Ayash-Part(33) books and stories free download online pdf in Hindi

अय्याश--भाग(३३)

संगिनी अपने लिए लाए हुए सामान को देखकर बहुत खुश थी,आज उसकी खुशी का का कोई ठिकाना नहीं था,उसने झटपट अपने बाल गूँथे और उसमें मोगरें का गजरा डाल लिया,फिर उसने अपनी माँग में सिन्दूर डाला ,माथे पर बिन्दिया लगाई ,अपनी कजरारी आँखों में काजल भी डाला, अपनी गोरी कलाइयों में काँच की लाल चूडियांँ डालीं,फिर उसने अपने पैरों में पायल और बिछियों पहने और खुद को आइने में निहारने लगी,उसकी ऐसी अल्हड़ सी हरकतें देखकर सत्यकाम बस मन ही मन मुस्कुराता रहा लेकिन बोला कुछ नहीं,जब संगिनी स्वयं को आइने में निहार चुकी तो वो सत्या से बोली....
मैं अब श्रृंगार करके अच्छी लगती हूँ ना!
सत्या ने संगिनी को केवल सिर हिलाकर हाँ में जवाब दिया,जिससे संगिनी को संतुष्टि हो गई कि वो श्रृंगार करने के बाद अच्छी लग रही है,संगिनी अपने श्रृंगार का सामान सहेजकर रखने लगी और सत्यकाम अपना तौलिया उठाकर हाथ -मुँह धोने के लिए स्नानघर चला गया,फिर स्नानघर से आकर उसने संगिनी से कहा....
मेरे संग विद्यालय में एक अध्यापक पढ़ाते हैं,उन्होंने इतवार के दिन अपने घर खाने पर बुलाया है,क्या आप मेरे साथ उनके घर खाने पर चलेंगीं?
जी!अब तो मेरी डोर आपके हाथ में है,आप जिस भी दिशा में मुझे ले जाएगें तो मैं आपके साथ वहाँ चल चलूँगीं,संगिनी बोली।।
आप मेरी किसी भी बात का सीधा उत्तर नहीं दे सकतीं क्या? गोल गोल घुमाना जरूरी है,सत्यकाम बोला।।
आप तो बेमतलब गुस्साए चले जाते हैं,संगिनी बोली।।
मैं गुस्सा नहीं हूँ,सत्यकाम बोला।।
आप गुस्सा है तभी तो आपने ऐसा कहा,संगिनी बोली।।
ठीक है ! गलती हो गई,अब से ऐसा ना कहूँगा ,सत्यकाम बोला।।
जाइए माँफ किया,संगिनी बोली।।
अहोभाग्य मेरे जो आपने मुझे क्षमा किया देवी! सत्यकाम बोली।।
ये कैसीं बातें करते हैं आप? ऐसी बातें करके आप मुझे पाप का भागीदार मत बनाएं,आप मेरे परमेश्वर हैं,आपने मुझे अपने जीवन में शरण दी है,मैं आपकी कृतज्ञ हूँ,संगिनी बोली।।
ओहो....फिर से आपने ज्ञानी बाबा वाली बातें शुरु कर दीं,सत्यकाम बोला।।
सच ही तो कहती हूँ मैं,संगिनी बोली।।
ठीक है....ठीक है...मैनें अपनी हार मान ली,आप इस शास्त्रार्थ की विजेता घोषित होतीं हैं देवी! मुझ अज्ञानी को क्षमा करें,सत्यकाम बोला।।
जाइए! मैं आपसे नहीं बोलती,आपने ने फिर गुस्सा किया,संगिनी मुँह फुलाकर बोली।।
ओहो....तो देवी फिर रूठ गईं,सत्यकाम बोला।।
ये क्या देवी...देवी...लगा रखा है आपने,आपसे कहा ना ! मेरा नाम संगिनी है,तो आप मुझे संगिनी ही कहा करें,संगिनी गुस्से से बोली।।
अच्छा! ठीक है बाबा! संगिनी ही कहूँगा अबसे,लेकिन ये तो बताओ,तुमने आज कोई किताब पढ़ी या नहीं,सत्यकाम ने पूछा।।
जी! पढ़ी थी लेकिन मुझे और भी कुछ कहना था,संगिनी बोली।।
तो कहो,सत्यकाम ने पूछा।।
आपको अंग्रेजी आती है ना! संगिनी ने पूछा।।
हाँ! आती है तो,सत्यकाम बोला।।
तो आप मुझे अंग्रेजी सिखाऐगें,संगिनी ने पूछा।।
हाँ! जरूर ! ये तो बहुत खुशी की बात है,मैं कल ही तख्ती ,वर्ती और तुम्हारे लायक कोई किताब लेकर आता हूँ,सत्यकाम बोला।।
सच! संगिनी मुस्कुराई और बोली....
आप कितने अच्छे हैं,बिल्कुल देवता हैं..देवता!
अब तुम्हारे देवता को जोरों की भूख लग रही है,सत्यकाम बोला।।
घर में गृहस्थी का समान होता तो मैं आपके लिए भोजन तैयार कर देती,अब तो आपको बंसी काका के भोजन लाने तक इन्तज़ार करना होगा,संगिनी बोली।।
हाँ! मैं जल्द ही नया मकान तलाश करके तुम्हारे लिए गृहस्थी का सामान भी ला दूँगा,सत्यकाम बोला।।
सच! तब मैं आपको रोज तरह तरह की चींजें बनाकर खिलाया करूँगी,संगिनी बोली।।
तुम्हें घर के काम करना बहुत भाता है,सत्यकाम ने पूछा।।
हाँ! मुझे खाना पकाने का बहुत शौक़ है,संगिनी बोली।।
जल्द ही तुम्हारा ये शौक पूरा हो जाएगा,सत्यकाम बोला।।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद!संगिनी बोली।।
इसमें धन्यवाद कैसा संगिनी? ये तो मेरा कर्तव्य है, अब तुम मेरी पत्नी है तो तुम्हारे प्रति जो भी मेरे दायित्व बनते हैं उन्हें तो निभाना ही होगा,सत्यकाम बोला।।
आपके जीवन में स्थान देने के लिए हृदय से धन्यवाद,ये कहते कहते संगिनी की आँखों से दो बूँद आँसू टपक पड़े....
तुम रोती हो,सत्यकाम ने पूछा।।
इतनी खुशी पाकर भला किसका जी ना करेगा रोने का,संगिनी बोली।।
इसका मतलब है तुम मुझ बूढ़े के साथ ब्याह करके खुश हो,सत्यकाम ने पूछा।।
जी!आप मेरे पति के बारें में ऐसा मत कहिए,वें बहुत अच्छे हैं,संगिनी बोली।।
ओहो....तो तुम उनकी बुराई नहीं सुन सकतीं,सत्यकाम बोला।।
वें हैं ही इतने अच्छे,संगिनी बोली।।
लेकिन सारी दुनिया के लोंग तो उन्हें बुरा कहतें हैं,सत्यकाम बोला।।
तो सारी दुनिया की दृष्टि में कोई खराबी होगी,कोई मेरी दृष्टि से उन्हें देखें तो वें सभी को देवता समान दिखेगें, संगिनी बोली।।
तो तुम्हें इतना अखण्ड विश्वास हैं अपने पति पर,सत्यकाम बोला।।
क्यों ना होगा विश्वास? उन पर विश्वास ना करूँगी तो किस पर करूँगी,संगिनी बोली।।
अच्छा! बाबा! मान लिया कि तुम्हारे पति बहुत अच्छे हैं,सत्यकाम बोला।।
आपको मानना ही पड़ेगा कि वें अच्छे हैं,संगिनी बोली।।
दोनों के मध्य वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी बंसी खाना लेकर आ पहुँचा और उसने जैसे ही संगिनी को श्रृंगार में देखा तो खुश होकर बोला.....
बिटिया! आज बहुत सुन्दर दिखती हो,भगवान नज़र ना लगाएं,दोनों की जोड़ी यूँ ही बनी रहें,लो अब खाना खा लो।।
काका! पहले तुम इन्हें खिला दो,मैं इनके खाने के बाद खा लूँगी,संगिनी बोली।।
नहीं...नहीं...संगिनी! तुम भी खा लो,तुम भी तो भूखी होगी,सत्यकाम बोला।।
नहीं...नहीं....ये शोभा नहीं देता,पहले आप खा लीजिए,मैं बाद में खा लूँगी,संगिनी बोली।।
संगिनी की बात सुनकर तब बंसी बोला.....
बाबूसाहेब! बिटिया ठीक ही तो कहती है,उसे भी अपना पत्नी-धर्म निभा लेने दीजिए॥
ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा और फिर सत्यकाम भोजन करने बैठ गया,सत्या के भोजन करने के बाद संगिनी भी भोजन करने बैठ गई,दोनों के खाना खाने के बाद बंसी थालियाँ लेकर नीचें चला गया,सत्या फिर आज छत पर चटाई बिछाकर लेटा और संगिनी भीतर चारपाई पर सोई,सुबह हुई और फिर वही दिनचर्या शुरू हो गई लेकिन आज एक चींज बदल गई थी,संगिनी सुबह सुबह स्नान कर चुकी थी और सत्या के जागने का इन्तजार कर रही थी....
सूरज की लालिमा के साथ सत्या ने अपनी आँखें खोलीं, चटाई समेटी ,तकिया उठाई और कमरें के भीतर आ पहुँचा,उसने देखा कि संगिनी तो आज उसके पहले ही स्नान करके तैयार हो चुकी है,सत्या को देखते ही संगिनी बोली.....
चलिए! जल्दी से तैयार हो जाइए साथ में मन्दिर चलते हैं और भगवान का आशीर्वाद लेकर आते हैं।।
क्यों? मुझे तुम्हारे साथ क्यों चलना होगा?सत्यकाम ने पूछा।।
वो इसलिए कि आपकी शादी तो मेरे साथ ही हुई है तो आपको ही अपने साथ मंदिर ले जाऊँगी ना!संगिनी बोली।।
तो ठीक है मैं तुम्हारे साथ चलूँगा,लेकिन पहले स्नान तो कर लूँ,सत्यकाम बोला।।
जी!संगिनी बोली।।
तैयार होने के बाद सत्या और संगिनी मंदिर की ओर चल पड़े,वें दोनों पूजा करके मंदिर के चबूतरें पर बैठ गए,वहाँ कुछ महिलाएं भी बैठीं थीं जो दोनों को देखकर खुसर पुसर करने लगी,एक बोली.....
देखों तो कैसा बेमेल जोड़ा है,लड़की सोलह-सत्रह साल की लगती है और पति दोगुनी उम्र का है....
दूसरी बोली....
हाँ! री! लड़के का शायद दूजा ब्याह होगा....
तीसरी बोली....
हो सकता है कि लड़की में कोई खोट हो तो माँ-बाप ने अपने सिर का बोझ टालने के लिए लड़की को बूढ़े के सिर मढ़ दिया हो।।
चौथी बोली....
कुछ भी हो लंगूर के हाथ में हूर लग गई.....
ये सब सुनकर सत्या तो चुप रहा लेकिन संगिनी चुप ना रह सकी और वो उन महिलाओं के पास जाकर बोली.....
आप सब यहाँ पूजापाठ करने आतीं हैं ना!मन की शांति के लिए आतीं होगीं,लेकिन मुझे तो ऐसा लगता है कि शायद आप लोंग घर के कामों से बचने के लिए यहाँ दूसरों की चुगली करनी आतीं हैं,इसलिए तो सुबह सुबह किसी को बिना जाने पहचाने उसके बारें कितनी अच्छी अच्छी राय पेश कर दी आपलोगों ने,शरम नहीं आती आपलोगों को मंदिर जैसी पवित्र जगह पर अपने गंदे विचारों को विसरित करते हुए,आप सब कान खोलकर सुन लीजिए,ये मेरे पति हैं और अब आज के बाद मैनें इनके बारें में आप सब के मुँह से कुछ भी गलत सुना तो आप सबकी खैर नहीं....
संगिनी की बात सुनकर एक महिला गुस्से से तिलमिला उठी और बोली.....
इत्ती सी छोकरी और ग़ज भर लम्बी जुबान,तू होती कौन है हमें ज्ञान देने वाली ।।
मैं इनकी पत्नी हूँ और मेरे पति के बारें में कोई कुछ भी बोलेगा तो मेरी बरदाश्त के बाहर है,संगिनी बोली....
बोलेगें...खूब बोलेगें....क्या कर लेगी तू! वो महिला बोली....
संगिनी मंदिर के चबूतरे से नीचें उतरी और एक बड़ा सा पत्थर उठाकर बोली.....
मेरी पति के बारें में कोई बोलकर तो दिखाएं एक एक का सिर फोड़ दूँगी पत्थर से।।
तब वो महिला थोड़ी डर गई और सत्यकाम से बोली.....
ये भाई!तुम बैठे क्या हो? अपनी बीवी को सम्भालों,कैसी पागल है?अब जान लेगी क्या ये हम सबकी?
हाँ! तुम सबकी जान ले लूँगी अगर मेरे पति के बारें में कुछ भी कहा तो,संगिनी बोली।।
संगिनी की हरकत देखकर सत्या संगिनी के पास पहुँचा और उसके हाथ से पत्थर छुड़ाकर जमीन पर फेकतें हुए बोला.....
ये क्या है संगिनी?कैसी बच्चों जैसी हरकत कर रही हों।।
आपने सुना ना! कि ये सब आपके बारें में क्या बोल रहीं थीं?संगिनी बोली।।
तो क्या हुआ? सही तो कहतीं हैं मैं तुमसे उम्र में कितना बड़ा हूँ,सत्यकाम बोला.....
आप भी वैसीं ही बात कहते हैं जाइएं मैं आपसे नहीं बोलती,संगिनी बोली।।
अच्छा! पहले घर चलो,फिर बात करते हैं और इतना कहकर सत्या संगिनी को लेकर घर की ओर चल पड़ा तभी पीछे से वो औरत बोली.....
हाँ! ले जाओ!बाँधकर रखो घर में ,खूँखार साँड़ को खुला छोड़ रखा है.....
ये क्या बोली?लगता है तू अपना सिर फुड़वाएं बिना नहीं मानेगी,संगिनी पलटकर फिर से बोली.......
बस.....बस....संगिनी घर चलो,कहने दो उन्हें,क्या फर्क पड़ता है.....,सत्या बोला।।
लेकिन मुझे फर्क पड़ता है,संगिनी बोली।।
अच्छा! घर चलकर बात करते हैं इस विषय पर,सत्या बोला।।
दोनों घर आएं तब सत्या संगिनी से बोला.....
इतना क्रोध अच्छा नहीं.....
मैं तो करूँगी क्रोध,अगर आपको कोई भी कुछ कहेगा,संगिनी बोली......
लेकिन क्यों करोगी क्रोध? मेरे लिए लड़ती फिरोगी सबसे,सत्यकाम बोला।।
हाँ! सारी दुनिया से लड़ जाऊँगी आपके लिए क्योंकि मैं आपको चाहने लगी हूँ,पहले ही दिन से मेरे हृदय ने आपको स्वीकार कर लिया था.......
ये सुनकर सत्या के मन के भाव बदलने लगें लेकिन वो बोला कुछ नहीं......
आप बोलते क्यों नहीं?संगिनी ने पूछा।।
क्या बोलूँ? सत्यकाम बोला।।
यही कि मैं आपको पसंद हूँ या नहीं,संगिनी ने पूछा।।
मेरे पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं,सत्यकाम बोला।।
क्यों उत्तर नहीं है आपके पास?संगिनी ने पूछा.....
सत्या आगें कुछ बोल पाता इससे पहले ही बंसी वहाँ सुबह का नाश्ता लेकर आ पहुँचा....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा......