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गिरफ्त

जहां से इस कहानी की शुरवात होनी है। वो एक शब्द है जिसका उच्चारण ही आपको गहरे समुद्र तल में धकेल सकता है। गिरफ्त जिसका अर्थ है बंधन , ज़िम्मेदारी,बंदी,और जैसा भी कोई इसके प्रति अपनी सोच रखने वाला हो।
मेरे दर्शन में ये शब्द अपने आप में परिपूर्ण है। इसका उदाहरण भी जल्दी नही मिलेगा। परंतु यह शब्द ही गतिविधि है किसी जीवन के लिए। इंसान सबसे बड़ा उदाहरण हो सकता है इसका मेरे विचारो से।
आज कोई विवाह के बंधन में बंध रहा था। और कोई टूटे दिल के साथ आशिकी के बंधन में बंधा हुआ था। बहुत काल्पनिक शब्द है ये गिरफ्त इसका समुचित प्रमाण किसी संत हृदय से और किसी घातक आतंकी से भी है। इसमें दोनो पूर्णतः बंधन में अंतर सिर्फ इतना है की संत बंधन में होकर भी बंधन मुक्त है।
और दोषी स्वयं से चाहकर भी मुक्त नहीं हो पाता है।
पारिवारिक गिरफ्त ,सांसारिक गिरफ्त,मानसिक गिरफ्त,व्यवहारिक गिरफ्त , और न जाने कितने अनगिनत असंख्य गिरफ्तारी जिनकी न कोई अदालत है और न कोई कैदखाना।
बंधन इंसान के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है वह चाहकर भी इससे दूर नही हो सकता है। क्योंकि उसके जीवन में कुछ सहज है ही नही।
एक समाज जो उसके द्वारा बनाया गया जाल और स्वयं को ही फसा पाता है कभी तो हैरानी होती है।
जन्म से मृत्यु तक बंधन ही तो है और अगर वो भागे तो उसे पकड़ा जाता है।
पालने से उठता भी नही और झुनझुना थमा दिया जाता है। वह सभी वस्तु उसी प्रकार से दी जाती है जो किसी सामाजिक सरोकार में निहित होती है। आज कल मैं देखता हूं। 5 साल के बच्चे को वह उन सभी बंधनों में है जो की शायद कही न कही अभी नहीं होना चाहिए था। स्वयं पिता द्वारा वह अमोलख वस्तु का प्रस्तुतीकरण किया जाता है। इस बंधन में कोई जिम्मेदार नहीं है। अपितु स्वयं वह व्यक्ति भी नही जो गिरफ्तार हो चुका है। क्योंकि अनेक बार उसके न चाहने पर यह विलक्षण काम होता रहता है। विवाह एक अनिवार्यता है आप बंधे है। भोग भी एक अनिवार्यता है तो आप बंधे है। यह जीवन चक्र है ही ऐसा इसका दोष किसको दे। सदैव से मनुष्य अनेकों उदाहरण बनता आया है और आएगा। बंधन का।
अगर कहो की बंधन लत है तो सर्वथा असत्य है। क्योंकि बंधन ज़िम्मेदारी भी है। और एक बेहतरीन जिम्मेदारी एक बेहतरीन मनुष्य का सूचक है। तो ये लत नही है।
विराम के क्षण में सोचो तो पाओगे की लत है जुआ की नशा की और तो और खेल कूद और अन्य कर्म। जो तुम्हारे पास मौजूद है।
परंतु विन्यास करो तो पता चलता है। की बंधन चट्टानों की तरह है। और लत किसी शराब की तरह जो मात्र एक भोग विलास तक सीमित है और कुछ ही पलों के लिए है। लेकिन बंधन या गिरफ्त होना कोई लत नही ये जिम्मेदारी है।
समय रहते इस बंधन का उचित उपयोग हो जाए तो सोचो कितना कुछ पर्वतीति हो जायेगा। परंतु बंधन होना चाहिए। स्वतंत्रता भी बंधन के अभाव में कुछ भी नही है।
जिस काम को करते वर्षो बीते और आपको उसकी सुधि न रहे। वह आपका स्वतंत्र बंधन है। आप उसमे गिरफ्त है।
आप स्वयं से जिम्मेदार हो चुके है।
ध्यान यह रखना चाहिए कि बंधन अनावश्यक न हो। अन्यथा विष्कारक होगा और इसके शिवा कुछ भी नही।
उदाहरण के लिए।
आज के युग में प्रत्येक वस्तु का निर्माण एक नए तरीके से हो रहा है।
और उसमे नई विधि का भी प्रयोग किया जा रहा है। परंतु कल्पना मात्र भी कभी हम प्रारंभिक वस्तुओ को प्राथमिकता देना उचित नहीं समझते है यह भी गिरफ्त ही तो है की हम कही और जकड़े है। जहां का स्थान या वातावरण उपयोगी नही है। यह जानते हुए भी।
इसलिए बंधन में होकर भी बंधन से परे होना ही एकमात्र गिरफ्त है।