Tere Mere Darmiyan yah rishta anjaana - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-2) - अस्मिता की माफी

अस्मिता को जैसे ही होश आता है वो सिर झटक के मन मे सोचती है-" अस्मिता क्या देख रही थी तू कहा है और वो कहा।"
आदित्य अब भी उसे ही देख रहा था। फिर अचानक वो गाड़ी से उतर कर आता है और अस्मिता के पास आता है। आजतक दक्षिणी टोले के लोगों के इतना करीब कोई भी हवेली का नही आया था। सबकी डर से हालत खराब हो रही थी।

अस्मिता को किसी की परवाह नही थी उसके आँखो मे हवेली के खिलाफ जाने का ना ही डर था ना ही अफसोस। उसके पास आकर आदित्य बोलता है-" आपको हमसे माफी माँग कर हमारे रास्ते से हट जाना चाहिये।"
गाँव वालों को नही लगा था की अस्मिता इतनी आसानी से बच सकती है। सब मना रहे थे की आज कोई खून खराबा ना हो बस आसानी से सब निपट जाये और अस्मिता माफी माँग ले।

लेकिन अस्मिता तो ठहरी अस्मिता कैसे माँग ले वो माफी। अस्मिता-" आखिर हम क्यूँ मांगे माफी जब हमने कुछ किया ही नही तो।"
तभी उर्मिला चाची जल्दी से आती है और अस्मिता से-" ये छोरी जल्दी से माँग ले माफी तुझे दिख नही रहा ये छोटे मालिक है पता भी है बड़े मालिक क्या करेंगे अगर उन्हे पता भी चला की हमने उनका जवाब भी दिया है तो।"

अस्मिता-" छोटे मालिक हो या बड़े मालिक हमे कोई फर्क नही पड़ता कब तक ऐसे दबोगे इन लोगो से।"
आदित्य को अस्मिता का इस तरफ जवाब देना और किसी से न डरने की हिम्मत देख और भी ज्यादा उसकी तरफ आकर्षित कर रहा था। की तभी अस्मिता के बाबा यानी की घनश्याम जी जल्दी से आते है और अपने हल को वही फेक लगभग 4 हाथ की दूरी पर नीचे जमीन पर बैठ सिर झुकाने लगते है और हाथ जोड़े बोलते है-" सरकार यह तो अभी बच्ची है इसे कुछ मत बोलिए हम आपसे माफी माँगते हैं।"

इतना कह उनकी आँखो मे डर साफ झलक रहा था। अस्मिता-" बाबा क्या कर रहे है आप।"
घनश्याम-" चुप करो पहले माफी मांगो इनसे।"
अस्मिता-" लेकिन हमने तो .........।"
तभी बीच मे घनश्याम जी रोते हुये तेजी से डांटते है-" चुप बिल्कुल जो कहा है वही करो बस।"
अस्मिता को अपने बाबा की ऐसी हालत देखी नही जा रही थी।
वो गुस्से मे बोलती है-" हमे माफ़ कर दिजिये हमसे गलती हो गयी।"
इसके आगे कोई कुछ बोलता अस्मिता तेजी से पैर पटकते हुये गुस्से मे बडबडती हुई चली जाती है। उसके इस व्यवहार को देख ना जाने क्यू आदित्य के चेहरे पर एक हल्की सी मुसकान तैर जाती है।

वो घनश्याम जी को उठने को बोल सबको घरों से बाहर आने को बोलता है। सभी डरते डरते ही बाहर आते है। आदित्य सबकी तरफ हाथ जोड़ कर बोलता है-" हमारे इधर से जाने की वजह से अगर आप सब को परेशानी हुई इसके लिये हम माफी चाहते है हवेली की तरफ मुख्य रास्ता बारिश की वजह से पानी भरे होने के कारण हमें इधर से आना पड़ा।"

