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बागी स्त्रियाँ - (भाग छब्बीस)

मीता ने जब अर्जुन के आकर्षक व्यक्तित्व में छिपे कुरूप आदमी को देखा , उसका मन उससे विरक्त हो गया क्योंकि वह देह की कुरूपता को बर्दास्त कर सकती थी पर मन की कुरूपता उसे असह्य थी |जब उसने उस दूसरी स्त्री के बारे में जाना तो विश्वास ही नहीं कर सकी थी कि अर्जुन ऐसा कुछ भी कर सकता है वह तो उससे प्यार का दावा करता था।उसने उसे पसन्द करने के बाद विवाह किया था। उसके लिए वह अभाव दुःख और परेशानियों से जूझती रही थी। कोई इतना दंभी और घिनौना कैसे हो सकता है ?वह उससे प्यार करती थी |वह फूट-फूट कर रोई ,कई दिन तक रोती ही रही |वह उसके रोने का कारण नहीं समझ पाया |उसे पता ही नहीं चला था कि आवरण में छिपे उसके असली रूप को वह देख चुकी है|वह उसे मनाने के लिए आवरण पर आवरण चढ़ाता गया |पर उसका मन उचट गया था |अब वह उसके साथ नहीं रहना चाहती थी |उसका स्पर्श उसे सर्प दंश की तरह लगता |पर उसे सब कुछ सहना पड़ रहा था |वह जानती थी कि एक ऐसे समाज में रहती है ,जिसमें एक बार बंधने के बाद बंधन से छुटकारा आसान नहीं होता |चारों ओर से इतने दबाव पड़ने लगते हैं कि स्त्री उन दबावों के नीचे दब जाती है | फिर सारी जिंदगी उसे उस अनचाहे के साथ गुजारना पड़ता है ,जिससे मन ही मन नफरत करती है |यह अलग बात है कि वह अपने हिसाब से उससे बदला भी लेती रहती है |कुछ स्त्रियाँ तो अवसर मिलते ही अवैध संबंध बना लेती हैं और कुछ प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या तक का साजिश रच डालती हैं |
पर वह साधारण स्त्री नहीं थी और ना ही पीठ पीछे वार करने में उसका विश्वास था |रिश्तों में वह खुलापन चाहती थी |बिना प्यार के किसी के साथ रहने की कल्पना भी उसे असह्य थी |वह बोझ की तरह रिश्ते नहीं निभा सकती थी | उसने जब जान लिया कि वह उसको जान गयी है तो अपने असली रूप में आ गया था और बात-बात पर उसे नीचा दिखाने लगा था |पर अपना आवरण उसने नष्ट नहीं किया था |बाहरी लोगों के लिए उसे सुरक्षित रख लिया था |लोगों के सामने आवरण चढ़ा लेता |सभी उसके आवरण को ही सच समझते और उससे प्रभावित हो जाते थे |उसके पास गिरगिट के रंग थे, बहुरूपिये की कला थी ,लच्छे की भाषा थी और सबसे बड़ी बात उसके पास पर्याप्त समय था |समाज में लोकप्रिय होने के लिए इससे अधिक क्या चाहिए ?वैसे भी समाज में उसकी तरह ही के लोग ज्यादा हैं |जो ‘खग जाने खग ही भाषा’ के अनुसार एक-दूसरे को समझते हैं और साथ भी देते हैं |अक्सर ऐसे लोगों की टीम बन जाती है |पर मीता जैसे लोग ज़्यादातर अकेले पड़ जाते हैं |
मीता जैसे अंदर थी ,वैसी ही बाहर |उसका व्यक्तित्व विभाजित नहीं था इसीलिए दोहरे व्यक्तित्व के लोग उसे पसंद नहीं थे ,उनसे प्रेम करना तो दूर की बात थी |पर दिक्कत ये थी कि अन्य लोगों को वह खारिज कर सकती थी ,पर अर्जुन को कैसे खारिज करती ?वह उसका पति था |पूरे विधि-विधान से उनका विवाह हुआ था ,इस विवाह में उसकी अपनी सहमति भी थी |
उसने सोचा था –शायद !वह बदल जाए ,पर किसी की प्रकृति कहाँ बदलती है ?वह भी नहीं बदला |कभी-कभी बदला-सा दिखता ,पर फिर वही का वही हो जाता |वह तड़प कर रह जाती |वह खुद चाह लेता तो शायद परिवर्तित हो सकता था पर ऐसे लोग खुद को परफेक्ट मानते हैं उनका अहंकार बड़ा होता है |
मीता ने फिर सोचा कि वह खुद को बदल ले ?अर्जुन की तरह ही दुहरा व्यक्तित्व निर्मित कर ले |झूठ ,दिखावा ,अवसरवादिता और स्वार्थ से भर जाए |पर वह ऐसा नहीं कर पायी ?वह उसकी तरह नहीं बन पायी | वह जान गयी कि अर्जुन की तरह बनते ही उसकी आत्मा मर जाएगी ,उसे अपराध-बोध सताने लगेगा |उसकी अपनी प्रकृति है ,जिसे वह नहीं बदल सकती |फिर वह कैसे सोच रही थी कि अर्जुन की प्रकृति बदल जाएगी |दोनों का व्यक्तित्व नदी के दो द्वीपों की तरह था ,जिनका मिलना मुश्किल था | सात फेरे भी दोनों द्वीपों को जोड़ने वाली अंतर्धारा नहीं बन सके | अर्जुन बहुत इगोइस्ट था और उसे पजेसिव कहता था |वह अपने- आप को पूरी तरह समाप्त करके ही उसे पा सकती थी| अपने को बचाए रखकर तो उसे खोना ही था |अंततः दोनों अलग हो गए | अलग होते ही वह उस दूसरी स्त्री को अपने घर ले आया।
और अपनी जिंदगी की स्लेट से उसका नाम ,उसका अस्तित्व धो-पोंछकर एक नई जिंदगी शुरू कर दी थी|शायद बहुत सुखी ,बहुत भरी-पूरी जिंदगी !पर मीता पुरानी स्लेट से इतनी जल्दी इतनी आसानी से कुछ भी साफ न कर सकी |
अतीत का कोई शरीर नहीँ होता पर वह वर्तमान में आभासी रूप में मौजूद रहता है।
अलग होने के बाद भी अर्जुन ने उसे अकेला नहीं छोड़ा| सारी जिंदगी उसे,उसके हर काम और बात को ,उसकी सोच और रवैये को गलत सिद्ध करता रहा |
सबसे कहता रहा कि वह फ्री बर्ड है| स्वतंत्र रहना चाहती है |बहुत डामिनेटिंग है ,यह है वह है |वह उसके घरवालों को भी उसके खिलाफ करता रहा |उनके मन में उसके खिलाफ जहर भरता रहा |
पता नहीं गलत कौन था ? जो भी हो ,जीवन भर गलत होने के अपराध -बोध को मीता ने किसी न किसी स्तर पर हर दिन ही झेला | जबकि वह निश्चिंत अपनी नयी दुनिया में मगन रहा |इस पुरूष-प्रधान समाज में बच्चे और स्त्री ही कमजोर हैं पुरूष नहीं|