Dard e ishq - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

दर्द ए इश्क - 22

विकी और सूझी ऐसे ही बात कर रहे थे तभी विकी के डेड कहते है... ।

धर्मानंद: विक्रम...! !? ।
विकी: ( डेड की ओर देखते हुए ) जी!? ।
धर्मानंद: ( अंगूठी देते हुए ) अंगूठी...! ( उसकी ओर सुजेन की रिंग का बॉक्स देते हुए ) ।
विकी: जी! ।
सूझी: ( धीरे से ) क्या बात है भाई शादी से पहले ही बिल्ली इतनी शांत हो गई ।
विकी: ( मजाकिया लहजे में ) अच्छा! और तुमने ये गलतफहमी कब से पालनी शुरू कर दी... और तुम अपना सोचो... क्या हाल करूंगा तुम्हारा बच्चू...।
सूझी: ( चुनौती देते हुए ) देखते है.... ।
विकी: ( सिर को हां में हिलाते हुए ) देख लेना ।
सूझी: फिलहाल अब चलो थोड़ा ड्रामा कर सभी लोग इंतजार कर रहे है। ( रिंग की ओर इशारा करते हुए ) ।
विकी: बिलकुल... ( बॉक्स में से रिंग निकालते हुए.... ) ।
सूझी: ( हाथ आगे बढ़ाने ही वाली थी की ) ।
विक्रम: ( एक पैरो पर बैठते हुए ) सुजेन.... लव ऑफ माय लाइफ ( हंसी रोकते हुए ) मैं जानता हूं की हमारी सगाई होने वाली है लेकिन फिर भी मैं हमारा प्यार भरा पल और भी खास बनाना चाहता हूं... ताकि तुम... और ये सभी लोग मेरी मोहब्बत के गवाह हो... ( सभी की ओर देखते हुए... रोहन की ओर एक नजर करते हुए श्यातनी मुस्कुराहट के साथ ) की हम दोनो एक दूसरे कितनी मोहब्बत करते है... तो सुजेन क्या तुम विक्रम ठाकुर से शादी करोगी...! ।
सूझी: ( विकी की ओर आश्चर्य में देखे जा रही थी की कहीं ये पागल तो नहीं हो गया... । )
विकी: ( शौखी नजरो से सूझी की ओर ही देखे जा रहा था। उसे बड़ा मजा आ रहा था ... क्योंकि पहली बार था जब उसके चहेरे पर इसे भाव आ रहे थे... जब रोहन ने उसे गर्लफ्रेंड बनने के लिए कहां था तब भी वह इतना नहीं चौंकी थी... जैसा अभी आश्चर्य में है..। ) सुजेन... ।
सूझी: हन!? ।
विकी: सब जवाब का इंतजार कर रहे है ।
सूझी: कौन सा जवाब!? । ( यह सुनकर सभी हंस पड़ते है। ) ।
विकी: यही की मुझ से शादी करोगी! या नहीं!? ।
सूझी: ( विकी की ओर घूर कर देखते हुए ) बिलकुल... ।
विकी: सो! इट्स यस...! ।
सूझी: हां! ( सिर को हां मैं हिलाते हुए ) ।
विकी: ( हंसी रोकते हुए... सूझी को रिंग पहनाता है। ) सो... ( धीरे से कान में ) कैसा लगा मेरा मजाक....!? ।
सूझी: ( गुस्से में मुस्कुराते हुए विकी को रिंग पहनाते हुए ) बेहद ही घटिया.... ।
विकी: थैंक्स फॉर कॉम्प्लीमेंट.... ब्रो... ।
सूझी: ( हील से विकी के बुट पर पैर मारते हुए ) आई स्वेर अगर सभी लोग यहां ना होते तो मैं बताती की किसे कॉम्प्लीमेंट कहते है... ।
विकी: अरे! अरे! कहीं से जलने की बू आ रही है! देखो! ( रोहन की ओर इशारा करते हुए ) ।
सूझी: ( उस दिशा में देखती है तो उसकी नजर रोहन पर पड़ती है। ) ।
विकी: ( मुस्कुराते हुए सूझी के कान में कहता है... ) देख! बहन मेरा तो पता नहीं.... पर तेरा वाला जलकुकड़ा हुए जा रहा है.... ।
सूझी: ( आश्चर्य में विकी की ओर देखती है और अपनी हंसी रोक नहीं पाती। ) हाहाहाहा..... हाहाहाहाहा... ओह गॉड ओह गॉड.... ।
विकी: ( एक मुस्कुराहट के साथ ) सॉरी.... गायस पर शायद मेरी होने वाली बीवी शायद भूल गई है की हम यहां सब के सामने खड़े है... पर खैर मुझे तो वह ऐसी ही पसंद है.... तो प्लीज एकस्कयुज अस... ।
सूझी: ( अभी भी वह हंसे जा रही थी। ) ।
विकी: ( सूझी का हाथ थामते हुए वहां से बाहर चला जाता है। )
सूझी: ओह! माय गॉड..... मिस्टर... विक्रम ठाकुर ने किसी लड़की को बहन कहां .... ओह माय गॉड.... ।
विकी: ( मुस्कुराते हुए आसमान की ओर देखे जा रहा था। ) तो तुम इस लिए हंस रही हो या तुम्हे कहां इसलिए.... ।
सूझी: ओह! मेरे भोले इंसान यार मुझे पता था कि तुम सुधर गए हो.... लेकिन इतने ये मुझे बिलकुल यकीन नहीं आ रहा... माय... माय... क्या बात है भाई.... ( बेंच पर बैठते हुए ...) यार तुम हर एक दिन... एक नया रूप दिखा रहे हो...! ।
विकी: ( बेंच पर बैठते हुए ... शर्ट का पहला बटन खोलते हुए .... उसे घुटन सा लग रहा था। ) कोई नया रूप नहीं है.... जब वक्त बदलता है ना तो... इंसान को अपने साथ बदलने पे मजबूर कर देता है.... ।
सूझी: ठीक है.... ओह! मेरे लव गुरू..... अब फिर से बातो की गहराई में नहीं जाना तो वापस से वह मजाकिया मुड़ में वापस आ जाओ! ।
विकी: ( श्यातनी मुस्कुराहट के साथ ) क्यों... कहीं ऐसा तो नहीं... दी सुजेन मल्होत्रा का दिल तो नहीं आ गया... ( आइब्रो ऊपर करते हुए ) ।
सूझी: ( हंसते हुए हाथ ऊपर करते हुए ) अरे! ऐसी गुस्ताखी... कतई नहीं कर सकती .... सपने में भी नहीं...।
विकी: फिर ठीक है...! मुझे लगा तुम हमारी दोस्ती के रुल्स भूल गई...! ।
सूझी: मैं अपने होने वाले पति को भूल सकती हूं पर हमारी दोस्ती के रुल्स को नहीं...! ।
विकी: ( आश्चर्य में सूझी की ओर देखकर समझने की कोशिश कर रहा था की क्या कह रही थी ।) क्या!? ।
सूझी: अरे! मेरा मतलब मेरा असली वाला हसबैंड तुम नहीं .... इडियट... वैसे भी हम कौन सा ... ।
विकी: ( सूझी की बात को कांटते हुए ) सूझी.... तुम तो अभी से रूठने लगी अरे! यार मैंने कहां तो सही... जल्दी ही शादी की तारीख आ जाएगी... अब ऐसी क्या नाराजगी की तुम मुझे अपना पति तक मानने से इनकार कर रही हो... ।
सूझी: ( नाटक करते हुए ) हां... तो अगर जल्दी से शादी की तारीख पक्की नहीं की तो देख लेना ...! ।
तभी किसी के गला साफ करने की आवाज आती है।

सूझी पीछे मुड़कर देखती है तो रेहान और तान्या थे...! ।

तान्या: ( मुस्कुराते हुए ) सॉरी डिस्टर्ब करने के लिए पर हम दोनो जा रहे थे तो सोचा...एक बार विश कर दे! । बहुत बधाईयां! ।
विकी: थैंक यू ( रूखा जवाब देते हुए ) ।
तान्या: और...
विकी: और क्या कुछ और भी बाकी है...! ।
रेहान: पहले बात सुन लो उसकी...! ।
विकी: और मैं तुमसे बात नहीं कर रहा... तो तुम बीच में मत बोलो...! ।
रेहान: हां लेकिन! मेरी मंगेतर है वह तो... तुम इस तरह बात नहीं कर सकते..! ।
विकी: धेन! आप और आपकी मंगेतर जा सकते है.... क्योंकि जो कुछ भी पिछली बार हुआ उसके बाद मुझे नहीं लगा और कुछ बाकी है... बात करने को ।
तान्या: लुक.... सुजेन.... जो भी पिछली बार हुआ... आई एम सॉरी.... वह सबकुछ नहीं होना चाहिए था...! ।
विकी: ( तान्या के हाथ से सूझी के हाथ हटाकर थामते हुए ) नहीं मुझे तो नहीं लगता... इनफेक्ट मैं तो थेंकफुल हू तुम लोगों का... अगर तुम लोग वह हरकत ना करते तो आज मैं और सूझी रिश्ते में ना बंधते....।
सूझी: विकी....... प्लीज.... ।
विकी: फाइन..... तुम कह रही हो इसलिए.... मैं बात आगे नहीं बढ़ा रहा... ।
सूझी: लुक तान्या.... जो भी हुआ उस बात को वही दफना दे तो बेहतर है।
तान्या: ठीक है.... पर मैं सच में शर्मिंदा हूं...! ।
सूझी: (पलके जपकाते हुए हां कहते हुए ) ।
रेहान: आई.. एम सॉरी....! ।
सूझी: ( रेहान की ओर आश्चर्य में देखते हुए की कही उसके कान तो नहीं भनक रहे लेकिन रेहान उसकी और ही देख रहा था। मानो जैसे वह पहले वाला रेहान हो... उसकी नजरें बिलकुल पहले जैसे रेहान वाली थी। सूझी बोले उससे पहले ही विक्रम जवाब देता है। ) ।
विकी: कोई नहीं... जब मेरी मंगेतर ( शब्द पर दबाव डालते हुए ) ने माफ कर ही दिया हैं तो फिर बात को यही खतम करते है।
तान्या: सो... सबकुछ सॉर्ट आउट हो गया राइट..! ।
विकी: यप... ।
तान्या: ओके धेन हम चलते है फिर.... ।
सूझी: ( सिर हिलाकर ओके कहते हुए ) ।
रेहान: ( आखिरी बार सूझी की ओर फिर विकी की ओर देखकर वहां से तान्या के साथ निकल जाता है। ) ।

विकी: ( फिर से बेंच पर बैठते हुए ) ओह गॉड! कितना ड्रामा करना पड़ता है कभी कभी! ।
सूझी: ( बैठते हुए ) सहीं मे यार मुझे लगा कि उन लोगों ने हमारी बाते सुन ली! ।
विकी: मैं उस बारे में बात नहीं कर रहा! ।
सूझी: ( विकी की ओर देखते हुए ) ओह... गॉड... डोंट टेल मि.... तुमने.... उन लोगो को अभी भी माफ नहीं किया!? ।
विकी: एकसेटली.... ।
सूझी: वाऊ.... तो क्या वापस से पुराना विकी आ गया है ये मैं समझूं... या फिर कुछ और बात है ।
विकी: ( मुस्कुराते हुए ) मैं कभी शरीफ हुआ ही नहीं सूझी... हा मैने बस रास्ता बदल दिया था... पर ठीक है... जब उन्हें मेरा अच्छा रूप पसंद नहीं आया तो बुरा रूप दिखाने में हर्ज क्या है...! और तुम तो जानती ही हो.... मैं मेरे अपनो पर किए गए वार का चार गुना लौटाता हूं...! ।
सूझी: ( कसकर गले लगते हुए ) थैंक यू... थैंक यू.... तुम्हे पता भी है.... कितने सालों बाद तुम्हे वापस मिली हूं ऐसा लग रहा है....! ।
विकी: अबे! ओय.... मर जाऊंगा मैं... ।
सूझी: ( दूर होते हुए ) सॉरी... सॉरी.... थोड़ी ज्यादा एक्साइटेड हो गई थी।
विकी: थोड़ी ज्यादा एक्साइटेड या मुझे मारने का प्लान ताकि तुम्हारा रास्ता साफ हो जाए! ।

यह सुनकर थोड़ी देर बाद दोनो ठहाके लगाकर हंसने लगते है..…! ।


तान्या कार में बैठे बैठे किसी सोच में डूबी थी और रेहान... कार चलाते हुए बार बार उसकी ओर देख रहा था पर शायद उसका ध्यान नहीं था। तभी रेहान कहता है ।

रेहान: स.... ( सिर को ना में हिलाते हुए ) तान्या..... ।
तान्या: ( रेहान की ओर देखे बिना ) हम्म्म! ।
रेहान: क्या सोच रहीं हो... अब तो सबकुछ....।
तान्या: बिलकुल भी नहीं... मुझे नहीं लगता उसने इस बात को ऐसे ही जाने दिया है... जिस तरह के लहजे में बात कर रहा था उस हिसाब से वह पुराना वाला विकी लग रहा था...! ।
रेहान: मतलब की वह अभी भी उस बात को पकड़ के बैठा है और वो वार करेगा... यहीं कहना चाहती हो तुम!?।
तान्या: बिलकुल.... क्योंकि जितना मैं उसे जानती हूं... ये लहजा बदले वाला था ना की बात को वही पर खत्म करने वाला ।
रेहान: पर ये भी तो हो सकता है वो सिर्फ गुस्से में हो! ।
तान्या: ( सिर को ना में हिलाते हुए ) बिलकुल भी नहीं... उसके गुस्से में और बदले लेने के भाव में जमीन आसमान का फर्क है।
रेहान: ठीक है कुछ सोचेंगे.... फिलहाल ये सारी बाते छोड़ो और आराम करो! मैं घर आते ही तुम्हे जगा दूंगा ।
तान्या: ( गहरी सांस लेकर आसमान की ओर देखने लगती है। जो की काफी रात हो चुकी थी तो सिवाय तारो की रोशनी के अलावा अंधेरा ही था चारो और... । रॉड पर लाइट की रोशनी की चमक रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था की आज विकी के चेहरे पे गम के भाव के बजाय खुशी के भाव कैसे थे...!?। क्या वो सच में उसे भूलकर आगे बढ़ गया है... इतना दर्द तो उसे तब भी नहीं महसूस हुआ था जब विक्रम ने उसके साथ ज्यादती की थी... उसे जिंदा मारने की कोशिश की थी। ) मैं भी कितनी पागल इंसान हूं यार..... कभी कभी तो मुझे खुद से ही शर्म आने लगती है... की मेरा कुछ आत्मसम्मान बचा भी है या नहीं.... पता नहीं कब मै इस भावनाओ के जाल से निकलूंगी... सच पूछो तो एक **तीया किस्म की इंसान बन गई हूं.... जो अभी भी उस दो कौड़ी के इंसान के बारे में सोच रही हूं...! ।
रेहान: ( दर्द के साथ हंसते हुए ) मैं कौन सा खुद को अब तक समझा पाया हूं.... ये प्यार ना बड़ी कामिनी चीज है स्तुति.... जिसे भी हो जाए साले अच्छे खासे इंसान को दीमक के कीड़े की तरह खा जाता है। और फिर जब उसे होश आता है तो सिवाय कंगाल के कुछ नहीं बचता .... ।
तान्या: मैं इतनी पागल नहीं हूं रेहान ना ही अब एक और बार बनना है मुझे... जितनी जल्दी ये फीलिंग गायब हो उतना ही अच्छा है... इतने सालो के बाद क्यों जलन हो रही है मुझे समझ ही नहीं आ रहा। जब की सिवाय नफरत के कुछ बाकी ही नहीं है ।
रेहान: वहम! वहम था तुम्हारा और मेरा जो हम दोनो इसे नफरत का नाम दे बैठे सच पूछो तो शायद कभी नफरत हुई ही नहीं.... हा बस जो भी फीलिंग थी उसे दफना दी थी और जब उन दोनो को आगे बढ़ते देखा तो एक आग का शोला बनके वापस उभरने लगी ।
तान्या: ( सिर को ना में हिलाते हुए ) कभी भी नहीं... मैं उस घटिया और वाहियात इंसान से सिवाय नफरत के कुछ नहीं करती ।
रेहान: ( हंसते हुए ) स्तुति... ना कहने से सच्चाई बदल नहीं जाती... हां ठीक है मैं बदला तो आज भी उस विक्रम ठाकुर से लेना चाहता हूं और मैं लेकर भी रहूंगा.... । क्योंकि उसने तुम्हे और मेरी सुजेन को मुझसे छीना है.. तो उसे मैं माफ तो किसी भी कीमत पर नहीं करूंगा... लेकिन जो फीलिंग सुजेन के लिए मेरे दिल में है उसे में अनदेखा भी नहीं कर सकता.... हां ठीक है कुछ अरसे तक मैं उससे नाराज था जिसे शायद में यह समझ बैठा की प्यार खत्म हो गया लेकिन जब आज उसे विक्रम के साथ देखा... ( दांत भीसते हुए ) भगवान की कसम दिल चाह रहा था की उसका खून कर दू ताकि किस्सा ही खतम हो जाए! ।
तान्या: ( गहरी सांस लेते हुए खुद को रेहान की बातो में सहमति भरने से रोक रही थी। क्योंकि उस वक्त तान्या का भी कुछ ऐसा ही हाल था की सुजेन को विकी से दूर कर दे । ) खैर! ये फीलिंग को रखो साइड में और हमे अब आगे के प्लान के बारे में सोचना होगा..! ।
रेहान: डोंट वरी... में इतना भी कमजोर दिल नहीं की उसका दिया हुआ धोखा इतनी जल्दी भूल जाऊ... । मैं हमारा गोल कभी भी नहीं भूलूंगा... बर्बाद तो मैं उन दोनो को करके रहूंगा... चाहे मुझे उसके लिए कुछ भी दाव पर लगाना पड़े मैं लगाऊंगा.. लेकिन मैं उस विकी को कहीं का नहीं छोडूंगा... ।
तान्या: जल्दी से जल्दी हो उतना ही काफी है रेहान वरना कहीं रास्ता ना भटक जाए...! ।
रेहान: ऐसा नहीं होगा.. तुम चिंता मत करो...! ।
तान्या: आई हॉप सो! ( आंखे बंद करके सो जाती है। ) ।
रेहान: ( धीरे से ) आई अल्सो हॉप सो! ।


विक्रम पार्टी खत्म होने के बाद... बालकनी में खड़े होते हुए... हाथ में विस्की का ग्लास लिए खड़ा था...! । वह मानो जैसे किसी को सालो बाद मिलने के बाद खुशी मिलती हो वैसे मुस्कुरा रहा था। उसके चेहरे पर... एक अलग ही प्रकार का भाव था जैसे किसी को चिढ़ाने के वक्त... जो एक खुशी मिलती है वैसी खुशी छलक रही थी उसके चेहरे पर से... । वह फिर से एक चुस्की लेते हुए कहता है ।

" सो.... जानता हूं मैं की तुम शायद काफी नाराज़ हो आज मुझ से... या फिर यूं कहूं की गुस्सा... । पर क्या करू यार.... मुझे खुद पता नहीं था की डेड आज ये सब तमाशा करने वाले है... वरना मैं भला तुमसे कोई बात छुपाता हूं क्या!? । तुम्हे पता है स्तुति... मुझे ये सोच सोच कर हंसी आ रही है की अगर तुम यहां होती और भगवान ना करे ऐसा कुछ होता तो फिर बाय गॉड सूझी का क्या हाल होता... और मैं तो जिंदा भी रहता की नहीं ये पता भी नहीं...! ( हंसते हुए ) । मजाक तो चलो होता रहेगा... पर... सॉरी.... एक एक करके मैं वादे तोड़ रहा हूं... स्तुति... पर ये होना जरूरी था.... क्योंकि वह लड़की खुद को बर्बाद करने पर तुली है... और वो जिसे तुम अपना दोस्त मानती थी उसे ना जाने कैसे कैसे नाम से बुला रहा था... सच पूछो तो... कभी कभी मुझे लगता की काश मैने उसे बहुत पहले ही रास्ते से हटा दिया होता... तो शायद ये कुछ ना होता... लेकिन तुम्हारी वजह से मैंने उसे कुछ नहीं किया.! । खैर.... तुम्हे पता है आज क्या सोच रहा था...! । जब मैं और सुजैन एक साथ खड़े थे.... तो सच पूछो तो मेरा दिल तुम्हे ही याद कर रहा था की काश उसकी जगह तुम होती.... वो अंगूठी तुम्हारे उंगली में पहनाता काश! ...... पर तुम तो ना जाने इतनी दूर चली गई हो की... देखने के लिए भी तरस गई है आंखे....... और कितना इंतजार करवाओगी यार.... अब तो लौट आओ वापस...... किसी भी रूप में आ जाओ... लेकिन मुझे तुम चाहिए यार.... जानता हूं मैं अभी सेंटीमेंटल.... चु**या लग रहा हूं... और यह मेरी पर्सनालिटी पर बिल्कुल नहीं जजता लेकिन.... तुमने निकम्मा बनाके छोड़ दिया मुझे यार.... और फिर ये तक नहीं सिखाया की तुम्हारे बिना जीना पड़े तो कैसे जिया जाए। अब देखो! सारी दुनिया छोड़कर यहां पागलों की तरह बतिया रहा हूं... तुमसे....! । खैर! क्या फायदा.... तुम कौन सा मुझे जवाब देने वाली हो..... तुम तो बस वहां से मेरी बात सुनती भी हो की नहीं। ये भी नहीं पता मुझे...! और में यहां गधों की तरह बाते करते रहता हूं....! । चलो फिर आज के लिए इतना काफी है तुम जलती रहो... ( आसमान की ओर आंख मारते हुए ) मैं चला सोने सुबह सूझी के साथ शॉपिंग पर भी जाना है.... बाय... ( हंसते हुए कमरे में सोने चले जाता है। )