Suna Aangan - Part 6 books and stories free download online pdf in Hindi

सूना आँगन- भाग 6

अभी तक आपने पढ़ा ऊषा वैजयंती के कमरे में जब आईं तब उसे श्वेत वस्त्रों में देखकर उन्हें ऐसा आघात लगा कि वह चक्कर खाकर वहीं गिर पड़ीं। होश में आते ही उन्होंने नैना से कहा नैना, वैजयंती से कहो यह कपड़े बदल ले। अब पढ़िए आगे -

नैना वैजयंती के पास गई और उससे लिपट कर रोते हुए कहने लगी, "भाभी आप इतनी कमज़ोर हो जाओगी तो हम सब भी पूरी तरह टूट जाएँगे। प्लीज़ भाभी अपने आप को संभालो और इस तरह के कपड़े मत पहनो जो हर पल आपको और हम सब को यह एहसास दिलाते रहें कि… "

वैजयंती ने नैना को अपने सीने से लगा लिया। उसके बाद उन दोनों के रुदन की ऐसी दर्दनाक ध्वनि गूँजी कि हर सुनने वाले का दिल काँप गया और कोई भी आँख अपने आँसू रोक ना पाई।

धीरे-धीरे वक़्त आगे बढ़ने लगा और तेरह दिन के सारे विधि-विधान रीति रिवाज पूरे हो गए। रिश्ते नातेदारों ने भी धीरे-धीरे सभी को सांत्वना देते हुए विदा ली। एक हफ़्ते बाद नैना और नवीन भी अपने ऑफिस जाने लगे।

अभिमन्यु के नहीं रहने के बाद सौरभ अक्सर अशोक और ऊषा से मिलने आ जाया करता था। उन दोनों को सौरभ के आने से ख़ुशी मिलती थी।

शुरू में नैना अपनी भाभी के साथ सोती थी किंतु कुछ दिनों बाद ऑफिस में अधिक काम होने के कारण वह रात को भी अपने कमरे में काफी रात तक काम करती और थक हार कर वहीं सो जाती। नवीन भी ऑफिस से आकर खाना खाकर कुछ देर अपनी भाभी वैजयंती के पास ज़रूर बैठता फिर वह भी अपने कमरे में चला जाता। ऊषा और अशोक दिन-रात साथ-साथ होते। साथ में मंदिर जाते, साथ उठते साथ बैठते, एक दूसरे का बेहद ख़्याल रखते। अकेली पड़ गई तो वह थी वैजयंती। सब अपनी-अपनी दिनचर्या में व्यस्त रहने लगे। अभि की कमी को सब ने स्वीकार भी कर लिया किंतु वैजयंती स्वीकार ना कर पाई।

इसी तरह एक वर्ष बीत गया। नैना का विवाह उसकी पसंद के लड़के कुणाल के साथ संपन्न हो गया। विवाह के समय नैना को पूरी उम्मीद थी कि भाभी उसे वह कीमती मंगलसूत्र उपहार स्वरुप दे देंगी क्योंकि वह अब उनके लिए तो किसी काम का नहीं रहा। लेकिन वह जैसा चाह रही थी वैसा हुआ नहीं और वह घर की दहलीज़ छोड़कर ससुराल चली गई।

नैना अपनी भाभी वैजयंती को काफी समय देती थी। कई बार आकर गले लग जाती थी, प्यार करती थी पर अब वह साथ भी छूट गया। छोटी उम्र में विधवा हो चुकी वैजयंती को अब अपने आप को लोगों की बुरी नज़रों से भी बचाना था। 

नवीन ने एक दिन वैजयंती से कहा, "भाभी मेरे ऑफिस में एक लड़की है वैशाली …"

वह कुछ आगे बोले उससे पहले वैजयंती ने कहा, "कल ले आना उसे मिलवाने के लिए। तुम्हें पसंद है और उसके माता-पिता तैयार हैं तो तारीख़ निकलवा लेंगे। "

"अरे भाभी आपको कैसे पता चला था कि मैं यह …"

"क्यों नहीं पता चलेगा नवीन, तुमने बात की शुरुआत ही ऐसे की थी।" 

"भाभी, मम्मी पापा मान जाएँगे ना?"

"तुम उसकी चिंता मत करो नवीन, मैं हूँ ना।"

वैजयंती ने अशोक और ऊषा को नवीन के प्यार के विषय में बताते हुए कहा, "माँ कल नवीन उस लड़की को हम सब से मिलवाने के लिए लेकर आने वाला है। पापा जी, माँ आप दोनों को कोई ऐतराज़ तो नहीं है ना?" 

"नहीं-नहीं बेटा यदि वह दोनों एक दूसरे को प्यार करते हैं तो हमें क्या ऐतराज़ हो सकता है?"

नवीन दूसरे ही दिन वैशाली को अपने घर लेकर आ गया। घर में सभी को वह पसंद भी आ गई। उसके बाद वैशाली के परिवार वालों से मिलकर उनका रिश्ता भी तय कर दिया गया और धूमधाम से उनकी भी शादी हो गई।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः