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मुझे तुम याद आएं--(अन्तिम भाग)

सत्या के पैर में चोट लगी थी इसलिए वो प्रवचन सुनने ना गया,कजरी को उलझनों ने घेर रखा था और सोमनाथ को बाबाओं के प्रवचन ढ़ोग लगते थे।।
सत्या लेटकर कजरी के बारें में सोच रहा था कि उससे मैं कैसे पूछूँ कि जब तुम जिन्दा थी तो मेरे पास वापस क्यों नहीं आई?
और कजरी ये सोच रही थी कि जब सत्या ने मुझे देखा तो पहचाना क्यों नहीं,बोला क्यों नहीं?ये सत्या है भी या नहीं।।
सोमनाथ सोच रहा था कि आज एक भी मरीज नहीं आएं,सब उस ढ़ोगी बाबा के प्रवचन सुनने चले गए,शायद अब उन्हे मेरी जुरूरत नही है वो ढ़ोगी बाबा ही उन सबके रोग हर लेगा।।
तीनों ही अपनी अपनी उलझनों में उलझे थे,तीनों के अपने अपने नजरिए थे,
शाम होने से पहले ही प्रवचन समाप्त हो चुके थे और बाबा सहित सभी शिष्य लौटकर वापस धर्मशाला आ गए थे,उन सभी के मिष्ठान एवं फलाहार की ब्यवस्था हो गई थी,पुरोहित जी दो चार लोगों के संग धर्मशाला आकर सभी ब्यवस्था देख रहे थे।।
तब बाबा शंखनाद ने सत्या से पूछा.....
सत्या! तुम क्योंं नहीं आएं प्रवचन सुनने?
जी! ये देखिए !पैर जल गया था।।
ओह...कैसे जल गए? बाबा ने पूछा।।
महाराजिन की मदद कर रहा था कढ़ाई चूल्हे से उतरवाने में,गरम तेल छलक गया,सत्या बोला।।
तभी पुरोहित जी आएं और बोले....
चलिए मैं आपको डाक्टर बाबू के पास ले चलता हूँ।।
फिक्र मत कीजिए ,मैं वहीं गया था उन्होंने मरहम दिया है,लगाने से घाव जल्दी सूख जाएगा,सत्या बोला।।
तब ठीक है,डाक्टर बाबू की दवा से तो घाव जल्दी ठीक हो जाएगा,पुरोहित जी बोले।।
जी! अब जलन कम है,सत्या बोला।।
ऐसे ही सबके बीच बातें चलतीं रहें,बाबा और उनके शिष्यों को धर्मशाला में रहते हफ्ते भर बीत गए थे,उनकी वही रोज की दिनचर्या थी , लेकिन सत्या और कजरी के मन का मैल नहीं धुला था,दोनों ही एक दूसरे को दोषी समझ रहे थे लेकिन दोनों मे से किसी के भीतर एक दूसरे से सच पूछने की हिम्मत नहीं थी।।
बाबा शंखनाद अब मुश्किल से उस गाँव में दो दिन और रूकने वाले थे,ये उन्होंने सबसे कह रखा था कि अब वो एकाध दिन बाद दूसरे गाँव की ओर प्रस्थान करेंगें।।
बाबा की बत सुनकर कजरी परेशान हो उठी कि अगर सुन्दर बाबू चले गए तो वो फिर कभी भी उनसे ना मिल पाएगी,लेकिन वो कैसे पता करें कि वो ही सुन्दर बाबू हैं,वो बहुत ही उलझन में थी।।
इसी बीच सत्या और सोमनाथ के बीच काफी अच्छी दोस्ती हो गई थी,क्योंकि सत्या को अपना घाव दिखाने सोमनाथ के पास जाना पड़ता था इस तरह से दोनों के बीच जान-पहचान हुई,बातें हुई और दोस्ती बढ़ गई।।
फिर एक दिन सोमनाथ ने सत्या से पूछा....
आप तो काफी पढ़े लिखे जान पड़ते हैं,अच्छे घर से भी लगते हैं,फिर आपका ये वैरागी बनना मेरी समझ से परे है।।
जी! कुछ हालातों ने और कुछ किस्मत ने ऐसा बना दिया,नहीं तो आदमी हम भी बड़े काम के थे,सत्या बोला।।
जी,शायरी भी कर लेते हैं आप,सोमनाथ ने पूछा।।
जी! जिस दिल में किसी के लिए मौहब्बत हो तो शायरी खुदबखुद आ ही जाती है, सत्या बोला।।
जरा हम भी तो सुने वो खुशनसीब कौन है? सोमनाथ बोला।।
थी कोई और शायद अब भी है लेकिन वो मुझसे अभी दूर है,शायद मुझसे खफ़ा है या मैं उसकी मौहब्बत के काब़िल नहीं,सत्या बोला।।
जनाब! ये कैसी पहेलियाँ बुझा रहें हैं आप?सोमनाथ ने पूछा।।
सच! वो मेरे लिए पहेली बनकर ही तो रह गई है,सत्या बोला।
तो जनाब! पहेली को सुलझाइए ,कहीं ऐसा ना हो कि बिना सुलझे ही रह जाएं,सोमनाथ बोला।।
उसने कुछ कहा ही नहीं तो कैसे जानू उसके मन की बात? सत्या बोला।।
तो आप खुद क्योंं नहीं पूछ लेते,सोमनाथ बोला ।।
कैसे पूछूँ? कुछ समझ नहीं आता,सत्या बोला।।
अगर आप मन की गाँठे खोलेगे नहीं तो कैसें खुलेगीं?सोमनाथ बोला।।
शायद आप ठीक कहते हैं,सत्या बोला।।
मैं यही तो कहना चाहता हूँ,उससे पूछिए,उसके मन की बात जानने की कोशिश कीजिए,सोमनाथ बोला।।
वो सब तो ठीक है ,मेरा तो सब पूछ लिया लेकिन अपने बारें में भी कुछ बताएं,आपकी जिन्दगी में कोई हैं या नहीं,सत्या बोला।।
जी! उसके बाबा तो चाहते हैं कि हम दोनों का रिश्ता हो जाएं,लेकिन उसने मना कर दिया,वो अभी शादी नहीं करना चाहती,सोमनाथ बोला।।
कौन है वो खुशकिस्मत,जरा हम भी तो सुनें,सत्या ने पूछा।।
जी! वो हमारे मन्दिर के पुरोहित जी हैं उनकी बेटी कजरी ,देखा होगा आपने,सोमनाथ के मुँह से कजरी का नाम सुनते ही सत्या थोड़ा परेशान सा हो गया और उसने फिर सोमनाथ से कहा...
हाँ! देखा तो है,कुछ तो कारण होगा कि वो अभी शादी नहीं करना चाहती,सत्या ने सोमनाथ से कजरी के मन की बात पता करने की कोशिश की.....
वो तो पता नहीं कि वो क्योंं इनकार करती है शादी से,मेरी कभी खुलकर इस विषय पर बात नहीं हुई कजरी से,सोमनाथ बोला।।
अच्छा ! तो ये बात है,हो सकता है कजरी के मन में कोई और हो,सत्या बोला।।
ये भी हो सकता है क्योंकि कजरी पुरोहित जी की सगी बेटी नहीं है,वो तो उन्हें नदी किनारे बेहोश पड़ी मिली थी,सोमनाथ बोला।।
तो क्या कजरी ने फिर अपने घर जाने का दोबारा नहीं सोचा? सत्या ने पूछा।।
अब ये तो मैं नहीं जानता,ये बात तो कजरी और पुरोहित जी ही बता सकतें हैं,सोमनाथ बोला।।
हाँ! सही बात है भला किसके मन की कौन जानता है? सत्या बोला।।
हाँ! एक बात और जब कजरी पुरोहित जी को मिली थी तो वो देख नहीं सकती थी,गाँववालों ने ही उसकी आँखों का इलाज करवाया था,सोमनाथ बोला।।
ये तो मुझे भी पता है,सत्या मन में बोला।।
जी! कुछ कहा आपने,सोमनाथ ने पूछा।।
जी नहीं! ऐसे ही कुछ सोच रहा था,सत्या बोला।।
जी! मेरी बात अभी तक कजरी के साथ बन नहीं पाई,बस यही है मेरी कहानी,सोमनाथ बोला।।
तो अब मैं चलता हूँ,शायद दो दिन में यहाँ से चला जाऊँ ,हो सकता आपसे अब इन दो दिनों में मुलाकात ना हो पाएं,सत्या बोला।।
आपके जाने से मुझे निराशा होगी,सोमनाथ बोला।।
हाँ! मेरा भी इस गाँव में दिल लग गया है,यहाँ से जाने का अब मन नहीं कर रहा,सत्या बोला।।
तो रूक जाइए ना!सोमनाथ बोला।।
ऐसा नहीं हो सकता,कोई कारण नहीं है ना! यहाँ रूकने का,सत्या बोला।।
आप जैसा दोस्त पाकर उसे खोने का दिल नहीं करता,सोमनाथ बोला।।
भावनाओं में बहकर दुनिया नहीं चलती,जीवन जीने के लिए प्रयोगात्मक होना बहुत जरूरी है,सत्या बोला।।
वैसे आप सही कह रहे हैं,सोमनाथ बोला।।
अच्छा! तो मैं अब चलूँ जैसे ही इतना कहकर सत्या वहाँ से चलने के लिए उठा तो गाँव का एक गरीब किसान बिट्ठल भागते हुए सोमनाथ के पास आया और बोला.....
डाक्टर बाबू! जल्दी से मेरे घर चलिए,मेरे बेटे भोलू के पेट में बहुत बड़ा घाव हो गया है,लगातार खून बहे जा रहा है,कहीं खेल रहा था तो किसी नुकीली चींज पर गिर पड़ा है,पेट में चीरा सा लग गया,डाक्टर बाबू आप ही कुछ कर सकते हैं,आप ही हमारे भगवान है,मेरी मदद कीजिए,बचा लीजिए मेरे बच्चे को,रामू लगातार गिड़गिड़ा रहा था।।
लेकिन ऐसे घाव का उपचार करना मुझे नहीं आता,उसके लिए तो सर्जरी करनी पड़ेगी ,ये तो बड़ा डाक्टर ही कर सकता है,सोमनाथ बोला।।
मैं बड़ी आशा से आपके पास आया हूँ,बिट्ठल गिड़गिड़ाते हुए बोला।।
तभी सत्या ,सोमनाथ से बोला.....
आप मुझे अपना सामान दिखाएं,मैं ही कुछ करता हूँ,बच्चे को ऐसे मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता।।
लेकिन आप कैसे? सोमनाथ ने पूछा।
अभी बात करने का समय नहीं है,बच्चे का इलाज बहुत जरूरी है ,सत्या बोला।।
और सोमनाथ ,सत्या के कहे अनुसार काम करने लगा,इलाज का सारा जरूरी सामान लेकर सत्या और सोमनाथ बिट्ठल के घर पहुँचे,सत्या ने फौरन ही बच्चे को बेहोशी का इंजेक्शन लगाकर सर्जरी शुरू कर दी,कुछ ही देर में बच्चे का खून रिसना बंद हो गया और उसके घाव पर सत्या ने पट्टी कर दी।।
फिर बिट्ठल से सत्या बोला.....
मैं यहीं रूककर बच्चे के होश में आने का इन्तज़ार करता हूँ।।
सत्या का काम देखकर सोमनाथ अचरज में पड़ गया ,उसने मन में सोचा कि ऐसा तो कोई बड़ा और प्रोफेशनल डाक्टर ही कर सकता है,इसका मतलब है कि सत्या बाबू बहुत ही बड़े डाक्टर हैं और ये बात उन्होंने हम सबसे छुपाकर रखी,तब सोमनाथ ने सत्या से पूछा....
आपने हम सब ये क्योंं छुपाया?
क्या छुपाया मैने? सत्या ने पूछा।।
बनिए मत,आप सब जानते हैं कि मैं किस विषय में बात कर रहा हूँ? सोमनाथ ने गुस्से से कहा।।
इतना गुस्सा क्यों हो रहें हैं? सोमनाथ बाबू! सत्या बोला।।
गुस्सा ना होऊँ तो क्या करूँ? आपकी आरती उतारूँ,सोमनाथ बोला।।
पहले बच्चे को होश में आ जाने दीजिए,यहाँ चिल्लमचिल्ली मत कीजिए,ये बातें तो बाद में भी हो सकतीं हैं,सत्या बोला।।
तो चलिए....बाहर चलिए....मुझे इसी वक्त आपसे बात करनी है,सोमनाथ बोला।।
आप बच्चों जैसी हरकत क्यों कर रहे हैं ?सोमनाथ बाबू! सत्या बोला।।
मुझे आपका सच जानना हैं कि आप कौन हैं? सोमनाथ बोला।।
अच्छा! ठीक है तो बाहर चलिए,मैं आपको अपनी सच्चाई से वाकिफ़ करवाता हूँ,सत्या बोला।।
और बाहर आकर सत्या ने सोमनाथ को अपनी सारी सच्चाई कह डाली ,सत्या की सच्चाई सुनकर सोमनाथ बोला.....
तो कजरी इतने दिनों से आपका इन्तजार कर रही है,इसलिए उसने मुझसे शादी नहीं की और बेचारी को ये भी नहीं पता कि आप ही उसके सत्या हैं,अब मैं ये बात कजरी को बताऊँगा,मैं आप दोनों का मिलन करवा कर ही रहूँगा।।
रहने दीजिए सोमनाथ बाबू!अगर कजरी मुझे चाहती थी तो फिर लौटी क्यों नहीं?मैं जेल में पल पल उसे याद करता रहा,लेकिन वो मुझसे मिलने क्यों नहीं आई? ये सवाल मुझे परेशान कर रहा है,सत्या बोला।।
मैं ये सच्चाई भी कजरी से पूछूँगा,सोमनाथ बोला।।
तभी बिट्ठल भीतर से भागता हुआ आया और सत्या से बोला.....
बच्चे को होश आ गया है,उसे देख लीजिए।।
सत्या और सोमनाथ भीतर पहुँचे तो देखा कि बच्चा एकदम स्वस्थ है और बातें कर रहा है,सत्या ने बच्चे की जाँच की और पाया कि अब बच्चा बिल्कुल ठीक है ,बिट्ठल से कहा कि अब उसे आराम करने दो,कुछ खाने पीने की हिदायतें दी और बोला कि कोई शहर जाएं तो ये दवाएं जरूर मँगवा लेना,घाव जल्दी सूख जाएगा,नहीं तो मैं ही ये दवाएं ले आऊँगा शहर जाकर,सत्या बोला।।
बिट्ठल ने ये खबर पूरे गाँव में फैला दी कि सत्या बाबू ने आँपरेशन करके मेरे बच्चे को जीवनदान दिया है और ये खबर कजरी तक भी पहुँची,कजरी को पूरा यकीन हो गया कि ये उसके सुन्दर बाबू ही हैं और फिर शाम को सोमनाथ,सत्या को लेकर कजरी के पास पहुँचा और सत्या से बोला....
अब पूछो कजरी से कि वो वापस क्यों नहीं लौटी?
फिर पुरोहित जी ने पूछा....
ये सब क्या है डाक्टर बाबू? आप बाबा के शिष्य को यहाँ क्यों लाएं हैं?
तब सोमनाथ बोला....
ये ही वो इन्सान हैं जिनकी वजह से कजरी मुझसे ब्याह नहीं करना चाहती।।
तो क्या ये ही कजरी के सुन्दर बाबू हैं? पुरोहित जी ने पूछा।।
हाँ! ये ही सुन्दर बाबू हैं और कजरी से पूछना चाहते हैं कि वो वापस क्यों नहीं लौटी? सोमनाथ बोला।।
इसका जवाब मैं देता हूँ,पुरोहित जी बोले।।
और पुरोहित जी ने सारी राम कहानी कह सुनाई कि अन्जना के पिता ने उनसे क्या क्या कहकर वापस गाँव लौट जाने को कहा,हम दोनों उसे सच मानकर वापस गाँव आ गए।।
ये सब झूठ था और मैं कजरी को दोषी समझता रहा,मुझे माँफ कर दो कजरी,मैने तुम्हें गलत समझा,ये कहकर सत्या फूट फूटकर रो पड़ा।।
उसका रोना देखकर कजरी भी रो पड़ी और उसके पास आकर बोली.....
आपका कोई दोष नहीं सुन्दर बाबू! आपको पूरी सच्चाई नहीं पता थी,
दोष तो तुम्हारा भी नहीं है कजरी! तुमने तो वही सुना जो तुम्हें बताया गया,लेकिन हमारा प्यार सच्चा था इसलिए कोई भी हमें अलग नहीं कर पाया,हम बिछड़कर फिर से मिल गए,अब तो अन्जना के बाप बद्रीनाथ की खैर नहीं,उसे वापस जाकर मैं अच्छा सबक सिखाऊँगा,सत्या बोला।।
फिर सत्या और कजरी को सबने बातें करने के लिए अकेला छोड़ दिया....
सत्या ने कजरी से कहा....
तुम मुझसे इतने दिनों दूर रही ,मुझे !तुम बहुत याद आई।।
और मुझे भी आप बहुत याद आएं,अब मैं आपको देख सकती हूँ तो एक बात बोलूँ....
हाँ! बोलो,सत्या ने कहा...
और सब तो ठीक है लेकिन मुझे आपकी नाक पसंद नहीं आई,बिल्कुल पकोड़े जैसी है।।
ये सुनकर सत्या हँस पड़ा और कजरी भी हँसते हुए सत्या के गले लग गई।।
बाबा शंखनाद अपने शिष्यों के साथ किसी और गाँव में चले गए,फिर पुरोहित जी ने सत्या और कजरी का ब्याह करा दिया और जब कजरी विदा होने लगी तो पुरोहित जी और पुरोहितन से बोली...
आप दोनों ने मुझे बहुत प्यार दिया,अब से ये मेरा मायका रहा,मैं यहाँ भी आती रहूँगी,
दोनों ने प्यार से कजरी को गले से लगा लिया।।
सत्या के गले लगकर सोमनाथ ने भी उसे गाँव से विदा किया,फिर सत्या ,सोमनाथ से बोला....
मैं अपने अस्पताल की एक और शाखा यहाँ भी खोलना चाहता हूँ और उसका कार्यभार आप सम्भालेगें ,आपको मंजूर है।।
सोमनाथ बोला....
बिल्कुल! आप जैसे प्रशिक्षित डाक्टर के साथ काम करके मुझे अच्छा लगेगा।।
और फिर सत्या ने वापस जाकर बद्रीनाथ की खूब अच्छे से खबर ली,अपने पिता के किए की माँफी अन्जना ने भी माँगी।।
सत्या ने उस गाँव में दूसरा अस्पताल भी खोल लिया,सोमनाथ ने उसे सम्भालने की जिम्मेदारी ले ली,
कल्याणी कजरी को अपनी बहु के रूप में देखकर बहुत खुश हुई और फिर सभी खुशी खुशी रहने लगे।।

समाप्त.....
सरोज वर्मा....