कराती थी और ना उसे अकेले बाहर आने जाने देती थी उसका सगी मां की तरह ध्यान रखती थी. उससे कहा करती थी औरत को हमेशा अपना ध्यान खुद ही रखना चाहिए बड़े परिवार में जिम्मेदारियां ज्यादा होती हैं तो अपना ध्यान बड़ा मुश्किल होता है. मेरी सास ने कभी मुझे इतना प्यार नहीं दिया लेकिन मैं तुझे बहुत प्यार दूँगी कि तुझे अपनी मां की भी याद ना आए. सबीना की सास कहती थी ज्यादा से ज्यादा फिरोज के साथ रहा कर उसकी हर छोटी बड़ी बात का ध्यान रखा कर.मेरा इकलौता बेटा है अब मैने तुझे सौंप दिया है. मेरे घर की इज्ज़त, मान-मर्याद और मेरे वंश को आगे बढाना सब तेरे ही हाथ में है. सबीना भी अपने सास को अपनी माँ की तरह प्यार किया करती थी.

देखते ही देखते हंसी-खुशी में सबीना का इस परिवार में 6 महीने गुजर गए. सबीना की सास ने एक दिन सबीना से पूछा मुझे दादी मां बनाने की खुशखबरी कब सुना रही हो. मेरे कान यह सुनने के लिय तरस गए हैं उस वक्त सबीना मुस्कुराकर शरमा गई थी. सबीना बिन मां की बच्ची थी उसे इस घर में मां और बहन भाई की कमी बिल्कुल भी नहीं खाली. देखते ही देखते एक साल और बीत गया. इस बार सबीना की सास ने सबीना से नही बल्कि अपने बेटे फिरोज से एक दिन पूछा “कि तू कब मुझे दादी बना रहा है एक साल हो गया तेरी शादी को, कोई अच्छी खबर सुनने को नहीं मिली मेरे कानों को” फिरोज मां की बात सुनकर चुप रह गया और बिना बोले वहां से उठ कर अपने काम पर हर रोज की तरह चला गया.. फिर उसकी मां से रहा नहीं गया वो उठी और सबीना के रूम में गई. जाकर पूछने लगी “क्या हो गया है तुम दोनों को कोई मेरी बात का सही उत्तर ही नहीं देता”. सबीना ने बताया “अम्मी मेरे यू-ट्रस्ट में फैलोपियन ट्यूब ब्लॉक है इस वजह से प्रेगनेंसी नहीं रुक रही. उसका इलाज करवाना पड़ेगा”. ये सुनते ही सास बोली अगर इलाज कराने से भी बच्चे नही हुए तो, मेरा तो वंश ही ख़त्म हो जाएगा. सास अब लगी सुनाने किस्से-कहानी जो भी उसने अपनी अब तक की जिंदगी में सुने थे. और अंत में बोली “और तो सब बाते छोड़ो अपनी ही गली में वो रुकसाना है न, उसके भी बच्चे नही हो रहे.. शादी को आज आठ साल हो गये”. अब क्या था सबीना की सास रोज़ कोई न कोई किस्सा बहु बेटे को सुनाया करती थी.

सबीना पर अब वंश को आगे बढाने का दबाब दिनोदिन बढता जा रहा था.वो अब दुखी रहने लगी.इलाज़ का भी कोई असर नही हो रहा था.बिना परहेज़ के दवाई का भी कोई असर नही हो रहा था. एक दिन उसकी अचानक तबियत ख़राब हो गई उसे हॉस्पिटल भर्ती करवाना पड़ा.तभी डॉक्टर ने बताया सबीना एक महीने से गर्भवती थी लेकिन हाई ब्लड प्रेशर और सुगर लेवल ज्यादा होने से गर्भपात हो गया. उसके कई टेस्ट हुए जिसमे उसे PCOD बिमारी बताई गई. अब उसकी सास का सबीना के प्रति रुख एकदम बदल गया था. उसे यकीन हो गया कि सबीना अब कभी माँ नही बन सकती. उसने अब अपने बेटे की दूसरी शादी करवाने का फैसला लिया. हालंकि सबीना की चार नन्द थी और चारो शादीशुदा और सब के चार-चार बच्चे भी थे. लेकिन वो पुराने रीति रिवाजो में इस तरह जकड़ी हुई थी कि उसे अगर कोई बच्चा गोद लेने के लिए बोलता तो वो गुस्से से आग बबूला हो जाती और बोलती “मेरे बेटे में क्या कोई कमी थोड़े ही है जो मैं किसी दुसरे खानदान का बच्चा गोद लू”. फ़िरोज़ सबीना से बहुत प्यार करता था लेकिन बच्चे की बात आते ही वो चुप हो जाता. जैसे-तैसे फ़िरोज़ को उसकी माँ ने दूसरी शादी के लिए रो धो कर मना लिया. अब बस सबीना को बताना बाकी था.

एक दिन सबीना घर पर आराम कर रही थी और अपनी दवाई का कोर्स भी जैसे-तैसे पूरा कर रही थी. लेकिन टेंशन में न तो वो ठीक से खाना खाती थी और न ही दवाई का कोई उस पर असर हो रहा था. अब ज्यदातर शांत ही चुपचाप अपने कमरे में पड़ी रहती थी उसका हंसना बोलना वो चिड़िया की तरह चहचहाना अब सब खत्म हो गया था उदास बेजान जैसे कोई बेकार वस्तु घर में पड़ी हो उसकी अब घर में किसी को कोई आवश्यकता ही नही रह गई थी. अपने बिस्तर में पड़ी सबीना किसी गहरी सोच में डूबी ही थी कि अचानक सास और सास की देवरानी दोनों कमरे में आ गये. सास बोली “देख सबीना मैं जानती हूँ तू हमारे घर का कभी भी बुरा नही सोचेगी हम सब भी तुझ से बहुत प्यार करते हैं हमने एक फैसला किया हैं कि फ़िरोज़ की फिर से दूसरी शादी कर देते हैं लेकिन घर में तू ही हमारी पहली बहु रहेगी. मेरे बाद तेरा ही हुकुम चलेगा बस तू शादी के लिए हाँ बोल दे. हमने लड़की देख ली हैं वो मेरे ही गाँव की एक गरीब परिवार की लड़की है उम्र सिर्फ 20 साल है तुम दोनों बहनों  की तरह साथ रहना.. तेरे सिर से भी बांजपन का कलंक मिट जाएगा हम तुझे घर से थोड़े ही निकाल रहे हैं”. ये सुन कर सबीना की आँखों में आंसू आ गए. सबीना ने रोते हुए सास की देवरानी की तरफ देखा जिसे वो छोटी अम्मी बोलती थी. दोनों सासों ने निरीह निगाहों से सबीना की ओर देखा. सास बोली “हाँ बोल दे मेरी बेटी, मेरे बेटे का वंश चल जाएगा”. सबीना कुछ नही बोली बस रोती रही. सास आँखें बड़ी किये हुए और भोंएं उपर चड़ाए बडबडाते हुए कमरे से निकल गई. कमरे से सास के निकलते ही सबीना छोटी अम्मी से लिपट कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी. सबीना के आंसू पोंछते हुये छोटी अम्मी बोली “देख सबीना ये तेरा फैसला होगा. अगर तू चाहे तो फ़िरोज़ की दूसरी शादी मत होने दे. अब तो तीन तलाक़ का कानून भी बन गया है. या फिर शादी से पहले कुछ प्रॉपर्टी अपने नाम करवा ले, नही तो शादी के बाद तेरी जिंदगी नरक बन जाएगी. तुझे इस घर में पूछने वाला फिर कोई नही होगा. अब तू देख ले तुझे क्या करना है”. सबीना को समझा बुझा कर, उसे थोड़ा खाना खिला कर वो चली गई.

कई दिन ऐसे ही बीत गये सबीना की सास रोज़ कुछ न कुछ बोलती ही रहती. अगर कोई उसकी बात नही सुनता तो सिर पकड़ कर रोने लगती. फ़िरोज़ ने तो जैसे बीवी और माँ के बीच में कुछ न बोलने की कसम खा ली हो. धीरे धीरे सबीना और फ़िरोज़ के बीच दूरियां बढने लगी. दुःख और टेंशन में सबीना कई बीमारीओं से घिर गई थी. एक दिन सबीना सुबह जल्दी उठ गई उसने सेहरी की नमाज़ पड़ी. सबके लिए रोज़ की तरह नाश्ता बनाया. नाश्ता करते हुए नम आँखों से सबीना ने फ़िरोज़ की ओर देखा और सास को बोली “अम्मी आप फ़िरोज़ का दूसरा निकाह करवा दीजिये. मुझे कोई एतराज नही है. बस मैं चाहती हूँ इस घर में बच्चो की किलकारियों गूंजे मेरे शोहर का नाम लेने वाला कोई हो और अम्मी की मुराद पूरी हो, जो मैं नही कर सकी”. ये सुनते ही सास की आँखों में लालिमा छाह गई वो तो जैसे  ख़ुशी से उछल पड़ी. फ़िरोज़ ने सबीना को देखा और कहा “मैं हमेशा तुम्हारा एहसान सदा मानुंगा. तुम ही मेरी पहली पसंद और बीबी रहोगी”. सबीना ने माँ और बेटे की ख़ुशी में अपने आप को शामिल किया और भारी मन से अपने रूम में आ कर अपनी डायरी हाथों में लिए चुपचाप बिस्तर में लेट गई:- “हथेलियों की रेखा कहती हैं कि हर साल शहनाई है

हर ख़ुशी मेरी हो, ये लाज़मी तो नही, काश ये इल्म होता”.

जब सबीना के मायके वालो को पता चला तो उसके भाई का फोन आया उसने बोला:- “सबीना क्यों अपने पैर पर खुद ही कुलहाड़ी मार रही हो, तुमने क्यों फ़िरोज़ के दुसरे निकाह के लिए अपनी हामी भरी”. सबीना बीच में बोली सुनो तो भाईजान लेकिन वो तो बस बिना रुके बोलते ही चले जा रहे थे:- “सबीना तुमने एक बार भी मुझे बताने की जैहमत नही समझी, देखो अब तुम्हारी हम कोई मदद नही कर सकेंगे. अगर तुम्हे भविष्य में हमारी कोई सहयता की जरूरत पड़ी तो”. वो गुस्से में बोलते ही रहे “तुमने ये बिलकुल ठीक नही किया. तुम्हारे लिए हमारे घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गये हैं”. बिचारी सबीना क्या बोलती बस रोते रोते सुनती रही और आखिरी में बोली “भाईजान क्या मेरा उस घर पर कोई अधिकार नही, क्या मुझे कोई बता सकता है इस दुनिया में औरत का अपना कोई घर कभी होता भी है या नही. ठीक है भाई जो तुम्हे ठीक लगे वैसा ही करना मुझे जो ठीक लगा मैने वो किया”. सबीना के ऐसे बोलते ही उसके भाई ने फोन राख़ दिया.

बचपन में माँ चली गई. शादी के बाद शौहर ने कभी समझा नही. किसी ने अगर प्यार दिखाया तो वो भी मतलब से, आज भाई ने भी रिश्ता खत्म कर दिया. सबीना जानती है कि अपनी जिंदगी खुद ही जीनी पड़ती है हमारे हिस्सा का खुद दूसरा नही ले सकता. दिल्ली जैसी मेट्रो सिटी के पूर्वी इलाके में रहने वाली सबीना रोज़ अख़बार पढती है चाहे उसे स्त्री विमर्श पर चलने वाली तमाम सभाओ, सेमिनारो और चर्चाओ का ज्ञान बिलकुल भी न हो. लेकिन वो घर में स्त्री अधिकार सम्मान को बखूबी समझती थी. लेकिन वह क्या करती. उस जैसी न जाने कितनी लड़कियां ऐसी ही जिंदगी जीने को विवश थी. यह सिर्फ एक सबीना का मसला नही था बल्कि उस जैसी कई सबीना भी ऐसी नारकीय जिंदगी जीने को विवश थी. जो भी हो लेकिन सबीना तो जैसे फ़िरोज़ और उसके घर के लिए कुछ भी करने को तैयार थी. उसका मन तो अभी भी उसी को चाहता था. लेकिन घर परिवार रीति-रिवाज़, परम्पराओं और समाज में उसकी कोमल भावनाएं जैसे उलझ कर रह गई हो. दुनिया में जैसे उसे समझने वाला कोई बचा ही न हो. सारा दिन वो अकेली चुपचाप अपने कमरे में पड़ी रहती और अपनी पुरानी डायरी के पन्ने उलटती पलटती. जब थक जाती तो बिना खाए पिए यूँही सो जाती:-

“मन कस्तूरी

जग तस्तुरी

रिश्तों में है अजब सी दुरी .

बेचैनी है पाने की

पाकर दूर जाने की

उलझनों में रह गई

उलझ कर प्रेम की डोरी”.

भारी मन से सबीना ने निकाह की सारी तैयारीयां पूरी की. दुलहन को खुद अपने हाथो से सजाया. उसकी सुगागरत की सेंज भी खुद ही सजाई. अब घर का सबसे बड़ा बेड रूम जो पहले सबीना और फ़िरोज़ का था उसे नई दुल्हन को दे दिया गया. सबीना को ऊपर सेकंड फ्लोर पर बना एक छोटा सा बना रूम दे दिया गया जो आने जाने वाले रिश्तेदारों के लिए रखा गया था. अब उसी छोटे से रूम में सारा दिन भूखी प्यासी तन्हा अकेली बिस्तर पर पड़ी सबीना गहरी सोच में डुबी रहती. उसका मन बहुत उदास सा रहने लगा था, उसे कुछ भी अच्छा नही लगता. आंखो में नींद तो दूर दूर तक नही थी. सबीना ने अपनी वहीँ पुरानी डायरी निकली और पड़ने लगी.:-

“सितम की रात अभी और होगी, ये अंदेशा था हमें

सितमगर कोई अपना ही होगा, काश ये इल्म होता”.

जैसे अब ये डायरी ही उसकी एकमात्र दोस्त रह गई थी. जिसमे वो अपने दिल की बात कुछ लिख सकती थी और अपने लिखे को तन्हाई में खुद अपने लिए पढ़ लिया करती थी. फ़िरोज़ ने उसके साथ बेवफाई की या नही इसका फैसला उसने ख़ुदा पर छोड़ दिया. वो खुद ही ख़ुदा से पूछेगी जब ख़ुदा से आमना सामना होगा लेकिन अभी इस दर्द से वो कैसे मुक्त हो:-

“दर्द में मैं नहीं तू भी है साखी

ये जो इल्म होता,

तो तुझे बेवफ़ा ना कहते”.

सालभर में ही सबीना अपनी सौत के बच्चे की माँ बन गई और उसकी सास दादी माँ. आज सबीना चार बच्चो की माँ है सारे बच्चे उसे बड़ी अम्मी बुलाते हैं. सभी बच्चो का पालन पोषण सबीना ने खुद ही किया. सारे घर का काम करती और बच्चो को देखती. उसने फ़िरोज़ की दूसरी बीबी को कभी अपनी सौत नही मना. चाहे वो उसे कभी कभी ताने मार दिया करती थी..लेकिन उसने कभी झगडा नही किया. सब बच्चे उसे बहुत प्यार करते थे. चारो बच्चो का मुहं देख सास तभी 6 साल बाद अल्ल्हा मिंया को प्यारी हो गई.

धीरे धीरे सबीना की भी तबियत अब ख़राब होने लगी थी. एक दिन जब उसका CT-SCAN हुआ तो पता चला कि उसे कैंसर हो गया हैं. दो साल इलाज़ के बाद डॉक्टर ने बोल दिया सबीना का कैंसर फ़ैल चूका हैं फोर्थ स्टेज पर है अब ठीक हो पाना मुश्किल है.सिर्फ 40 साल की उम्र में संतोष की साँस लिए सबीना ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. अब सबीना की आखरी निशानी उसकी डायरी फ़िरोज़ के पास रह गई थी. जो उसकी एकमात्र धरोहर थी. डायरी के अंतिम पन्ने पर ग़ालिब का बड़ा ही फेमस शेर था. जिसे वो लिखकर मनो फ़िरोज़ के लिए छोड़ गई हो.

“जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा

कुरेदते हो ये राख़, ये जुस्तजू क्या हैं”.

*******प्रेमा*******

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