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धूल

लेखिका - राजम कृष्णन

अनुवादक - डॉ लता रामचंद्रन

“क्या देख रही हो?”

उसकी उम्र क़रीब छह साल होगी। उसकी फ्रॉक में गीली मिट्टी के दाग लगे हुए थे, और रूखे बेजान बालों में तेल लगा हुआ था. उसकी आँखों में चंचलता थी, और उसके होंठ थोड़े से खुले हुए थे. उस बच्ची ने मामी के सवाल का जवाब तो नहीं दिया, लेकिन वह उसे टुकुर टुकुर देख रही थी.

“इस घर में क्या आप अकेली रहतीं हैं?” बच्ची ने मुझसे पूछा.

“हमारे घर के मामा तो ऑफिस गए हैं. शाम को आएंगे.”

“मामी! आपके घर में और कोई नहीं रहता है क्या ?”

“हाँ, एक दीदी थी, पर उसकी शादी हो गई है.”

“क्यों? तुम आज स्कूल नहीं गयी? छुट्टी है क्या?"

“हाँ मामी! आज छुट्टी है !"- यह कहती हुई बच्ची अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ बांधकर, बड़ी उत्सुकता से इधर-उधर देखने लगी.

“अरे, अंदर आ जाओ बेटी, धूप बहुत तेज़ है!” अब बच्ची ज़रा हिचकिचाती हुई धीरे-धीरे घर की सीढ़ियां चढ़कर बरामदे में रखी एक बेंच पर आकर बैठ गयी.

“अब बता, क्या नाम है तेरा?"

“बेबी! पर अप्पा मुझे सुंदरा कहकर बुलाते हैं!”

“अच्छा सुंदरा! बड़ा प्यारा नाम है!"

“वहाँ देखिये, जो सामने गली दिख रही है न, उस गली के अंदर ही हमारा घर है.” बच्ची ने गली की तरफ इशारा करते हुए कहा.

“अच्छा, तुम उस गली में रहती हो?"- मामी ने मुस्कुराते हुए पूछा.

मामी ने देखा, कि उस संकरी गली में एक नल है, जो सूखा पड़ा हुआ है, पानी की एक बूँद नहीं। और उस नल के आसपास कुछ खाली घड़े रखे हुए हैं, जो बिल्कुल सूखे पड़े हैं।

“मामी!”

“हाँ, कहो!”

“मैं आपसे एक बात पूछूं? आप मुझसे नाराज़ तो नहीं होंगी न?"

“अरे पूछ न, मैं क्यों नाराज़ होने लगी?”

“मेरे अप्पा कहते हैं, कि हमें बड़ों से ऐसी बातें नहीं पूछनीं चाहिए. फिर भी, मैं आपसे पूछती हूँ. आपका नाम भी सुंदरा है न ?”

यह सुनकर मामी को बहुत आश्चर्य हुआ, और वह बेबी की तरफ प्यार से देखती हुई बोली- “यह तुम्हें किसने बताया ?”

“आपको पता है, हमारे घर में न, एक मूर्ति है, वह मूर्ति बिल्कुल आपके जैसी है. मैं और मैथिली तो पैदा भी नहीं हुए थे. हमारे पैदा होने के पहले से ही यह मूर्ति हमारे घर में रखी हुई है. और अप्पा ने ही उस मूर्ति का नाम सुंदरा रखा है.”

“सुंदरा! यह तुम क्या बोल रही हो बेबी, मुझे तो कुछ नहीं समझ आ रहा है!”

“मामी, मेरे अप्पा आम लोगों जैसे नहीं हैं, वह एक मूर्तिकार हैं. उनकी बनाई हुई मूर्तियाँ बिल्कुल असली लगती हैं, हाँ. वह बहुत बड़ी बड़ी मूर्तियाँ बनाते हैं. क्या आपने, पार्क में लगी हुई गांधीजी की मूर्ति देखी है? वह मूर्ति मेरे अप्पा ने ही बनाई है. हाँ मामी, आपको पता है, प्लास्टर ऑफ़ पेरिस क्या होता है? नहीं पता है न? मैं बताती हूँ. प्लास्टर ऑफ़ पेरिस एक कमाल की मिट्टी होती है. अप्पा उसी से मूर्तियाँ बनाते हैं. इसीलिए मूर्तियाँ बहुत ख़ूबसूरत बनती हैं. उसी प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से अप्पा ने बिल्कुल आपके जैसी एक बहुत ख़ूबसूरत मूर्ति बनाई है जो हमारे घर में रखी हुई है. मामी, आपका नाम भी सुंदरा है न?"

“बेबी , तुम्हारे अप्पा को तो मैंने कभी देखा ही नहीं, तुम शायद किसी और की बात कर रही होगी। अच्छा यह तो बताओ, तुम्हारा कोई भाई या बहन है?"

“है न! एक भाई और एक बहन। मेरी बहन मैथिली, नौवी क्लास में पढ़ती है. वह रोज़ इसी रास्ते से ही तो हिंदी क्लास में जाती है. और मेरा भाई, राजा भैया, वह तो स्कूल में फेल हो गया बेचारा !”

अच्छा, फेल हो गया, तो अब क्या करता है ?"

"अब वह डॉक्टर बन गया है, हाँ. चश्मा लगाकर गोरे से एक डॉक्टर मामा आते हैं न, वह अप्पा के बहुत अच्छे दोस्त हैं. उन्हीं के दवाख़ाने में राजा भैया दवाई का घोल बनाता है. तो हुआ न वह भी डॉक्टर!”- कहकर हस पड़ती है.

फिर बेबी अपनी बड़ी बड़ी आँखों को मटकाते हुए, अकड़ कर बड़ी शान से कहती है- "आजकल मेरे अप्पा न, राजा बहादुर की मूर्ति बना रहे हैं. उस मूर्ति की बड़ी बड़ी मूँछें हैं और उन्होंने हाथ में नक्काशी की हुई एक छड़ी पकड़ी हुई है. यह वही राजा बहादुर हैं, जिन्होंने हमारे स्कूल को बनवाया था.”

“बेबी, तुम्हारे अप्पा यह सारी मूर्तियाँ तुम्हारे उस गली वाले घर में ही बनाते हैं क्या ?"

“हाँ, हमारे उस गली वाले घर में ही. जब कभी रात में बारिश होती है तो मैं, मैथिली और अम्मा, तीनों घर के अंदर सोते हैं. अप्पा और राजा भैया डॉक्टर मामा के घर सोने चले जाते हैं.”

बेबी कुछ देर सोचकर, फिर पूछती है - "मामी, किसी रात अगर बारिश हो तो क्या आप, राजा भैया और अप्पा को अपने घर में सोने के लिए जगह देंगी? क्योंकि, डॉक्टर मामा का घर न हमारे घर से बहुत दूर है.”

“बेबी, तुम ज़रा यहीं रुको, मेरी आंखों में शायद कुछ चला गया है. मैं जल्दी से आँखों को धोकर आती हूं.”- यह कहकर मामी अपनी आँखें मलती हुई, घर के अंदर चली जाती है.”

“कोई बात नहीं मामी, मैं कल फिर आऊंगी।“- बोलकर बेबी घर चली जाती है.

शाम का समय था. बहुत ज़ोर से बारिश हो रही थी. उसका पति ऑफिस से जल्दी घर आ जाता है. और फिर, बाहर कहीं नहीं जाता. क्योंकि उसे अस्थमा की शिकायत है. इस वजह से रात का खाना जल्दी खाकर सो जाता है. वह कभी कभी अपने आप को एक हरे भरे कोमल पत्तियों वाले पेड़ की तरह समझती थी, जिसे कभी फलने-फूलने का मौक़ा ही नहीं मिला. आज उसके पास, उन दिनों की सिर्फ़ यादें रह गई हैं. जिन्हें याद करके वह अपने अकेलेपन से जूझने की कोशिश करती है. यह सोचते सोचते वह घर के बरामदे तक आ जाती है. तभी उसकी नज़र सामने वाली गली पर पड़ती है, जहाँ बेबी का घर था. रात के अँधेरे में उस गली से कुछ लोग आ जा रहे थे.

"मामी, आप राजा भैया और अप्पा को अपने घर में सोने के लिए जगह देंगी?”- बेबी के यह शब्द मामी के कानों में देर तक गूँजते रहे. उसे ऐसा लग रहा था जैसे बेबी दरवाज़ा खटखटा रही हो. उसकी नज़र अभी तक सामने वाली गली में ही टिकी हुई थी. उसने देखा, गली में सन्नाटा छाया हुआ था. मुनिसिपालिटी के खंबे की लाइट पर कुछ पतंगे फड़ फड़ा रहे थे.

अगले दिन उसके पति के ऑफिस जाने के बाद, घर के कामों से निपट कर, जब वह खाना खाने के बाद हाथ धो रही थी, उसे अपनी चौख़ट पर किसी की परछाई बिंदु दिखाई दी. उसने मुड़कर देखा, - वहाँ तो बेबी खड़ी थी.

बेबी को देखकर उसने मुस्कुराते हुए कहा -“अरे बेबी तुम! कब आयी, चलो आओ खाना खा लो."

“नहीं मामी! मै तो खाना खाकर आई हूं. देखिए ख़ुशबू !"- यह कहते हुए बेबी मुस्कुराई और अपने नन्हे नन्हे हाथों को उसकी नाक से सटा दिया. “हाँ बहुत ही अच्छी!” फिर बेबी अपनी आँखें मटकाती हुई बोली- “मामी, मैंने अप्पा को न, आपके बारे में बताया। अप्पा को मेरी बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। वह मुझसे कहने लगे- “अरे मेरी पगली बेटी! वह सुंदरा तो कब की मर चुकी है. जिसकी बात तुम कर रही हो न,वह कोई और होगी.” अप्पा को जब मैंने यह बताया कि मैंने आपसे उनके और राजा भैया के सोने के लिए जगह माँगी है, तो उन्होंने मुझे बहुत ज़ोर से डांट दिया- "ऐसे भी कोई पूछता है क्या? ऐसा पूछना अच्छी बात नहीं है. दुबारा ऐसी ग़लती कभी मत करना।"

यह सुनकर मामी ने बात बदलने की कोशिश करते हुए कहा - “अच्छा यह तो बता, राजा बहादुर की मूर्ति स्कूल में कब लगनेवाली है?”

“राजा बहादुर की मूर्ति को जब स्कूल में रख देंगे न, तो अप्पा और राजा भैया को बारिश के दिनों में, सोने के लिए डॉक्टर मामा के घर पर नहीं जाना पड़ेगा. लेकिन.. !”

“लेकिन! लेकिन, क्या बेबी?”

“मामी, मेरे अप्पा को हर महीने सिर्फ़ दो सौ रूपए ही मिलते है. कल हमारी मकान मालकिन आयी थी. बड़े बड़े दांतो वाली दादी, और ज़ोर ज़ोर से चिल्ला चिल्लाकर पैसे मांगने लगी!”- यह कहते कहते बेबी की आँखों में आँसू आ गए. फिर रुआंसी होकर बोलने लगी- “मामी, मेरे अप्पा होनहार होने के साथ साथ एक ईमानदार इंसान भी हैं. हमारे स्कूल में बहुत सारे बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन किसी के भी अप्पा मेरे अप्पा जैसी मूर्ति नहीं बना सकते. सभी के अप्पा या तो ऑफिस जाते हैं या अपनी कोई छोटी मोटी दुकान चलाते हैं. आपके घर के मामा भी ऑफिस ही जाते हैं न मामी?”

“हाँ बेबी!”

“मामी! मेरे अप्पा मुझसे बहुत प्यार करते हैं. सुंदरा बिटिया, सुंदरा बिटिया कह कहकर बड़े प्यार से मुझे आवाज़ लगाते हैं. हमारे घर में जो मूर्ति रखी हुई है न, जिसके के बारे में मैंने आपको बताया था, मेरा और उसका नाम भी एक ही है, सुंदरा।"- यह कहते हुए बेबी बड़ा गर्व महसूस कर रही थी.

"अप्पा कहते हैं सुंदरा बहुत अच्छी थी. अप्पा और वह स्कूल में एक साथ, एक ही क्लास में पढ़ते थे. लेकिन पता नहीं क्यों, कुछ दिनों बाद अप्पा जेल चले गए." - बेबी के इतना कहते ही कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया. फिर सन्नाटे को तोड़ती हुई बेबी की आवाज़ ने बात को आगे बढ़ाया-

“जेल! आपको कहीं चोरी तो नहीं लगा? नहीं नहीं मामी, अप्पा ने कोई चोरी नहीं की थी. दरअसल बहुत पहले हमारे देश में गोरे लोग रहते थे. अप्पा और कुछ लोगों ने मिलकर गोरे लोगों के ऑफिस के बाहर धरना दे दिया और झंडा लेकर उनको हमारा देश छोड़कर जाने को कहा. लेकिन वह गोरे लोग बहुत गंदे थे. उन लोगों ने अप्पा को जेल में बंद कर दिया. लेकिन मेरे अप्पा बहुत होशियार थे. वह जेल से बच निकले और एक छोटे से घर में जाकर छुप गए. यह बात किसी को नहीं पता थी, सिर्फ़ सुंदरा को ही पता था. तब न, वह सुंदरा, छुप छुपकर अप्पा को खाना लाकर देती थी. कुछ दिनों बाद अप्पा घर वापस आ गए. और एक दिन सुंदरा भी अपना सारा सामान लेकर अप्पा के साथ रहने के लिए हमारे घर में आ गई. लेकिन सुंदरा के अप्पा को इस बात का पता चल गया. और वह सुंदरा को ढूंढते हुए, हमारे घर पर आ गए. वह बहुत बुरे थे. उन्होंने सुंदरा को बहुत मारा और ज़बरदस्ती अपने साथ लेकर चले गए. सुंदरा बहुत रोई. बेचारी सुंदरा, और फिर कुछ दिनों के बाद वह मर गई. मुझे न, यह बात अप्पा ने कल ही बताई थी."

यह बात सुनकर, मामी इस बार अपनी आँखों में धूल गिर जाने का बहाना नहीं करती, बस चुप चाप उठकर अंदर चली जाती है.

“क्या हुआ मामी, कहाँ जा रही हो?"- यह कहकर बेबी भी उठ कर खड़ी हुई और आँखें झपका झपकाकर मामी को अंदर जाते हुए देखने लगी.

“कुछ नहीं बेबी! आंखों में दर्द हो रहा था. पानी से धोने गई थी.”- मामी ने कुछ देर बाद वापस आकर बोला।

“मुझे भी एक बार आंखों में दर्द हुआ था. उस वक़्त मैं दूसरी क्लास में पढ़ती थी. डॉक्टर मामा ने दवा डाली थी. आंखों में बहुत जलन हुई थी. मेरी अम्मा को भी आंखों में दर्द हुआ था, पर अम्मा डॉक्टर मामा के पास कभी नहीं जाती है. मेरी अम्मा तो कहीं भी बाहर नहीं जाती. पहले जब पार्क में गांधी जी की मूर्ति लगाई गई थी न, तब हम सब लोग साथ में गए थे. हम सब ने तो आइसक्रीम भी खाई थी. उस वक़्त अप्पा को ज़री वाली शॉल ओढ़ाकर सत्कार भी किया गया था. तब सब वहाँ थे. पर मेरी अम्मा नहीं आई थीं. मेरी अम्मा न, सुन नहीं सकती हैं. अम्मा बहुत ख़ूबसूरत दिखती हैं. पर सब लोग अम्मा को कम दिमाग़ वाली कहते हैं. लेकिन मेरी अम्मा बिल्कुल भी वैसी नहीं हैं. मेरी अम्मा के पास बहुत दिमाग़ है. वह बहुत अच्छा सांभर बनाती हैं. देखिये, देखिये न, मेरे हाथों में अब तक कितनी अच्छी ख़ुशबू आ रही है, है न!"

उसने भी उसके हाथों को सूंघते हुए कहा - “वाह! ख़ुशबू तो सच में बहुत अच्छी आ रही है बेबी!”

फिर बेबी की नज़र उस घर के बड़े से कमरे पर पड़ी और वह बोली- “मामी, आपके घर जैसे बड़े घर में हम नहीं जा सकते, हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं, हम लोग ग़रीब हैं न !"

“चल पगली, तुम लोग ग़रीब नहीं हो. ऐसी बातें नहीं करते."

“नहीं मामी, हम लोग ग़रीब ही हैं. हम ग़रीब नहीं होते, तो वह बड़ी-बड़ी दांतों वाली दादी हम पर पैसों के लिए क्यों चिल्लाती? अप्पा को भी कभी-कभी ही मूर्ति बनाने का काम आता है, रोज़ रोज़ तो नहीं आता न?” अप्पा कहते हैं --"महान लोगों की और ईश्वर की ही मूर्ति बनानी चाहिए. जब अप्पा की बनायी हुई राजा बहादुर की मूर्ति स्कूल में रखेंगे न, तब अप्पा को बहुत महंगी वाली ज़री की बड़ी सी शॉल पहनाई जाएगी. और उनका बहुत आदर सम्मान किया जायेगा." अम्मा कहती हैं.- "उस ज़री वाली शॉल से मैथिली और मेरे लिए एक-एक, सुंदर-सुंदर, सा लहंगा बनवां देंगी।" - कहकर बेबी ख़ुशी से उछलने लगी.

“मामी, आप एक बार हमारे घर आएँगी न?"

“ज़रूर आऊँगी बेबी! क्यों नहीं?" और वाक़ई एक दिन ऐसा आया, जब मामी को बेबी के घर जाने का मौक़ा मिला.

मामी को अपने छोटे से घर में आती देखकर बेबी की अम्मा ने उसका बड़ी ख़ुशी से स्वागत किया - “आईये, आईये! बेबी तो रोज़ आपके बारे में बातें करती है.और देखिये न इसको! रोज़ रोज़ आपके घर में मिठाई और फल खा खाकर कितनी मोटी हो गई है. इसकी छुट्टियाँ अच्छी कट रहीं हैं!"- बेबी की अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा. उसकी इस मुस्कुराहट में एक भोलापन छुपा हुआ था.

घर में सबसे पहले, एक छोटा सा चकोर कमरा था. उससे लगा हुआ एक और कमरा था, जिसमे काफी अँधेरा था. उसके सामने एक खुला हुआ चौड़ा सा बरामदा था. बरामदे से सटी हुई एक छोटी सी रसोई थी. और वहीं एक कोने में, एक आदमक़द, शानदार, बेहद ख़ूबसूरत राजा बहादुर की विशाल मूर्ति विराजमान थी. मूर्ति बड़े गर्व से कलाकार की कलाकारी को दर्शा रही थी. और उसके साथ में एक छोटे से पटरे पर एक छोटी सी मूर्ति रखी हुई थी.

बेबी की अम्मा ने मामी की तरफ देखते हुए ख़ुशी और मायूसी की मिली जुली आवाज़ में कहा - "इस महीने की दस तारीख़ तक राजा बहादुर की इस मूर्ति को स्थापित करने ले जायेंगे. सब लोग कहते हैं कि यह मूर्ति बहुत सुंदर बनी है. सच तो है, बेबी के अप्पा बहुत बड़े मूर्तिकार जो हैं. मैंने तो यह भी सुना है, कि बेबी के अप्पा को मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम में सम्मानित भी किया जायेगा, हर बार की तरह. यह सब तो बहुत पहले से होता ही आ रहा है. पर, इससे क्या? हमारा तो न कोई नुक़सान न कोई फ़ायदा। जिस तेज़ी से लहर उठती है, उसी तेज़ी से उतर भी जाती हैं.”

"मामी, मामी, आप मेरे साथ आईये। यहाँ देखिये, यह छोटी वाली मूर्ति बिलकुल आपके जैसी दिखती है न? बिलकुल आपके जैसी नाक, आपकी जैसी आँखें, आपके जैसे होंठ और बाल भी बिल्कुल आपके जैसे, है न!"- यह बोलती हुई बेबी उस छोटी सी मूर्ति की तरफ उसे खींच कर ले जाती है.

अम्मा ने बेबी की बातों पर ध्यान नहीं दिया, वह तो अपने ही ख़्यालों के जाल बुन रही थी. बहुत निराश होकर उसने अपनी बात आगे बढ़ाई-“यह कोई नई बात नहीं है, सत्कार और मालाएं, मान सम्मान, ज़री की शॉल, यह सब पल भर के लिए इंसान को ऊंचाइयों तक ले जाती है. पर यह ऊंचाइयां हमें हमारी ग़रीबी से ऊपर नहीं उठाती। हमारी ग़रीबी इसी तरह हमारे जीवन के साथ साथ चलती रहती है. कलाकार के जीवन की सच्चाई और पैसे वालों की झूठी दुनिया के बीच हमेशा से ही एक जंग चलती आ रही है.”

बेबी के घर कुछ देर और ठहरकर मामी अपने घर लौट आयी. उसने देखा, घर के बाहर उसके पति की गाडी खड़ी है. उसका पति घर आ चुका था. उसका मन बहुत विचलित था. जैसे ही वह घर में दाख़िल हुई, उसने बैठक में, दीवार पर लगे हुए आदमक़द शीशे में अपने आप को देखा. वह एक पल के लिए रुक गई. उसने बड़े ध्यान से अपने आप को फिर से देखा, अपनी आँखें, अपनी नाक, अपने होंठ और अपने बाल भी. उसके विचलित मन से एक ही आवाज़ गूंजने लगी- “यह सुंदरा, वह सुंदरा नहीं, जिसे उस कलाकार ने बनाया था. वह सुंदरा तो उस कलाकार की सुंदरा थी. वह तो कब की मर चुकी है. मेरे अंदर की वह सुंदरा तो कब की मर चुकी है.” इतने में उसका पति कपड़े बदलकर उसके क़रीब आया और बड़े प्यार से उसको देखकर पूछा – “क्या बात है सुंदरा, तुम्हारी आँखें नम क्यों हैं? बेटी की याद सता रही है क्या?”

“कुछ नहीं, बस आँखों में धूल....अभी धोकर आती हूँ...!”