Suna Aangan - Part 11 books and stories free download online pdf in Hindi

सूना आँगन- भाग 11

अभी तक आपने पढ़ा एक दिन ऊषा जब वैजयंती के साथ मंदिर जा रही थी तब उसने देखा कि कुछ गुंडे वैजयंती को तंग कर रहे हैं। ऊषा चिंतातुर हो गई वह सोचने लगी कि एक जवान विधवा का जीवन कितना मुश्किलों से भरा होता है। कोई उसके गहनों पर नज़र रखता है तो कोई उस पर। वह इसी कश्मकश में थी कि क्या अभि का लाया मंगलसूत्र उन्हें फिर से वैजयंती को पहना देना चाहिए। अब पढ़िए आगे -

वैजयंती अभिमन्यु की तस्वीर निकाल कर देख रही थी। उसकी आँखों से आँसू टपक-टपक कर अभि की तस्वीर पर इस तरह गिर रहे थे मानो वह भी रो रहा हो। आज वैजयंती ने वह मंगलसूत्र निकाला और अपने सीने से लगा लिया। वह तस्वीर से कह रही थी जब जाना ही था तो क्यों लिया था यह मंगलसूत्र।

दूसरे दिन सुबह ऊषा ने अशोक से यह सारी बातें की और पूछा, "आपकी क्या राय है?"

अशोक ने कहा, "तुम एक अच्छी माँ की भूमिका निभा रही हो ऊषा, आगे बढ़ो।" 

ऊषा ने दोपहर में वैजयंती को अपने पास बुलाया और कहा, “वैजयंती बेटा अब हम दोनों थक गए हैं। हमारी ज़िंदगी का अब कोई ठिकाना नहीं। आज हैं कल नहीं … " 

"यह क्या कह रही हो माँ आप?" 

"सच ही तो कह रही हूँ बेटा। हम दोनों को सिर्फ़ तुम्हारी चिंता लगी रहती है। हमारे बाद तुम्हारा क्या होगा? तुम्हारा ध्यान कौन रखेगा बेटा? मैं आज तुमसे कुछ माँगना चाहती हूँ।"

"हाँ बोलो ना माँ, मेरा सब कुछ आपका ही तो है।"

"वैजयंती पहले वचन दो।" 

वैजयंती सोच में पड़ गई। माँ ऐसा तो क्या माँगने वाली हैं जिसके लिए उन्हें मुझसे वचन माँगना पड़ रहा है। उसने कहा, "माँ वचन की क्या ज़रूरत है आप सिर्फ़ कह दो।"

उसे शक़ तो हो ही गया था कि माँ क्या कहने वाली हैं इसलिए उसने वचन तो नहीं दिया।

"वैजयंती मैं और तुम्हारे पापा तुम्हारा विवाह कर देना चाहते हैं।"

"माँ आप यह क्या कह रही हो? क्यों कह रही हो? क्या मुझे यहाँ रखने में आपको कोई परेशानी है?"

"वैजयंती बेटा प्लीज़ मेरी बात को समझने की कोशिश करो। भगवान ने अभि के अंतिम समय में उससे मंगलसूत्र ही क्यों खरीदवाया। अभि कुछ और भी तो ले सकता था। वह भी तुम्हें इतने समय से सफेद साड़ी में देख कर रोता होगा, दुःखी होता होगा।"

इतने में अशोक भी वहाँ आ गए और उन्होंने कहा, "वैजयंती बेटा तुम्हारी माँ बिल्कुल ठीक कह रही है। मंगलसूत्र तुम्हारे गले में पहनाने के लिए अभि ने लिया था। काश वह पहनाता लेकिन भगवान को यह मंज़ूर नहीं था लेकिन आज समय और हालात हमें यह कह रहे हैं बेटा कि समय के साथ समझौता कर लेना चाहिए।"

"पापा आप भी … " 

"वैजयंती बेटा कब तक यूँ घुट-घुट कर जियोगी? तुम्हें भी हक़ है एक नई शुरुआत करने का। तुम्हें भी हक़ है ख़ुश रहने का, ख़ुश होने का। अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है बेटा।"

वैजयंती की आँखों से आँसू गिर रहे थे। आज उसके बहते हुए आँसुओं को अशोक ने अपने हाथों से पोंछा। वैजयंती पापा कहकर उनके गले से लग गई।

अशोक ने कहा, "वैजयंती हमारी बात मान लो बेटा।" 

"पापा माँ मैं आप लोगों को छोड़कर नहीं रह सकती। आपके बिना नहीं जी सकती।"

"हमारे बिना कहाँ जीना है बेटा। यह घर तो हमेशा तुम्हारा ही रहेगा और वैसे भी सौरभ कहाँ दूर रहता है। यहीं चार कदम की दूरी पर ही तो है। वह अच्छा इंसान है बेटा"

"पापा मैं अभि को नहीं भूल सकती।" 

"तो मत भूल ना बेटा वह तुम्हारा भूतकाल है। वह तुम्हारे दिलो-दिमाग में हमेशा रहेगा लेकिन तुम्हारा भविष्य जो अँधेरी राह पर जा रहा है, उसमें उजाला अब वह नहीं भर सकता बेटा।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः