Kaun hai khalnayak - Part 1 books and stories free download online pdf in Hindi

कौन है ख़लनायक - भाग १

अजय और रुपाली बचपन से साथ में खेलते हुए बड़े हुए थे। दोनों की दोस्ती बड़ी ही अजीब थी। वे आपस में बहुत झगड़ा करते थे फिर बात करना भी बंद कर देते थे। लेकिन यह झगड़ा कभी भी लंबा नहीं चल पाता था। दो-तीन घंटे में ही दोनों में से कोई एक बात करने चला आता था। वे दोनों आसपास की सोसाइटी में ही रहते थे। इसलिए मिलना, जुलना, खेलना हर रोज़ की ही बात थी।

पहली से आठवीं क्लास तक उनका स्कूल अलग-अलग था। बचपन से ही अजय को रुपाली बहुत अच्छी लगती थी। एक दिन उसने अपनी मम्मी से भी कहा, "मम्मी रुपाली मुझे बहुत अच्छी लगती है।"

उसकी मम्मी ने ज़्यादा ध्यान नहीं देते हुए, हँस कर बात को टाल दिया।

धीरे-धीरे बचपन से जवानी की दहलीज़ पर उन्होंने कदम रखा। अब खेलने के साथ-साथ पढ़ाई भी वे साथ में करने लगे। हायर सेकेंडरी में दोनों ने एक ही स्कूल में प्रवेश ले लिया। रुपाली और अजय का साथ पहले से भी अधिक बढ़ गया। अब तो साथ ही स्कूल आना-जाना भी शुरू हो गया। लेकिन बात-बात में झगड़ा करना अब भी बचपन की ही तरह चालू था। दोनों एक दूसरे के घर भी आते-जाते थे। दोनों के पेरेंट्स भी उनकी इस अजीब दोस्ती के बारे में जानते थे।

अजय महसूस कर रहा था कि शायद वह तो रुपाली से प्यार करने लगा है।

स्कूल की पढ़ाई ख़त्म हुई तो कॉलेज भी दोनों ने एक ही चुन लिया। अब तक वे बड़े हो चुके थे, जवान हो चुके थे। अजय साधारण नैन-नक्श वाला, सांवले रंग का नौजवान था और पढ़ने में बहुत ही होशियार था। इसके विपरीत रुपाली दिखने में बहुत ही खूबसूरत थी किंतु पढ़ने में साधारण थी।

धीरे-धीरे अजय का प्यार रुपाली के लिए बढ़ते ही जा रहा था। लेकिन रुपाली इस बात से एकदम अंजान थी। वे अभी कंप्यूटर इंजीनियरिंग कर रहे थे। रुपाली की एक सहेली थी प्रणाली। वे दोनों हमेशा अजय के साथ लाइब्रेरी जातीं और वहाँ काफी देर तक अजय उन्हें वह चैप्टर समझाया करता था जो उन्हें कठिन लगते थे। वे सब कैंटीन भी अक्सर साथ में ही जाते थे। प्रणाली और रुपाली अजय को आज कल सर कहकर बुलाती थीं क्योंकि वह उन्हें पढ़ाता जो था।

एक दिन अजय ने कहा, "रुपाली यह क्या, तुम लोगों ने सर-सर लगा रखा है। मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं है। बचपन से जैसे बुलाती थीं, वैसे ही क्यों नहीं बुलाती हो?"

"अरे सर, अब आप हमें पढ़ाने जो लगे हो।"

प्रणाली ने कहा, " हाँ सर रुपाली बिल्कुल ठीक कह रही है।"

"प्रणाली प्लीज़ यार, तुम लोग ऐसा करोगे तो मैं, मैं तुम्हें पढ़ाऊँगा ही नहीं।"

दोनों ने एक साथ कहा, "सॉरी सर" और हँसते हुए चली गईं।

अजय रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे यह बात याद कर रहा था तो उसे हँसी आ गई। सच में तो उन दोनों का ऐसे बुलाना उसे अच्छा लगता था।

इंजीनियरिंग का तीसरा वर्ष ख़त्म हो रहा था। तभी उनकी क्लास में किसी दूसरे शहर से एक नया लड़का आया प्रियांशु। उसका आज पहला दिन था। वह अपनी बाइक से जैसे ही कॉलेज के गेट से अंदर आया, उसे सामने से दो लड़कियाँ आते हुए दिखाई दीं, रुपाली और प्रणाली। वह उनके पास से गुजरता हुआ आगे बढ़ने लगा। तभी रुपाली की नज़र उस पर पड़ गई। इतना हैंडसम लड़का, घुँघराले बाल, इतना गोरा चिट्टा रंग, आँखों पर काला चश्मा चेहरे को और भी आकर्षक बना रहा था। उसकी बाइक की फट-फट की आवाज़ ने सभी का ध्यान आकर्षित कर लिया। इतनी महंगी और बढ़िया बाइक देखकर लड़के तक उस तरफ देख रहे थे। उसने बाइक पार्क की और नीचे खड़ा हुआ। छः फुट का ऊँचा पूरा नौजवान किसी हीरो से कम नहीं लग रहा था। रुपाली उसे देखती ही रह गई। उसकी नज़रें हट ही नहीं रही थीं।

उसके बाद वह रुपाली और प्रणाली के सामने से गुजरा किंतु उसने उनकी तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। मानो शायद उसने उन्हें देखा ही ना हो। रुपाली सोच रही थी मैं इतनी सुंदर हूँ फिर भी इस लड़के ने आँख उठाकर देखा तक नहीं । वाह क्या बात है, यह तो सबसे अलग है।

अजय आज थोड़ी देर से आया था। आते ही उसने रुपाली को देखा और आवाज़ लगाई, "रुपाली।"

रुपाली ने मुड़कर देखा और रुक गई। उसने कहा, "अजय क्या हुआ, इतनी देर से क्यों आए हो? मैंने कितनी बार फ़ोन किया, तुमने उठाया क्यों नहीं?"

"अरे माँ को अस्पताल ले गया था, फ़ोन स्विच ऑफ था।"

"क्या हुआ आंटी को?"

"कुछ ख़ास नहीं, वायरल फीवर है।"

उसके बाद प्रणाली और वे दोनों अपनी क्लास में पहुँच गए। कुछ ही देर में वही लड़का प्रियांशु उन्हीं की क्लास में आया। उसे आता देख रुपाली उठ कर खड़ी हो गई। प्रणाली ने उसका कुर्ता खींच कर उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा, "रुपाली यह क्या कर रही है। वह कोई प्रोफ़ेसर नहीं है जो तू उठ कर खड़ी हो गई।"

रुपाली बैठ तो गई पर उसकी नज़रें उसी पर टिकी थीं। वह बहुत ही स्मार्ट था। वह बिंदास सबके सामने आकर खड़ा हो गया और ख़ुद ही अपना परिचय देने लगा।

"हैलो फ्रेंड्स मैं प्रियांशु अहमदाबाद से यहाँ सूरत ट्रांसफर लेकर आया हूँ। कुछ पारिवारिक कारणों से आधे वर्ष के बाद बीच में ही हमें यहाँ शिफ्ट होना पड़ा। अब इसके आगे की पढ़ाई मैं यहाँ आप लोगों के साथ पूरी करूंगा। आशा है हम सब बहुत ही अच्छा समय बिताएंगे।"

सबने एक साथ कहा, " बिल्कुल, वेलकम प्रियांशु।"

रत्ना पांडे वडोदरा गुजरात

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः