Dard e ishq - 29 books and stories free download online pdf in Hindi

दर्द ए इश्क - 29

विकी सोफे पे जाके सो जाता है। अभी उसकी आंख लगे थोड़ी देर ही हुई थी कि तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है। जिसे वह गहरी नींद में जाग कर देखता है तो दरवाजे पर कोई था । वह जल्दी से तकिए को बेड पर फेकते हुए दरवाजे की ओर आगे बढ़ता है। जब दरवाजा खोलकर देखता है तो तान्या थी! घबराई हुई सी! हड़बड़ी में खड़ी थी। विकी उसको देखकर चौंक गया था की ये अभी तक यहां क्या कर रही है।

विकी: तुम इतनी रात को यहां क्या कर रही हो!? ।
तान्या: ( घबराते हुए ) वो! वो.... ।
विकी: वो क्या!? ।
तान्या: ( रोते हुए ) वो नीचे! ..... ।
विकी: ( तान्या को घबराते देख ) हुआ क्या है!? पहले ये तो बताओ!? ।
तान्या: वो.... नीचे कुछ लोग खड़े है.... तुम्हारे डेड और रेहान...! ।
विकी: क्या हुआ डेड को!? ।
तान्या: ( विकी के मुंह पर हाथ रखते हुए ) धीरे बोलो! वो मैं अभी पानी लेने जा रही थी! तभी कार की आवाज आई तो मुझे लगा रेहान आ गया पर जब मैं दरवाजे की ओर जाने ही वाली थी की! काफी सारे लोग... तुम्हारे डेड और रेहान के आसपास थे और एक आदमी उनके साथ बदतमीजी कर रहा था। और तो और उनके पास गन भी है। ( घबराते हुए ) ।
विकी: ( खुद को संभालते हुए ) ठीक है तुम इसी कमरे में रहो! अपना और सूझी का ख्याल रखना और जब तक मैं ना आऊ चाहे कुछ भी हो दरवाजा मत खोलना ।
तान्या: ( विकी का हाथ थामकर सिर को ना में हिलाते हुए ) मुझे मामला कुछ ज्यादा ही बड़ा लग रहा है विक्रम! क्या पता तुम्हारे जाने से बात बिगड़ जाए! ।
विकी: ( आश्चर्य में तान्या की ओर देखते हुए! क्योंकि स्तुति घबराते हुए उसका पूरा नाम लेती थी ।) कोई नहीं एक बार मुझे देखने दो! मैं दूसरे दरवाजे से जा रहा हूं! जो की डेड के रूम के नजदीक है! ।
तान्या: प्लीज! बि केरफुल! ।
विकी: ( हां कहते हुए वहां से चला जाता है। ) ।
तान्या: ( रूम का दरवाजा बंद करते हुए! चिंता में नाखून चबाए जा रही थी। ) आई हॉप सब ठीक हो! और विक्रम ठाकुर का आज का दिन आखिरी दिन हो! ।

विकी..... धीमे कदमों से! दरवाजा आधा खोलते हुए... देखता है तो उसके डेड सोफे पर बैठे हुए थे! उसके बगल में रेहान बैठा हुआ था और सामने एक आदमी काले सूट में बैठा था । आसपास करीब २०- ३० लोग खड़े थे । विकी को ये समझ नही आ रहा की गेट पे तो गार्ड थे फिर ये लोग अंदर आ कैसे गए!? । वह जल्दी से! सोचने की कोशिश करता है की इस मुसीबत से कैसे बाहर निकले! । और अपने डेड को कैसे बचाए! । क्योंकि अगर पुलिस को फोन करेगा तो ये चांस है की कोई ना कोई इनके साथ मिला होगा और इन तक खबर पहुंचा देगा! और बात और भी बिगड़ सकती है! । जो की विकी नहीं चाहता था ऐसा हो! । वह दरवाजे के नजदीक ही बैठे बैठे सोचता है तभी उसे कुछ याद आता है! और वह जल्दी से जेब में से फोन निकालते हुए किसी को मैसेज करता है! । थोड़ी देर बाद उसके मुंह पर एक मुस्कुराहट आ जाती है। वह खड़े होते हुए! । नींद में हो वैसा नाटक करते हुए! दरवाजा खोलकर किचेन की ओर आगे बढ़ता है। आवाज सुनकर सभी लोग विकी की दिशा में देखते है और वे लोग विकी की ओर गन तागते हुए देखते है। विकी उन सबको नजर अंदाज करते हुए! पानी पीने लगता है। जिससे उनके पिता की आंखों में साफ साफ डर नजर आ रहा था की यह क्या कर रहा है। वह आदमी जो बैठा था खड़े होकर! विकी की ओर आगे बढ़ता है। और एक मुक्का मारता है!। विकी नाटक करते हुए आश्चर्य में देखते हुए उस आदमी को मुक्का मारते हुए कहता है।

विकी: कौन है! जिसने मुझे मारने की हिम्मत की! ( लाइट ऑन करते हुए ) हरिप्रकाश! ।
आदमी: **किंग लूसर! ( खून साफ करते हुए ) हिममत कैसे हुई तुम्हारी मुझे मारने की! ।
विकी: ( आश्चर्य में आदमी की ओर देखते हुए ) क्या मतलब तुमने मुझे पहले मारा था! और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर में मुझ पर हाथ उठाने की ( धक्का देते हुए ) नए हो क्या काम पर! मैं चाहूं तो अभी के अभी तुम्हे निकाल सकता हूं! ।
आदमी: ( गुस्से में हंसते हुए गोली चलाता है! जो की छत पर जाकर लगती है। ) अब समझ में आया कौन हूं मैं!?।
विकी: ( डर को छुपाते हुए ) अब इन खिलौनों से क्या डरना! ।
आदमी: यही खिलौना तुम्हारी जान ले सकता है ।
विकी: ( गहरी आंखों से देखते हुए ) ना! ये खिलोने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते चाहो तो ट्राई कर लो ।
धर्मानद: ( चिल्लाते हुए ) विकी पागल हो गए हो क्या!? ।
विकी: कमोन डेड! अब आप इन दो कौड़ी के रास्ते के गुंडे से कबसे डरने लगे ।
आदमी: ( बंदूक विकी के सिर पे रखते हुए ) एक और लफ़्ज़ तुम्हारे! मुंह से निकला तो यह छह की छः गोलियां तुम्हारे भेजे में होगी! ।
विकी: ( मुस्कुराते हुए ) चलाओ! फिर! चलो देखते है की तुम में कितनी हिम्मत है जो विक्रम ठाकुर पे गोली चला पाते हो की नहीं! ।
धर्मानंद: विकी!...... ।
आदमी: अबे! चुप ( चिल्लाते हुए ) इसका मुंह बंद करो! ( अपने आदमी को इशारा करते हुए ) और तुम क्या कह रहे थे!? जानते भी हो कौन हूं मैं! बंटी भाई बंटी भाई नाम है मेरा!।
विकी: ( हंसते हुए ) बंटी भाई! ये कैसा नाम हुआ! मानो गुंडा ना होकर कोई चाय वाले का नाम हो! ।
बंटी: ( बंदूक को लोड करते हुए ) लगता है आज तुमने अपनी मौत को दावत दे ही रखी है! ।
विकी: हम जिंदा ही कब थे जो मौत का डर रखे! गालिब।
बंटी: ठीक है फिर समझ ले आज तुम्हारी मरने की इच्छा मैं पूरी कर ही देता हूं ( इतना कहते ही वह ट्रिगर पर हाथ रखते हुए दबाता है! और गोली चलने की आवाज आती है।)

यह देखकर दूसरी और धर्मानंद और रेहान चिल्ला उठते हैं । और इधर बंटी गोली चला देता है।