Ak bund ishq - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

एक बूंद इश्क - 2






२.मुंबई की सफ़र

अपर्णा सुबह जल्दी उठकर अपना बैग लेकर नीचे आ गई। चाची ने उसे चाय-नाश्ता दिया। अपर्णा थोड़ा बहुत नाश्ता करके, चाय पीकर स्टेशन जाने के लिए निकल गई। उसकी दश बजें की ट्रेन थी। नौ तो बज चुके थे। वह जल्दी बैग उठाकर बाहर आई। आरुषि अपनी गाड़ी लेकर बाहर ही खड़ी थी। उसने अपर्णा को स्टेशन तक छोड़ा। फिर उसे दिल्ली वापस जाना था। तो जल्द ही निकल गई।
अपर्णा स्टेशन पहुंची तब तक ट्रेन आ चुकी थी। वह जल्द ही ट्रेन में चढ़ी और जैसे ही अपना बैग ऊपर रखने लगी। उसी वक्त एक लड़के ने भी अपना बैग ऊपर रखना चाहा। जिसकी वजह से अपर्णा को धक्का लगा और वह सीट पर जा गिरी।
"अंधे हो क्या? दिख नहीं रहा मैं अपना बैग रख रही थी। कुछ देर इंतज़ार नहीं कर सकते थे।" अपर्णा खड़ी होकर, अपने बाल ठीक करते हुए गुस्से से कहने लगी। लड़का बस जा ही रहा था कि उसे आवाज़ कुछ जानी पहचानी लगी। तो उसने पलटकर देखा और बस देखता ही रह गया।
लंबे काले बाल, दूध सा गोरा चेहरा, बड़ी-बड़ी आंखें, उस पर लंबी घनी पलकें, गुलाबी मुलायम होंठ और मक्खन सी मुलायम त्वचा और उस पर हल्के गुलाबी रंग का कुर्ता और व्हाइट जींस में अपर्णा बेहद खूबसूरत लग रही थी। लड़का तो बस अपर्णा को देखता ही रह गया। जब अपर्णा ने लड़के को देखा तो उसे कुछ याद आया और उसने पूछा, "तुम तो कल घाट पर मेरी गोद में आ गिरे थे वहीं हो ना? किस नाम से बुलाया था तुम्हारे दोस्त ने? (वह दिमाग पर ऊंगली रखकर सोचने लगती है।) याद आया... शिवा! यहीं नाम है ना तुम्हारा?"
"सही पहचाना! और तुम्हारा नाम?" शिवा ने पूछा।
"अपर्णा! लेकिन मैं फिल्मों की तरह ये बिल्कुल नहीं कहूंगी कि तुमसे मिलकर खुशी हुई। क्यूंकि कल भी तुम्हारी वजह से मैं परेशान हुई थी और आज़ भी तुमने वहीं किया।" अपर्णा ने अपनी सीट पर बैठते हुए कहा।
"तो मैं कौन-सा तुम्हें सोरी कहने वाला हूं।" कहकर शिवा चला गया। अपर्णा बस उसे जाता हुआ देखती रह गई। ब्लू लोफर जींस और उस पर सफ़ेद रंग का टी-शर्ट, बालों को सलिके से बनाएं हुए थे। गोरा रंग और छोटी लेकिन हर वक़्त मानों कुछ कह रही हो ऐसी आंखें! अपर्णा ने इस वक्त शिवा को अच्छे से देखा था। कल तो दोनों ही एक-दूसरे को ठीक से देख नहीं पाएं थे। सिर्फ आंखों को देखकर अपर्णा को लगा था। मानों वह कुछ कह रही है। लेकिन वह कुछ समझ नहीं पाई थी। आज़ भी शिवा की आंखें देखकर अपर्णा को ऐसा ही लगा जैसा पहली बार उसकी आंखों में देखने पर लगा था।
अपर्णा पर्स में से फ़ोन निकालकर, उस पर गाने सेट करके, कानों में हेडफोन लगाकर गाने सुनने लगी। उसकी पूरी सीट खाली थी और सामने की सीट में भी कोई नहीं था। अपर्णा आंखें बंद करके आराम से गाने सुन रही थी। उतनें में शिवा आया और उसके पास आकर बैठ गया। उसके साथ उसके तीन दोस्त भी थे। उसमें से एक ने अपर्णा को देखकर कुछ बोलना चाहा तो शिवा ने इशारे से मना कर दिया। अपर्णा आंखें बंद करके गाने सुन रही थी। शिवा के दोस्त चुपचाप सामने की सीट पर बैठ गए। शिवा अपर्णा के पास बैठकर उसे ही देख रहा था।
"इसने कल कुछ ग़लत नहीं कहा था। ये किसी राजकुमारी से कम नहीं लगती। क्या कमाल की खुबसूरत है। लेकिन बस एक कमी है। इसकी जूबान केंची की तरह चलती है।" शिवा अपर्णा को देखकर मन ही मन सोच रहा था। उतनें में अपर्णा ने आंखें खोली और शिवा को अपनें पास बैठा देखकर चिल्ला उठी, "तुम यहां क्या कर रहे हों?"
"ज्यादा चिल्लाओ मत ये सीट हमारी है। इसलिए हम सब यहां बैठे है।" शिवा ने अपर्णा को घूरते हुए कहा। शिवा के मुंह से 'सब' सुनकर अपर्णा ने अपने सामने देखा। वहां तीन लड़के बैठे थे। जो अपर्णा के देखने पर हाथ हिलाकर उसे 'हेल्लो' कहने लगे।
"ये क्या बात हुई? ये सीट मेरी है। आप सब यहां कैसे बैठ सकते है।" अपर्णा गुस्से में कुछ भी बोल रही थी।
"ओ हेल्लो! ये ट्रेन है इसे तुमने खरीद नहीं लिया है जो हम यहां बैठ नहीं सकते। जैसे ये सीट तुम्हारी है। वैसे ही ये सीट हमारी भी है।" शिवा ने कहा तो अपर्णा चुप हो गई।
कुछ देर बाद उसने अपना बैग लिया और वहां से जानें लगी तो शिवा ने पूछा, "अब कहां जा रही हों?"
"मैं कहीं और बैठ जाऊंगी। मगर तुम्हारे साथ नहीं बैठूंगी।" कहकर अपर्णा चली गई। उसने सभी जगह देखा। मगर एक भी सीट खाली नहीं थी। अपनी बर्थ से निकलकर दूसरी बर्थ में देखा तो वहां भी जगह नहीं थी।
"मैम! आप कुछ ढूंढ रही है क्या?" टी.सी ने अपर्णा से पूछा।
"मेरी सीट में चार लड़के है। तो मुझे वहां नहीं बैठना। आप मुझे दूसरी सीट दिला दिजिए।" अपर्णा ने कुछ सोचते हुए कहा।
"सभी सीटें फुल हो चुकी है। आपको अपनी सीट पर ही बैठना होगा। फिर आपका ऑनलाइन रिजर्वेशन है। इसलिए मैं कुछ नहीं कर सकता। ट्रेन चलनेवाली है तो प्लीज़ आप अपनी जगह पर जाकर बैठ जाइए। कोई दूसरी परेशानी हो तो आप मुझे बता देना।" टी.सी ने काफ़ी नर्मी बरतते हुए कहा। आखिर में अपर्णा को अपनी सीट पर ही वापस आना पड़ा। अपर्णा जब अपनी सीट पर वापस आ रही थी तो उसने शिवा और उसके दोस्तों को बातें करते हुए सुना तो सीट से थोड़ा दूर रुककर वह उनकी बातें सुनने लगी।
"यार शिवा! तू उस लड़की को जानता है?" शिवा के दोस्त ने पूछा।
"कल जब तुम मेरा कैमरा लेने के लिए मेरे पीछे भाग रहे थे। तब घाट पर ये मुझे मिली थी। बस तब से जानता हूं। तीखी मिर्च है। कुछ भी सोचे समझे बिना बस नॉनस्टॉप बोले ही जाती है।" शिवा ने कहा।
"जो भी हो लेकिन लड़की खुबसूरत बहुत है।" शिवा के दूसरे दोस्त ने कहा।
"यार रितेश! तुझे तो सभी लड़कियां खुबसूरत ही लगती है। एक तो वह पहले ही खुद को राजकुमारी समझती है। ऊपर से तेरे मुंह से तारीफ़ सुन ली तो उसके पंख निकल आयेंगे।" शिवा ने कहा उसी वक्त अपर्णा उसके बाजू में आकर खड़ी हो गई।
"तुम वापस कैसे आई? किसी ने तुम्हें अपनी सीट नहीं दी क्या?" शिवा ने ऐसे कहा जैसे उसे पहले से पता था कि कहीं पर कोई सीट खाली नहीं है।
"मैं तो तीखी मिर्च हूं। बस नॉनस्टॉप बोलती रहती हूं। अब ऐसी लड़की को भला कौन अपने पास बिठाएगा।" अपर्णा ने कटाक्ष करते हुए कहा। शिवा के दोस्तों ने जब ये सुना तो अपना सिर पकड़कर बैठ गए। शिवा भी हैरान था कि अपर्णा ने उसकी सारी बातें सुन ली थी।
शिवा ने सब की तरफ़ देखकर बात संभालते हुए कहा, "तो क्या हुआ तुम्हें किसी ने अपनी सीट नहीं दी। तुम्हारी अपनी सीट अभी भी खाली है। आओ आकर बैठ जाओ।"
शिवा अपर्णा के हाथ से उसका बैग लेने लगा तो अपर्णा ने गुस्से से उसे घूरते हुए साइड किया और खुद ही ऊपर बैग रखकर अपनी जगह पर बैठ गई। उतने में ट्रेन चल पड़ी। अपर्णा खिड़की से बाहर झांककर पीछे छूटते प्लेटफॉर्म को देखने लगी। कुछ देर के लिए सब ख़ामोश हो गए। लेकिन हमारे शिवा के दोस्तों को चुप रहना कुछ खास पसंद नहीं था। तो उसमें से एक ने अपना हाथ आगे करके कहा, "मेरा नाम रितेश है और आपका?"
"खुद को रितेश देशमुख समझते हो क्या? अपनें काम से काम रखो।" अपर्णा ने गुस्से से कहा।
"ओय, वो मेरा दोस्त है। तुम ऐसे कैसे उसके साथ बात कर सकती हो?" शिवा ने अपर्णा को घूरते हुए कहा।
"तुम्हारा दोस्त है तो क्या अब मैं उसकी आरती उतारूं?" अपर्णा ने कटाक्ष करते हुए कहा।
"तुने सही कहा था शिवा! ये तीखी मिर्च ही है।" शिवा के दूसरे दोस्त ने कहा।
"ओ मिस्टर..."
"क्रिष्ना...क्रिष्ना नाम है मेरा।" अपर्णा को मिस्टर के बाद अटकता देखकर क्रिष्ना ने कहा।
"नाम क्रिष्ना है तो क्या खुद को सचमुच के क्रिष्ना समझते हो? अगर समझते भी हो तो मैं गोपी नहीं हूं। जो तुम्हारे पीछे-पीछे आऊंगी। माना हूं मैं तीखी मिर्च! लेकिन मैंने कब कहा की मुझसे बात करो। अगर मेरी बातें इतनी ही तीखी लगती है तो बात ही क्यूं करते हो।" अपर्णा ने क्रिष्ना को घूरते हुए कहा।
"यार तुम लोग चुप हो जाओ। क्यूं खामखां बात को इतना बढ़ा रहे हों।" रितेश के पास बैठे लड़के ने कहा तो शिवा कहने लगा, "अबे यार मानव! तू ना चुप ही रह।"
"इसका नाम सही है। मानव! मानव मानें इंसान! ये इंसान की तरह लगता भी है। लेकिन तुम सब-" अपर्णा ने शिवा, रितेश और क्रिष्ना को बारी-बारी देखते हुए कहा।
"क्या हम सब हं? हम क्या तुम्हें जंगल से भागे जानवर दिखते है?" इस बार शिवा ने गुस्से से भरकर कहा।
"नहीं, तुम सब तो किसी रियासत के राजकुमार हो। इसलिए अब एक भी शब्द अपनी जूबान से मत निकालना। मुझे यहां शांति चाहिए।" अपर्णा ने शिवा को घूरते हुए कहा। वह मुंह फेरकर बैठ गया। अपर्णा भी खिडकी की तरफ़ मुंह घूमाकर बैठ गई। उनके सामने बैठे शिवा के तीनों दोस्त इन दोनों को ही देख रहे थे।

(क्रमशः)

_सुजल पटेल