Gyarah Amavas - 29 books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 29



(29)

शिवराम हेगड़े को भी एक नई जगह पर लाकर रखा गया था। कल वह खाना खाकर सो गया था। आज जब नींद खुली तो उसने खुद को इस जगह पर पाया। यह एक छोटा सा कमरा था। उसकी आँख खुली तो वह बिस्तर पर लेटा हुआ था। खुद को नई जगह पर पाकर वह बिस्तर से उठकर इधर उधर देखने लगा। कमरे में एक बिस्तर के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। कमरे की एक दीवार पर ऊपर की तरफ एक गोल छेद था। उस पर लोहे की एक ग्रिल लगी थी। उसमें से छनकर रौशनी अंदर आ रही थी।
वह अपने बिस्तर पर बैठा उस ग्रिल से कमरे में आती हुई रौशनी को देख रहा था। वह यह सोचकर हैरान था कि आखिर इन लोगों का मकसद क्या है ? क्यों ये लोग उसे इस तरह बंद करके रखे हैं ? वो लोग चाहें तो उसे आसानी से खत्म कर सकते हैं। लेकिन फिर भी उसे जीवित रखा है। उसे अब एक नई जगह पर लेकर आए हैं। यह सब सोचते हुए उसे सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह का खयाल आया। वह सोच रहा था कि क्या ऐसा हो सकता है कि वह भी जीवित हो। उसे उससे अलग करके कहीं और रखा गया हो। उसे सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह के बारे में सोचकर बुरा लगता था। उसने मन ही मन प्रार्थना की कि ऐसा ही हो। वह सोच रहा था कि एसपी गुरुनूर कौर को अब तक उन लोगों के गायब होने की खबर लग चुकी होगी। उन्हें तलाश करने की कोशिश शुरू हो गई होगी। हो सकता है कि शांति कुटीर में जाकर दीपांकर दास और शुबेंदु को पकड़ लिया गया हो। उन लोगों से पूछताछ की गई हो।
शिवराम हेगड़े शांति कुटीर के अपने अनुभव को याद कर रहा था। उसने गौर किया था कि जब भी वह दीपांकर दास से मिला था उसने शुबेंदु को उसके साथ ही खड़ा हुआ पाया था। दीपांकर दास जब किसी से बातचीत करता था तो उस समय शुबेंदु की नज़र दीपांकर दास पर ही रहती थी। शुबेंदु बहुत कम उसे अकेला छोड़ता था। दुनिया की नज़र में दीपांकर दास शांति कुटीर का मुखिया था। लेकिन उसने महसूस किया था कि हर बात में शुबेंदु का दखल रहता था। अधिकांश निर्णय शुबेंदु खुद ही करता था। दीपांकर दास कभी कभी शांति कुटीर का चक्कर लगाता था। कभी पीछे बने फॉर्म में जाकर वहाँ का काम देखता था। अन्यथा अधिकांश समय अपने कमरे में ही रहता था। उसे यह बात बहुत अजीब सी लगती थी।
शांति कुटीर में ध्यान के सेशन करते हुए भी एकबार उसे कुछ विचित्र सा अनुभव हुआ था। उसने ध्यान के बीच में जब अपनी आँखें खोलीं तो दीपांकर दास को एक बुत की तरह अपलक शून्य में निहारते पाया था। तब शुबेंदु उसके पास नहीं था। उसने इधर उधर देखा पर वह कमरे में था ही नहीं। कुछ देर बाद शुबेंदु कमरे में आया। उसने जल्दी से अपनी आँखें बंद कर लीं। इस तरह से कि उन्हें हल्का सा खोले रखा जा सके। उसने देखा था कि शुबेंदु ने कमरे में आकर दीपांकर दास के कंधे को दबाया। दीपांकर दास ने ऐसी प्रतिक्रिया दी जैसे कि नींद से जागा हो। उस दिन जो कुछ भी हुआ था वो उसे बहुत अजीब लगा था।
कई मौकों पर उसे ऐसा महसूस हुआ था कि जैसे दीपांकर दास किसी कठपुतली की तरह शुबेंदु के नियंत्रण में है। शांति कुटीर में एक भ्रम पैदा किया जा रहा है। जब इन लोगों द्वारा पकड़े जाने पर उसे पता चला कि उसकी सच्चाई उन्हें पहले से ही पता था तो उसे पूरा यकीन हो गया था कि सबकुछ जानबूझकर किया गया है। उसे नई जगह लाकर रखना उनकी योजना के अधीन ही हुआ है। वह सोच रहा था कि जिस तरह से वो लोग काम कर रहे हैं उनकी योजना कुछ बड़ा और भयंकर करने की है।

सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर एक टीम के साथ खुद रानीगंज गया था। वहाँ जाने से पहले उसकी गुरुनूर से बात हुई थी। गुरुनूर ने उससे अहाना के साथ साथ अमन और मंगलू के बारे में भी पता करने को कहा था। गुरुनूर को लगता था कि अहाना को रानीगंज ले जाया गया था। मंगलू का घर रानीगंज के पास ही था। इसलिए रानीगंज में कोई ना कोई सुराग मिल सकता है। उसने मंगलू के डीटेल्स पहले ही इंस्पेक्टर कैलाश जोशी को भेज दिए थे।
अपनी टीम को सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने रानीगंज के अलग अलग हिस्सों में भेजा था। उसने अपनी टीम से कहा था कि तीनों बच्चों के बारे में पता करने के साथ साथ यह भी पूछें कि पिछले कुछ महीनों में कोई और बच्चा तो उनके आसपास से गायब नहीं हुआ है। खुद वह रानीगंज के बस स्टेशन पर सादे कपड़ों में था। उसे पता चला था कि मंगलू को रानीगंज की बस में ही बैठाया गया था। वह मंगलू की तस्वीर लेकर आसपास की दुकानों में जाकर पूछताछ कर रहा था। अब तक उसे कोई सफलता नहीं मिली थी। वह थककर एक दुकान पर चाय पीने बैठ गया। कुछ देर में एक साइकिल रिक्शा चलाने वाला भी वहाँ चाय पीने आया। सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर के दिमाग में आया कि रिक्शा चालक तो बस स्टैंड पर ही सवारी का इंतज़ार करता होगा। हो सकता है कि उसने कुछ देखा हो। वह चाय पीते हुए उसके पास जाकर खड़ा हो गया। उसने धीरे से उससे बातचीत शुरू की। बात करते हुए उसने अपना परिचय नंदकिशोर के रूप में ही दिया। लेकिन यह नहीं बताया कि वह पुलिस में है। उसने मंगलू की तस्वीर दिखाते हुए कहा,
"भइया तुम तो बस स्टैंड पर ही सवारी के लिए खड़े रहते होगे। तुमने इसे देखा है।"
रिक्शेवाले ने मंगलू की तस्वीर ली और ध्यान से देखने लगा। सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने कहा,
"क्या बताएं भइया भतीजा है हमारा। ना जाने किस बात पर नाराज़ होकर घर से निकल गया। लोगों ने बताया था कि रानीगंज की बस में बैठा था। हो सकता है तुमने देखा हो।"
रिक्शेवाले ने कुछ देर तस्वीर को देखने के बाद आश्चर्य से कहा,
"आपका भतीजा है यह ?"
"हाँ भइया.... क्या तुमने देखा है इसे।"
रिक्शेवाले ने कुछ सोचकर कहा,
"शकल सूरत तो मिलती जुलती लग रही है। लेकिन जिस लड़के को हमने देखा था उसके साथ तो उसके लोग थे। बेचारे को मिर्गी के दौरे पड़ते थे। बस में दौरा पड़ा तो बेहोश हो गया था। हम मदद के लिए पूछने गए थे। तो उन लोगों ने कहा कि नहीं हमें ज़रूरत नहीं है। हमारी गाड़ी आ रही है। कुछ ही देर में उनकी गाड़ी आ गई और वो लोग उसको लेकर चले गए।"
सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने पूछा,
"तुमको यकीन है कि उसको मिर्गी का दौरा पड़ा था ?"
रिक्शेवाले ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"भइया हम नहीं कह रहे हैं कि वह आपका भतीजा ही था। हो सकता है कोई और रहा हो। हांँ शकल मिलती जुलती लग रही है।"
सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने अपनी जेब से अपना कार्ड निकाल कर दिखाते हुए कहा,
"मैं पुलिस में हूंँ। यह लड़का गायब हुआ है। अब उस दिन जो कुछ हुआ था सच सच बताओ।"
रिक्शेवाला घबरा गया। सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने उसे तसल्ली दी,
"तुम घबराओ नहीं। बस जो कुछ हुआ था सही सही बता दो। तुम्हारी मदद से हम इस लड़के को ढूंढ़ पाएंगे।"
रिक्शेवाले ने कहा,
"साहब उस दिन बस आकर रुकी तो हम उसके पास आकर खड़े हो गए। अब बहुत कम लोग हमारे रिक्शे पर बैठते हैं। इसलिए सवारी को घेरना पड़ता है। हम आए तो देखा कि कुछ लोग रास्ता दो रास्ता दो कह रहे हैं। फिर एक आदमी एक लड़के को अपने कंधे पर लादे बस से नीचे उतरा। लड़का तेरह चौदह बरस का था। हमको लगा चलने में दिक्कत होगी या बीमार होगा। हमको लगा रिक्शे की ज़रूरत होगी। हमने आगे बढ़कर कहा कि हम अपने रिक्शे पर जहाँ चाहेंगे छोड़ देंगे। जिसने लड़के को उठाया था वह बोला कि ज़रूरत नहीं है। गाड़ी आ रही है।"
"कितने लोग थे बच्चे के साथ ?"
"दो लोग थे। दूसरे आदमी ने कहा कि बच्चे को मिर्गी का दौरा पड़ा है। बेहोश हो गया है। गाड़ी से उसे अस्पताल ले जाएंगे। कुछ देर में गाड़ी आ गई। वो लोग बच्चे को लेकर चले गए। बच्चे को कंधे पर लादा था। उसका मुंह मैंने देखा था। इस तस्वीर से मिलता जुलता था।"
सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने पूछा,
"तुम्हें याद है कौन सी गाड़ी थी ?"
"साहब काले रंग की थी। बाकी हम अनपढ़ हैं। नाम तो पढ़ नहीं सकते। पर बड़ी गाड़ी थी।"
सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने कहा,
"तुमको नहीं लगा कि ये लोग सही नहीं हैं।"
"साहब बस में और लोग भी रहे होंगे। उन्हें तो कुछ नहीं लगा था। फिर इतना सब जरा देर में हो गया। सच कहें तो हमारा पूरा ध्यान तो उन्हें रिक्शे में बैठाने पर था। तब हमें कुछ नहीं लगा। उसके बाद ये बात ही दिमाग से उतर गई थी। वह तो आपने पूछताछ की तो याद आया।"
सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने उसे गौर से देखा। फिर कुछ सोचकर कहा,
"जो बताया सच है ना ?"
"साहब हम गरीब आदमी हैं इसलिए आप ऐसा पूछ रहे हैं। पर हमको झूठ बोलना होता तो तस्वीर देखते ही मना कर देते। तब तो हमको यह भी नहीं पता था कि आप पुलिस वाले हैं।"
सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर को उसकी बात ठीक लगी। उसे अपने सवाल पूछने पर बुरा लगा। उसने कहा,
"धन्यवाद.... तुमने बहुत मदद की। इस सब में तुम्हारी चाय ठंडी हो गई है। मैं तुम्हारे लिए दूसरी चाय मंगा देता हूंँ।"
रिक्शेवाले ने हाथ जोड़ दिए। सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने उसके लिए एक चाय का ऑर्डर दिया। अपनी और उसकी चाय के पैसे दिए और वहाँ से चला गया।