Who is the villain - part 10 books and stories free download online pdf in Hindi

कौन है ख़लनायक - भाग १०  

रुपाली ने कार्तिक से कहा, "मुझे लगता है कि अजय से ख़ुद से बात नहीं बनी तो अब उसने तुम्हें भेजा है। वह समझता क्यों नहीं, ऐसा सब करने से कोई फायदा नहीं है।"

"रुपाली तुम मेरी बात तो सुनो…"

"नहीं कार्तिक, अजय पहले ही बहुत झूठ बोल चुका है, बस अब और नहीं…"

"रुपाली मैं जो कहने आया हूँ, तुम्हें सुनना ही पड़ेगा। उसने मुझे यहाँ नहीं भेजा है, मैं अपनी मर्जी से आया हूँ।"

रुपाली ने कहा, "ठीक है, बोलो कार्तिक क्या कहना चाहते हो?"

"रुपाली, अजय जितना प्यार तुम्हें जीवन में कोई नहीं कर सकता। वह तुम्हारे बिना मर जाएगा और प्रियांशु…"

"प्रियांशु के विषय में एक शब्द भी मत कहना कार्तिक। मैं पहले ही बहुत कुछ सुन चुकी हूँ। उसके खिलाफ़ तुमने यदि कुछ भी कहा तो मैं यहाँ एक पल भी नहीं रुकूँगी।"

"…पर रुपाली अजय मर जाएगा"

"कार्तिक कोई किसी के बिना नहीं मरता। वह मुझसे प्यार करता है, जानती हूँ लेकिन मैं उससे प्यार नहीं करती। यह तो जबरदस्ती वाली बात है ना कार्तिक?"

"रुपाली एक बार अपने मन को अंदर से टटोलो। तुम्हें कहीं ना कहीं उसका प्यार ज़रूर मिलेगा।"

"हाँ है ना प्यार, बहुत प्यार है अजय के लिए मेरे मन में। ढूँढने की या टटोलने की ज़रूरत ही नहीं है लेकिन वह प्यार एक दोस्त की हैसियत से है प्रियतम की नहीं।"

"ठीक है रुपाली, तुम नहीं समझोगी, मैं चलता हूँ। तुम्हारी शादी के लिए तुम्हें शुभकामनाएं देता हूँ। भगवान करे तुम हमेशा ख़ुश रहो।"

"क्यों तुम मेरी शादी में नहीं आओगे, जो अभी यहाँ पर ही बधाई दे रहे हो?"

"नहीं रुपाली, मैं नहीं आ पाऊँगा।"

रुपाली अपना पर्स उठा कर वहाँ से निकल गई। कार्तिक ने इसके बाद हिम्मत ही नहीं की अजय को फ़ोन करने की।

अजय तो जानता था कि कार्तिक के बात करने का कोई फायदा नहीं होगा।

शादी के कार्ड छप गए। वह दिन भी नज़दीक आ गया। शादी की ख़ुशी और तैयारियों में रुपाली की माँ को अजय का ध्यान ही नहीं आया और रुपाली तो उसे बुलाना ही नहीं चाहती थी इसलिए उसे निमंत्रण भी नहीं भेजा।

आख़िरकार घर में ढोलक बजने का समय आ ही गया। सारे रीति रिवाज धूमधाम से, मंगल गानों के साथ, होने लगे। रुपाली को हल्दी लग रही थी, वह बहुत ख़ुश थी। अपने मन में अपनी पसंद के जीवन साथी से मिलने के सुंदर सपने देख रही थी। उसी दिन शाम को उसके हाथों में मेहंदी भी लगा दी गई। मेहंदी से उसने अपने हाथों पर प्रियांशु का नाम लिखवाया।

उधर प्रियांशु के घर में भी शहनाइयां बज रही थीं। उसके माता-पिता बेहद ख़ुश थे। प्रियांशु का पूरा परिवार, दोस्त, रिश्तेदार सभी सूरत आ चुके थे। एक ही शहर में सारे रीति-रिवाज़ निभाए जा रहे थे। प्रियांशु के दोस्त विवेक का घर उसी पार्टी प्लॉट के नज़दीक था। उसका भी पूरा परिवार प्रियांशु के माता पिता के साथ हर काम में व्यस्त था।

अब विवाह के लिए केवल एक ही दिन बाकी था।

शाम को रुपाली के फ़ोन की घंटी बजी। उसने देखा अजय का फ़ोन था। इच्छा ना होते हुए भी रुपाली ने उसका फ़ोन उठा लिया और कहा, " प्लीज़ अजय अब इस वक़्त भी प्रियांशु की बुराई मत करना, कुछ और बात हो तो बोलो?"

"रुपाली एक बार फिर से सोच लो, अभी भी समय है तुम्हारे पास।"

"अजय तुम सचमुच पागल हो चुके हो। अजय यदि तुम प्रियांशु का पीछा छोड़ दो, उसकी बुराई ना करो और प्यार-प्यार की रट ना लगाओ तो हम आज भी पहले की ही तरह अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं। तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो अजय। मेरे सबसे प्यारे और सबसे अच्छे दोस्त। "

इतना कहते हुए रुपाली ने फ़ोन काट कर अजय की अंतिम कोशिश भी नाकाम कर दी। जिस तरह अंतिम साँसें चलती हैं, उसी तरह यह अजय की आखिरी कोशिश थी।

कुछ ही देर में रुपाली का फ़ोन फिर बजा, उसने देखा तो यह प्रियांशु के दोस्त विवेक का फ़ोन था।

"हैलो रुपाली"

"हाँ बोलो विवेक"

"रुपाली, प्रियांशु की थोड़ी तबीयत खराब है।"

"क्या हुआ उसे?"

"उसे ठंड लग कर तेज़ बुखार आ रहा था। अभी दवाई दी है, उल्टी भी हो रही थी। बार-बार तुम्हें ही याद कर रहा है और मिलने बुला रहा है। क्या तुम थोड़ी देर के लिए आ सकती हो?"

"नहीं विवेक मुझे हल्दी, मेहंदी सब लग चुकी है। अब मैं बाहर नहीं निकल सकती। कोई मुझे आने नहीं देगा। उसे समझाओ और दवाई वगैरह देकर उसका ख़्याल रखो।"

"मैंने समझाया किंतु वह तो बच्चे की तरह ज़िद कर रहा है। बस थोड़ी देर के लिए रुपाली को बुला दो। बार-बार यही कह रहा है। क्या रुपाली पुराने ढकोसले लेकर बैठी हो, आ जाओ ना यार।"

"आंटी को बताया?"

"नहीं बताने दे रहा है कि सब चिंता करेंगे।"

"ओफ्फ़ ओह क्या मुसीबत है।"

तभी प्रियांशु ने फ़ोन लेते हुए कहा, " रुपाली जब तक तुम मुझे मिलने नहीं आओगी मैं शायद ठीक ही नहीं हो पाऊँगा। रुपाली प्लीज़ मैं तुम्हें एक बार फिर से वैसे ही देखना चाहता हूँ, जैसे अब तक देखता आया हूँ फिर तो तुम शादीशुदा दुल्हन बन जाओगी।"

"तो क्या हुआ प्रियांशु, वह तो ख़ुशी की बात है ना जब मैं तुम्हारी दुल्हन, तुम्हारी सुहागन बनकर तुम्हारे सामने आऊँगी।"

"हाँ रुपाली वह तो बहुत ही ख़ुशी की बात है लेकिन मुझे शादी से पहले सिर्फ़ एक बार तुम्हें देखना है। तुम्हारे हाथों से दवाई खाना है। मुझे इस वक़्त तुम्हारी बहुत ज़रूरत है।"

"ठीक है प्रियांशु बहुत ज़िद्दी हो तुम। यहाँ से मुझे छुप कर, बिना बताए निकलना होगा पर तुम चिंता मत करो मैं आ रही हूँ।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः