Bhakti Madhurya - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

भक्ति माधुर्य - 4

4

हनुमान विभीषण
रामायण ( महा अमृत ) के सुंदरकांड में एक प्रसंग हनुमान विभीषण प्रथम मिलन भक्तिभाव

से ओतप्रोत एक बड़ा सुन्दर प्रसंग है |

हनुमान सीता की खोज में लंका में इधर उधर भटक रहे हैं तभी उन्हें एक बड़ा ही सुन्दर घर दिखाई देता है | उस निवास के द्वार पर राम नाम लिखा हुआ है व बाहर एक तुलसी का पौधा लगा हुआ है ।

“रामायुध अकित ग्रह....

पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा। "

हनुमान विस्मय करते हुए मन ही मन विचार करते हैं कि निशाचरों की नगरी इस लंका नगरी में किसी सज्जन भक्त का निवास कैसे ? उसी समय विभीषण नींद से जागकर राम नाम का उच्चारण करते हैं। हनुमानजी ब्राम्हण का वेष धारण करके उनके समीप जाते हैं।

विभीषण आदरपूर्वक उन्हे नमस्कार करके उनका कुशल क्षेम पूछते हुए कहता है, “हे महापुरुष! मै आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ? आपको देखकर ही मेरे हृदय में भक्तिरस का संचार हो रहा है | मेरे मन व शरीर में रोमांच हो रहा है । आप अवश्य ही कोई महान भक्तराज प्रतीत होते हो।'

इस पर हनुमान श्रीराम के विषय में समस्त वृत्तान्त बताते हुए सीता माता की खोज का अपना प्रयोजन बतलाते है |

तब विभीषण हनुमानजी के दर्शन करके बहुत खुश होता है | वह अपनी वेदना प्रकट करते हुए कहता है, “हे हनुमान ! देखो मेरा जीवन तो ऐसा है जैसे दांतों के बीच रहती हुई जिव्हा का जीवन। क्या मुझ समान तामसी जीव पर भी श्रीराम कृपा करेंगे ? मैंने राक्षस कुल में जन्म लिया है। मैं भगवान की पूजा आदि करना नहीं जानता हूं। मुझे बड़ा संशय है कि प्रभु मुझ जैसे राक्षस पर कृपा करेगे।

किन्तु अब मझे आशा की नई किरण दिखाई देती है, क्योंकि आप के समान महान हरि भक्त ने आज मुझे दर्शन दिए हैं। अतः हे हनुमान ! अब मुझे प्रभु की कृपा की संभावना दिखाई देने लगी है।'

तब हनुमान कहते हैं 'हे विभीषण ! प्रभु बड़े दयालु हैं। वे सदैव अपने भक्तों पर कृपा बरसाते रहते हैं | प्रभु अपने भक्तों से सदैव प्रेम करते हैं। अब मुझे ही देखो, मैं किसी उच्च कुल से सम्बंधित न होकर एक साधारण वानर हूँ | मैं हर दृष्टि से प्रभु के दर्शन के लिए अयोग्य हूं। किसी सुबह कोई व्यक्ति यदि मेरा स्मरण करले तो उस दिन उसे खाना भी नसीब ना हो | इस प्रकार प्रभु के गुणगान करते हुए उनके मन को परम विश्राम मिला |

जिस मन के विश्राम की यहां चर्चा की जा रही है, वह योग साधना में साधक की उच्च स्थति का द्योतक है। यही शिव चेतना का महा आनंद है | इस प्रसंग से समझाया गया है कि कोई भी भक्त मन की अनुपम शांति को भक्ति के द्वारा बिना परिश्रम के प्रभु के स्मरण के द्वारा प्राप्त कर सकता है। भगवान के गुणगान करते हुए वे दोनों परम आनंद मैं निमग्न हो जाते हैं।