Gyarah Amavas - 43 books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 43



(43)

दीपांकर दास अपने बिस्तर पर लेटा था। वह पसीने से तर बतर था। सोते हुए अचानक उसकी आँख खुल गई थी। जो कुछ उसने सपने में देखा था वह बहुत भयानक था। वह डरकर कांप रहा था। उसकी सांसें तेज़ी से चल रही थीं। कुछ देर ‌उसी तरह वह बिस्तर पर लेटा रहा। कुछ देर बाद उसने महसूस किया कि उसका गला सूख रहा है। उसे बहुत ज़ोर की प्यास लगी थी। वह बिस्तर से उठा। कमरे के एक कोने में जग रखा हुआ था। वह जग उठाकर पानी पीने लगा। जग आधा भरा हुआ था। वह गटागट सारा पानी पी गया। लेकिन अभी उसकी प्यास शांत नहीं हुई थी।
वह वापस बिस्तर पर जाकर बैठ गया। अब कुछ हद तक उसकी सांसें काबू में आई थीं। सपने में देखा भयावह मंजर उसकी आँखों के सामने था। एक किशोर खून से लथपथ पड़ा था। उसका जननांग कटा हुआ था। वह दर्द से तड़पता हुआ मौत की राह देख रहा था। उसने सपने में खुद को देखा था। खून से सना खंजर उसके हाथ में था। चेहरे पर एक वहशी मुस्कान थी। अपना यह रूप देखकर वह दहल गया था।

पुलिस ने तो कुमुदिनी के बलात्कार और हत्या का केस बंद कर दिया था। लेकिन एक अखबार के रिपोर्टर अनिकेत ने अपनी तहकीकात की थी। उसने कुमुदिनी के दोषियों का पता लगा लिया था। पाँच लड़के थे। चार लड़कों की उम्र उन्नीस से इक्कीस के बीच थी। एक लड़का सत्रह साल का था। उसका नाम रंजीत सिन्हा था। रंजीत उस इलाके के एक रसूखदार बिज़नेस मैन सुभाष सिन्हा का बेटा था। सुभाष सिन्हा अपनी राजनैतिक ज़मीन बनाने में लगे थे। आने वाले चुनावों में वह एक नई पारी शुरू करना चाहते थे। अनिकेत के मन में लालच आ गया था। वह जानता था कि अपनी छवि को बचाने के लिए सुभाष सिन्हा कुछ पैसों का मुंह नहीं देखेगा। उसने सुभाष सिन्हा को सारी जानकारी देते हुए संदेश भेजा कि उसे उसकी मुंह मांगी रकम दे नहीं तो वह उसे मुंह दिखाने लायक नहीं रखेगा।
अनिकेत ने जैसा सोचा था उसका उलटा हुआ। सुभाष उसकी सोच से बहुत अधिक शातिर निकला। अनिकेत बड़ी मुश्किल से जान बचाकर उसके चंगुल से भागा। लेकिन वह जानता था कि उसका बच पाना मुश्किल है। मरते हुए एक अच्छा काम करने के इरादे से उसने दीपांकर दास को फोन करके कहा कि अगर अपनी बेटी के गुनहगारों के बारे में जानना है तो जितनी जल्दी हो सके उसकी प्रेमिका के घर जाकर उससे लाल कपड़े में लिपटी फाइल ले ले। अपनी प्रेमिका के घर का पता बताकर उसने फोन काट दिया।
दीपांकर दास ने सारी बात साथ रह रहे शुबेंदु को बताई। दोनों फौरन अनिकेत की प्रेमिका के घर पहुँचे और उससे फाइल ले ली। लाल कपड़े में लिपटी फाइल लेकर दोनों घर पहुँचे। उस फाइल को खोलकर पढ़ा। दीपांकर दास के सामने उन सभी का नाम था जिन्होंने उसकी हंसती खेलती बच्ची को वहशियों की तरह नोचकर मार दिया था। उन सबका नाम पढ़कर उसकी आँखों में खून उतर आया था।
दो दिन के बाद खबर आई कि अखबार के रिपोर्टर अनिकेत की लाश शहर के बाहर एक सुनसान जगह पर मिली है। उसकी प्रेमिका के घर पर भी कुछ लोगों ने घुसकर सारा सामान उथल पुथल कर दिया था। उसकी प्रेमिका का कोई पता नहीं है।
उन पाँच लड़कों के नाम दीपांकर दास को पता चल गए थे। उसका खून खौल रहा था। पर वह समझ नहीं पा रहा था कि करे क्या ? वह जानता था कि पुलिस ने सब जानते हुए केस बंद कर दिया था। क्योंकी वो पाँचों लड़के पैसे वाले परिवारों से थे। अगर अपनी बेटी के गुनहगारों को सज़ा देनी थी तो उसे ही देनी थी। दीपांकर दास ने उन पाँचों लड़कों के बारे में पता करना शुरू किया। शुबेंदु ने इस काम में उसका पूरा साथ दिया।
रंजीत सिन्हा उसी स्कूल में पढ़ता था जिसमें कुमुदिनी पढ़ती थी। वह उसका सीनियर था। वह एक बिगड़ैल और दिलफेंक लड़का था। रंजीत सिन्हा की नज़र कुमुदिनी पर थी। वह उसे पाना चाहता था। एक बार कुमुदिनी स्कूल के वार्षिक उत्सव के लिए अभ्यास कर रही थी। मौका पाकर रंजीत सिन्हा ने स्कूल के ऑडिटोरियम में उसके साथ छेड़छाड़ की। कुमुदिनी ने उसे थप्पड़ मारा और उसकी शिकायत भी की। रंजीत सिन्हा उस बात से नाराज़ था।
उसकी दोस्ती अपने से उम्र में बड़े पैसे वाले लड़कों से थी। उनके साथ मिलकर उसने कुमुदिनी से बदला लेने का प्लान बनाया। उन लोगों ने कुमुदिनी पर नज़र रखी। मौका पाकर उसका अपहरण कर लिया। वो सब उसे एक लड़के के बंगले पर ले गए जो शहर के बाहर था। वह बंगला खाली था। वहाँ उन सबने कुमुदिनी के साथ हैवानियत दिखाई। बाद में यह सोचकर कि उनकी पोल ना खुल जाए कुमुदिनी को जंगल में ले गए और उसका गला रेतकर मार दिया।
दीपांकर दास ने सपने में जो कुछ देखा था वह हकीकत में हुआ था। उसने अपनी बच्ची के हत्यारों को अपने हिसाब से सज़ा दे दी थी। बिस्तर पर बैठकर वह उस रात को याद कर रहा था जब वह बहुत बेचैन था। उस रात शुबेंदु उसके कमरे में आया था। उसे परेशान देखकर उसने कहा था,
"इस तरह से परेशान रहने से कुछ नहीं होगा। या तो अपने सीने की आग से उन्हें जला दो। नहीं तो इस फ़ाइल को उसी तरह जला दो जैसे कुमुदिनी की चिता जलाई थी।"
उसकी बात सुनकर वह तड़प कर बोला था,
"कैसे भूल जाऊँ कि मेरी बच्ची के साथ क्या हुआ ?"
शुबेंदु ने बिना लाग लपेट के स्पष्ट शब्दों में कहा था,
"कोई दूसरा तुम्हारी मदद नहीं करेगा। जो करना है तुम्हें करना है।"
दीपांकर दास कुछ क्षणों तक उसके चेहरे को देखता रहा था। कुछ नर्म पड़ते हुए शुबेंदु ने कहा था,
"मेरी बात ने चोट पहुँचाई है। पर यह सच है। तुम्हारे दिल का गुस्सा तभी निकलेगा जब तुम उनके पाप की सज़ा दोगे। नहीं तो बस ऐसे ही तड़पते रहोगे।"
शुबेंदु ने उसे गले लगाकर कहा,
"मैंने भी कुमुदिनी को बेटी की तरह प्यार किया था। मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। लेकिन करना तुम्हें ही होगा।"
शुबेंदु से सहायता का आश्वासन पाकर दीपांकर दास तैयार हो गया। उन लोगों ने उन पाँचों लड़कों की गतिविधियों पर नज़र रखना शुरू कर दिया। एक महीने बाद एक अच्छा मौका उनके हाथ आया। पाँचों नए साल के अवसर पर उसी बंगले में पार्टी मनाने गए थे जहाँ वो कुमुदिनी का अपहरण कर ले गए थे। शुबेंदु और दीपांकर दास उस बंगले पर पहुँच गए। दीपांकर दास के पास एक पिस्तौल थी।
उन पाँचों ने फोन करके बियर का कार्टन मंगवाया था। शुबेंदु ने बंगले के गेट पर ही भुगतान कर डिलीवरी ब्वॉय से उसे ले लिया। उसके बाद उन्होंने बंगले की डोरबेल बजाई। दरवाज़ा खुला। उनमें से एक डिलीवरी लेने आया था। जब वह पैसे दे रहा था तब शुबेंदु और दीपांकर दास अंदर घुस गए। दीपांकर दास ने तुरंत उस लड़के पर गोली चला दी। वह वहीं गिर पड़ा। गोली चलने की आवाज़ सुनकर बाकी लड़के भी बाहर आए। सब पहले ही नशे में थे। अपने साथी को खून में सना देखकर घबरा गए। दीपांकर दास ने बाकी के तीन लड़कों को भी मार दिया।
रंजीत सिन्हा उसके सामने खड़ा डर से कांप रहा था। शुबेंदु ने कहा,
"इसे भी मार दो। जल्दी चलो यहाँ से।"
दीपांकर दास के चेहरे पर क्रूरता उभर आई थी। उसने कहा,
"तुम दिल की आग बुझाने की बात कर रहे थे। मेरी बेटी का सबसे बड़ा गुनाहगार यही है। इसने ही उस पर बुरी नज़र डाली थी। उससे बदला लेने के लिए अपने दोस्तों को उकसाया था। इसे तड़पते देखकर ही दिल की आग बुझेगी।"
दीपांकर दास ने पिस्तौल शुबेंदु को पकड़ा दी। अपने कपड़ों के अंदर छिपा खंजर निकाला। आगे बढ़कर रंजीत सिन्हा के बाल पकड़ कर बोला,
"तूने मेरी बच्ची के साथ इतनी घिनौनी हरकत की अब उसकी सज़ा भुगतनी होगी। अपनी पैंट उतार।"
रंजीत सिन्हा डरकर कांप रहा था। दीपांकर दास ने उसके हाथ पर खंजर से वार किया। वह तड़प उठा। उसके बाद उसके कंधे पर वार किया। रंजीत सिन्हा निढाल होकर गिर गया। उसके बाद दीपांकर दास ने उसकी पैंट उतार दी। उसके जननांग को खंजर से काट दिया। वह हाथ में खून से सना खंजर लिए उसे दर्द में तड़पते देखता रहा। उसे महसूस हो रहा था कि जैसे कुमुदिनी उसके सीने से लगकर कह रही हो कि बाबा मैं भी इसी तरह तड़पी थी। दीपांकर दास रोते हुए कह रहा था,
"लिपा मेरी बच्ची। तुम्हारे हर दर्द की सज़ा दे दी मैंने। अब शांत हो जाओ। मेरे दिल में बस जाओ। मैं तुम्हें वहाँ महफूज़ रखूँगा।"
शुबेंदु ने आगे बढ़कर उसे संभाला और वहाँ से ले गया।
उसके अगले दिन दीपांकर दास शुबेंदु के साथ एक नई जगह चला गया।
बिस्तर पर बैठा हुआ दीपांकर दास ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। आज अचानक इतने समय के बाद उसने सपने में वह दृश्य देखा था। वह कह रहा था,
"लिपा उन्हें मारकर मैंने कुछ ग़लत नहीं किया। फिर क्यों कभी कभी मन अपराधबोध से भर जाता है।"
देर तक वह अपने दिल में बसी लिपा से यही सवाल करता रहा।

सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने ईमेल खोलकर पढ़ा। उसमें सूचना दी गई थी कि एक बंगले में पाँच लड़कों की हत्या हुई थी। एक लड़का जो सबसे छोटा था की उम्र सत्रह साल थी। उसको बहुत बेरहमी से मारा गया था। उसका गुप्तांग काट दिया गया था। दीपांकर दास के घर की तलाशी में लाल कपड़े में लिपटी एक फाइल मिली थी। उस फाइल में उन पाँचों लड़कों का ज़िक्र था।
उन लड़कों से दीपांकर दास का क्या संबंध था कहा नहीं जा सकता। परंतु उनकी हत्या के बाद से ही दीपांकर दास अपने साथी शुबेंदु के साथ कहीं गायब हो गया था।
ईमेल में उस फाइल के स्कैन किए गए पन्ने अटैच्ड थे। सारी जानकारी मिलने के बाद सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे सोच में पड़ गया था। फाइल के हिसाब से रंजीत सिन्हा को उसी तरह मारा गया था जैसे अहाना के दोषी को मारा गया था। उसके मन में आ रहा था कि अवश्य वो पाँच लड़के ही दीपांकर दास की बेटी के हत्यारे होंगे। उन्हें मारकर उसने अपना बदला लिया होगा।
रंजीत सिन्हा एक किशोर था। अमावस में जिनकी बलि चढ़ाई गई थी वो सब भी किशोर उम्र के लड़के थे।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे का मन यह सोचकर विचलित हो गया कि अपनी बच्ची का बदला लेकर दीपांकर दास इतना पत्थर दिल हो गया कि बेगुनाह लड़कों की जान ले रहा है।