Teri Kurbat me - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरी कुर्बत में - (भाग-18)

ऋषि को खिलखिलाती हुई संचिता बहुत अच्छी लग रही थी । उसने उसे देखकर कहा।

ऋषि - वैसे तुमने मेरी एक बात का जवाब नहीं दिया ।

संचिता - कौन सी बात???

ऋषि - यही...., कि तुमने यहां आने से पहले मुझे बताया नहीं ।

संचिता ( ऋषि को इशाराकर ) - यहां आओ , अपना कान इधर करो ।

ऋषि ने उसके कहे अनुसार अपने कान उसके पास किए , तो वह उसके कान में हाथ सटा कर धीरे से बोली ।

संचिता - अगर बता देती , तो सरप्राइज कैसे देती??

और इतना बोल वह खिलखिलाकर हंस दी । ऋषि उसकी इस हरकत से उसे घूरने लगा और बोला ।

ऋषि - इसी बात को नॉर्मली नहीं बोल सकती थी , पागल ।

संचिता - अगर नॉर्मली बोलती , तो तुम्हारे जाने से पहले तुम्हारा ये बंदर जैसा चेहरा , जो गुस्से की वजह से लाल हो जाता है , वो कैसे देखती???

ऋषि को भी उसकी इस बात पर हंसी आ गई । उसने कहा ।

ऋषि - वैसे ये बात तो है । पर आज तुम इतनी खुश क्यों नज़र आ रही हो , मेरे जाने की तुम्हें इतनी खुशी है???

संचिता - नहीं...., तुम्हारे आने का बेसब्री से इंतजार है ।

ऋषि - उसके लिए पहले मुझे जाना पड़ेगा , तभी तो वापस आऊंगा । वैसे तुम्हें मेरा बेसब्री से इंतजार क्यों हैं???

संचिता - कुछ सीक्रेट बताने हैं आपको ऋषि जी ।

ऋषि - वाह .., ऋषि जी...। इतनी इज्जत !!!!???

संचिता - हां...., अब तो तुम सीधे छह महीने बाद आओगे । और वो भी एक सोल्ज़र बनकर । इस लिए आपको इज्जत तो देनी ही पड़ेगी ऋषि बाबू ।

ऋषि ( शान से अपनी कॉलर खड़ी कर बोला ) - हां..., वो तो है ।

तभी अनुज उनके पास आया और संचिता को बोला ।

अनुज - हाई दी ।

संचिता - हेलो अनुज । कैसे हो???

अनुज - बढ़िया हूं । वैसे अगर आप दोनों की बातें खत्म हो गई हों , तो हमें चलना चाहिए । ट्रेन के आने की अनाउंसमेंट हो चुकी है । दोनों ने हां में सिर हिलाया । अनुज और ऋषि ने बैग्स उठाए , तो संचिता ने भी एक बैग उठा लिया । ऋषि ने उसे देख रोका।

ऋषि - अरे...., ये क्या कर रही हो??? मैं और अनुज कर लेंगे ।

संचिता - एक आखिरी बार मुझे तुम्हारा कुछ काम करने दो न ।

ऋषि - आखिरी बार????

संचिता - हां..., आखिरी बार । फिर तो तुम जाने कब आओ । तब तो मुलाकातें भी मुश्किल हो जायेंगी ।

ऋषि ने बैग जमीन में रख संचिता को गले लगा लिया । संचिता की भी आखें भर आईं । हालांकि ये सब दोस्ती के नाते हुआ था । बट अनुज सहित बाकी वेटिंग रूम में खड़े लोग , दोनों को प्रेमी प्रेमिका मान रहे थे , पर हकीकत तो सिर्फ ये दोनों ही जानते थे । ऋषि ने उसे खुद से अलग किया , तो संचिता ने जल्दी से उससे छुपकर अपने आसूं साफ कर लिए । पर ऋषि और अनुज दोनों ने उसे अपने आसूं साफ करते हुए देख लिया । पर दोनों कुछ नहीं बोले । संचिता ने भी एक बैग उठाया और तीनों वेटिंग रूम के बाहर आ गए । बाहर प्लेट फार्म दो पर गाड़ी लग चुकी थी । तीनों जल्दी से प्लेट फार्म एक से सीढियां चढ़कर प्लेट फार्म दो पर आए । ऋषि की रिजर्वेटिव सीट ढूंढी । उसका सामना रखा । और उसका बैग रखते ही संचिता ऋषि को देखने लगी और मन ही मन खुद से कहने लगी ।

संचिता - कैसी विडंबना है न ऋषि ..!!! आज मुझे ये एहसास हुआ , कि जो फीलिंग्स इतने महीनों से मुझे महसूस होती आ रही हैं , उनके मायने क्या हैं । और आज ही तुम यहां से जा रहे हो । जाने क्यों ऐसा लग रहा है , जैसे आज के बाद से हमारी जिंदगी बदल जायेगी । हां..., शायद इस लिए क्योंकि मेरी फीलिंग्स तुम्हारे लिए बदल जाएंगी । अब मैं तुम्हारा इंतजार तो करूंगी , लेकिन प्रेमिका के नाते । कितनी बदकिस्मत हूं न मैं , तुमसे अपने प्यार का इजहार तक नहीं कर पाई और तुम...., तुम अब मुझसे इतने दूर जा रहे हो । भगवान करे अब सब ठीक हो , तुम जल्दी से वापस आ जाओ और मैं तुम्हें अपने दिल की सारी फीलिंग्स बता दूं , कि मैं तुम्हें प्यार करने लगी हूं । हां..., ऋषि ...। मुझे तुमसे इश्क़ हो गया है , शायद सच्चा वाला इश्क़ ।

ऋषि ( उसे अपनी सोच में खोए देख बोला ) - कहां खोई हो तुम??? जल्दी उतरो....., वरना मेरे साथ श्रीनगर पहुंच जाओगी ।

संचिता उसकी बात पर कुछ नहीं बोली , बस मुस्कुरा दी । वह और अनुज ट्रेन से नीचे उतर गए । संचिता और अनुज ऋषि की खिड़की के तरफ आकर खड़े हो गए । ऋषि अब ध्यान से संचिता को देख रहा था और महसूस कर रहा था , जैसे संचिता उससे बहुत कुछ कहना चाहती है , पर कह नहीं पा रही है । उसने जैसे ही ये बात उससे पूछनी चाही , तभी ट्रेन के प्लेटफार्म से छूटने की अनाउंसमेंट हो गई । ऋषि की बात उसके जुबान तक ही रह गई । संचिता ने उसे देखा और उसके दाएं हाथ को अपने दोनों हाथों में लेकर बोली ।

संचिता - जल्दी आना ऋषि , मैं इंतजार करूंगी तुम्हारा ।

ऋषि की पलकें भीग गई , जाने क्यों । उसने सिर्फ हां में सिर हिला दिया । अनुज बोला ।

अनुज - अपना ख्याल रखना भाई और पहुंचते ही कॉल करना । मैं आपको बहुत मिस करने वाला हूं ।

अनुज का भी ये बोलते हुए गला भर आया था । ऋषि ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखा और कहा।

ऋषि - मैं भी तुझे बहुत मिस करूंगा भाई । सबका खयाल रखना और घर की खबर तू और दी मुझे देते रहना ।

अनुज ने हां में सिर हिला दिया। तभी ट्रेन का हॉर्न बजा और वह धीरे - धीरे प्लेट फार्म से छूटने लगी । अनुज ने ऋषि को बाय कहा , तो ऋषि अपने बाएं हाथ से उसे बाय कहकर हाथ हिलाने लगा । ऋषि का जो हाथ संचिता के हाथ में था , वो धीरे - धीरे छुटने लगा और संचिता वहीं जड़वत सी खड़ी रही । ऋषि हाथ छुटने के बाद भी संचिता को तब तक देखता रहा , जब तक वह उसकी नजरों से ओझल नहीं हो गई । उसके ओझल होते ही ऋषि ने पीछे सीट से अपना सिर लगाया और आखें बंद कर लीं । आंखों से दो बूंद आसूं उसके गालों पर टपक पड़े । उसे आज सब कुछ छूटता सा नज़र आ रहा था । घर परिवार, घर के सारे सदस्य , भाई बहन , मां बाप , संचिता । सब कुछ जैसे उसकी हथेली से फिसल रहा हो , ऐसा उसे आभास हो रहा था , वह वैसे ही आंख बंद किए वहां बैठा रहा ।

क्रमशः