Tere liye in Hindi Poems by Vikas Mishra books and stories PDF | तेरे लिए

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तेरे लिए

1.कसक
मेरे शब्दों में शायद कोई महक न होती
ग़र उसमे तेरे दूर होने की कसक न होती

न चमकता चाँद, रातों को तनहा आवारा
तुझसे मिलने की उसमे ग़र लहक न होती

न मिलती मेरी ग़ज़लों की सूरत तुझसे कभी
ग़र पैबश्त उसमे तेरे यादों की खनक न होती

2.सपनों को सजा लूँ
हथेली पर मुठ्ठी भर सूरज छिपा लूँ,
चाँदनी थोड़ी सी पलकों पर बिछा लूँ ,
इत्मिनान से खोलना तुम अपनी आँखें,
मैं ज़रा सपनों को क़रीने से सजा लूँ l

शबनम की बूँदों से दरिया बना लूँ
तेरे ज़िक्र को उसका किनारा बना लूँ
ज़रा हलके से रखना पैरों को ज़मी पर
पहले मैं उसपर सारी जन्नत सजा लूँ

3.मैं मिलुँगा!

खोलोगे जब दरवाज़ा किसी की आहट पर
फ़र्श पर उभरती हुई परछाईं में, मैं मिलुँगा!

फेरोगे जब उँगलियों को जुल्फों में अपनी
उस सिहरन में, वहीं एहसास सा, मैं मिलुँगा!

जब कभी चलोगे उन राहों पर बे-मुन्तज़िर
दरख्तों के साये में थामने को बाँह, मैं मिलुँगा!

जब भी रेत पर खींचोगे कुछ बे-मन लकीरें
हर्फ़ दर हर्फ़ उसमें नाम सा दर्ज़, मैं मिलुँगा!

बदलोगे जब कभी आईना कोई टुटा हुआ
निहारता हुआ उसमे अक़्स सा, मैं मिलुँगा!

4.सौंदर्य

खिलती हुई सी वह एक कली
सुबह होने से पहले यूँ खिली,
देख उसकी लाली, लालिमा भी
सूर्य की, कुछ अनमनी सी ढली

अधरों पर कनक तुल्य मृदुहास्य लिए
पृथा सम अतुलित सौंदर्य समाया है
दर्पण में निज छवि का भान लिए
रति ने स्वयं तुझसा रूप सजाया है

5.झलक

नशा सा है कुछ, घटाओं में
नमी सी है थोड़ी, हवाओं में
साथ तेरा हो तो भीग जाऊं
रंग तेरा ही तो है फ़ज़ाओं में

तिलिस्म सा है, तेरी अदाओं में
बेतरतीबी सी है, फिर क़बाओं में
तेरी एक झलक को हैं मुन्तज़िर
जिक्र तेरा ही तो है दुआओं में

6. दीदार-ए-यार

गुलाबों को एहतिराम से रखिये
ज़रा बारिश को थाम के रखिये
अभी नही हुआ है दीदार-ए-यार
पैरों को अंदाज़-ए-ख़िराम से रखिये

चेहरा आँखों में क़याम से रखिये
जिक्र उनका माह-ए-सियाम में रखिये
खुदा नहीं, पर कम खुदा से नहीं 'अनवर'
नक़्श-ओ-निगार उनका, पयाम में रखिये

7.शिकायत

अब अंधेरों से कोई शिकायत नहीं होती
उजालों से अब मेरी बात नहीं होती
चलने को तो चल रहे हैं 'अनवर', बस
रास्तों से जुड़ी कोई सौगात नही होती

क्या गए दूर तुम, अब तो शायद हमारी
नज़दीकियों से भी मुलाक़ात नही होती
फैली हुईं है यादों की परछाईयाँ इस कदर
स्नेहातुर आँखें तो हैं,पर बरसात नहीं होती

8. याद रहता है

बातें शायद अब कुछ कम होती हैं
ख़यालों में हरपल याद रहता है
हाथों की लकीरें मिट भी जाए
पर हाथ थामना याद रहता है

अब मिलते नही रोज़ की तरह हम 'अनवर'
पुरानी मुलाक़ातों का सिलसिला याद रहता है
अब मैं मिलता हूँ लोगों से, पर खिलता नही
साथ हँसना खिलखिलाना याद रहता है

वह सवारी साथ जो हमने चलायी
रुकना और संभलना याद रहता है
कभी अचानक नाराज़ होना तेरा
और मेरा तुझको मनाना याद रहता है

9. सब तुम्हारे ही तो ताने-बाने हैं

खूँटी पर हैं कुछ यूँही टँगे हुए
कुछ पलकों पर सजा रखा है
तकियों के नीचे कुछ हैं दबे हुए
कुछ हथेलियों पर उठा रखा है

कुछ भीगे हुए हैं चांदिनी में
कुछ रेशम के रेशों से हैं
कुछ रंगे हुए हैं हरियाली में
कुछ मलमल के धागों से हैं
ख़्वाब कहो या कहो हकीकत
सब तुम्हारे ही तो ताने-बाने हैं

10. फिर तेरी बात

कल फिर कुछ बूँदें गिरीं,
यकायक फिर बरसात हुई,
फिर यादों की घटा छायी,
फिर तेरी बात, बे-बात हुई l

कल फिर कुछ उजाला हुआ,
चिरागों से, फिर कुछ बात हुई
यूँ तो रोते हैं हर रोज़ 'अनवर',
ख़ामोशी ही अब नग़मात हुई l