Tere Mere Darmiyan yah rishta anjaana - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-5) - ममता के ऊपर जुल्म

गाँव की दुसरी तरफ पंचायत बैठी थी । सरपंच जी पेड के नीचे अपने आसन पर विराजमान थे। साथ ही गाव के सारे वर्ग के लोग बैठे थे वही एक तरफ कोने मे दक्षिणी टोले के लोगो के लिये जगह थी जहा पर घनश्याम जी उर्मिला चाची छोट्की की अम्मा छोट्की को लिये हुये और भी गाव के लोग थे।

वही एक तरफ सोम और उसके माता पिता भी थे। उनमे से किसी के भी चेहरे पर कोई पछतावा नही दिख रहा था बल्कि चेहरे पर घमंड था और आँखो मे इतना अभिमान मानो बोल रहे हो की उन्ही की जीत होगी।

वैसे भी पंचायत तो बस दिखावे के लिये ही होता था जीत उसी की होती जिसके सर पर हवेली वालों का हाथ होता। पीडित भी कैसे जीते जब गवाही ही कोई नही देता था। इधर कार्यवाही शुरु हुई।
सबसे पहले सरपंच जी ने बोला-" सोम तुम बताओ क्या हुआ था।"
सोम ने अपनी झूठी कहानी बता डाली।"
सरपंच-" ये लड़की तू बता क्या यह साथ बोल रहा है।"
छोट्की की आँखे नम थी गले से आवाज तक निकल नही रही थी फिर भी बोलती है-" नही सरकार इन्होने हमारा ......😭 ।"

इसके आगे बोल ही नही पा रही थी। सरपंच-" क्या हुआ आगे भी बोलोगी।" छोट्की रोते हुये गुस्से से-" इन्होने हमारी इज्जत लूती।"
तभी ललिता सोम की माँ बोलती है-" ये लड़की झुट काहे बोल रही है।"
छोट्की की मा-" हमारी बिटिया झुट नही बोल रही है ये तो तुम्हारे बेटे की करतूत है।" सरपंच सबको शान्त करवाता है। फिर सरपंच भी अब उटपटांग सवाल पुछे जा रहा था और बेचारी छोट्की कभी जवाब देती कभी रो देती।

आखिरकार उसने पुछा-" कोई गवाही देगा की छुटकी सही बोल रही है।" अब क्या यही होता है हमेशा से यही पर आ कर खत्म हो जाता है फैसला।कौन देगा गवाही ।

गवाही देकर कोई तो अपने मौत का निमंत्रण नही बुलयेगा। आखिर किसी की हिम्मत इतनी नही की हवेली वालों का जिसपर हाथ हो उसके खिलाफ जाये। तभी वहीं से आदित्य अपने रौबदार चेहरा लिये अपने दोस्त रौनक के साथ जीप से गुजरता है वो पंचायत बैठा देख जीप वही रोक खूद भी उतर जाता है।

उसके उतरते ही सभी गाँववाले खड़े हो जाते है सिवाय एक के अरे कौन हो सकता है हमारी अस्मिता के सिवा क्योकि वो भी दरवाजा किसी तरह खोलकर आ चुकी थी लेकिन जब उसके बाबा उसे घूर कर देखते है तो उसे भी खड़ा होना पड़ता है ।

वो मुह बना खड़े होती है और बुदबुदाने लगती है-" हमेशा इन हवेली वालों की गुलामी करो।"
अब अस्मिता के बाबा को भी डर लग रहा था की अस्मिता कुछ बोले न पंचायत मे नही तो आज पक्का गोलियो से भुन दी जायेगी।

इधर सरपंच उठ कर दौड़ते हुये आता है और आदित्य के लिये कुर्सी लाकर देता है। जैसे ही आदित्य बैठा है वो सभी गाव वालों और सरपंच को भी बैठ जाने के लिये कहता है।

अचानक उसकी नजर सामने खड़ी अस्मिता पर जाती है और जैसे ही उनकी नजरे मिलती है उनकी आँखे एक पल के लिये झपकना भुल जाती हैं और अस्मिता को देख उसके रौबदार चेहरे पर हल्की से मुसकान आ जाती है। अस्मिता सोचती है-" यह हमे ऐसे क्यू देख रहे है और हमे भी इन्हे देख न जाने क्या हो जाता है।"

दुसरी तरफ गावँवालों के अंदर अब इतनी भी हिम्मत नही थी की वो अब अपने छोटे मालिक के सामने कुछ बोलें भी। वही सोम घमंड से सीना ताने खड़ा था की अब किसी का बाप भी उसका बाल बाँका नही कर सकता। यह सब देख आदित्य को बूरा तो बहुत लगता है लेकिन वो सरपंच को आगे कारवाही करने को कहता है ताकि उसके भावनाओं को भी जान सके।
सरपंच-" जैसा की किसी ने अभी भी छोट्की के पक्ष मे गवाही नहीं दी इसलिये सोम को इस पंचायत में निर्दोष .........।"

सरपंच अपनी बात पूरा कर पाता की एक लड़की की गुस्से पर मीठी आवाज आती है-" किसने कहा की कोई गवाही नही देगा हम देते है गवाही।"

यह अस्मिता थी। आज तक कभी नही हुआ था की हवेली के किसी व्यक्ति के सामने ही उसके आदमी के खिलाफ गवाही दे। सब भौचक्के थे। अस्मिता के बाबा उसे शान्त करवाना चाहते थे लेकिन अब कोई फायदा नही था क्युकी अस्मिता बोलना शुरु कर चुकी थी।

आदित्य मन मे ही -" तो अस्मिता जी आप इतनी डेयरिंग भी हैं .... नाइस तभी तो हमारी इश्क़ बन गयी है।" रौनक भी मन में-" यह तो मनना पड़ेगा की ऐसे ही नही आदित्य ने किसीको नही पसंद कर लिये लेकिन क्या यह एक भी हो पायेंगे कभी।"

अस्मिता तेजी से बोलती है-" हम अस्मिता गवाही देते है की छोट्की के साथ यह गलत काम इस कमीने सोम ने किया है।"

अब सरपंच को समझ नही आ रहा था की क्या करे क्योकि आज पहली बार हुआ था ऐसा। वो अस्मिता को समझाते हुये बोलता है-" ये लड़की सोच ले क्या बोल रही है तू ।"

अस्मिता -" आप हमे धमकी दे रहे हैं।"
सरपंच फिर आवक था उसने बोला-" यह सोम है हवेली के लिये काम करता है और सामने छोटे मालिक हैं अंजाम कुछ भी हो सकता है ।"

अस्मिता गुस्से में भीड से बाहर आकर आदित्य के सामने खड़ी हो जाती है और बोलती है-" आप हमे डरा रहें है तो सुनिये ..... मर गये बड़े बड़े हमे डराने वाले हम डरते नही है किसी के बाप से ना ही इस कुत्ते सोम के और ना ही आपके छोटे मालिक के।"

आदित्य और रौनक और ना ही गाव वालों मे से किसी ने आज तक ऐसी लड़की नही देखी थी। इधर रौनक आकर आदित्य के कान मे बोलता है -" वाह जोडी तो टक्कर की है भई ।" आदित्य भी मुस्कुरा कर रह गया।

अब इधर सरपंच की हालत खराब हो रही थी की वो आखिर करे तो क्या करे। तभी आदित्य उठा और बोला-"सरपंच जी सोम को कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिये और आप इतना सब कुछ देख कर भी कैसे अनदेखा कर सकते है।"

सरपंच भी शर्म से नीचे सिर झुकाये पुलिस को बुलाता है जिसके बाद सोम को पुलिस ले चली जाती है। आज गावँ मे कुछ ऐसा हुआ था जिसकी कोई कल्पना नही कर सकता था। आज अस्मिता के नजरों में आदित्य की अलग ही जगह बन चुकी थी साथ ही दिल में भी। अस्मिता जब घर आती है तो उसके बाबा उसे बहुत डाटते हैं।

अस्मिता भी पूरी रेबल थी कहाँ किसी के डाट से उसे फर्क पड़ता। इधर आदित्य रोहन को उसके बंगले के सामने छोड अपने हवेली पहुचता है तो उसके भाई वीर के कमरे से आवाज ममता की रोने की आवाज आ रही थी उसका भाई उसे शायद मार रहा था उसे बहुत बुरा लगता है वो उनके कमरे की तरफ बढ जाता है लेकिन राजेस्वरी उसका हाथ पकड खिच लेतीं है और बोलती है-" बबुआ तू काहे जा रहा है ऊहा वू उन दुनो के बिच का मामला है।"

आदित्य गुस्से से-" अम्मा किसी औरत पर हाथ उठाना अच्छा है क्या आप भी तो औरत है भाभी को हमेशा क्यू इतना मारते हैं भैया।"

तभी वो देखता है की उसकी अम्मा घूर कर उसे देख रही है इसलिये वो खून के घुट पी गुस्से से अपने कमरे में चला जाता है।

वो खिडकी के पास जाकर चांद को देखने लगता है की उसे अस्मिता का चेहरा दिखाई देता है जिससे अचानक उसके चेहरे पर मुसकान आ जाती है और वो अचानक ही बोलता है।
अस्मिता आप बहुत शान्ति से रह ली अब थोड़ा आपको परेशान किया जाये।

दुसरी तरफ अस्मिता रात को ऐसे ही अपने घर के बाहर बैठी थी अचानक उसे लगता है पेड के पीछे कोई है। वो दौड़ कर वहा देखने जाती है लेकिन कोई नही दिखता है। वो सोचने लगती है कौन था आखिर फिर सोचती है की वहम होगा इसलिए वापस आने को जैसे ही मुडती है कोई उसके कान के बिल्कुल करीब आ जाता जिसके सांसो से अस्मिता को गुदगुदी हो रही थी।

वो अस्मिता के कान के बिल्कुल करीब आकर बोलता है-

ख्वाबो में, जज्बतो में बस गयी हो मेरे

यूँ धड़कनो मे समा गयी हो मेरे

धरा और फलक बन गयी हो मेरी

हाँ तुम मोहब्बत बन गयी हो मेरी ।

क्रमश: