Raat - Ek Rahashya - 2 in Hindi Horror Stories by Sanjay Kamble books and stories PDF | रात - एक रहस्य - 2

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रात - एक रहस्य - 2

रात 2

उसकी बात सुनकर मैंने थोड़े मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा। पर कुछ नहीं कहा, वो समझ चुका था कि मैं उसका मजाक उड़ा रहा हूं। पर वो बिना कुछ बोले मुस्कुरा कर चला गया। शायद उन्हें भी आदत हो गई थी मेरे जैसे लोगों की ।
हम गाड़ी से वापस घर के लिए निकले तब तक रात हो चुकी थी। सड़क पर गाड़ीयों की आवाजाही कुछ कम होने की वजह से मैंने गाड़ी की रफ्तार थोड़ी ज्यादा ही रखी थी। वैसे भी भाभी जी को अब होश आ चुका था और उनपर इंप्रेशन जमाने के चक्कर में रफ्तार पर ध्यान ही नहीं दिया। पर उनके चेहरे पर अजीब सी थकान थी , जैसे वो कई दिन से बीमार हो। गाड़ी की खिड़की से बाहर नजर डालते हुए वे बोलीं।
" हम कहां जा रहे हैं ?"
भाभी जी की बात सुनकर मैं थोड़ा हैरान रह गया। मेरे दोस्त ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा।
"कुछ नहीं हम मंदिर गए थे तुम्हारी लंबी उम्र के लिए दुआ करने। अब कैसा लग रहा है ?"

" शरीर बहुत दर्द कर रहा है और बहुत थकान महसूस हो रही है। मैं सो जाती हुं। "

इतना कहकर वह मेरे दोस्त के कंधे पर सर रखकर सो गई पर मैं हैरान हो गया था क्योंकि कुछ देर पहले जाते वक्त जिस तरह से उसके बिखरे बाल, वह लाल-लाल आंखें , डरावनी आवाज ? लेकिन अब सब साधारण था।
मैंने दबी आवाज में पुछा।
" ये सब कब से शुरू हुआ?"

" कब , कहा, कैसे ये सब कभी इत्मीनान से बताऊंगा। बस ये जल्दी से ठीक हो जाये "

मेरी तरफ देखते हुए मेरे दोस्त ने कहा।
"कुछ बातों पर यकीन करना पड़ता है । और वैसे भी हमारे यकीन करने या ना करने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि वह जिसे, जहां , जब चाहे अपना शिकार बना सकते हैं , सिर्फ वक्त का खेल है।"

"ये सब तुम्हारे दिमाग की उपज है। मुझे कई बार देर रात तक काम करना पड़ता है। हायवे पर से अकेला आता हूं। पर मैंने तो कभी भुत नहीं देखा , शायद उन भुतों की मुझसे फटती होगी।"

इतना कहकर मैं घमंड में हंसने लगा। मेरी तरफ देखते हुए मेरा दोस्त शांति से बोला।
" किस्मत वाले हो जो इन सब चीजों से तुम्हारा पाला नहीं पड़ा , क्योंकि जिसके नसीब में उन चीजों का सामना करना लिखा है उसके जैसा बदकिस्मत इंसान दुनिया में नहीं होगा।"

"मतलब तुम्हारे साथ पहले भी हो चुका है।"

उसने कोई जवाब नहीं दिया। मेरी तरफ देखते हुए एक चिठ्ठी निकाली मेरे हात मे देते हुए कहा।
" पढ़ कर फाड़ देना। वहां जाने की कोशिश मत करना"

बातें करते करते उनका घर कब आ गया पता ही नहीं चला । रात के करीब 9:00 बजने वाले थे। दोनों मेरी गाड़ी से उतरे मेरे दोस्त ने अपनी पत्नी को सहारा दिया, दोनों अपने घर में चले गए। भाभी जी की तबीयत अब काफी ठीक लग रही थी। रात काफी होने की वजह से मै भी वहां से निकला। गाड़ी चलाते वक्त दोस्त ने दी हुई चिट्ठी हाथ में ली और देखने लगा।

उस पर एक जगह का पता लिखा था । शहर से दूर एक वीरान बांग्ला जो पिछले कई सालों से बंद पड़ा था। मैं कई बार उस बंगले के सामने से जाने वाले रास्ते से गुजरा था पर कभी अंदर जाने की जरूरत नहीं पड़ी। कुछ ही देर में मैं अपने घर पहुंचा। खाना खाकर बिस्तर पर लेटा ही था तभी मेरे दोस्त का फोन आया।
" मैंने जो चिट्ठी दी थी, वह पढ़ ली ?"

" हां , वो जगह मैं जानता हूं।"

" मुझे पता है, हमारे शहर का हर आदमी उस जगह को जानता है लेकिन कुछ ही लोग हैं जो उस जगह को पहचानते हैं।"

" जानते हैं पहचानते हैं, यह क्या बात कर रहे हो तुम।"

" तुम उस जगह से गुजरने वाली सड़क से आते जाते हो इसलिए उस जगह को जानते हो। पर उस जगह के बारे में कुछ नहीं जानते।"

" तुमने काफी जानकारी जुटा ली है , लगता है तुम्हें इन्सानो से ज्यादा भूतों से लगाव है।"
इतना कहकर मैं मुस्कुराने लगा।

*******


लगता है दरवाजे की दूसरी तरफ से कुछ आवाज या रही है। आवाज सचमुच आ रही है , या यह मेरा सिर्फ वहम है ? क्योंकि मैं पिछले 1 घंटे से लगातार उसी के बारे में सोच रहा हूं। रहकर सब कुछ याद आ रहा था। वैसे इस खौफनाक परिस्थिति में भी एक बात जरूर मेरे दिमाग को सुकून दे रही हैं। विनीत की पत्नी। बड़ी खूबसूरत है, मैं तो एक बार देखते ही दिवाना सा हो गया था।

मेरी खौफ भरी निगाहें अभी भी उस दरवाजे पर टिकी हुई है । पता नहीं वह डरावनी आहट कब सुनाई दे , मुझे तब तक यहां इसी तरह बेजान लाश की तरह पड़े रहना होगा जब तक सूरज नहीं निकलता। और उसके बाद मैं इस जगह से इतनी दूर चला जाऊंगा कि दोबारा मुड़कर भी इस जगह को नहीं देखूंगा। पूरा बदन पसीना पसीना हो चुका है। गला भी पूरी तरह से सूख गया है । पानी की बोतल कहां पर ही रखी है ? नजर तो नहीं आ रही। पर अगर मैं पानी पीने के लिए उठा और उसी वक्त वो पिशाच आ गया तो मेरे जिस्म के हजारों चिथड़े ...

क्रमशः