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अय्याश--भाग(२३)

फिर अमरेन्द्र ने सबसे कहा कि....
वें सब कल ही मोक्षदा को देखने आ रहे हैं,इसलिए सारी तैयारियांँ आज से शुरू करनी होगीं,मैं महाराज को बुलवाकर कुछ मीठा और नमकीन बनवा लेता हूँ और वही कल का भोजन भी बना देगा,मोक्षदा अब केवल आराम करेगी,इतने सालों बहुत काम कर चुकी।।
सही कहा छोटे मालिक आपने,झुमकी काकी बोली।।
तो फिर सत्यकाम बाबू चलिए मेरे साथ ,महाराज से बात करके आते हैं,अमरेन्द्र बोला।।
जी चलिए! सत्यकाम बोला।।
और फिर दोनों घर से निकलने ही वाले थे कि मोक्षदा बोल पड़ी....
दोपहर का भोजन तो कर लेते भइया! फिर कहीं जाते।।
अरे! मेरा पेट तो भरा हुआ है,तुम सत्यकाम बाबू को भोजन खिला दो,अमरेन्द्र बोला।।
मेरी भी इच्छा नहीं है,मैं भी भोजन नहीं करूँगा और इतना कहकर सत्यकाम अमरेन्द्र से बोला....
चलिए! अमरेन्द्र बाबू! चलते हैं,ये काम जितनी जल्दी निपट जाए तो अच्छा...
सही कहते हैं सत्यकाम बाबू! ये जिम्मेदारी जल्द ही निपट जाएं तो अच्छा,अमरेन्द्र बोला।।
इतना कहकर दोनों घर से बाहर निकल गए और सत्यकाम की बातें सुनकर मोक्षदा का जी जल गया,उसने सोचा कितना निष्ठुर और निर्मोही है,मेरी शादी की बात से इसे कोई भी अन्तर नहीं पड़ा,इन्सान हैं या इन्सान के रूप में पत्थर ,पिघलता ही नहीं और फिर मोक्षदा अपने बिस्तर पर उदास होकर लेट गई....
तभी झुमकी काकी मोक्षदा के कमरें के पास आकर बोली....
खाना नहीं खाओगी बिटिया!
काकी भूख नहीं है,चलों मैं तुम्हारा खाना परोस देती हूँ,मोक्षदा बोली।।
उदास दिखती हो बिटिया! क्या शादी की बात से परेशान हो उठी,झुमकी काकी ने पूछा।।
नहीं काकी! ऐसी कोई बात नहीं है,मोक्षदा बोली।।
सब समझते हैं बिटिया!माँ बाप का घर छोड़ते हुए दुःख तो होता ही है,झुमकी काकी बोली।।
झुमकी काकी क्या जाने कि मोक्षदा का दिल जिस बात से जला जा रहा था,वो बात सत्या से उसका प्रेम है,सत्यकाम ने वर्षों से उसके मन में दबे भावों को उभार दिया था,उसके मृत सपनों को जीवित कर दिया था,उसकी आशाओं को रूप देकर अब वो ही उसका ब्याह किसी और से हो रहा है इसको लेकर इतना उत्साह दिखा रहा था,मेरा ब्याह किसी और से हो रहा है तो वो इतना खुश कैसे हो सकता है?
यही सोचते सोचते मोक्षदा रसोई में पहुँची और झुमकी काकी की थाली में उसने खाना परोस दिया और फिर से अपने बिस्तर पर आकर लेट गई......
कुछ ही देर में अमरेन्द्र और सत्यकाम महाराज को लेकर लौटें और साथ में बाजार से सामान भी ले आएं थे क्योंकि अमरेन्द्र अब किसी भी काम में देर नहीं करना चाहता था इसलिए उसने एक दो लोंगो को बुलवाकर कुएंँ वाले आँगन में भट्टी खुदवाकर मीठा और नमकीन बनवाने का काम शुरू करवा दिया,अँधियारा होने तक मीठा और नमकीन तैयार हो चुका था अब रही दूसरे दिन के मेहमानों के खाने की तैयारी तो महाराज अमरेन्द्र से बोलें..
आप चिन्ता ना करें मालिक! हम सब सम्भाल लेगें,कल हमारी बहुरिया और उसकी सास आकर सब काम सम्भाल लेगीं।
अमरेन्द्र बोला....तब तो ठीक है।।
और फिर महाराज के जाने के बाद मोक्षदा ने खाना बनाया,अमरेन्द्र और सत्यकाम खाना खाने बैठे.....
अमरेन्द्र तो ठीक से खा रहा था लेकिन सत्यकाम अनमने ढंग से खाना खा रहा था,उसे ऐसे खाते देखकर अमरेन्द्र ने पूछा....
क्या हुआ सत्यकाम बाबू? खाना आज अच्छा नहीं बना क्या?
नहीं ! ऐसी बात नहीं है! खाना तो अच्छा है,बस थोड़ा सिर में दर्द है,सत्यकाम बोला।।
अच्छा! कोई बात नहीं ! आप खाना खाकर छत पर पड़ी चारपाई पर खुली हवा में लेट जाइए,अमरेन्द्र बोला।।
जी!शायद यही बेहतर होगा,सत्यकाम बोला।।
सिर पर कर्पूर डाले हुए तेल की मालिश कर लिजिएगा दर्द चला जाएगा,शायद गर्मी के कारण सिर में दर्द हो गया है,अमरेन्द्र बोला।।
जी!शायद यही बात है,सत्यकाम बोला।।
और फिर खाना खाने के बाद सत्यकाम छत पर चला गया और वहाँ पड़ी चारपाई पर लेट गया और नीचे अमरेन्द्र ने मोक्षदा से कहा....
मोक्षदा! जरा तेल में कर्पूर डालकर सत्यकाम बाबू को दे आओं,वें सिर पर तेल से माँलिश कर लेगें तो उन्हें आराम लग जाएगा।।
मैं काकी के हाथों से तेल छत पर भिजवा देती हूँ,मोक्षदा बोली।।
ठीक है! और इतना कहकर अमरेन्द्र चला गया,वो ज्यादातर बैठक में ही सोता था।।
मोक्षदा ने एक कटोरी में तेल और कर्पूर मिलाया ,उसने काकी से पहुँचाने को नहीं कहा और स्वयं ही सत्यकाम के पास तेल लेकर जा पहुँची ,वो शायद सत्यकाम से कुछ बात करना चाहती थी और छत पर पहुँचकर उससे बोली....
लो तेल से माँलिश कर लो सिर पर,आराम लग जाएगा।।
मेरे सिर में दर्द नहीं है,सत्यकाम बोला।।
तो झूठ क्यों बोला? मोक्षदा बोली।।
ऐसे ही,सत्यकाम बोला।।
झूठ बोलना तो तुम्हारी फितरत है,मोक्षदा बोली।।
आप फिर से शुरू हो गईं,सत्यकाम बोला।।
तो कहाँ जाऊँ अपनी भड़ास निकालने?मोक्षदा बोली।।
देखिए कल लड़के वाले आने वाले हैं,आप जाकर आराम कीजिए,सत्यकाम बोला।।
नहीं जाती ! क्या कर लोगें?मोक्षदा बोली।।
देखिए आपका ब्याह होने वाला है,ऐसी बातें मत कीजिए,सत्यकाम बोला।।
तो कैसीं बातें करूँ? तुम समझते क्यों नहीं कि मैं तुम्हें चाहती हूँ,मोक्षदा बोलते बोलते रो पड़ी।।
देखिए जिद़ मत कीजिए,मैं आपका प्रेम स्वीकार नहीं कर सकता,मैं विवश हूँ,सत्यकाम बोला।।
तो ठीक है यही सही,मैं भी ये ब्याह करने को राजी हूँ और इतना कहते कहते मोक्षदा गुस्से से नीचे चली गई....
और छत पर चारपाई पर लेटा सत्यकाम धीमे से बोला....
मुझे माँफ कर देना मोक्षदा!मैनें तुम्हारा दिल तोड़ दिया।।
दूसरे दिन लड़का और उसके परिवार वाले आएं और उन्होंने मोक्षदा को पसंद भी कर लिया,ये सुनकर अमरेन्द्र और झुमकी काकी बहुत खुश हुए,दो दिन के भीतर ही सगाई की तैयारियांँ भी होने लगी क्योंकि लड़की वाले चाहते थे कि उनकी बेटी का ब्याह जल्द से जल्द हो जाएं,तब अमरेन्द्र बोला पहले मेरी बहन का ब्याह होगा उसके बाद ही मैं ब्याह करूँगा,इसलिए पन्द्रह दिन के भीतर ही ब्याह का मुहूर्त निकाल दिया गया और मोक्षदा के ब्याह की तैयारियांँ जोर शोर से शुरू हो गई.....
सगाई के लिए मोक्षदा को रंग बिरंगी साड़ी दी गई पहनने के लिए,अमरेन्द्र ने अपनी माँ के गहने निकालकर मोक्षदा को पहनने के लिए दिए और बोला.....
आज मेरा सबसे बड़ा सपना पूरा होने वाला है,आज ऊपर बैठे माँ-बाबूजी भी बहुत खुश होगें और आज मैं भी बहुत खुश हूँ और ये कहते कहते अमरेन्द्र की आँखों से आँसू छलक पड़े।।
ये देखकर मोक्षदा बोली...
ये क्या भइया? तुम रो रहे हो।।
ये तो खुशी के आँसू हैं पगली!मेरा अरमान जो पूरा होने जा रहा है और ये कहकर अमरेन्द्र वहाँ से अपने आँसू पोछते हुए चला गया,ये सब बाहर की खिड़की से सत्यकाम भी सुन रहा था,वो मोक्षदा को फूलों का गजरा देने आया था जो कि बाहर मालन देकर गई थी.....
वो भीतर पहुँचा और मोक्षदा से बोला....
शायद अब आपको आपके सवालों का जवाब मिल गया होगा कि मैं आपका प्रेम स्वीकार क्यों नहीं कर रहा? क्या आप चाहतीं हैं कि एक भाई का अरमानों भरा दिल टूट जाएं ?और जिस बहन को वो स्वयं से अधिक प्रेम करता है उससे वो प्रेम नफरत में तब्दील हो जाएं,शायद आप ऐसा चाहती होगीं लेकिन मैं ऐसा नहीं चाहता,मैं इतना स्वार्थी नहीं हूँ और ये कहकर सत्यकाम मोक्षदा के कमरें से निकल गया.....
मोक्षदा उसे जाते हुए देख ही रही थी कि तभी झुमकी काकी मोक्षदा के पास आकर बोली....
बिटिया! क्या सोचती हो? तैयार होना शुरू कर दो,लड़के वाले आते ही होगें।।
काकी! बस तैयार ही होने जा रही थी और फिर मोक्षदा ने अपने कमरें के किवाड़ बंद किए और तैयार होने लगी,जब वो तैयार होकर निकली तो सबकी नज़रें उस पर ठहर गईं,तब काकी बोली.....
छोटे मालिक! बिटिया को काला टीका लगा दो कहीं नज़र ना लग जाएं।।
अमरेन्द्र ने मोक्षदा को काला टीका लगाया और बोला....
सच! में आज तो तू बिल्कुल माँ जैसी दिखती है और उसे अपने सीने से लगा लिया।।
मोक्षदा ने देखा कि उस जगह पर सत्यकाम नहीं है,इसलिए जब सब फिर से अपने अपने का पर लग गए तो मोक्षदा,सत्यकाम के कमरें में पहुँची,उसने देखा कि सत्यकाम अपने बिस्तर पर लेटा कोई किताब पढ़ रहा था,उसने जैसे ही मोक्षदा को देखा तो उठकर बैठ गया और बोला.....
ओह....आज तो चाँद जमीन पर उतर आया,सच में बहुत ही सुन्दर लग रहीं हैं आप।।
तब मोक्षदा बोली.....
सत्यकाम बाबू! शायद आप सही थे,मैं अपने भइया से बहुत बड़ा धोखा करने जा रही थी,समय रहते तुमने मेरी आँखें खोल दी,उनके मन को ठेस लगाती तो शायद ईश्वर मुझे कभी भी माँफ नहीं करता।।
अच्छा हुआ जो आपको मेरी बात समझ में आ गई,सत्यकाम बोला।।
सत्यकाम बाबू! तुमसे एक और बात कहनी थी,मोक्षदा बोली।।
जी! कहिए!सत्यकाम बोला।।
मैं चाहती थी कि सगाई के बाद आज रात तुम इस घर से चलें जाओ,क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुम मेरी आँखों के सामने रहों और मैं सदैव तड़पा करूँ,मैं चाहती हूँ कि मैं अब अपने मन-मन्दिर में उन्हें बसा लूँ जिनसे मेरा ब्याह होने वाला है,जो मेरे भइया की पसंद हैं,शायद यही नियति है हम दोनों का साथ केवल इतना ही था,हमारे इस अधूरे प्रेम की खूबसूरती सदैव हमारे हृदयों में यूँ ही बसी रहेगी,मैं ईश्वर से यही कामना करती हूँ कि जैसे मुझे मेरा जीवनसाथी मिल गया है उसी प्रकार तुम्हें भी तुम्हारी जीवनसंगिनी मिल जाएं,मैं तुम्हारी हृदय से आभारी हूँ जो तुमने में मुझे गलत रास्ते पर से भटकने से बचा लिया और हाँ आखिरी बार मिलकर जरूर जाना....
और ये कहकर मोक्षदा ,सत्यकाम के कमरें से चली गई,अब बारी थी सत्यकाम की मोक्षदा को एकटक जाते हुए देखते रहने की...
शाम होने को थी और सगाई के लिए सारे मेहमान इकट्ठे हो चुके थे ,मेहमानों का नाश्ता पानी होने के बाद सगाई की विधि प्रारम्भ हुई सब बहुत खुश थे,सब मोक्षदा की सुन्दरता पर मुग्ध थे,कुछ देर के बाद सभी बड़ो ने मोक्षदा को आशीर्वाद दिया और सगाई की रस्म पूरी हो गई,फिर अमरेन्द्र ने सबकी विदाई कर दी और सभी मेहमान चले गए,सब ने खूब खाया पिया था इसलिए रात के खाने का प्रश्न ही नहीं उठता था,सब बहुत थके हुए थे और बस सोने की तैयारी में थे।।
लेकिन सत्यकाम तो घर से जाने की तैयारी में था और मोक्षदा भी इसलिए जाग रही थी कि वो सत्यकाम को आखिरी विदाई दे सकें,अमरेन्द्र ,झुमकी काकी और बाहर वाले नौकरों के सो जाने के बाद सत्यकाम धीरे से अपने कमरें से उठा और मोक्षदा के कमरें की ओर आया,उसे देखते ही मोक्षदा अपने बिस्तर से उठ खड़ी हुई....
तब सत्यकाम बोला....
मैं जा रहा हूँ,आपने कहा था ना कि आखिरी बार मिलकर जाना,इसलिए आपसे मिलने आया हूँ।।
ठीक है और फिर मोक्षदा ने एक रूमाल सत्यकाम की ओर बढ़ाते हुए कहा....
इसमें तुम्हारे नाम की कढ़ाई की है,रख लो इसे।।
और फिर सत्यकाम ने वो रूमाल अपनी जेब में रखते हुए कहा....
तो फिर मैं चलूँ !
मोक्षदा ने हाँ में सिर हिलाया और सत्यकाम जाने लगा तो मोक्षदा बोली....
आखिरी बार गले नहीं मिलोगे।।
सत्यकाम ने कुछ सोचा और फिर अपनी बाँहें फैला दी,मोक्षदा चुपचाप सत्यकाम की बाँहों में समा गई,कुछ देर यूँ ही सत्या के गले लगने के बाद रोते हुए बोली....
तुम्हारी बहुत याद आएगी....
मुझे भी और ये कहते हुए सत्या की आँखें छलक पड़ीं...
तुम रोते हो,मोक्षदा ने पूछा।।
नहीं! तुम जैसी लड़ाकू से बिछड़ने में भला कौन रोएगा? सत्या बोला।।
ये सुनकर मोक्षदा रोते रोते हँस पड़ी और सत्यकाम के सीने पर अपनी मुट्ठी मारते हुए बोली....
झूठे कहीं के.....
तो अब चलूँ,कोई जाग ना जाएं.....सत्यकाम बोला।।
हाँ! जाओ! मैं दरवाजा बंद कर लेती हूँ,मोक्षदा बोली।।
और फिर इस तरह से उस रात मोक्षदा ने सत्यकाम की विदाई कर दी,सत्यकाम फिर एक बार घर से बेघर हो गया...

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....