Hum Ne Dil De Diya - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

हमने दिल दे दिया - अंक २

सुबह होते ही उन लडको की लाशो को अपने अपने घर आत्म हत्या का बहाना कर के पंहुचा दी जाती है | जिले का हर एक आदमी जानता था की उन लडको ने आत्म हत्या नहीं की है उनको मानसिंह जादवा ने मार डाला है पर किसी में इतनी हिम्मत कहा की वो आकर मानसिंह जादवा के खिलाफ खड़ा हो सके क्योकी की यहाँ का कानुन भी मानसिंह जादवा की गुलामी करता था और तलवे चाटता था |

    वो बरगद का पेड जिसने एसे कई सारे किस्से और घटनाये देखी है जहा दानव ने सच्चाई को परेशान किया हो | आज भी वह पेड़ वही पे खड़ा था और काश वो बोल सकता क्योकी अगर वो बोल सकता तो इतना जरुर कहता की इन सबको काट रहे हो तो मुझे यहाँ पर यह सब देखने के लिए क्यों रखा है मुझे भी काट दो |

    सारा गाव सुबह होते ही अपने अपने काम के लिए निकल चूका था | जाते हुए सभी लोग उस बरगद के पेड को और निचे अभी भी जलती राख को देख रहे थे और उनके दिमाग में बार बार रात का वही दृश्य दिखाई दे पड़ रहा था |

    कुछ समय बीतने पर उस बरगद के पेड के निचे एक प्राचीन समय जैसा दिखने वाला लोटा लेकर एक लड़का आता है जिसकी उम्र उसके कद काठी को देखते हुए लगभग-लगभग २६ साल लग रही थी | वो लड़का और कोई नहीं बल्कि उस लड़की का भाई था जिसे कल रात गाव के लोगो ने जिंदा जला दिया था | आज ही अपनी वकालत की पढाई पुरी करके गाव आया था जिसका नाम था शिव प्रताप | शिव प्रताप पढ़ा लिखा था तो जाहिर था की वो भी इन सारे रिवाजो के खिलाफ ही होगा पर वो भी अकेले होने के कारण रावण राज लेकर बेठे मानसिंह जादवा का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता था |

    जहा पर शिव की बहन को अग्निस्नान करवाया गया था वहा की राख अभी भी गरम थी और उसमे से धुआ निकल रहा था | शिव अपनी बहन की राख के पास आखो में आशु के साथ जाता है और उस राख में से हाथ जलने के दर्द के बिना ही वे अपनी बहन की अस्थि एकत्रित करता है और साथ लाये लोटे में भर लेता है | गाव के लिए वो अभी सिर्फ एक राख थी पर शिव के लिए उसकी बहन की पवित्र चिता थी | अस्थि इकठ्ठा करने के बाद शिव अपनी बहन की चिता के सामने झुककर नमन करता है और फिर बड़े अफ़सोस के साथ अपनी बहन की चिता को देखता हुआ सोचता है की उसकी बहन ने कितनी तकलीफों के साथ यह दुनिया छोड़ी होगी |

     मुझे माफ़ कर देना मेरी प्यारी बहेना की में तुम्हारी रक्षा के लिए यहाँ पर उपस्थित नहीं था और तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सका | में आज से ही इस घर और इस गाव और पापा को छोड़कर जा रहा हु मुझे नहीं रहना है इन हेवानो के बिच जो इंसान से ज्यादा जानवर और दानव लगते है | में अपनी वकालत शुरू करने जा रहा हु और साथ में तुम्हारी इस राख की कसम खाकर कहता हु की एक दिन में मानसिंह जादवा को तड़पता हुआ जरुँर देखूंगा और उसमे मेरा सबसे बड़ा योगदान होगा यह मेरा वादा है तुमसे बहना ... मुठ्ठी में बहन की राख और आखो में आशु के साथ शिव ने कहा |

    कई लोगो को मानसिंह जादवा के हाथो घाव लगे थे लेकिन मानसिंह जादवा इतना ताकतवर इंसान था की किसीके अंदर उसके खिलाफ जाने की या उसका कुछ बिगाड़ने की हिम्मत नहीं थी |

    कल रात जो कुछ भी हुआ अब उसे भुलाकर गाव वाले मानसिंह जादवा के बेटे वीर की शादी के जश्न का लुप्त उठा रहे थे | आज पुरा जादवा सदन फूलो की महक और महेमानो की ख़ुशी से चहेक रहा था | जादवा परिवार के रितरिवाजो के मुताबिक वीर की शादी की सम्पूर्ण विधि की शुरुआत हो चुकी थी | जादवा सदन का आँगन आज महेमानो से भर चूका था पुरे सदन में आज चारो तरफ ख़ुशी ही ख़ुशी थी मानो जैसे ख़ुशी का सैलाब आ गया हो | शिर पे पगड़ी और चहरे पे राजवी सा रुआब मानसिंह जादवा को शोभा दे रहा था | सुरवीर से लेकर घर के सभी मर्दों ने अपने शिर पे पगड़ी तान रखी थी और गले में बड़े-बड़े सोने के हार पहनकर रखे हुए थे | आज जादवा सदन कोई राजा के राज महल से कम नहीं लग रहा था |

     सभी जरुर ख़ुशी मना रहे थे लेकिन जादवा सदन के वडिल यानी बा इस ख़ुशी में सामिल नहीं हुए थे क्योकी एक विधवा होने पर आप को संसार के किसी भी सुख में सामिल होने का हक नहीं होता एसा यहाँ का कानुन था जिसे बा अच्छी तरह निभा रहे थे और इसी वजह से बा जादवा सदन की पिछली तरफ एक अलग ही कमरा था जिसमे बैठकर भगवान का कीर्तन और माला जप रहे थे |

     मानसिंह जादवा बहुत बड़े इंसान थे इस वजह से आज जादवा सदन में बड़े-बड़े मिनिस्टर और व्यापारियों का आगमन हो रहा था और उनके स्वागत के लिए मानसिंह जादवा खुद दरवाजे पे खड़े थे और बड़े प्यार से सबका स्वागत कर रहे थे | पुरे जिले के सारे बड़े अधिकारी आज जादवा सदन में वीर की शादी में सामिल होने के लिए पहुचे हुए थे |

     कहा जाता है की हर एक व्यक्ति के लिए कोई एसा व्यक्ति होता है जो आपके विरोध पक्ष का कर्तव्य निभाता है यहाँ पर भी एक इंसान एसा था जो हाल-फिलहाल जनमावत तालुके का MLA है जिसकी जगह पे आने वाले चुनाव में मानसिंह जादवा खड़े होने वाले है | शक्तिसिंह जो हाल के दिनों में MLA की खुरशी पे बेठा हुआ है और उन्हें उस खुरशी पर बिठाने का श्रेय मानसिंह जादवा को ही जाता है | शक्तिसिंह और मानसिंह जादवा दोनों चचेरे भाई है और दोनों के बिच अब तक बहुत प्यार था पर जब से मानसिंह जादवा ने चुनाव लड़ने का एलान किया है तब से शक्तिसिंह को अपना बड़ा भाई मानसिंह जादवा खटकने लगा है क्योकी शक्तिसिंह यह अच्छी तरह से जानता है की मानसिंह जादवा के आते ही उसकी खुरशी का कार्यकाल समाप्त हो जायेगा और यह खुरशी की लत एसी है की अगर एक बार लग गई तो फिर इसे छोड़ना बहुत ही मुश्किल भरा कार्य है जो शक्तिसिंह द्वारा नहीं हो पा रहा है |

     लाल बत्ती वाली MLA की कार में शक्तिसिंह का प्रवेश होता है जादवा सदन के पास | बड़े रुआब के साथ शक्तिसिंह कार से उतरता है | MLA के साथ जैसी पुलिस की सिक्योरिटी होती है वैसी ही सिक्योरिटी शक्तिसिंह के साथ थी | चहरे पे हसी और मन में जहर लेकर शक्तिसिंह जादवा सदन में प्रवेश करता है | मानिसंह जादवा शक्तिसिंह का स्वागत बड़े अदबो-आदाब से करता है |

      जय माताजी भाई-साहब कैसे हो ... शक्तिसिंह ने अपने भाई मानसिंह जादवा से कहा |

      बस बढ़िया अब तुम जैसे मैंने तुम को खुरशी पे बिठाया था वैसे मुजको बिठा दो तो डबल खुश ... मानसिंह जादवा ने अपने चचेरे भाई से कहा |

      अरे बिलकुल भाई-साहब पर यह बा जी कहा है पहले उनसे मिल लेता हु वरना उनका गुस्सा तो आपने देखा ही है ... ज्यादा उत्तर ना देना पड़े इस वजह से शक्तिसिंह बहाना करके अपने भाई से दुर चला जाता है |

      मानसिंह जादवा को अभी तक अपने भाई की बिगडती हुई नियत दिख नहीं रही थी |

      इतना बोलकर शक्तिसिंह अंदर घर की और चला जाता है और मानसिंह जादवा अपने महेमानो को सँभालने में लग जाते है |

      पुरा जादवा परिवार आज आनंदित था | पुरे गाव को आज दावत पे बुलाया गया था और दान-धर्म में भी जादवा परिवार पीछे नहीं था | जादवा परिवार के द्वारा आस-पास के गाव के सारे ब्राह्मण को भी भोजन पे बुलाया गया था | बड़ी ही भव्य शादी होने वाली थी मानसिंह जादवा के छोटे बेटे वीर जादवा की | दिनभर में शादी की सारी विधि विधीवत तरीके से परीपूर्ण होती है और दुसरे दिन बारात पास वाले गाव भिड़ा जहा दुल्हन के जोड़े में सजी हमारी कहानी की नायिका दिव्या शादी के लिए तैयार थी वहा पहुचती है | बारात का नाचते गाते हुए गाव में प्रवेश होता है | जाहिर है की शादी मानसिंह जादवा के लड़के की है तो बारात में तलवारों और बंदुको का होना तो लाजमी है | हर एक मर्द के हाथो में बंदूके और तलवारे थी और साथ में नाच-गाना चल रहा था | पुरा दृश्य मानो एसा लग रहा था जैसे बंदूके और तलवारे नृत्य कर रही हो | बंदूके को लेकर नाचने वाले समय-समय पर गोलियों की भी आसमानी बोछार कर रहे थे | तलवार बाज अपनी तलवार बाजी दिखा रहे थे और उन सबके बिच सफ़ेद और रूआबदार घोड़े पे सवार दुल्हे के रूप में सजा वीर बेठा हुआ था जिसके चहरे पे इतनी ख़ुशी नहीं थी जितनी एक शादी करने वाले के चहरे पे होनी चाहिए | क्यों नहीं थी इसका उत्तर सिर्फ और सिर्फ वीर के पास ही हो सकता है | सबसे छोटी बहन ख़ुशी जो बारात में आई थी और उसे नाचने का बहुत मन था पर गाव के और समाज के रित-रिवाज औरतो को यह सब करने की परवानगी नहीं देते थे इसी वजह से गाव की औरतो को मर्दों का नाच-गान देखकर ही संतुष्ट होना पड़ता है |

      समयानुसार शादी की विधि की शुरुआत होती है | दुल्हन के जोड़े में सजी माँ पद्मनी जैसी खुबसुरत लग रही दिव्या का लग्न मंडप में आगमन होता है | सभी की नजरे दिव्या पर ही अटक गई थी दिव्या इतनी खुबसुरत लग रही थी | दिव्या इतनी खुबसुरत थी की जो कोई भी उसे देखता तो उसके दिमाग में एक ही ख्याल आता की यह चहेरा हमेशा इतना हसता खिलता रहे पर वीर को दिव्या एक लड़की के रूप में भले ही पसंद थी पर एक पत्नी के रूप में उसे दिव्या बिलकुल पसंद नहीं थी और वह बात उसके चहरे पे साफ़-साफ झलक रही थी |

     दोनों की विधिविधान के साथ शादी हो जाती है और बारात अपने दुल्हा-दुल्हन के साथ वापस नवलगढ़ आ पहुचती है | बहु का जादवा परिवार के रित-रिवाज से जादवा परिवार में स्वागत किया जाता है | दिव्या के साथ इस वक्त मानसिंह जादवा की बेटी ख़ुशी और दिव्या की सासुमा यानी मानसिंह जादवा की पत्नी और सुरवीर जादवा की पत्नी हाजिर थी |

     सबसे पहले दिव्या को अपने अलग कमरे में बेठे बा के पास ले जाया जाता है ताकि दिव्या को बा के आशीर्वाद मिल सके | लंबा घूँघट तानी और दुल्हन के जोड़े में सजी दिव्या बा के आशीर्वाद के लिए उनके कमरे में प्रवेश करती है | जादवा सदन की औरतो को अपनों से बड़ो की लाज निकलना आवश्यक था इसी लिया वहा मौजूद ख़ुशी के अलावा सारी औरतो ने घूंघट तानकर रखे हुए थे |

      लंबे घूँघट के साथ दिव्या बा के पास जाकर उनके चरण स्पर्श कर के आशीर्वाद प्राप्त करती है |

      फूलो-फलो और लंबी उम्र हो तुम्हारे पति की और तुम्हारी और सदा सुहागन रहो और अपने कुल की लाज का हमेशा ख्याल रखो एसे आशीर्वाद ... बा ने आशीर्वाद देते हुए कहा |

      वीर की शादी पुर्ण होती है और आज का दिन जादवा परिवार के लिए खुश- खुशाल बीतता है |  

      दुसरे दिन सुबह | वीर अपनी शादी के दुसरे ही दिन अपने दोस्तों के साथ गाव से लगभग १५ किलोमीटर दुर अपने फार्म-हाउस पर शराब की महफिल जमाकर बेठा हुआ था | वीर के प्रमुख तिन मित्र थे | विष्णु, पवन और मितुल | विष्णु और पवन वीर के चमचे थे जो हर बात पे वीर को उकसाने और उसकी चापलुसी करने का कार्य करते रहते थे पर मितुल सही और समझदार व्यक्ति था जो हर बार अपने दोस्तों को सही राह पर लाने की कोशिश करता और अपने दोस्तों को सही गलत क्या है उसका ज्ञान देने की कोशिश करता | मितुल शराब का सेवन बिलकुल नहीं करता था वो बस अपने दोस्तों के साथ गप्पे लड़ाने के लिए उनकी हर एक शराब की महफ़िल में सामिल होता | आज भी सभी दोस्तों के बिच संवाद चल रहा था | वीर, विष्णु और पवन के हाथो में शराब के पेग भरे प्याले थे और तीनो शराब का पुरा लुप्त उठा रहे थे |

     भाई यार आपके जितना लकी इस पुरी कायनाथ में कोई नहीं होगा ... पवन ने अपनी चापलुसियत की शुरुआत करते हुए कहा |

     क्यों अबे तुझे एसा क्यों लगता है ... वीर ने एक पेग लगाते हुए कहा |

     सही बात है भाई उसकी मुझे भी एसा ही लगता है ... विष्णु ने भी अपना पहला पेग ख़त्म करते हुए कहा |

     अबे क्यों लगता है उसका तो जिक्र करो ... मितुल ने भी जानने की उत्सुकता से कहा |

     देखो एक तो आपका जन्म एसे परिवार में हुआ जो राजवी परिवार है दुसरा पैसे वाला है तीसरा सबसे पावरफुल परिवार है आपको ना तो कोई पुलिस वाला परेसान कर सकता है और ना ही कोई कानुन लगता है और तो और भाई आप विदेश उन गोरियों के बिच पढ़े हो वहा आपने मजे भी किए होंगे और फिर यहाँ आकर अप्सरा जैसी दिखने वाली भाभिमा से शादी कर ली एसी पत्नी जो अपने शरीर से और गुण से दोनों से परिपूर्ण है हमें तो अपने सात जन्मो में ना मिले एसी पत्नी अब बताओ एसा क्या है आपके जीवन में जिसकी कमी हो आप सबसे भाग्यशाली हो ... पवन को नशा चढ़ गया था और उसी नशे में वह यह सब बोल रहा था |

     ओह बका मेरे भी जीवन में कमी है और वह भी इतनी बड़ी जिसे मेरा बाप और मेरा पुरा परिवार मिलकर भी नहीं मुझे दिला सकता ... वीर ने अपने दोस्तों से कहा |

     अब वीर भी पुरा शराब के नशे में आ चुका और वह जो भी बोल रहा था वो सब सच बोल रहा था | कई दिनों से अपने अंदर भरी हुई बातो को वीर अब बहार निकाल रहा था |

     एसा क्या है यार बता तु हमारे साथ अपनी कमी शेर कर सकता है हम दोस्त है तेरे क्या पता तेरी मदद कर सके ... मितुल ने कहा |

     शराब के नशे में धूत वीर मितुल की इस बात को सुनकर मुस्कुराता है |

     जब मेरा बाप इसमें कुछ नहीं कर सकता तो तुम लोग क्या घंटा कुछ कर सकते हो मेरे लिए ... वीर ने जैसे बेवडा शराब पीकर बोलता है वैसे बोलते हुए कहा |

     फिर भी भाई बताओ तो सही ... विष्णु ने कहा |

     मेरे जीवन में प्यार की कमी है क्या प्यार की | मुझे तुम्हारी भाभी के साथ जीवन बिताने की कोई इच्छा नहीं है | में लंदन जहा पढता था वहा मेरी एक गर्लफ्रेंड है जिसे में बहुत प्यार करता हु और उसी के साथ शादी करना चाहता था और अपना जीवन बिताना चाहता था पर इस समाज के रिवाजो ने और मेरे बाप के राजकीय रंगों ने मेरा जीवन बरबाद कर दिया | बचपन से ही मुझे पुछे बिना ही मेरे जीवन की रेखा किसी और के साथ जोड़ दी गई जिससे उनको पास वाले गावो के भी वोट मिल सके क्योकी मेरे ससुर वहा के प्रधान है | साला कोई पुछता नहीं है की मुझे क्या चाहिए ... वीर ने शराब का प्याला टेबल पर रखकर पुरी बोटल उठाते हुए कहा |

     वीर की इस बात को सुनकर तीनो दोस्त हेरान थे और सोच में पड़े हुए थे की वीर यह सब क्या बता रहा है |

     जो भी हुआ उसे अब भूल जा और भगवान ने इतनी अच्छी पत्नी दी है उसे अपना ले और अपने जीवन में आगे बढ़ जा वीर ... सही सलाह देते हुए मितुल ने वीर से कहा |

     अबे वो मेरा प्यार है कोई खिलौना नहीं की में उसे छोड़ दु | कुछ महीने बाद काम का बहाना करके वहा पर जाऊँगा और फिर वापस ही नहीं आऊंगा वहा पर उसके साथ शादी करके वही पे बस जाऊँगा ... वीर ने शराब के नशे में न जाने  कुछ भी बोलते हुए कहा |

     तु दिव्या भाभी के साथ एसा कैसे कर सकता है वीर भगवान ने तुझे इतनी सुंदर और गुणी पत्नी दी और तु उसे इस बिच अकेला छोड़कर भाग जाना चाहता है | तुझे पता भी है की तेरे जाने के बाद दिव्या की हालात यहाँ पर कैसी होगी ... मितुल ने अपने दोस्त वीर पर थोडा सा गुस्सा होते हुए कहा |

     वो मेरा प्रश्न नहीं है और तु क्यों इतना उछल रहा है तेरी कौन लगती है दिव्या और हां मेरी वाली दिव्या से भी खुबशुरत और गुणी है दिव्या का जो होना है हो मैने उसे इस शादी के लिए हां करने को नहीं कहा था | मुझे बस अपना जीवन जीना है बाकि जिसको जो भी करना है करे और जिसका जो भी होना है हो ... वीर ने अपना स्वर्थीपना दिखाते हुए कहा |

     देख वीर आदमी से दानव मत बन और लंडन वाली उस लड़की के लिए अपना जीवन बरबाद मत कर यहाँ पर जो घर बसा है उसे उजाड़ मत ... मितुल ने कहा |

     वीर शराब के नशे में था उसको कुछ भी मालुम नहीं था की वो क्या बोल रहा और क्या कर रहा है | वीर अपनी जगह पे खड़ा होता है और बड़े गुस्से के साथ मितुल को थप्पड़ मार देता है | माहोल थोडा गंभीर सा हो जाता है | सभी अपनी जगह से खड़े हो जाते है |

     अभी के अभी निकल यहाँ से साले तु कौन होता है मुझे यह बताने वाला की क्या करे और क्या नहीं करना चाहिए और रही बात उस लड़की की तो वो सिर्फ लड़की नहीं है वो मेरा प्यार है मेरी जान है निकल साले ... अंत में जोर से चिल्लाते हुए वीर ने कहा |

     इतनी बेइज्जती होने की वजह से मितुल को वहा पर एक पल भी खड़े रहना उचित नहीं लगा और वह वहा से चला जाता है |

     साला अब बहुत हो गया में अभी जाता हु जादवा सदन और अपने बाप से बोल ही देता हु की मुझे यह शादी मंजूर नहीं है में अपनी मरजी से ही शादी करूँगा और जीवन पसार करूँगा ... वीर ने अपनी कार की तरफ आगे बढ़ते हुए कहा |

     रुक जाओ भाई फिर कभी जाते है ना आज रहने दो ... पवन ने अपनी कार की और बढ़ रहे वीर को समझाने की कोशिश करते हुए कहा |

     वीर अब किसी की भी सुनने वाला नहीं था | वीर के कदम तेज गति से कार की और बढ़ रहे थे |

     देखो भाई रुक जाओ ... विष्णु ने कहा |

     देखो तुम लोग मुझे रोकने की कोशिश मत करो वरना तुमको भी इसका हर्जाना चुकाना होगा ... वीर ने अपने बाकि के दोनों मित्रो को धमकी के स्वर में कहा |

     पवन और विष्णु में मितेश जितनी हिम्मत नहीं थी की वो वीर से उची आवाज में बात करके उसे समझा सके | दोनों वीर को अपनी मनमानी करने देते है और उसे जहा जाना है वहा जाने देते है |

     वीर शराब के नशे में धुत होने के बाद भी अपनी कार खुद चलाकर अपने पिता के पास जाने के लिए निकल पड़ता है पर उसकी कार का बलेंस बहुत ही ख़राब था जो फार्म-हाउस से बहार निकलने से पहले गेट से टकराकर निकलती है |

     पवन हमने वीर भाई को शराब के नशे में यहाँ से कार चलाकर जाने देने की भुल कर दी मेरे भाई ... विष्णु ने कहा |

     वो अक्षर नशे में कार चलाते है पर आज कुछ ज्यादा ही नशे में थे चल हम उनके पीछे जाते है ... पवन ने कहा |

     विष्णु और पवन दोनों वीर जादवा का पीछा करने उसके पीछे जाते है पर वो थोड़े आगे जाके रुक जाते है जहा पर दो रास्ते थे जो तय नहीं कर पा रहे थे की कहा जाए और वीर भाई कोन से रस्ते पर गए होंगे |

नवलगढ़ के बझार में

     वैसे तो नवलगढ़ गाव था पर उसका बझार एकदम शहर जैसा था क्योकी यहाँ पर लोगो की बस्ती बहुत ज्यादा थी | इतनी बस्ती वाले गाव देशभर में बहुत कम है | बझार के बीचो-बिच मानसिंह जादवा के कार्यकर्ता की तिन से चार गाड़िया खड़ी थी जिनमे पार्टी के झंडे और पोस्टर पड़े हुए थे | मानसिंह जादवा के कार्यकर्ता मानिसंह जादवा अगले चुनाव में खड़े हो रहे है उसके पोस्टर पुरे बझार में लगा रहे थे और साथ ही साथ इस बात का एलान भी कर रहे थे | नवलगढ़ गाव के बझार में एक नियम था की यहाँ पर कोई नीच जात वाला इंसान खरीदारी करने या व्यापर करने नहीं आ सकता था उन लोगो को खुद के सामान का बंदोबस्त खुद ही करना पड़ता था |

     बाजार के एक दुकान पर रिपेयरिंग का कार्य चल रहा था जहा पर नीच जाती जिसे नवलगढ़ मानता है वे मजदुर कार्य कर रहे थे जिनमे एक औरत थी जिसका एक छोटा बच्चा था जिसे साइड में सुलाकर खुद मजदूरी कर रही थी ताकि अपने लिए और अपने बच्चो के लिए तिन समय के भोजन की व्यवस्था कर सके | अचानक भुख का मारा बच्चा रोने लगता है और वो औरत अपना कार्य छोड़कर अपने बच्चे को चुप कराने के लिए जाती है | बहुत प्रयास के बाद भी बच्चा चुप नहीं होता है और औरत समझ जाती है की बच्चे को भुख लगी है पर औरत करे तो क्या करे यह सोच में पड़ जाती है क्योकी इस बझार में कोई भी नीच जात वाले को एक अनाज का दाना भी नहीं देता और तब तो खास नहीं जब मानसिंह जादवा के कार्यकर्ता बझार में हाजिर हो |

     कहते है ना की हर लंका में बिच राक्षसों के एक विभीषण जरुर होता है यहाँ पर भी एसा ही था | एक बुढ्ढा व्यक्ति जिसकी पास में ही कचोरी की दुकान थी वो छोटे से बच्चे पर दयाभाव रखकर कचोरी देने के लिए आता है और उसी वक्त मानसिंह का कार्यकर्ता भी वही पर अपने दुसरे कार्यकर्ता के लिए कचोरी लेने आता है और इस दृश्य को देख लेता है |

     अबे ओ बुढाऊ क्या कर रहा है तुझे मालुम नहीं है यह नीच जात वाले है ... मानिसंह जादवा के कार्यकर्ता ने कहा |

     बेटा बच्चा तो भगवान का स्वरूप होता है उसमे क्या नीच जात या उच्च जात यह लो बेटा अपने बच्चे को खिला दो ... उस कार्यकर्ता के होने के बावजूद भी वो बुढ्ढा आदमी उस बच्चे के लिए उसकी माँ को कचोरी दे देता है |

     अबे साले तु तय करेगा चल वापस ले वरना तेरी उम्र ख़त्म होते ज्यादा वक्त नहीं लगेगा ... उस कार्यकर्त्ता ने उस बुढ्ढे व्यक्ति को धमकाते हुए कहा |

     क्या पता उससे पहले तेरा वक्त समाप्त हो जाए ... कंधे पे लटकाया हुआ कपड़ों का बैग और आखो पर काला चश्मा लगाये हुए हीरो जैसे दीखते हुए हमारी कहानी के नायक अंश ने कहा |

     कौन है बे तु और मेरे सामने एसे बोलने की हिम्मत कैसे हुई ... उस कार्यकर्ता ने कहा |

     अंश को और वीर को बचपन से ही मानसिंह जादवा ने बहार विदेश पढने भेज दिया था और दोनों कभी-कबार छुटिया मनाने के लिए ही आते जिस वजह से मानसिंह जादवा के कार्यकर्ता अंश को बहुत कम ही पहचान पाते |

     अंश आगे कुछ भी बोले इससे पहले वो कार्यकर्ता उस माँ के हाथ से खाना छीन लेता है जो अपने बच्चे को खिला रही थी और यह बात अंश को बिलकुल पसंद नहीं आती और अंश गुस्सा हो जाता है और जोर से उस कार्यकर्ता के पेट पर लात मारता है जो बिच बझार में गिर जाता है जिसे दुसरे कार्यकर्ता देख लेते है और तुरंत वहा जमा हो जाते है |

     क्या हो रहा है यहाँ पर ... मानिसंह जादवा के दुसरे कार्यकर्ता ने वहा पर आकर कहा |

     अंश बहुत अलग प्रकृति का व्यक्ति था वो इस पुराने रिवाजो या अंधश्रध्धा में विश्वाश नहीं करता था | विदेश में पढने के साथ-साथ वहा के और भारत के हर अच्छे गुण उसके अंदर बखुबी झलकते थे | अंश बचपन से ही बहादुर था और झुकने वालो में से नहीं था उसके पास शिवाजी जैसा चातुर्य और महाराणा जैसी ताकत दोनों थी | कहा पर अपने चातुर्य का इस्तमाल करना है और कहा पर अपनी ताकत का वे वो अच्छी तरह से जानता था |

     अंश उस काका की दुकान से दुसरी कचोरी लेता है और उस माँ को देता है और साथ में अपने पास बोटल में ज्यूस था वो भी उस माँ को देता है ताकि वो अपने बच्चे का पेट भर सके |

     यह लो इसमें ज्यूस है इसके साथ पिलो तुम्हारे बच्चे का पेट भर जायेगा | तुम माँ हो इन सबसे शक्तिशाली तुम्हे इन लोगो से डरने की कोई बात नहीं है ... अंश ने कहा |

     लड़के तु जानता नहीं है की तु क्या कर रहा है यह नीच जाती के लोग है इन्हें अपना खाना देना पाप है ... कार्यकर्ता ने कहा |

     किसी की भुख मिटाना पाप कैसे हो सकता है और एसा ही है तो भगवान ने इनको हमारे जैसा क्यों बनाया और इनका खोराक भी वही क्यों रखा जो हम खा रहे है | उच्च निच्च तो हमारे दिमाग का वहेम है | दुनिया में दो ही जात होती है एक अच्छी और एक बुरी आप बुरी जात के हो जो इस लाचार माँ को परेशान कर रहे हो और यह काका अच्छी जात के जो इस माँ की जरुरत पुरी कर रहे है ... अंश ने कहा |

     कार्यकर्ता और अंश बिच की घमासान से पुरी बझार के लोग वहा पर इकठ्ठा हो चुके थे |

     तु एसे नहीं मानेगा ओय शिखाओ इसे यहाँ का नियम क्या है एक-एक हड्डी तोड़ते जाओ और यहाँ के कायदे कानुन बताते जाओ ... अपने दुसरे कार्यकर्ताओ को अंश को सबक सिखाने का आदेश देते हुए कहा |

     उस एक कार्यकर्ता जो बात कर रहा था सिवाय सारे कार्यकर्ता अंश को मारने के लिए आगे बढ़ते है लेकिन अंश भी कोई कच्चा खिलाडी नहीं था वो लंडन का सबसे बेहतरीन मार्शल आर्ट चेम्पियन था | एक के बाद एक कार्यकर्ता अंश को मारने के लिए आगे जरुर आते पर उल्टा अंश उनको मारकर इधर-उधर फेक देता | अंश सभी कार्यकर्ताओ की जमकर धुलाई कर रहा था | किसी का हाथ तोड़ रहा था तो किसी के मु पर मुक्का मारकर नाक तोड़ रहा था कुछ ही मिनटों में अंश उस एक कार्यकर्ता के अलावा सारे कार्यकर्ताओ को अकेला ही ढेर कर देता है जिसे देख बचा हुआ एक कार्यकर्ता अंश के सामने लड़ने की सोच को टाल देता है |

     मुझे नहीं पता की तु यहाँ का रहने वाला है की नहीं पर अब तु नहीं बचने वाला क्योकी तुन्हें मानसिंह जादवा के और इस गाव के कायदे कानुन की धजिया उड़ाई है जिसे मानकाका कभी नहीं माफ़ करेंगे में अभी जाकर तुम्हारे बारे में उनको सुचना देता हु ... इतना बोलकर कार्यकर्ता वहा से चला जाता है और आस-पास इकठ्ठा हुई भीड़ भी मानसिंह जादवा का नाम सुनकर बिखर जाती है |

     बेटा हो सके तो अभी इसी वक्त यह गाव छोड़ दो ... उस बुढ्ढे अंकल ने अंश के पास आकर बड़ी गंभीरता से कहा |

     क्यों काका ( uncle ) ... अंश ने कहा |

     यह मानसिंह जादवा के आदमी थे और मानसिंह जादवा बहुत ही खतरनाक इंसान है अगर कोई यहाँ के कायदे-कानून को तोड़ता है तो वे उसे कठोर से कठोर सजा देता है फिर उसमे कोई कुछ नहीं कर पाता चाहे वो सरकार ही क्यों न हो ... वृद्ध काका ने अंश से कहा |

     आप चिंता ना करे ... अंश ने कहा |

     दो घटनाये साथ चल रही थी इस तरफ कहानी में अंश का प्रवेश हो चूका था तो उस तरफ उसी वक्त वीर गुस्से में और शराब में धुत अपने पिता से लड़ने के लिए खुद कार चलाकर जा रहा था | अंश ने गाव में वापस आते ही बड़ा बवाल खड़ा कर दिया था और उस बवाल की खबर पहुचाने इस तरफ कार्यकर्ता बझार से निकल चूका था और उस तरफ दुसरा बवाल खड़ा करने वीर जादवा मानसिंह जादवा की और बढ़ रहा था अब आगे जो भी होने वाला था वो असामान्य ही होने वाला है |

अंक २ आरंभ       

     वीर को ढूढने निकले उसके दोस्त पवन और विष्णु अभी तक वीर की खोज में ही थे | दोनों कब से रास्ते पर वीर की खोज करते हुए जादवा सदन की और आगे बढ़ रहे थे जहा वीर अपने पिता से जबरदस्ती शादी की शिकायत और अपनी मरजी से जीवन जीने की अर्जी करने जा रहा था लेकिन शब्दों में इसे अर्जी कहा जा सकता है लेकिन अगर एसा हुआ तो मानसिंह जादवा अपने बेटे के साथ क्या करेंगे वो सोचना भी किसी के बस की बात नहीं थी |

      पवन और विष्णु मोटर-साईकल पर अपने दोस्त को ढूढ़ते हुए आगे बढ़ ही रहे थे तभी रास्ते पर अचानक कुछ एसा दृश्य देखते है जिसे देखते ही मोटर-साईकल चला रहा पवन एकदम से आगे की ब्रेक लगा देता है और मोटर-साईकल स्लीप हो जाती है और दोनों गिर जाते है | दोनों अपने आप को संभालकर खड़े होते है लेकिन दोनों की नजरे उसी दृश्य पर थी जिसे देख दोनों गिर पड़े थे | पवन और विष्णु दोनों की आखे और मु खुले के खुले रह जाते है उस दृश्य को देखकर | वहा पर क्या हुआ पता नहीं पर जो भी हुआ था वो जादवा सदन में भूकंप लाने के लिए काफी था |

     क्या वीर और मानसिंह जादवा के बिच बवाल होगी और अगर होगी तो क्या होगा उसका नतीजा ? कैसे संभव है दिव्या और अंश के बिच प्यार ? अंश के हाथो से तुटे गाव के कायदे-कानुन के बाद मानसिंह जादवा और अंश के बिच क्या घटित हो सकता है ? सवाल कई है पर जवाब एक ही है की पढ़ते रहिये हम ने दिल दे दिया नवलकथा जो आगे और भी कहानी के पन्ने खोलने वाली है जो आपकी अभी सोची इस कहानी की बातो से मेल ना खाकर कुछ और ही मौड़ पर जाकर रुकने वाली है तो जुड़े रहिएगा poketnovel@fm पर |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

||  जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

 A VARUN S PATEL