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आग की कहानी

जब दुनिया में आदम ने पहली बार कदम रखा। तब प्रत्येक वस्तु का परिवर्तन धीरे धीरे होने की गति पकड़ने लगा। आदम एक ऐसी प्रजाति रही है इस धरती पर। जिसने एक रचना की विश्व को एक नई दिशा। दी। प्रगति हुई। आइए आज एक ऐसी कहानी की तरफ बढ़ते जिसने हमें भूख को शांत करने के लिए स्वादिष्ट व्यंजन दिया। जो प्रायः आज कल आसानी से सभी जगहों पर उपलब्ध है। और उसके दो दृष्टिकोण भी है। प्रथम। व्यावहारिक और दूसरा प्रायोगिक। दोनो ही अपनी आधारशिला पर खरे उतरते। है। जो की एक अदिव्त्य बात साबित होती है। और आग से तो आप काफी रूबरू ही है। आग एक ऐसी देन जिसने दुनिया को बताया कि तप से कैसे किसी चीज को पाया जा सकता है। और पाए भी गए। इस बंजर धरती पर वह पहली वस्तु जिसका आविष्कार हमारे आदम ने किया और आदम इस धरती के वो हिस्से रहे जिनसे प्रत्येक वस्तु को बल मिला। जिसका एहसास आज हम सबको हो रहा है। आग की कहानी में कुछ छुपा हुआ सा है। आग का प्रचंड रूप होता है। आग का जन्म इंसानों से ही हुआ। दक्षिण की ओर से आए हुए कई वानर प्रजाति जिन्होंने आग की उत्पत्ति की। आग एक ऊर्जा है। जो की किसी पुरातन को नूतन में परिवर्तन करने का कार्य करती है। जिस कारण इसको नित नवीन और पावन माना जाता है। समर से लेकर शमशान तक इसकी भी अपनी भूमिका है। इंसानों ने दो पथरो को रगड़कर इसकी उत्पत्ति की और समुचित रूप दे अगर तो किसी भी चीज की घर्षण करना। लेकिन घर्षण तक सही परंतु इसका व्यवहारिक दृष्टिकोण की अग्नि उत्पन जब होती है जब किसी वस्तु की अति होती है। अति कब होती है जब हम किसी चीज पर अनावश्यक रूप से कार्य करते है। इसलिए साधक को अति नही करनी चाहिए। अग्नि से कई सारी वस्तु का आगमन हुआ। सर्वप्रथम अंधकार को भारी क्षति पहुंचा। तदोपरांत। अग्नि ने भोजन बनाने और फिर उसे पचाने का भी काम किया। अग्नि ने मनुष्य को मोक्ष का द्वार भी बताया। और जीवन में जिज्ञासा का भंडार भी खोला। अग्नि से इंसान ने अपने आपको कुल मिलाकर सक्षम बनाया। जीवन में उसने अग्नि को एक महत्वपूर्ण स्थान दे दिया। आग के आने के बाद इंसान ने चीजों को पकाना सीखा। उन दिनों हिम युग के चलते उनको आग से काफी हद तक गर्मी भी मिली। आग की उत्पत्ति ने इंसान को भी उत्पात मचाना सीखा दिया। आग के जलने से कई अन्य चीजों को भी धीरे धीरे बढ़ावा मिलने लगा। मानव जाति ने कई अविष्कार किए लेकिन आग का उपयोग करके उनको ऊर्जा का भी आभाष हुआ। जिस कारण उन्होंने अन्य कई तरह के धातु को पिगलाना और उनसे नए सांचे बनाना। अन्य कई और काम। मनुष्य के जन्म के बाद उसकी मृत्य के समीकरण तक सफर आग बन गई। अग्नि का महत्व सनातन में काफी बढ़ गया। लोगो ने अग्नि को देव तुल्य माना। जिस कारण भी उसका सम्मान बढ़ गया। और भी अन्य तरीके बनाए उसके उपयोग के। अग्नि के कई रूप भी है। जो की क्रोध काम और मोक्ष के सूचक माने जाते है। क्रोध में भी अग्नि के समान प्रचंडता होती है। अग्नि के साक्षी भी कई वैदिक परंपरा है। संभव है की आग की उत्पत्ति ब्रम्हांड की ऊर्जा बनकर आए। तो कई युग को शरण मिल जाए। ईश्वर ने अग्नि और अन्य साधनों के लिए उनके मालिक अर्थात देवता बनाए जिनसे उनको संरक्षित किया जाए। देवता से मनुष्य तपस्या और दान धर्म के बल पर पाना चाहता है। और पा भी लेता है। जीवन भी एक अग्नि है। और उसका चालक मन है। मन को मनाना मनुष्य का काम है। और अग्नि मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन भी है। जो की हानिकारक भी है। आग का विस्तार दर्शन और अन्य जगहों पर भी है। कई बार ऐसा प्रतीत होता है की जैसे मैं अग्नि के केंद्र में ही हूं। ऐसा भी है क्या। अग्नि शरीर की एक मात्र आभा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जिस कारण वह शरीर के तेज , उदर , और तापमान को बनाने में भी अहम भूमिका अदा करती है। जीवंत रूप से मृत्यु की चिता तक अग्नि का साथ होता है। अग्नि आवेश में आकर आपका आवास जला सकती है। अग्नि प्रवाह है। तेज का सूचक है आग्नि। अग्नि प्रमाण भी है। अग्नि ही परिवर्तन करती है पुरातन से नए की ओर के लिए। अग्नि एक और लाभप्रद तो वही अग्नि दूसरी ओर हानिकारक भी है। समन्यता अग्नि की अपनी सरलता है। वह स्वयं दाह होकर एक मृत के पार्थिव को समहित कर उसको पुनः प्राकृत कार्य के लिए लगाती है। इसलिए भी अग्नि सर्वोच्च है। और भी कई उदाहरण है जो की उसकी विशिष्ट पहचान को और उसकी महत्व को बनाए हुए है। परंतु उसका रुद्र स्वरूप भी महाकाल के स्वरूप सा विकराल और तेजस्वी ओजस्वी है जिस कारण भी वह भयावह प्रतीत होती है। तप जप में भी अग्नि को केंद्र माना जाता है। यज्ञ और आहुति भी अग्नि की शांति की कामना के लिए ही किया जाता है