Kaun hai khalnayak - Part 8 books and stories free download online pdf in Hindi

कौन है ख़लनायक - भाग ८

रुपाली को तुरंत ही अपनी ग़लती का एहसास हो गया। वह सोचने लगी कि उसने जोश में आकर माँ को यह क्या कह दिया। बस माँ का गुस्सा थोड़ा शांत हो जाए फिर वह जाकर सॉरी बोल देगी।

कुछ देर बाद रुपाली अपनी माँ को मनाने कमरे में गई तब उनकी आँखें नम थीं। उसने कहा, "सॉरी मम्मा मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं कहना चाहिए था।"

"रुपाली बेटा तुम्हें वह सब इसलिए बताया था कि जो ग़लती मैंने की वह तुम ना करो। ना कि इसलिए बताया था कि तुम भी वैसा ही करके मुझे इस तरह से ताना मारो। मेरी उस ग़लती का अंज़ाम यह हुआ कि जल्दी शादी, जल्दी बच्चे, चौका-चूल्हा। भविष्य बनाने के बदले मैंने अपने आगे बढ़ने के रास्ते ही बंद कर दिए। तुम्हें बड़ा करते-करते वह समय भी आगे बढ़ गया और मैं पीछे छूट गई। मैंने ख़ुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। उस समय मैंने भी यही ग़लती करी थी कि अपने माता पिता का कहना नहीं माना था। काश मान लिया होता तो मैं अपने जीवन में कुछ और भी कर पाती।"

रुपाली ने अपनी माँ को सीने से लगा दिया और उसने फिर से सॉरी कहा। तब अरुणा ने कहा, "बेटा जो भी करना सोच समझ कर करना। हम तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं जो तुम्हारे जीवन के इतने बड़े निर्णय में टांग अड़ायें।"

"हाँ माँ मैं हर कदम सोच-समझकर ही उठाऊँगी आप चिंता मत करो।"

अब प्रियांशु दूसरे दिन वापस जाने के लिए तैयार था। अपनी माँ से विद्रोह करके भी रुपाली प्रियांशु के जाने से एक दिन पहले उससे मिलने चली गई। वह देखना चाहती थी कि जाते वक़्त प्रियांशु कैसा व्यवहार करता है। वह रात को डिनर के लिए साथ में होटल गए। उस दिन रुपाली अपनी कार लेकर आई थी। उसने प्रियांशु को पिक किया था और अब वापस जाते समय उसने एक जगह जहाँ ज़्यादा भीड़-भाड़ नहीं थी, गाड़ी रोड के किनारे रोक दी।

"रुपाली क्या हुआ? गाड़ी क्यों रोक दी?" प्रियांशु ने पूछा।

"बस ऐसे ही कुछ समय और तुम्हारे साथ बिता सकूँ फिर तो तुम एक माह बाद मिलोगे, वह भी केवल दस दिनों के लिए। परीक्षा का समय रहेगा इसलिए उस समय हम अच्छी तरह मिल भी नहीं पाएँगे। फिर तुम चले जाओगे, फिर पता नहीं कब मिलोगे? मिलोगे भी या नहीं?"

"यह क्या कह रही हो तुम? लगता है अभी भी अजय की बातें तुम्हारे दिमाग से निकली नहीं हैं। आई लव यू रुपाली, मैं सच में तुमसे बहुत प्यार करता हूँ," कहते हुए प्रियांशु ने रुपाली का हाथ अपने हाथों में ले लिया।

रुपाली ने भी उसके नज़दीक अपना चेहरा लाते हुए कहा, "आई लव यू प्रियांशु।"

उसकी आँखें बंद थीं, उसे उम्मीद थी कि प्रियांशु उसे किस करेगा किंतु उसने कहा, "रुपाली होश में आओ।"

रुपाली ने आँखें खोलते हुए कहा, "प्रियांशु जाते-जाते एक किस भी नहीं करोगे क्या?" कहते हुए रुपाली ने अपनी आँखें फिर बंद कर लीं।

"करुँगा ना रुपाली," कहते हुए प्रियांशु ने उसके माथे का चुंबन ले लिया और कहा, "चलो अब जल्दी से मुझे हॉस्टल छोड़ दो।"

यह सब देखकर रुपाली को अब पक्का यक़ीन हो गया कि अजय कितना झूठा है। अब वह उससे बिल्कुल बात नहीं करेगी।

इसके बाद अगले दिन प्रियांशु अपने घर लौट गया। प्रियांशु और रुपाली दोनों अपनी पढ़ाई में जुट गए। इस तरह एक माह के अंदर उनका ग्रेजुएशन पूरा हो गया। पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए प्रियांशु वापस अहमदाबाद चला गया। रुपाली ने सूरत में ही अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।

प्रियांशु लगभग हर रविवार रुपाली से मिलने आ जाता था। उन दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था। इसी तरह दो वर्ष भी गुजर गए।

प्रियांशु का रुपाली से लगातार मिलना जुलना देख कर एक बार फिर अजय ने रुपाली के घर आकर अरुणा से बात करने का मन बना लिया। वह जान बूझकर ऐसे समय पर उनसे मिलने आया जब रुपाली घर पर नहीं थी। कई दिनों के बाद अजय को अपने घर पर देख कर अरुणा ने उसे बड़े ही प्यार से अंदर बुलाकर बिठाया और पूछा, "कैसे हो अजय?"

अजय ने कहा, " ठीक ही हूँ आंटी," इतना कहकर वह शांत हो गया।

लेकिन अरुणा समझ रही थी कि वह कुछ कहना चाह रहा है। उसने अजय से कहा, "बेटा शायद तुम कुछ कहना चाह रहे थे, बोलो ना क्या बात है?"

"आंटी मैं…"

"हाँ बोलो बेटा।"

"आंटी मैं रुपाली को बहुत ज्यादा प्यार करता हूँ। मैं उसे रानी बनाकर रखूँगा। आप प्लीज़ उसे समझाइए ना कि वह प्रियांशु से दूर रहे।"

"अजय बेटा मैं तुम्हारी भावनाओं को समझती हूँ। तुम्हारे असीम प्यार की इज़्जत भी करती हूँ लेकिन बेटा प्यार किसी से भी हम जबरदस्ती तो नहीं करवा सकते ना। प्यार के बिना विवाह करके तुम भी कभी ख़ुश नहीं रह पाओगे अजय।"

"लेकिन आंटी प्रियांशु…"

"नहीं बेटा तुम्हें ज़रूर कोई ग़लतफ़हमी हो गई है। प्रियांशु अच्छा लड़का है और बेटा वैसे भी जीवनसाथी चुनने का फ़ैसला हर इंसान का ख़ुद का होना चाहिए। रुपाली की इच्छा के खिलाफ़ उसका विवाह मैं नहीं कर सकती।"

"आंटी उसे कम से कम इतना तो कहो कि वह मुझसे बात किया करे। वह तो मुझसे बात तक नहीं करती।"

"मैं उसे ज़रूर समझाऊँगी।"

"ठीक है आंटी चलता हूँ।"

"अजय बेटा तुम अपना ख़्याल रखना और हो सके तो रुपाली के प्यार को अपने मन से निकालने की कोशिश करना। उस प्यार को बढ़ने मत दो बेटा जो कभी तुम्हारा हो ही नहीं सकता।"

"आंटी बढ़ा हुआ ही तो है वह, उसे कैसे कम करूँ। वह मेरे बस की बात नहीं है।"

अजय के जाने के बाद रुपाली और प्रियांशु वापस आए। प्रियांशु को देखते ही अरुणा ने कहा, "प्रियांशु बेटा अंदर आओ।"

"ठीक है आंटी," कहते हुए वह अंदर आया।

अरुणा ने कहा, " प्रियांशु बेटा तुम लोगों का मिलना जुलना बहुत बढ़ गया है। बात फैलने में कहाँ देर लगती है। तुम तो लड़के हो लेकिन रुपाली की बदनामी हो जाएगी। अब जल्दी ही तुम्हें विवाह का निर्णय ले लेना चाहिए।"

अरुणा देखना चाहती थी कि प्रियांशु इस बात को टालेगा या फिर तुरंत हाँ कह देगा।

रत्ना पांडे वडोदरा गुजरात

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः