Noukrani ki Beti - 49 books and stories free download online pdf in Hindi

नौकरानी की बेटी - 49

आनंदी का लंदन में चार साल के ऊपर हो गया।
अन्वेशा एम डी के साथ ही प्रेक्टिस भी करने लगी थी।


आनंदी को अब वापस जाना था उसका एयर टिकट भी बन चुका था।

कृष्णा ने कहा आनंदी तू समझा दे अन्वेशा और चेतन को की शादी के लिए इंडिया वापस आना होगा।

आनंदी ने कहा हां मां आप चिंता मत करो वो दोनों बड़े समझदार है।


आनंदी ने भी सब पैकिंग पुरी कर लिया था।
चेतन को समर्पण एनजीओ की सारी जिम्मेदारी दे दिया था।
चेतन ने भी कहा हां मैम मैं पूरी तरह से समर्पण के लिए काम करूंगा आप चिंता मत करिए।
आनंदी ने कहा हां बेटा मुझे पता है एक अधूरा काम पुरा करना है बस,

अन्वेशा ने कहा मां बिल्कुल चिंता मत करो हम जरूर वापस आयेंगे और शादी भी वही करेंगे।मेरा एम डी की पढ़ाई पुरी होते हैं हम वापस आयेंगे।आप वहां के पंडित जी से एक शुभ मुहूर्त निकाल लेना।

आनंदी ने कहा हां बेटा।

फिर रात की फ्लाइट थी वापस मुम्बई में जोय्न करना था आनंदी को।
अन्वेशा और चेतन सभी आनंदी और कृष्णा को छोड़ने एयरपोर्ट पहुंच गए।

आनंदी बहुत रो रही थी। अन्वेशा भी अपनी नानी को गले से लगा कर रोने लगी।

फिर आनंदी और कृष्णा आगे बढ़ गई।।


अन्वेशा और चेतन एयरपोर्ट से बाहर आ गए और फिर गाड़ी में बैठ कर निकल गए।

चेतन ने कहा जानती हो मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि टूलिप के बच्चो के आलावा भी मेरा कोई परिवार होगा पर आज ऐसा लग रहा है कि जरूर मैंने कोई अच्छा काम किया था जो तुम्हारा परिवार मिला।
नानी मां और मैम बहुत ही अच्छे लोग हैं ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं।

अन्वेशा ने कहा हां मैं भी यही सोचती हूं कि आज अगर मां ने मुझे नहीं अपनाया होता तो मैं क्या आज डाक्टर बन पाती।
आनंदी की बेटी डॉ अन्वेशा के नाम से लोग जानते हैं मुझे।।
बातें करते हुए दोनों निकल गए।


और फिर आनंदी और कृष्णा हवाई जहाज पर बैठ कर हमेशा की तरह रीतू दी को फोन पर बताया कि हम बैठ गए।

बस इसी तरह एक लम्बे समय बाद आनंदी मुम्बई के विले पार्ले एयरपोर्ट पर उतर गए अपनी मां को लेकर।
वहीं पर आनंदी की पीए जुही आकर स्वागत करने लगी और वो भी फुलों के साथ।

फिर गाड़ी में बैठ कर निकल गई।

एक बार फिर आनंदी आईं एस अफसर की ऊंचे पद पर कार्यरत हो गई।

इसी तरह मुम्बई में आये दो महीने बीत चुके थे।

आनंदी का फिर से वही व्यस्तता वाली जीवन शुरू हो गई उसका मानना था कि जीवन जब मिला है तो उसे किसी के काम आओ। दूसरों की सहायता करो। अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीना सीखों।
कृष्णा भी अपनी सिलाई कढ़ाई में लगी रहती थी।

इसी तरह से समय निकलने लगा।

मुम्बई में आये छः महीने बीत गए थे।


अन्वेशा का हर रोज विडियो कालिंग आता था।
आनंदी को बस अब चेतन और अन्वेशा का आसरा था।

आनंदी और कृष्णा धीरे धीरे अन्वेशा की शादी की खरीदारी शुरू कर दिया था।


लंदन में भी अन्वेशा को एम डी की पढ़ाई पूरी करने में अब डेढ़ साल बचें थे।

चेतन भी अपनी पुरी कोशिश से समर्पण एनजीओ को एक नई उम्मीद नई मंजिल पर पहुंचा दिया था।

समर्पण एनजीओ आज एक ऐसी जगह पहुंच गया था कि सभी के मुंह में उस एनजीओ का नाम था।

आनंदी भी आज उम्र की एक पड़ाव पर भी अपने को पुरी तरह से दूसरों की मदद के लिए
हमेशा तैयार रहती थी।


बस इसी तरह एक साल बीत गए।आई एस अफसर आनंदी को हमेशा की तरह इस साल भी पदम् श्री का खिताब भी मिलने वाला था।

आनंदी को निमंत्रण पत्र आया। और फिर आज ही कृष्णा को लेकर आनंदी पहुंच गए।


आनंदी को पहले फुलों का हार पहनाया गया और फिर आनंदी को पद्मश्री पुरस्कार मिला।
तालियों की गूंज पुरे देश में फ़ैल गया।

क्रमशः