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गुलाबी लिफाफा

आज समीर की शादी की पच्चीसवीं सालहिरह थी। शाम में सब दोस्त और परिवारजन आने वाले थे। वह मंदिर सुबह ही जाकर लौट आया था। उसकी पत्नी बच्चों को लेकर बाजार निकल गई थी। एक कप काफी लेकर वह आराम से छत पर लगे झूले में आकर बैठ गया और याद करने लगा कि जब उसका विवाह हुआ था। तब उस समय आज की तरह मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे कि जब मन चाहा बात हो गई या मैसेज भेज दिया। सिर्फ लैंडलाइन फोन हुआ करते थे। अचानक ही वह यादों के समंदर में खो गया उसे याद आने लगा कि किस तरह उसकी जीवन संगनी समीर के जीवन में आई।
करीब पच्चीस साल पहले की बात है- सामने मेज़ पर रखा गुलाबी लिफाफा भीने-भीने इत्र की खुषबू से महक रहा था। मैंने आष्चर्य से उसे उठाया और देखा तो वह मेरे ही लिए खत था। जिसपर लिखा था-समीर सिंह। वह असमंजस में पड़ गया कि उसे खत कौन लिख रहा है। उत्सुकतावष उसने खत को खोला तो अंदर एक सुंदर लिखावट वाला पत्र था, जिसमें लिखा था-प्रिय समीर आप मुझे नहीं जानते पर मैं आपको जानती हूं। आपसे प्यार करती हूं और आपसे मिलना चाहती हूं, आपकी पारूल।
मैं झंुझला उठा कि यह कौन है जो उसे इस तरह परेषान कर रहा है। उसने तारीख सोची तो याद आया कि आज तो दस अप्रैल है। यानी एक अप्रैल नहीं है। अचानक ही टेलीफोन की घंटी बजी तो उसका ध्यान भंग हुआ। रिसीवर उठाया तो वहां से मधुर आवाज आई समीर बात कर रहे हैं क्या। जी हां मैं समीर ही बोल रहा हूं आप कौन हैं- उधर से आवाज आई जी मैैंं पारूल बात कर रही हूं जिसका खत आपके हाथ में है। बस इतना कहते ही वहां से फोन काट दिया गया।
अब में बुरी तरह से खीज उठा। पहले खत और अब यह फोन! कौन है यह लड़की और क्यूं उसे परेषान कर रही है। वह ऑफिस से निकल कर घर की ओर चल पड़ा। कार स्टार्ट करते ही रेडियों पर जगजीत सिंह की गज़ल सुनने को मिली- तेरी खुषबू से भरे खत में जलाता कैसे.......यह सुनते ही उसका मूड एकदम फ्रेष हो गया और चेहरे पर मुस्कान छा गई। वॉट ए को-इंसीडेंट गज़ल भी यही सुनने को मिली। उसने सोचा और घर पहंुच गया।
घर पहंुचते ही पूरे घर में खिलखिलाहट सुनाई दे रही थी। वह समझ गया कि यह उसके पड़ोस में रहने वाली चुलबुली रूमी की आवाज़ है। दरअसल मेधावी रूमी शर्मा यूनीवर्सटी से हिंदी साहित्य में पीएचडी कर रही थी। उसके माता-पिता का देहांत जब वह छोटी थी, तभी हो गया था। अब वह यहां अपने भाई और भाभी के साथ सामने वाले अपार्टमेंट में रहती थी। जब कभी वह फ्री होती तो मां के पास आ जाती थी। इससे मां को भी अकेलापन नहीं महसूस होता था। उसे देखते ही मां और रूमी दोनों चुप हो गई। उसने मां से एक प्याली चाय की फरमाइष की । रूमी के जाने के बाद मां उसके कमरे में चाय लेकर आई। मैंने मां से पूछा रूमी क्यों आई थी। किस बात पर आप लोग इतना हंस रही थीं। इस पर मां का जवाब मिला अरे रूमी बहुत मजेदार है। अपने बचपन की शरारतों को याद करती रहती है। मुझे भी हंसाती है अपनी बातों से, पर तुम क्यों पूछ रहे हो। तुम्हें पसंद है तो फिर चलाए तुम्हारी शादी की बात उससे। अब में झल्ला गया क्या मां जब तुम्हारे पास कोई काम नहीं होता तब मेरी षादी की बात सामने ले आती हो।
हां हां तुम्हे तो विरक्ति लेना है ना इस संसार से कह कर मां हंसती हुई बाहर चली गईं।
दूसरे दिन फिर जब मैं ऑफिस पहंुचा तो मेज पर रखा एक ओर गुलाबी लिफाफा महक रहा था। उत्सुकतावष मैंने जल्दी से उसे खोला तो उसमें लिखा था-रात में नींद कैसी आई आपको। आगे फिल्मी गाने की लाइनें लिखी थी-याद में तेरी जाग जागकर हम सारी रात करवटें बदलते रहे। आगे लिखा था, आज शाम को लेक व्यू पर विंड एंड वेव्स रेस्टोरेंट में मिलिए शाम सात बजे। खत को उसने संभाल कर मेज की दराज में रख दिया। आज उसे गुस्सा नहीं आया बल्कि वह सोचने लगा कि जिसकी लिखावट इतनी खूबसूरत है वह खुद कैसी शख्सियत की मालकिन होगी।
समीर ने जल्दी ही सारा काम निपटाया और ठीक छह बजे ऑफिस छोड़ दिया आज उसे घर जाकर निकलने की जल्दी थी। गुनगुनाता हुआ घर में घुसा। मां भी उसे जल्दी आया देखकर बोली क्या बात है बेटा आज टाइम से पहले आ गए। इतने में ही रूमी आकर बोली प्लीज आप मुझे दस नंबर मार्केट में छोड़ देंगे क्या। भैया बिजी हैं और मुझे आज ही बुक्स लानी है और मेरा जवाब सुने बिना ही बोली आई एम रेडी। मैं चिढ़़कर बोला हां यहां तो महारानी के सेवक बैठें है ना कि जब इनका हुक्म होगा उसका पालन किया जाएगा। जी नहीं माफ कीजिएगा मेरी एक जरूरी मीटिंग है। मैं नहीं छोड़ सकता। इतने में मां ने डांट लगाई अरे साथ में लेकर जा इसे फिर बाद में मीटिंग में जाना। समीर मां का कहा तो नहीं टाल सकता था। रूमी को लेकर कार से निकला और अगले ही टर्न पर कार रोक कर बोला प्लीज मां से मत कहना, अब यहां से रिक्षा में लेकर चली जाओ और ऐसे ही घर लौट जाना। मैं लेट हो रहा हूं सॉरी कहकर कार आगे चला दी। रूमी हतप्रभ सी खड़ी उसे देखती ही रह गई।
विंड एंड वेव्स पहुंचते-पहंुचते हुए सात बज चुका था। समीर ने जाकर एक टेबिल पर सीट ली और कनखियों से आते जाते हुए लोगों को देखने लगा कि कोई लड़की किसी टेबिल पर किसी का इंतजार कर रही हो। मगर ऐसा कोई नजर नहीं आया। कुछ देर में एक लड़की अकेली आई अजीब सी वेषभूषा में उसने वेटर को बियर का ऑर्डर दिया और सिगरेट के छल्ले उड़ाने लगी। उसे देखकर समीर के दिल कहा नहीं नहीं ये वो नहीं हो सकती। कुछ ही देर में उस लड़की का युवा पार्टनर भी आ पहंुचा। इतने में वेटर आ गया उसने एक कप कॉफी और कटलेट्स ऑर्डर कर दिए और इंतजार में बार बार घड़ी देखता रहा। बहुत देर बाद वेटर ने आकर दोबारा कहा कि कुछ और ऑर्डर देना है क्या सर। तब उसने कहा नहीं बिल ले आओ। उसे बहुत तेज गुस्सा आ रहा था कि कौन उसके साथ बेहूदा मज़ाक कर रहा है। वह निराष होकर घर पहुंचा। मां ने आते ही खाने के लिए पूछा वह बोला नहीं मां सोना है मुझे और भूख बिल्कुल भी नहीं है।
अगले दिन ऑफिस पहंुचते ही उसकी मेज पर वही गुलाबी लिफाफा रखा हुआ महक रहा था। उसने ख़त को खोला तो लिखा था। कल नहीं आ पाने के लिए माफी चाहती हूं। इतने में ही फोन की बेल बजी। समीर ने रिसीव किया तो वहां से पारूल की मीठी सी आवाज आई। सॉरी कल के लिए दरअसल में वहां पहंुची भी थी, मगर आपसे मिलने की हिम्मत नहीं हुई। इतने में ही किसी ने उसे आवाज लगाई तो घबराकर पारूल ने फोन रख दिया। उस दिन के बाद फोन आने का सिलसिला बंद हो गया मगर पारूल के खत उसे बिना व्यवधान के मिलते रहे। समीर ने अपने दिल को समझाया कि हो सकता है कि पारूल के आगे सामने न आने की कोई मजबूरी हो। लेकिन यह लड़की एक न एक दिन उससे मिलने आएगी जरूर इस बात का उसे विष्वास था। वह भी इस गुमनाम पत्रवाहक से मिलना चाहता था जिसके पत्रों में उसके लिए प्रेरणा होती थी।
मां महसूस कर रही थी कि समीर में आष्चर्यजनक परिवर्तन हो रहा था। वह अब पहले की तरह जिंदादिल बन चुका था। बात बात पर हसीं मज़ाक करता मुस्कुराता और चहकने लगा था। नहीं तो स्नेहा जबसे उसकी जिंदगी से गई थी, वह तन्हा रह गया था। दोनों ने एक साथ कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर आईएएस का एग्जाम भी साथ में क्वालीफाइंग किया। मसूरी में एक साथ प्रषिक्षण भी लिया। दोनों का इरादा इसके बाद शादी करने का था। स्नेहा शुरू से ही मेधावी और महत्वाकांक्षी थी। सबके लाड़ प्यार में जिद्दी भी बन गई थी। समीर उसे प्यार करने की वजह से उसकी हर जिद मान लिया करता था। किस्मत कुछ ऐसी कि पोस्टिंग भी एक प्रदेष में मिली। दोनों ने एक साथ आंध्रप्रदेष में ज्वाइन किया। समीर उनके विवाह की बात करने के लिए मां को स्नेहा के घर भेजना चाहता था। अचानक ही स्नेहा किसी बात पर समीर से नाराज हो गई और बात करना बंद कर दी। समीर को लगा कि स्नेहा कुछ समय बाद भूलकर फिर वैसी ही हो जाएगी। तभी एक दिन उनके सीनियर ऑफिसर राजेंद्र ने स्नेहा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे स्नेहा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। समीर को जब पता चला तो वह क्रोध से स्नेहा पर उबल पड़ा। इतने दिन तक मेरे साथ दोस्ती, मोहब्बत क्या सब नाटक था। तुम मेरे दिल से खेल रही थीं क्या और मां को क्या कहूं वह तो तुम्हें कब का बहू मान चुकी हैं। समीर के गुस्से का स्नेहा पर कोई असर नहीं हुआ। वह मुस्कुराते हुए बोली कि मैंने बहुत अच्छे से सोच लिया दोस्ती को प्यार मानना तुम्हारी नादानी है। मैं महत्वाकांक्षी हूं और तुम समझौतावादी मेरा तुम्हारा साथ नहीं निभ पाएगा। हां मेरी और राजेंद्र की शादी में जरूर आना। यह कहकर वह चली गई। स्नेहा और राजेंद्र के विवाह का कॉर्ड मिला मगर उसमें अपने सपने किसी ओर पर पूरा होते देखने का साहस नहीं था। लिहाज़ा उसने उपहार और बधाई संदेष भेज दिया था। वह अध्याय वहीं समाप्त हो गया। कुछ समय बाद समीर का ट्रांसफर हो गया तो वह मां को लेकर भोपाल चला आया और काम में व्यस्त हो गया। मां भी अब खुष थीं कि उनका बेटा सब भूलकर वर्तमान को जीने का प्रयास कर रहा है।
समीर को ऑफिस में पारूल का एक पत्र और मिला। जिसमें लिखा था कि अब वह आगे पत्र नहीं लिख सकेगी क्योंकि उसके घरवाले उसका विवाह कर रहे हैं। आगे लिखा था कि आप भी अपने घरवालों की इच्छा का मान रखकर विवाह कर लीजिए। दुनिया में सब लोग एक से नहीं होते। किसी पर भरोसा कर देखिएगा छलावा नहीं मिलेगा। जब जीवन साथी का चुनाव हम नहीं कर पाएं तो यह फैसला परिवार पर छोड़ देना चाहिए। वह हमसे अधिक अनुभवी होते हैं और हमारा भला चाहते हैं। इसके बाद एक फिल्मी गाने की लाइन लिखी थी-अपनी भी जिंदगी में खुषियों का पल आएगा, ढूंढोगे तो मिल जाएगा आपकी पारूल! अब समीर को बुरा लगा क्योंकि पारूल के पत्रों में वह खुद के साथ जुड़ाव महसूस करने लगा था। उसे लगा कि अगर कहीं से पारूल का पता या फोन नंबर मिल जाए तो वह स्वयं आगे जाकर उसे मिलकर याचना करें कि उसे अकेला नहीं छोड़े। इन पत्रों से उसे प्रेरणा मिलती थी। उसकी वीरान जिंदगी में रंग भरने लगे थे। उसे जीवन का आधार समझने लगा था। वह सोच सोच कर उदास महसूस कर रहा था कि काष एक बार तो उसे मिल पाता। उसे लगा कि कौन है यह पारूल जो उसकी जिंदगी के बारे में इतना कुछ जानती है। मगर सिर्फ मुझे ही नहीं पता कि है कहां और सामने आकर मिलती क्यों नहीं।
उधर मां पीछे पड़ी हुई थीं कि वह विवाह की हामी भर दे। वह कई सालों से उसके लिए लड़कियां पसंद कर रही थीं। मगर वह स्नेहा के बाद किसी को पसंद ही नहीं कर पा रहा था। इसलिए बहाना बनाकर टाल देता था। आज मां उसके खाना खाने के बाद उसके कमरे में आकर बैठ गई। हाथ में कई लिफाफे थे। बोली आज मैं तेरी एक नहीं सुनने वाली या तो इन कन्याओं में से किसी का चुनाव कर नही ंतो वे जिसे पसंद करेंगी उससे विवाह की हामी भरे। उसे अचानक ही पारूल की बात याद आई वह बोला ओके मां आप जिससे कहोगी उसी से विवाह कर लूंगा। मगर अनजानी लड़कियों की जगह कोई पहचान वालों में हो तो बेहतर रहेगा। मां तो जैसे खुषी से उछल पड़ी बोली सही कह रहा है ना कि नए लोगों के चुनाव से अच्छा है कोई परिचित तलाषना। फिर तो यह मैटरीमोनियल के सारे बायोडेटा छोड़ देती हूं। हां एक अच्छी लड़की है मेरे सामने तुम कहो तो उससे बात चलाती हूं। समीर हथियार डालते हुए बोला कहा ना मां आपकी पसंद ही फाइनल होगी। यूं भी मैं तो एडजस्ट कर लूंगा मगर जन्मपत्री तो सास-बहू की मिलना चाहिए। मां एकदम बोली फिर रूमी कैसी रहेगी तुम्हारे लिए। अब चौंकने की बारी समीर की थी। रूमी आपकी फेवरेट पड़ोसन अरे कोई ओर तलाष करो न इतनी बड़ी दुनिया है। जाति वगैरह में मेरा यकीन नहीं है। मगर मां तो जैसे पहले से ही तय कर बैठी थी। बोली देख रूमी मेरी देखी भाली है। देखने में बहुत प्यारी और स्वभाव की बहुत अच्छी है। समीर के चेहरे पर असमंजस के भाव देखकर मां बोली देखो बेटा तुम्हारे पिता के गुजरने के बाद मैंने सारा ध्यान तुम्हारी परवरिष पर लगा दिया। अब इतने समय बाद सुख की बेला ने घर के दरवाजे पर दस्तक दी है तो किंतु परंतु न करो। समीर ने मां से लिपटकर कर बोला अरे बाबा इमोषनल ब्लैकमेलिंग नहीं करो जो भी पसंद है उसे बहू बनाकर ले आओ। आपकी खुषी में ही मेरी खुषी षामिल है।
मां ने अगले ही दिन जाकर रूमी के भाई-भाभी के आगे मेरे और रूमी के विवाह का प्रस्ताव रख दिया। जिसे उन लोगों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। दोनों घरों में विवाह की तैयारियां की जाने लगी। तय हुआ कि आने वाली देव उठान ग्यारस के बाद विवाह की तारीख पंडित जी से निकलवा ली जाएगी। अब रूमी का मेरे घर आना बंद हो गया था। मां बहुत खुष थीं। दीवाली आ चुकी थी और विवाह में कुछ ही समय रह गया था। तय हुआ कि बस घर परिवार के करीबी लोग और कुछ ऑफिस के लोग ही रहेंगे। मेरे बचपन के एक दो दोस्त रहेंगे। इनविटेषन कॉर्ड भेजे जा चुके थे। बस अब अगले सप्ताह बारात जानी थी। दोस्तों और रिष्तेदारों सभी में उत्साह था। स्नेहा को भी इन्वाइट किया था। मेरे ही मन में एक कसक रह गई थी कि कहीं से पारूल का पता चल जाए तो में अनजान प्रेरणा देने वाली पत्र वाहक शुभचिंतक को जरूर बुलाना चाहता था। जिसके कहने पर में विवाह के लिए राजी हुआ था।
समीर अपने विचारों की श्रंखला में खोया हुआ था तभी एक कार घर के दरवाजे पर आकर रूकी। समीर ने खिड़की से नीचे देखा तो उसमें से स्नेहा बाहर निकल कर आई। मगर राजेंद्र उसके साथ नहीं था। वह अकेली आई थी। स्नेहा उसके सामने आकर खड़ी हो गई। समीर ने कहा तुम यहां एक सुखद आष्चर्य तुम्हारे पति कहां है। क्या अकेली आई हो। अब स्नेहा उलझकर बोली ओफ पहले सांस तो लेने दो। सब बताती हूं। मुंह बनाते हुए बोली अभी मेरी शादी ही कहां हुई जो पति को साथ लेकर आती। समीर चौंक कर बोला तो फिर वह शादी का कॉर्ड जो मिला था, वह सब क्या था। स्नेहा मुस्कुराते हुए बोली जी हां कॉर्ड भी छपे और बटे भी। मेहमान भी आए मगर विवाह फिर भी न हुआ। मैंने तुमसे संपर्क करने की बहुत कोषिष की थी। मगर तुम्हारा ट्रांसफर हो चुका था। न तुम्हारे घर का पता था मेरे पास कोई फोन नंबर फिर मैं कैसे बताती। वह तो कल मुझे जैसे ही तुम्हारा कॉर्ड मिला वैसे ही में दौड़कर आ गई कि कहीं देर न हो जाए। अब समीर परेषान हो बोला कि स्नेहा साफ साफ बताओ कि तुम्हारी षादी क्यों नहीं हुई। स्नेहा एक गहरी सांस लेकर बोली कि मेरे विवाह से चार दिन पहले मैं और राजेंद्र बाजार से लौट रहे थे कि अचानक ही हमारी कार के ब्रेक फेल हो गए और एक्सीडेंट हो गया। जिसमें राजेंद्र दोनों पैरों से अपाहिज हो गए और एक अपाहिज के साथ में इस रंगीन दुनिया को नहीं देखना चाहती थी। इसलिए मैंने उससे विवाह न करने का फैसला किया। समीर में तुम्हारे पास आ गई हूं। अब तुम्हारे साथ जिदंगी गुजारना चाहती हूं। यह विवाह यही रोक दो ओर अपने प्यार के रिष्ते को एक नाम और पहचान दो। मैं सबको मना लूंगी बस अब फैसला तुम्हें मेरे हक में करना है।
मैं अचानक सकते में आ गया कि यह क्या हो रहा है। जब मैंने स्नेहा को चाहा वह मुझे ठुकरा कर चली गई। जब मेरी अनजान शुभचिंतक पारूल के आग्रह से मां की मर्जी से रूमी से शादी को तैयार हुआ तब स्नेहा वापिस आ गई। घर में सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थी मेहमानों का आना प्रारंभ हो गया। ऐसे में स्नेहा का आग्रह ओ मेरे भगवान अब मैं क्या करू। सच कहूं तो दिल यही कह रहा था कि रूमी तो एजूकेटेड है, संुदर और शालीन है उसका विवाह तो किसी भी अच्छे लड़के से हो जाएगा। स्नेहा मेरा पहला प्यार है उसका हाथ थाम लूं। उसे मझधार में छोड़ने का मन नहीं था। मैं कुछ कहता उसके पहले ही मां का कठोर स्वर सुनाई दिया कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। मैंने चौंककर देखा कि मां और रूमी के भैया दरवाजे पर खडे़ होकर हमारी सारी बातें सुन चुके थे। उन दोनों के चेहरे क्रोध से तमतमा रहे थे। मैं अब भी असमजंस में था कि स्नेहा ने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया। मां में देखता हूं कि अब मुझे क्या करना होगा। अपने सहायक राम को आवाज देकर कहा कि एक कमरा स्नेहा मैडम के लिए खोल दो। स्नेहा से कहा कि तुम अभी आराम करो बाकी बातें कल होंगी।
रात के बारह बज रहे थे। सब अपने कमरों में बंद थे। सारे घर की बत्तियां बुझी हुई थी। पर मुझे मालूम था कि किसी को भी नींद नहीं आ रही होगी। सब चिंता के समंदर में डूबे होंगे और ऐसे में भला कैसे कोई सो सकता है। इस समय मुझे पारूल की याद आई कि उसे अगर मालूम होता तो में उससे ही सलाह लेता कि मुझे क्या करना चाहिए। इतने में ही भीने-भीने इत्र की खुषबू से मेरा कमरा महक गया। कि यह खुषबू यहां कैसे आ रही है यह तो पारूल के खतों में होती थी। तभी देख कि एक छाया मेरे कमरे में चादर ओढकर दाखिल हुई। मेरे कमरे में अंधेरा होने के कारण वह मुझे नहीं देख सकी। उस छाया ने कमरे की टेबिल पर कुछ रखा और पलटी ही थी कि मैंने एकदम लाइट खोल दी। उसे देखकर हैरान रह गया वो तो रूमी निकली। मैं उस पर बहुत नाराज हुआ कि वो यहां क्या करने आई है। देख तो उसने टेबिल पर वही गुलाबी लिफाफा रखा हुआ था। मैंने उस खत को उसके सामने ही खोल दिया उसमें लिखा था कि -समीर तुम मत परेषान हो और स्नेहा से विवाह कर लो। अब मैंने नाराज होते हुए कहा कि अच्छा तो यह तुम थीं जो मुझे परेषान करती रहीं और छिप-छिपकर खत लिखती रहीं। रूमी कुछ बोली नहीं और उसके निष्छल चेहरे से आंसुओं की कतार बहती रही। यह देखकर मैं अंदर तक हिल गया। तभी रूमी भागती हुई कमरे से बाहर चली गई।
मैं अब भी सोच रहा था कि इसे मेरे अतीत के बारे मैं कैसे जानकारी मिली। तभी ख्याल आया ओह तो मां ने ही इसे सब बताया होगा। मां के कहने पर रूमी ने खत लिखे और मेरे ड्राइवर को मां वह खत देती होंगी कि उसे मेरी ऑफिस टेबिल पर मेरी गैरमौजूदगी में रख दिया जाए। मुझे बेवकूफ बनाने का अच्छा प्लान था। सबकी मिलीभगत निकली। अब तक मैं दिमागी तौर पर इतना उलझ चुका था कि सोफे पर गिरते ही नींद लग गई। जब मेरी नींद खुली तो देखा सुबह की उजली धूप चारों तरफ फैल चुकी है। मैं बहुत प्रफुल्लित उठा क्योंकि मेरे दिल ने फैसला कर लिया था कि मुझे क्या करना है। मैं खुष होकर स्नेहा के पास गया और बोला जल्दी से तैयार हो जाओ। हमें अभी निकलना है। स्नेहा मुझे देखकर आत्मविष्वास के साथ मुस्कुराई मानों उसे पूरा यकीन था कि उसका मुरीद कहीं नहीं जाने वाला। नाष्ता करने के बाद मैं एक हाथ में बैग और दूसरे हाथ में स्नेहा का थामकर मां के कमरे में पहंुचा। मां ने हम दोनों को एकसाथ देखकर मुंह फेर लिया। मैंने और स्नेहा ने मां के चरणर्स्पष किए। मां कुछ भी नहीं बोली तो मैंने मां से कहा कि मां आर्षावाद दो कि मैं अपनी परीक्षा में खरा उतर सकंू। जब में और स्नेहा मां के कमरे से बाहर निकल रहे थे उसी समय रूमी के भैया-भाभी मां से मिलने उन्हीें के कमरे में आ रहे थे। हमें देखकर उनका चेहरा उतर गया मगर में उनसे बिना बात करें बाहर निकल आया।
शाम को जब में घर लौटकर आया तो वहां सन्नाटा खिंचा हुआ था। हॉल में मां के पास रूमी के भैया भाभी दोनों बैठे हुए थे। सब चुपचाप थे कि मैंने मां को आवाज दी और कहा कि क्या मां परसों बारात है और कहीं नाच गाने का शोर नहीं है। फिर रूमी के भैया से बोला कि और आप भी आराम से बैठे हो। रूमी के भाई ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और रूंधे गले से बोले कि क्या समीर मजाक कर रहे हो हमारे साथ। तुम अचानक स्नेहा को लेकर हमारे सामने घर से चले गए अब हम सब क्या समझे और क्या माने। यह देखकर मेरा भी दिल भर आया मैंने उनके चरण छूते हुए कहा कि भाई साहब में मजाक नहीं कर रहा परसों सचमुच बारात लेकर आपके घर आ रहा हूं अपनी रूमी को लेने। भावविहल होकर मां ओर भाभी की भी आंखें भर आई। पूरे घर में उल्लास छा गया। मैंने मां से कहा कि होटल अषोका बुक है रिसेप्षन के लिए आप अपनी तैयारी करिए।
धूमधाम से बारात निकली। स्टेज पर वरमाला के लिए जब तैयार होकर रूमी अपनी सहेलियों और बहनों के साथ आई तो में भावविभोर होकर उसे एकटक निहारता रहा। वह आसमान से उतरी किसी अप्सरा के समान नजर आ रही थी। स्टेज पर में ओर रूमी दोनों खडे़ होकर आने वाले अतिथियों का अभिवादन कर रहे थे। उस दिन मुझे अपने एक खास मेहमान का इंतजार था। इतने में सबने देखा कि स्नेहा व्हील चेयर पर राजेंद्र को बिठाकर स्टेज तक ला रही थी। स्नेहा ने रूमी को प्यार से गले लगा लिया और उपहार देते हुए कहा कि आज के दिन तुम्हारें लिए समीर से बढकर कोई ओर तोहफा नहीं हो सकता। फिर मुझसे मुखातिब होकर बोली कि अगले सप्ताह मेरा और राजेंद्र का विवाह है जिसमें तुम दोनों को मां को साथ लेकर जरूर आना है।
दरअसल उस दिन जब में स्नेहा को साथ लेकर एयरपोर्ट जाने के लिए निकला तब बहुत धैर्य और स्नेह के साथ मैंने उसे समझाया कि जब मनचाहा जीवनसाथी राजेंद्र तुम्हें मिल रहा था। तब इतनी बेरूखी किसलिए। मान लो अगर यह हादसा तुम्हारे साथ हो जाता और राजेंद्र यही तुम्हारे साथ करता। तुम्हें तन्हा छोड़कर चला जाता फिर क्या होता। तुम उसे बेवफा करार देती। एक्सीडेंट तो विवाह के बाद भी हो सकता था तब क्या डाइर्वोस लेती। रही बात मुझे पाने की तो मुझे छोड़ने का फैसला भी तुम्हारा ही था। वर्ना मां की मर्जी भी हमारे साथ थी। अब हम सिर्फ दोस्त तो रह सकते हैं मगर मां का दिल मैं नहीं तोड़ सकता हूं। उन्होंने मेरी खातिर दूसरा विवाह नहीं किया अकेले मुझे पाला पोसा अब मेरी बारी उन्हें तमाम खुषियां देने की है। स्नेहा को शायद अपनी गलती का एहसास हो गया था वह फूट-फूटकर रो दी और मुझसे बोली थैंक्स मुझे आइना दिखाने के लिए। नही ंतो में इतना स्वार्थी बन गई थी कि सिर्फ अपने बारे और अपने फायदे की बात कर रही थी। तुम मुझे माफ कर दो। अब में राजेंद्र के पास माफी मांगने जा रही हूं। तुम ईष्वर से मेरे लिए प्रार्थना करना कि राजेंद्र भी मुझे माफ कर सके। उधर मैं बहुत खुष हुआ कि वह मेरे कहने पर राजेंद्र के साथ विवाह करने को राजी हो गई और मैंने रूमी को अपने जीवनसाथी के तौर पर पा लिया था।
कीर्ति चतुर्वेदी