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बागी स्त्रियाँ - (भाग चार)

मीता को ग्रीष्म ऋतु की तपती दुपहरी के बाद शाम को छत पर टहलना बहुत अच्छा लग रहा है|दूर-दूर तक फैले वृक्षों की कतारें जैसे सिर हिला-हिलाकर उससे कुछ कह रही हों |आकाश में कई रंग हैं |पक्षी उड़ रहे हैं |आस-पास के छतों पर भी कोलाहल है |बच्चे-बूढ़े-जवान सबके चेहरों पर नाना प्रकार के भाव दीप्त हैं |दूर-दूर तक खेत नजर आ रहे हैं, जिनमें कुछ पर पके फसलों की उदासी तो कुछ पर हरे फसलों का उल्लास है –सब कुछ बड़ा सम्मोहक! दिन-भर की थकी-थमी हवा भी गुनगुनाती हुई बह रही है |सड़क पर बाहनों का शोर है |लोग पैदल भी आ-जा रहे हैं |कभी-कभी घुँघराले बालों वाले ऊंची कद-काठी के किसी युवक की पीठ दीखती है तो उसे महसूस होता है कि कहीं वह पवन तो नहीं |देखने की कोशिश में वह छत के किनारे तक झुक आती है |जब युवक गुजर जाता है तो वह सोचती है कि पवन यहाँ कैसे हो सकता है ?उसका आना तो संभव ही नहीं |वह अपनी सीमाओं में बद्ध मर्यादित युवक है और फिर वह यहाँ उससे मिलने आएगा ही क्यों ?ठीक है वह न ही आए तो ठीक !पर यह जानकर भी कि वह नहीं आएगा, क्यों उसके आने का भ्रम होता है ?क्यों उसकी कद-काठी वाले युवकों को देखते ही उसके दिल में धक -सा कुछ हो जाता है और फिर उसका चमकता चेहरा आँखों के सामने तैरने लगता है |उसकी मुस्कुराहट याद आती है और वे आँखें भी ,जो उसे देखते ही वाचाल हो जाती हैं ।
उसने सोचा था कि प्रेम की खुशबू को कैद नहीं करेगी |उसके जीवन में प्रेम आएगा स्वतंत्र ,जाएगा भी स्वतंत्र |कोई उम्मीद...कोई अपेक्षा ...कोई बंधन नहीं | मगर जीवन में प्रेम के आते ही जाने कैसे उसके चारों तरफ मंदिर की घंटियाँ बजने लगती हैं |उसके भीतर जैसे एक नयी स्त्री पैदा हो जाती है|तन...मन से पवित्र...निर्दोष....निष्पाप .स्त्री..! और वह नए प्रेम के योग्य हो जाती है |चारों तरफ़ से खुशबू आने लगती है ....उसका तन-मन उत्फुल्लित हो जाता है।वह एक मधुर धुन सुनने लगती है।वह ध्यान देती है कि हृदय पर ढाई अक्षर खुद गए हैं |उसी से आ रही है वह खुशबू ....वह मधुर धुन ...|उसे पता चल जाता है कि वह रूप धारण कर आ रहा है...वही जो उसकी आत्मा में बसता है | प्रेम का यह सिलसिला वह टूटने नहीं देगा ...जन्म-जन्मांतर तक जारी रखेगा।
पवन से जाने कैसा रिश्ता है उसका |उसके आते ही वह सारे गिले-शिकवे भूलकर उसे समर्पित हो जाती है |वह भी जब तक उसके साथ रहता है,पूरी आस्था और प्रेम से समर्पित रहता है,पर जाते-जाते कुछ ऐसा कह जाता है ,जिसके दंश से वह तब तक छटपटाती रहती है ,जब तक वह दुबारा आकर नहीं मिलता |रात-दिन उसी में उलझी रहती है...किसी काम में मन नहीं लगता ...जीने को भी मन नहीं करता फिर भी जाने किस प्रत्याशा में जीती रहती है! वह एक साहसी स्त्री है ,अकेली रहती है ,चीजों को लेकर उसके मन में व्यर्थ की जटिलताएं नहीं हैं |वह आम स्त्रियों से अलग है|पवन उसमें जिंदगी का नया अर्थ देखता तो है पर उसमें इतना साहस नहीं है कि स्थिति का ठीक से सामना कर सके |वह झूठ और धोखाधड़ी के आधार पर सम्बन्धों को घसीटना चाहता है |उसमें सब चीजों को अपने पक्ष में कर लेने की मर्दाना चतुराई है | जब वह उससे मिला था तब उसकी दोस्ती के लिए लालायित था |धीरे-धीरे वह उसके घर तक पहुँच गया |उसने उससे प्रेम की याचना की और एक दिन वह जाने किस भावना के जोर से वह उसके प्रेम का प्रत्युत्तर दे बैठी |शायद उसका अकेलापन उस पर हावी हो गया था या फिर देह-मन की जरूरतें बढ़ गई थीं |कुछ तो था कि वह उसके करीब हो गई ,पर वह उसे पाते ही बदल गया|बात-बात पर प्रताड़ित करने लगा |वह ना तो उससे रिश्ता तोड़ने को तैयार है ,ना समाज के सामने जोड़ने को |वह एक पाखंडी पुरूष है ,फिर भी वह उसे छोड़ नहीं पा रही है| वह जरूरत से ज्यादा उसके प्रति गंभीर हो गयी है ,पर उसका कुछ निश्चित नहीं है कि वह उसके प्रति कितना गंभीर है|कभी-कभी वह बहुत अपना, बहुत करीबी लगता है, तो कभी-कभी इतना पराया...इतना दूर कि लगता ही नहीं कि यह वही है, जिसे वह प्यार करती है |वह क्या करे? वह कभी खुलकर बात भी तो नहीं करता |दो-चार वाक्य बोलेगा या फिर सिर्फ आँखों से बात करेगा |न इंकार करता है न इकरार |एक तो अकेले मिलता नहीं |कुछ देर को मिलता है तो बस चुपचाप प्यार करता है ...न कुछ बोलता है न बोलने देता है |उस दिन जब वह बोली –'अब नहीं आऊँगी तुमसे मिलने' तो वह प्यार से उसके अधरों पर अपनी एक अंगुली से मारते हुए बोला –फिर बोलो कि नहीं आऊँगी ..तुमसे मिले बिना कैसे रहूँगा मैं .....?और वह पिघल गयी |उससे मिलने और ज्यादा आने लगी ।तब वह कहने लगा--रोज-रोज मत आया करो ,लोग शक करेंगे |पंद्रह दिन में बस एक बार |
उसके लिए तो एक पल भी उसके बगैर जीना मुश्किल है और वह पंद्रह दिन की बात करता है |पर वह जो भी कहता है उसे करना ही पड़ता है|वह उसकी हर समय की जरूरत बन गया है पर वह जैसे उसके समय का एक हिस्सा मात्र हो।उन दोनों के राज़दार और मित्र सूरज ने एक दिन उसे समझाया भी कि वह अपनी शर्तों पर ही उससे रिश्ता रखेगा |उसे ही उसकी पद-प्रतिष्ठा ,परिवार,समाज सबका ध्यान रखना होगा |
वह सोचती है कि क्यों उसे ही सब करना होगा?प्रेम तो बराबरी का सम्बंध है।प्रेम का स्वाभिमान उसे भी मान करने का हक देता है पर पवन उसे मान करने का हक नहीं देता |कभी वह रूठ जाती है तो भी उसे विशेष परवाह नहीं होती |वह खुद गुस्सा करती है और खुद उसके पास दौड़ी चली आती है|वह उसकी भावुकता पर हँसता है और उसे ‘बावली’ कहता है|सच ही वह दीवानेपन की सीमा तक जा पहुंची है पर वह अपना संतुलन बनाए हुए है |वह सबके सामने उससे सामान्य परिचित -सा व्यवहार करता है ,पर एकांत मिलते ही बेहद रोमांटिक हो जाता है |उसके मन के चोर ने उसे बेहद सतर्क बना दिया है ।वह सार्वजनिक स्थलों पर उसे देखकर भी अनदेखा कर देता है, इसलिए उससे कहीं बाहर मिलने का सवाल ही नहीं है|उसके घर आती है तो भी पर्दा लगाकर बैठता है।उसे ऐसे समय अपने घर आने को कहता है ,जब बाहर के लोग न आते हों और घर के बाकी सदस्य सो रहे हों |भरसक तो यही चाहता है कि दोनों एक साथ किसी के सामने ही ना पड़े|कभी-कभी उसकी ये बातें उसे बहुत बुरी लगती हैं –‘प्यार किया तो डरना क्या’- पर यह सिर्फ वही सोचती है |पवन को तो अपनी प्रतिष्ठा जान से भी प्यारी है |उसके भाई-बहन उसे
भी सम्मान देते हैं | उन्हें दोनों के रिश्ते के बारे में कुछ तो पता है पर वे इस बात को प्रकट नहीं करते हैं |एक दिन उसकी बहन ने उससे फिल्म दिखाने को कहा |उसने उससे कहा कि भैया से पूछ लेना फिर चलेंगे |पर पवन ने साफ मना कर दिया |वह नहीं चाहता था कि बाहर के लोग यह जाने कि उसका उसके परिवार से करीबी रिश्ता है |उस दिन उसे बहुत दुख हुआ था |पता नहीं यह पवन की कायरता है या अतिरिक्त सावधानी या फिर कुछ और ,पर वह भी तो कम बुजदिल नहीं है।पाँच सालों की अंतरंगता के बाद भी वह इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई है कि उससे कह सके कि तुम मुझसे ब्याह कर लो |शायद वह डरती है कि वह इंकार कर देगा |एक तो उसने किसी से भी विवाह न करने का फैसला किया है|दूसरे वह खुद को भी उसके योग्य नहीं पाती है|ये अलग बात है कि जब कभी दोनों आईने के सामने खड़े होते हैं तो आईना भी इस जोड़ी पर मुग्ध हो जाता है |पर तन-मन से सुंदर और शिक्षित होने से क्या फर्क पड़ता है ?वह जाति, पद और स्तर में सबमें उससे छोटी है |पवन का प्यार ही उसका एकमात्र धन है |वह सोचती है कि कहीं विवाह की जिद से वह उससे दूर हो गया तो वह यह सदमा कैसे सह सकेगी?शायद उसी दिन मर जाएगी|उसकी सारी तेजस्विता उसके आगे फीकी पड़ जाती है |
वह सोचती है कि प्रेम में अहम का त्याग करना पड़ता है पर क्या सिर्फ एक को?