इतना कह वो गाड़ी मे बैठ जाता है। कृष्णा भी अश्चर्यचकित हो कर अपने सीट पर बैठ जाता है और गाड़ी आगे निकल जाती है। आज सब गाँव वाले भी आश्चर्य मे डूबे थे की आजतक उन्होनें हवेली वालों की मार सही है उनके शोषण को देखा है लेकिन आज कोई हवेली मे इतना भी विनम्र था जिसका कल्पना भी वो लोग नही कर सकते थे।

आदित्य की हवेली--

आदित्य की गाड़ी जैसे ही हवेली पहुंची उसके स्वागत मे सभी आ खड़े हुये। गाड़ी से उतरते ही उसने सबके सबके पाव छुए और राजेस्वरी देवी (आदित्य की माँ) ने उसके माथे पर चंदन का तिलक लगाती हैं और आरती के साथ सभी आदित्य के पीछे-पीछे हवेली के अंदर आते हैं ।

हवेली के अंदर आकर सभी आलिशान सोफे पर बैठते है और कृष्णा जो गाड़ी चला रहा था वो भी सबके पीछे खड़ा हो जाता है वो कुछ सोच रहा था और डर भी।
तभी भान प्रताप जी (आदित्य के पिता) अपनी कडक आवाज मे बोलते है-" आप इतने पानी होने के बावजूद कैसे आये।"
आदित्य-" बाबा वो हम....।"
की उसकी बात बीच मे ही काट कर कृष्णा बोलता है -" मालिक वो क्या है ना ।" अभी उसकी बात पूरी होती उसके पहले ही राजेस्वरी देवी खिंच के एक चाटा उसके गाल पर लगाती है-" ये कृष्णा तुम्हरि हिम्मत कइसे हुई रे हमरे आदित्य की बात काटने को तू सब ना हवेली के नौकर हो अपनी औकात मे रहो ।"

वीर जो की आदित्य का बड़ा भाई था वो उनको कंधे से पकड कर सोफे पर बैठता-" अम्मा चुप रहो इतना गुस्सा नही करते है इसको तो हम देख लेंगे ।" कृष्णा अपने गाल पर हाथ रखे नीचे देख रहा था उसकी हिम्मत नही हो रही थी सबसे नजर मिलने की। वही वीर उसे घूर रहा था।

आदित्य को यह सब अच्छा तो नही लग रहा था फिर भी वो बोलता है-" वो हम इधर से नहीं आये हम दक्षिणी टोले के रास्ते से होकर आये है।"

उसका इतना कहना था की सबके आँखो मे खून उतर आया। उधर से ममता (वीर की पत्नी ) सिर पर पल्लू ओढे हाथ मे चाय की ट्रे ला रही थी। जैसे ही वो मेज पर ट्रे रखने को हुई राजेस्वरी गुस्से से सोफे से उठ जाती है और उसे धक्का देते हुये सीधे आदित्य के पास जाती है। ममता नीचे गिर जाती है और राजेस्वरी आदित्य का हाथ पकड़े गुस्से से खीचते हुये हवेली के बाहर आती है।

आदित्य को समझ नही आ रहा था की उसकी अम्मा क्या कर रही है। वो आदित्य को बाहर कुएं के पास बैठा देती है और जोर से चिल्लाती है-" हरिया कहा है रे जल्दी से इसको स्नान करा उन लोगों से गुजरी हुई हवा भी हमें नही छुनी चाहिये।"

हरिया जल्दी से आते हुये-" जी मालकिन।"
हरिया जल्दी जल्दी कुएं से घड़े मे पानी निकाल आदित्य के ऊपर डालने लगता है। इधर राजेस्वरी तमतमाती हुई हवेली के अंदर आती है-" कृष्णा कहाँ गया रे तू।"
कृष्णा सिर झुकाये उनके सामने खड़ा हो गया। राजेस्वरी -" तू 1 महीने तक हवेली मे दिखना भी नही चाहिये हमको समझा। "

उनका फरमान सुनते ही कृष्णा वहा से गायब हो जाता है क्या पता कब खून खरबा हो जाये। राजेस्वरी - " ये बिमला जल्दी से सारी समान को फेक यहाँ से जिस को भी आदित्य छुआ था।" बिमला जल्दी जल्दी सब काम करवाने लगती है।

क्रमश: