Bhakti Madhurya - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

भक्ति माधुर्य - 3

3

राम सुग्रीव
रामायण का यह प्रसंग अत्यंत मधुर भक्तिभाव से पूर्ण अमृत है |

( रामायण महाअमृत)

महाकाव्य रामायण का एक अन्य बड़ा सुंदर प्रसंग " राम सुग्रीव प्रथम मिलन " जो भक्तिभाव व वैराग्य से पूर्ण अत्यंत रोमांचक आख्यान है । यह का महामधुर अमर काव्य रचना है |

जब सुग्रीव राम कहु देखा ........

सखा बचन मम मृषा न हाई ।"

हनुमान, राम लक्ष्मण की निर्वासित वानर राजा सुग्रीव से भेंट कराते हैं। वे दोनों पक्षों में गहरी मित्रता करवा देते हैं | तब लक्ष्मण ने सुग्रीव को श्रीराम की व हनुमान ने राम को सुग्रीव की समस्या बतलाई । दोनो पक्ष एक दूसरे को पूरा सहयोग करने की अग्नि के समक्ष शपथ लेते हैं |

सुग्रीव कहता है, 'हे प्रभु आप निश्चित रहें, सीता आपको अवश्य मिलेगी। एक बार मै अपने मंत्रियों के साथ बैठा हुआ चर्चा में व्यस्त था । तभी मैने आकाश मार्ग से एक राक्षस को एक स्त्री का अपहरण करके ले जाते देखा। वह बेबस स्त्री ‘हा राम ! हा राम!' कहते हुऐ विलाप कर रही थी। हमे देखकर उसने अपने गहने हमारी ओर फैके। भगवान के मांगने पर उसने तुरंत उन्हें वे गहने उन्हें दिए। श्रीराम ने सीता के गहने पहचानकर उन्हें हृदय से लगाकर बहुत देर तक करुण विलाप किया। सुग्रीव ने श्रीराम को ढाढस बंधाते हए कहा, 'हे प्रभु। आप धैर्य रखिए। मैं सीता माता की खोज करने में आपकी पूरी सहायता करूंगा | मै हर तरह से आपकी सेवा करूंगा।'

इस पर राम बहुत प्रसन्न होते हैं व कहते हैं,

'ऐ सुग्रीव ! ऐसा कौन सा कारण कि तुम राजा होने के बाद भी भयभीत होकर इस निर्जन पर्वत पर निर्वासन का कठोर जीवन व्यतीत कर रहे हो, मुझे अपनी समस्या बताओ?'

सुग्रीव ने अपनी सारी कहानी प्रभु को सुनाई कि किस तरह प्रारंभ में उसका अपने बड़े भाई बाली से परस्पर अपार प्रेम था | तब एक दिन उनके नगर में एक दैत्य मयकासुर का आधि रात्रि को आगमन हुआ | उसने बाली को युद्ध के लिए ललकारा | बालि उससे लड़ने के लिए दौड़ा व उसके पीछे मै भी भागा | वह दैत्य भागकर एक अंधेरी गुफा में जा घुसा | तब बालि ने मुझे समझाते हुए कहा कि मेरे भाई ! पन्द्रह दिनों तक तुम बाहर रहकर मेरा इंतजार करना, इस अवधि में यदि मै नहीं लौटा तो तुम अपने नगर लौट जाना व राजा का पद ग्रहण कर लेना | हे प्रभो ! मैंने वहां एक माह तक बाली का इन्तजार किया | तब एक दिन गुफा से एक रक्त की नदी बह निकली | मैंने सोचा उस दैत्य ने बालि को मार डाला और अब वह मुझे भी मार डालेगा | तब मैंने अपनी जान बचाने के लिए उस गुफा के मुंह पर एक भारी शिला अडाकर मै नगर लौट आया |

तब राज पुरोहितों ने राज्य को राजा विहीन जानकर जबरन मुझे राजा बना दिया |

उधर सुग्रीव उस दैत्य को मारकर नगर लौटा | उसने मुझे सिंहासन पर बैठा देखकर मुझे बहुत बेरहमी से शत्रु के समान मारा | उसने मेरी पत्नि व संपत्ति सहित सब कुछ छीन लिया | उसने मेरी कोई बात नहीं सुनी | मै बालि के डर से अपने प्राणों को बचाने के लिए सारे संसार मे छिपते हुऐ भागता रहता हूँ | इस पर्वत पर वह श्राप के कारण नहीं आ पाता है, फिर भी में दिनरात उसके आतंक में जीने को मजबूर हूं।'

अपने मित्र की करुण कथा सुनकर श्रीराम की विशाल बलशाली भुजाएं फड़कने लगी।

वे बोले,” हे सुग्रीव ! आप बिलकुल चिंता मत करो। मैं एक ही बाण से बालि का वध कर दूंगा, उसे अब विष्णु व महेश भी बचा नहीं सकते “|

इस पर सुग्रीव ने कहा, हे राम ! बालि बहुत बलशाली है, आज तक कोई उसे हरा नहीं पाया है |

सुग्रीव ने उन्हें दुन्दुभी राक्षस द्वारा खाए गए ऋषि मुनियों की हड्डियों के पहाड़नुमा अवशेष बताए जिन्हें कोई रास्ते से नहीं हटा पाया था | राम ने उस पहाड़ को छूते ही हटा दिया |

तब तो सुग्रीव को भरोसा हो गया कि राम कोई साधारण महाबल शाली योद्धा ही नहीं है किन्तु वे भगवान के अवतार हैं | वह राम के सामने बार बार भक्तिभाव से अपना सिर झुकाने लगा | उसे विश्वास हो गया कि राम बालि का वध अवश्य ही कर देंगे |

भगवान के दर्शन करके सुग्रीव का मन भक्ति व वैराग्य भाव से भर गया |

वह कहने लगा

“हे प्रभु ! अब मैं नाम, सम्पत्ति परिवार सब कुछ त्यागकर आपके चरणों की सेवा करुगा। संसार मे कोई किसी का न शत्रु है, न मित्र है, न कहीं सुख है और न दुख है। ये सब तत्व माया के कारण मनुष्य को भ्रमित करते हैं । देखो जिस बालि को मैं अपना शत्रु समझता था, वह तो मेरा परम मित्र सिद्ध हुआ क्योकि उसी के कारण' मुझे आपका साथ मिला, आपके दर्शन हुए। हे प्रभु। अब तो ऐसी कृपा करो कि मैं सब कुछ छोडकर दिनरात आपकी सेवा करू।“

आगे कहानी कुछ अलग मोड़ लेती है, जब श्रीराम बालि का संहार करके सुग्रीव को राजा बना देते हैं तो वही सुग्रीव जो ज्ञान,वैराग्य और भक्ति की बातें करता था व सबकुछ त्यागकर दिनरात भगवान की सेवा करने का वचन देता था ; वही सुग्रीव राजा बनने के बाद भगवान के कार्य को भूलकर सुरा सुंदरी की रंगरेलियों मे खो जाता है।

बाद में हनुमान के द्वारा याद दिलाए जाने व लक्ष्मणजी के धमकाए जाने पर वह भयभीत होता है व सीता माता की खोज में जुट जाता है |

वह प्रभु के समक्ष अपने द्वारा हुई भूल को बड़े मनोरंजक ढंग से रखता है व प्रभु से कहता है, है प्रभु ! मैं तो एक साधारण वानर हूँ | जब बड़े बड़े ऋषि मुनि कामिनी कंचन की माया से कामांध होकर पतित होते हुए देखे गए है, तो मै तो एक साधारण वानर ठहरा। मुझसे माया के प्रभाव से मुक्त होने की आशा कैसे रखी जा सकती है?

नाथ विषय सम मद कछु नाहीं ..........

तुमरी कृपा पाव कोई कोई।"

इस प्रकार अपनी गलती के लिए वह भगवान की माया को ही जिम्मेदार बतलाता है।

वैराग्य, ज्ञान की बाते करना किन्तु वास्तविक धरातल पर साधारण मनुष्य की विषयो के आगे विवशता का इस प्रसंग में बड़ा सुंदर चित्रण किया गया है |