Hum Ne Dil De Diya - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

हमने दिल दे दिया - अंक ४

     

रोड से लगभग ६० मीटर बहार वीर की कुचली हुई कार पड़ी थी जिसमे वीर की लाश थी और आसपास कई लोगो की भीड़ खड़ी हुई थी | बहुत से लोग इस दृश्य को देखकर सोच रहे थे और अपना अनुमान लगा रहे थे की यह अकस्मात कैसे हुआ होगा और बहुत से लोग इस अकस्मात का वीडियो अपने मोबाइल में बना रहे थे सोसीअल मिडिया पे किसी दुसरे लोगो को भेज रहे थे | आज की यही हकीक़त है की लोग अपने आप-पास हो रही सारी घटनाओ को एक दुसरे से बाटना चाहते है पर कोई एक दुसरे का दुःख बाटना नहीं चाहता |

      सारे लोग वीर केशवा की गाड़ी में फसी हुई लाश को देख रहे थे पर उनमे से कोई उसकी मदद करने के लिए तैयार नहीं था सिवाय वहा खड़े दो भले लोगो के अलावा | दो भले लोग थे वो आगे आते है और पुलिस से आने से पहले वीर की लाश को गाड़ी से बहार निकालते है और उसके उपर कपडा ढककर पुलिस के आने तक वही पर रख देते है |

      पवन और विष्णु भीड़ के बिच ही थे और वह लोग यह सब देख रहे थे और इतना डरे हुए थे की उनका पैर जमीन से हिल नहीं रहा था | थोडा समय बीतता है | पुलिस वहा पर पहुचती है और पुलिस को वहा देख विष्णु और पवन और भी डर जाते है और वहा से दबे पाँव पुलिस की नजर ना पड़े एसे निकल जाते है | पुलिस उस जगह पर पहुचती है और अपनी कार्यवाही शुरू करती है | अभी तक पुलिस हवालदार ही आए हुए थे जिन्होंने आकर सामान्य प्रक्रिया जो अकस्मात समय होती है वो शुरू करते है |

      सब के सब अपने मोबाइल में वीडियो बनाना बंद करो हर एक चीज को सोसीअल मीडिया पे डालना अच्छी बात नहीं है चलो बंद करो वरना सबका मोबाइल जप्त हो जायेगा ... हवलदार ने वहा पर इस घटना को अपने मोबाइल में केद कर रहे लोगो से कहा |

      समय होने पर अकस्मात की उस जगह पर तालुके के PI भवानी सिंह वहा पर पहुचते है | भवानी सिंह जिनकी उम्र लगभग-लगभग ३५ साल होगी जो कद-काठी से पहेलवान जैसे दीखते है और रूआबदार मुछे उन पर सही शोभा देती है | भवानी सिंह काफी टेडा और होशियार अफसर था | किस व्यक्ति के सामने कैसे खेलना वो भवानी सिंह को अच्छे से आता था | भवानी सिंह अपनी कार से निचे उतरते है और वीर की लाश के पास जाते है जो पुरी की पुरी कपड़ो से ढंकी हुई थी | भवानी सिंह लाश के उपर से अपना कपडा हटाता है और वीर को देखता है और मंद-मंद हसने लगता है |

      अरे वाह आज किसी ने लगता है शेर के बच्चे का ही शिकार कर डाला ... भवानी सिंह ने चहरे पे अलग ही तरह की मुस्कान टांगते हुए कहा |   

      साहब इनके घर वालो को समाचार पंहुचा देते है ... हवलदार ने आकर भवानी सिंह से कहा |

      धेर्य रखो जी धेर्य रखो मर गया है जो वो तो मर गया है अब हमारे ही तो हाथो पर है की जादवा परिवार को कितनी देर तक ख़ुशी के पालेमे रहने दे और सेलाब आने से पहले थोड़ी तो शांति होनी चाहिएना | पहले पुरी तहकीकात करलो बाद में जादवा साहब से मिलते है ना ... पुरे अकस्मात की जगह को अच्छे से देखते हुए भवानी सिंह ने कहा |

      भवानी सिंह बहुत ही टेडा अफसर था वो कब किसके साथ हो वो कोई नहीं बता सकता | यह वो गिरगिट था जो अपने रंग अपनी मरजी से कभी भी बदलता था | आज कोन से रंग में था उसका पता सिर्फ उसी को ही था |

      शाम के ५:०० बज रहे थे | इस तरफ विश्वराम केशवा अपना कार्य पुर्ण करके अपनी मोटर-साईकल लेकर दिलीप सिंह के घर से होकर वहा से अंश को लेकर दोनों पिता पुत्र अपने घर की और जा रहे थे | बिच रास्ते में दोनों के बिच संवाद चल रहा था | विश्वराम केशवा मोटर-साईकल चला रहे थे और अंश पीछे बेठा हुआ था |

     आज जो भी बझार में हुआ उसकी और भी बाते मुझ तक पहुची | तुन्हें भले ही मानभाई के सामने अपनी बुध्धि का इस्तमाल करके सारी बात को तोड़ मरोड़ के पेश कर दिया और इस बार बच गया लेकिन अब से महेरबानी करके इस गाव में या इस तालुके में कोई हेरोगिरी मत करना और अगर करनी है तो मुझसे नाता मत रखना अंश ... अंश को समझाते हुए विश्वराम केशवाने कहा |

      सही है अब आप मुझको यह सिखा रहे है की मेरे सामने कोई भी परेशान हो रहा हो तो में उसकी मदद भी ना करू ... एक साथ साँस बहार निकालकर अंश ने कहा |

      अगर एसा करने से यहाँ का कानून या यहाँ के रिवाज को कोई फर्क पड़ रहा है तो बिलकुल भी नही ... विश्वराम केशवा ने कहा |

       राम राम केशवा साहब ... रास्ते में दुकान वाले ने सद्कार करते हुए विश्वराम केशवा से कहा |

       राम राम ... सामने विश्वराम केशवा ने कहा |

       दोनों बाजार के बीचो बिच से गुजर रहे थे |

        कायदे कानुन कायदे कानुन मुझे तो यही समझ नहीं आता की एसे कोनसे कायदे कानुन है | देश में कई कायदे कानुन तुटते है तो यहाँ पे तुटे उससे कोनसा जग डूब जाने वाला है ... अंश ने अपने पिता से कहा |

       अंश को नवलगढ़ का वो माहोल पता ही नहीं था जहा कायदे तोड़ने वालो को यह गाव और मानसिंह जादवा बड़ी बेरहमी से मौत के अंजाम तक पहुचाते थे | टुंक में बात करे तो विश्वराम केशवा ने अपने संतान अंश को हमेशा गाव के उस काले पन से दुर ही रखा था ताकि उसपे कोई बुरु असर ना पड़े | अंश को विश्वराम केशवा ने बचपन से ही बहार के शहरो में पढने के लिए भेज दिया था जहा उसको बांधने वाली कोई बेडिया नहीं थी और जबसे वो समझने लायक हुआ तो मानसिंह जादवा ने उसे विदेश पढने के लिए भेज दिया | अंश ने हमेशा अपना जीवन स्वतंत्रता से ही निकाला है इस वजह से उसे नवलगढ़ के गंभीर वातावरण का कोई अनुमान ही नहीं है |

       आगे से एसी बात यहाँ पर कभी भी मत करना | यहाँ पर कानुन को भगवान माना जाता है अगर मौत को गले लगाना है तो ही यहाँ के किसी भी कानुन या रित-रिवाजो को तोड़ने की हिम्मत करना ... विश्वराम केशवा ने अपने पुत्र को समझाते हुए कहा |

       फिर तो यहाँ पर रहना ही बेकार है ... अंश ने अपने पिता की बाते सुनने के बाद धीमे से कहा |

       सही है इसी वजह से तुम दोनों भाई बहन को बचपन से ही इस गाव से दुर रखता आ रहा हु और आज भी यही बोलता हु की पढ़ लिखकर अपना करियर कही बहार बनालो ताकि तुम्हारे बालको को नवलगढ़ के रिवाजो की बेडियो में बंधना ना पड़े ... विश्वराम केशवा ने कहा |

      आपको अगर इतना पता है तो फिर आपने अपना जीवन क्यों यहाँ पर निकाल दिया ... अंश ने अपने पिता से सवाल करते हुए कहा |

       ताकि तुम पढ़-लिख सको और इस गाव से मुक्त हो सको ... विश्वराम केशवाने कहा |

       दोनों अपने निवास-स्थान यानी घर पहुचते है | अंश मोटर-साईकल से उतरता है और मानसिंह जादवा अपने घर के बहार अपनी मोटर-साईकल को व्यवस्थित पार्क करते है और फिर दोनों बाते करते हुए घर के मुख्य द्वार तक पहुचते है और अपनी जेब से चाबी निकालकर घर का ताला खोलकर दोनों अपनी आधी चर्चा के साथ घर के अंदर प्रवेश करते है |

       यह सही है पापा | क्या इस गाव में इसी तरह से सब चलता रहेगा किसी को तो इस गाव का इतिहास और रिवाजो को बदलना होगा ना ... अंश ने घर के आँगन में शोफे पर बेठते हुए कहा |

       ओह हीरो जिसको जो बदलना होगा वो बदलेगा तुमको रजनीकांत बनने का शोख है तो उस शोख को गोली मारो और अपनी इस गाव से दुर अलग ही दुनिया बसा लो तो में भी जीवन के कुछ बचे साल इस गाव से दुर हजारो सच से मु फेरना बंद कर सकू और सुकून का जीवन बिता सकू ... विश्वराम केशवा ने घर के रूम के ताले खोलते हुए कहा |

       सच से मु फेरने के पीछे का विश्वराम केशवा के कहने का एक ही तात्पर्य था की यहाँ पर रिवाजो के कारण सालाना कई जीवन का अंत होता है और जो जीवित है वे भी नरक का जीवन जीते है यह सब अन्याय देखना और बार-बार उससे मु फेरना कब तक |

       सब छोड़ और तु मुझे यह बता की तुन्हें अपनी बहन को फोन किया की नहीं किया मैंने तुझे आते वक्त सबसे पहले उसके पास जाने को बोला था तु गया तो होगा नहीं ... विश्वराम केशवा ने कहा |

       पापा आप जानते है फिर भी बार-बार मेरे पीछे क्यों पड़े रहते है की मै उसके साथ बात करू | उसने जो भी किया वो सही नहीं किया था यह बात आपको भी पता है और मुझे भी आपने भले ही उसको माफ़ कर दिया हो लेकिन में कभी नहीं कर सकता बात भले ही छोटी हो लेकिन उससे आपकी इज्जत और खुद आपको भी बहुत बड़ा नुकसान हो सकता था ... अंश ने अपने और अपनी बहन के बिच की कुछ तकलीफों का जिक्र करते हुए कहा |

       मैने तुझे बार-बार समझाया है लेकिन तु कब समझेगा की उसने जो भी किया था वो मुझे पहले सही नहीं लगा था लेकिन समय रहते वो सही लगने लगा और में एक बाप हु मुझे बच्चो की गलतियों को माफ़ करना पड़ता है क्योकी बच्चो की गलती को माफ़ करना ही माता-पिता का धर्म होता है ... विश्वराम केशवा ने कहा |

       में सबकुछ माफ़ कर सकता हु पर आपके उपर कोई सवाल उठाये एसा करने वाले को में कभी माफ़ नहीं कर सकता ... अंश ने अपनी जगह से खड़े होकर अपने पिता से कहा |

       याद है बचपन में तुन्हें भी कुछ एसा ही किया था जिससे मेरी वही इज्जत जिसकी तु बात कर रहा है वो दाव पर लगी हुई थी यह तो शुक्र मना की तेरी माँ ने तुझे और मेरी इज्जत दोनों को बचा लिया था ... विश्वराम जादवा ने अपने मु से एक और पुरानी दास्तान का पन्ना खोलते हुए कहा |

       लेकिन आप यह भुल रहे है की उस समय में बच्चा था और फिर भी उस वक्त मैंने आपकी इज्जत और मानसिंह जादवा के गुरुर के कारण वो छोड़ा जो मुझे जान से भी प्यारा था | मानसिंह जादवा ने मुझे मुझपर उपकार करने वहा विदेश पढने के लिए नहीं भेज दिया था अपना गुरुर बचा ने के लिए मुझे वहा पढने के लिए भेज दिया था जिसका आपको भी बहुत बाद में पता चला था ... अंश ने पिछली कुछ बातो को याद करते हुए कहा |

       जो भी हुआ उसे हम भुला चुके है और तु भी भुला दे और अपनी बहन से यु मु फेरने का कोई मतलब नहीं है ... विश्वराम केशवा ने अपने पुत्र से कहा |

       अभी तक की सारी बाते रहस्यमय तरीको से चल रही थी जिसके पन्ने खुलने ही वाले थे तभी दिलीप सिंह वह खबर लेके विश्वराम केशवा के घर पहुचते है जो इस गाव की किस्मत के बदलाव की शुरुआत थी |

       दिलीप सिंह अपनी साँस की तेज रफ़्तार के साथ केशवा निवास पहुचते है और विश्वराम केशवा को वीर की मौत के बारे में समाचार देते है जिस समाचार से विश्वराम केशवा थोड़े से चौक जाते है क्योकी विश्वराम केशवा के लिए वीर अपने पुत्र जैसा ही था | अंश उसके पिता और दिलीप सिंह कुछ भी सोचे बिना जादवा सदन की और अपने घर को खुला छोड़कर ही भागते है |

       जादवा सदन तक वीर की मृत्यु के समाचार जादवा परिवार के लिए एक भयानक अँधेरे के रूप में आ चुके थे | जादवा सदन के बहार गाव के सारे लोग सफ़ेद वस्त्र में जादवा परिवार के दुःख में सामिल होने के लिए पहुच चुके थे | जादवा सदन के आस-पास हजारो लोग वीर की मृत्यु के समाचार सुनकर हाजीर हो चुके थे लेकिन इतने लोग के हाजिर होने के बावजूद भी जादवा सदन के आस-पास सन्नाटा सा छाया हुआ था सिर्फ और सिर्फ जादवा परिवार के परिजनों की रोने की ही आवाज आ रही थी |

       जादवा सदन में दृश्य कुछ इस तरह था की जादवा सदन के बड़े आँगन में एक तरफ तुलशी का वृक्ष था और उसके बिलकुल पास में वीर के पार्थिव देह को रखा गया था और नवलगढ़ गाव के ब्राह्मण लोग के द्वारा रीती-रिवाज मुजब वीर के देह का क्रियाकर्म चल रहा था | एक तरफ सारे आदमी लोग बेठे हुए थे और एक तरफ घर की और बहार की औरते बेठी हुई थी | वीर के सबसे नजदीक अपने घुटनों में दर्द होने के बावजूद भी बेटे के विरह के दुःख में अंधे होकर मानसिंह जादवा घुटनों के बल बेठे हुए थे और अपने बेटे के सामने देख रहे थे | मानसिंह जादवा अंदर से इतने कठोर थे की उनके सगे बेटे की मृत्यु पर भी उन्हें दुःख अवश्य हुआ पर रोना नहीं आया था |

       मानसिंह जादवा से थोडासा पीछे सुरवीर जादवा खड़ा था जिसने अपने कंधे पर सफ़ेद रुमाल डालके रखा था जिसका एक छोर उसके हाथ में था जिससे वो अपने आशु पोछ रहा था | सुरवीर अपने भाई के मृत्यु पर बहुत दु:खी था और जब से वीर की मृत्यु के समाचार सुने थे तब से वो बस रोये ही जा रहा था |

       दोनों पिता पुत्र से थोड़ी पीछे विश्वराम केशवा जिनकी आखो में भी आशु थे उनके बगल में एक तरफ दिलीप सिंह और अंश केशवा खड़े थे | दिलीप सिंह और अंश केशवा बस खड़े थे और जादवा परिवार के दुःख में सामिल हुए थे लेकिन उनकी आखो में आशु नहीं थे | विश्वराम केशवा, अंश केशवा और दिलीप सिंह के पीछे अंश के तीनो दोस्त और गाव के बाकि के लोग खड़े थे |

       सामने औरतो की बात करे तो सबसे आगे अकेली दिव्या बेठी हुई थी जिसने काले रंग की साड़ी ओढ़कर रखी थी और वह अपने पति को देखकर रोये जा रही थी | दिव्या को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की उसके साथ क्या हो रहा है बस उसे इतना पता था की जो भी हो रहा है वह काफी हद तक गलत हो रहा है | दिव्या के ठीक पीछे की और ख़ुशी, मानसिंह जादवा की पत्नी यानी वीर की माता और सुरवीर की पत्नी बेठे हुए थे जिनकी आखो में चोधार आशु बह रहे थे और उनको सँभालने के लिए गाव की औरते उनके आस-पास खड़ी थी और उनके पीछे गाव की बाकि औरते थी जो जादवा परिवार के दुःख के समय में सामिल होने के लिए आए हुए थे |

       एक तरफ पुरुष बेठे हुए थे और एक तरफ औरते बेठी हुई थी और बिच में पर आँगन से थोड़ी दुर सफ़ेद साड़ी में बा बेठे हुए थे जिनके हाथो में माला थी | बा के मन में जरुर वीर को लेकर दुःख था पर वह इतने कठिन थे अंदर से की उनकी आखो में एक भी आशु उनके पति की मृत्यु के बाद किसी ने भी नहीं देखे थे |

       शक्ति सिंह भी अपना सारा कामकाज छोड़कर जादवा सदन अपनी MLA वाली कार के तहत पहुचता है और अपनी कार में से उतरकर अपने लोगो को वही पर खड़े रहने का इशारा देते हुए वह जादवा सदन में प्रवेश करता है | प्रवेश करते ही वह सीधा वीर के पार्थिव देह के पास रोते हुए जाने की कोशिश करता है पर रिवाजो के मुताबिक जब तक पार्थिव देह के क्रियाकर्म चल रहे हो तब तक कोई भी उस पार्थिव देह को छु नहीं सकता इस वजह से शक्तिसिंह को वहा जाने से अंश केशवा और दिलीपसिंह रोक लेते है और उसे सँभालते है |

       वीर बेटा नहीं तुम हमें छोड़कर नहीं जा सकते भाईसाहब एसा नहीं हो सकता आप कुछ कीजिये और मेरे वीर को वापस लाईये ... मानसिंह जादवा की और रोते हुए जाते हुए शक्तिसिंह ने कहा |

       मानसिंह जादवा को सुरवीर अपना हाथ देकर खड़े होने में मदद करता है | शक्तिसिंह आकर मानसिंह जादवा के गले लग जाता है और मानसिंह जादवा बड़े भाई की तरह अपने छोटे भाई को सँभालने की कोशिश करते है और उसके आशु पोछते है | मानसिंह जादवा अभी भी समझ नहीं पा रहे थे की शक्तिसिंह की आखो में जो आशु थे वह मगरमच्छ के आशु है जो सिर्फ और सिर्फ आपको छलावा देने के लिए ही है |

       समय के साथ वीर के पार्थिव देह के क्रियाकर्म पुर्ण होते है | पुरा जादवा परिवार आज शोक में डूबा हुआ था मानो जैसे आज जादवा परिवार के उपर दुखो का आभ तूट पड़ा हो |

       एक तरफ वीर की अंतिम विदाई हो रही थी और उसी वक्त PI भवानी सिंह वहा पर अपने कुछ हवालदारो के साथ पहुचता है और सीधा आकर मानसिंह जादवा के साथ बात करने की कोशिश करता है |

       माफ़ करना जादवा साहब पर मुझे पता नहीं है की कब आपके लोग पुलिस स्टेशन से वीर की लाश ले आए हमने आपके लोगो को सिर्फ वहा आने के लिए कहा था ताकि उसके मृत्यु के समाचार आपको मिल सके हम उसकी लाश को आपको नही अभी नहीं दे सकते कुछ कार्यवाही बाकी है तो और हमें इनका शवपरीक्षण भी करना है जिससे हमें मृत्यु का सही कारण पता चल सके ... आगे भवानी सिंह कुछ भी बोले इससे पहले मानसिंह जादवा अपना दाहिना हाथ उपर करके भवानी सिंह को चुप होने का इशारा करते है |

       हमारा बेटा है वीर जादवा और हम है मानसिंह जादवा आप कौन होते है हमें हमारे बेटे के पार्थिव देह ना सोप ने वाले और हा अफसर उसे लाश मत बोलना वह हमारे बेटे का पार्थिव देह है और रही बात शवपरिक्षण की तो हमारे बेटे की शरीर के साथ कोई छेड़खानी नहीं होगी उसकी मृत्यु कैसे हुई या उसके साथ क्या हुआ यह मामला हम और आप मिलकर बाद में सुलझा लेंगे पर फिलहाल आप यहाँ से चले जाए तो ही अच्छा होगा ... भवानी सिंह को इतना बोलकर मानसिंह जादवा फिर से अपने बेटे के शोक में डूब जाते है |

       भवानी सिंह आगे कुछ भी बोले इससे पहले विश्वराम केशवा उन्हें बहार जाकर समझाकर वापस भेज देते है | भवानी सिंह भी मानसिंह जादवा की ताकत को जानता था इस वजह से वह भी वहा से तुरंत समझकर चला जाता है |

       बा अपनी हाथ में भगवान की माला लेकर बेठे थे और भगवान के नाम जप रहे थे | बा माला निचे रखते है और अपनी जगह से खड़े होकर दिव्या के पास जाते है | दिव्या की नझर वीर के पार्थिव देह की तरफ थी और आखो में आशु थे | बा दिव्या के बाल अपने हाथो से पकड़कर वीर के पार्थिव देह की तरफ बड़ी बेरहमी के साथ घसीटते है | दिव्या को अपने बाल खीचने के कारण शिर में दर्द होता है और वह सबके बिच चिल्लाने लगती है | बा और दिव्या का वह दृश्य देखकर अंश आश्चर्यचकित हो जाता है लेकिन बाकी के गाव वालो के लिए यह सब नया नहीं साथ उन्होंने गाव की कई औरतो के साथ एसा होते हुए देखा था | बा गाव की सारी औरतो को विधवावती होने का पालन करवाते थे तो यह तो जादवा सदन की बहु थी इसका तो रिवाजो का पालन करना तय था | दिव्या के बालो को पकड़कर बा घसीट कर वीर के पार्थिव देह के पास लाकर रख देते है और अपनी जीभ की कठोरता का उपयोग करने की शुरुआत करते है |

       तु अभागन है तेरे अभाग्य से मेरा लड़का आज मारा गया है तोड़ अपने कंगन तुझे यह सब जीने की कोई जरुरत नहीं है ... गुस्से में बा कुछ भी बोल रही थी और जबरजस्ती दिव्या के कंगन जमीन पर दिव्या का हाथ बार बार पटककर तोड़ देती है |

       बा ने अपने पति के जाने के बाद अपने आप को इतना कठोर बना लिया था की उनके अंदर दयाभाव जैसी कोई चीज बची ही नहीं थी |

       दिव्या की आखो से आशु और हाथ से अविरत रक्त बह रहा था | बारिश की शुरुआत होती है | उपर बारिश और बिजली कड़क रही थी और निचे बा और जादवा सदन के पुराने रिवाज दिव्या पे कड़क रहे थे | दिव्या के साथ बहुत से अत्याचार हो रहे थे पर नवलगढ़ गाव का रिवाज यही कहता है इसलिए सब एकदम शांत थे |

       तु अभागन है तेरे पापो के कारण मेरा बेटा मर गया तेरे कदम हमारे लिए अच्छे नहीं है | तुझे अपने पापो की सजा भुगतनी होगी ... दिव्या के बालो को खीचकर दिव्या का चहेरा अपनी तरफ कर के बा ने कहा |

       दिव्या अंदर से एकदम तूट चुकी थी उसको कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की उसके साथ यह सब क्या हो रहा है | मानो जैसे उसका जीवन नरक सा होता जा रहा हो एसा लग रहा था | नवलगढ़ में हर आदमी की गलती की सजा बरसो से औरत ही भुगतती आ रही है और अभी दिव्या के साथ भी वही हो रहा था | इसी इतिहास को बदलने इश्वर ने अंश को यहाँ पर भेजा था | दिव्या और अंश का जब मिलन होगा तो वो मिलन नवलगढ़ की औरतो के लिए क्रांति वाला मिलन होनेवाला है जो सबकुछ बदल देगा पर कैसे वो जानने के लिए पढ़ते रहिए |

      नवलगढ़ गाव का रिवाज था की अगर कोई पती उसकी पत्नी से पहले मर जाये तो उसकी पत्नी उसे समसान तक अपने आप को कोड़े मारते हुए बिच बाजार से समसान तक बिदा करने जाएगी और उसके बाद भी विधवावती के और कई नियम थे जो एक विधवा औरत को करने होते है | वीर की अर्थी उठती है | सुरवीर, अंश और बाकि के दो जादवा परिवार से जुड़े सदस्य वीर की अर्थी को उठाते है | नवलगढ़ गाव के मुख्य बाजार से वीर की अंतिम यात्रा निकलती है |

      बारिश अभी भी बीजली के साथ गरज रही थी मानो एसा लग रहा था जैसे बारिश और बिजली भी दिव्या के साथ जो हो रहा है उसका विरोध कर रही है | आगे दिव्या अपने आशु के साथ अपने आपको सजा यानी कोड़े मारते हुए जा रही थी और पीछे वीर की अर्थी थी जिसे समसान की और ले जाया जा रहा था | अंश से यह सब देखा नहीं जा रहा था बिच बारिश में भी उसके आशु साफ़ साफ दिखाई दे रहे थे | दिव्या के हाथो से और उसके जिस-जिस अंग पर कोड़े की मार लग रही थी उस हर एक जगह से खुन निकल रहा था |

      अंश से दिव्या पर हो रहा यह अत्याचार देखा नहीं जा रहा था | अंश को दिव्या से एक अलग ही प्रकार का लगाव पहली ही मुलाकात में हो गया हो एसा लग रहा था | दिव्या को लगने वाले हर एक घाव अंश को तकलीफ दे रहे थे | अंश की भी आखे भीग चुकी थी जो वीर के जाने पर नहीं पर दिव्या पर हो रहे अत्याचारों पर रो रही थी |

      नवलगढ़ गाव के लोगो का मानना था की अगर पत्नी से पहले पति की मौत हो जाए तो उसकी जिम्मेवार उसकी पत्नी के अभाग्य होंगे और उसकी सजा पत्नी को भुगतनी होगी और आज वही सजा दिव्या भुगत रही है | इतना ही नहीं पति के मौत के बाद पत्नी को एक अलग रूम में केद कर दिया जाता है वो फिर कभी किसी को भी अपना मु नहीं दिखा सकती और यही नियम चाहे नवलगढ़ कहो या भिड़ा कहो हर गाव में था | दिव्या की दुनिया और किस्मत दो ही दिन में एसी पलटी थी की मानो उसे जीते जी मौत मिल गई हो |

      अपने आप को कोड़े मार-मारकर अपने पति की अंतिम यात्रा के साथ दिव्या समसान पहुचती है और बेहोश हो जाती है और जमीन पर गिर जाती है | पत्नी समसान से बहार तक ही जाती थी वहा से उसको वापस लाकर एक रूम में केद कर दिया जाता था | नवलगढ़ गाव के पुराने रित-रिवाजो से वीर के अंतिम संस्कार उसके भाई यानी सुरवीर जादवा के हाथो कर दिए जाते है | मानसिंह जादवा भी अंदर से तूट चुके थे विश्वराम केशवा उन्हें संभाल रहे थे |

       वीर के अग्नि संस्कार विधिवत पूर्ण होते है | अग्नि संस्कार के पूर्ण होने के तुरंत ही अंश जल्द से जल्द अपने घर पहुचता है और अपने आप को एक रूम में बंद कर लेता है और दरवाजे के सहारे निचे बेठकर रोने लगता है | कुछ देर रोने के बाद अपने आप से बात करने लगता है | अंश ने अपने जीवन में पहली बार एक औरत के उपर इतना अत्याचार होते हुए देखा था और वो उसके लिए कुछ भी नहीं कर सकता था वो इस दृश्य को लेकर बहुत ही परेशान था |

      जानवर है या इंसान पता ही नहीं चलता | कोई अपने ही घर की बहु के साथ एसा कैसे कर सकता है | में यह सब नहीं देख सकता एसा कैसे हो सकता है ... रोते हुए अंश ने अपने आप से कहा |

      अंश बहुत बहादुर और चालाक था पर दिल का भोला और नाजुक था वो किसी पे होता हुआ अत्याचार नहीं देख सकता था उसे बार बार अपने आप को चाबुक से सजा दे रही दिव्या चारो तरफ नजर आ रही थी |

      अंश को आज ही की गई अपने पिता की सारी बाते याद आ रही थी और सबकुछ समझ आ रहा थी की उसके पिता उसको क्यों इस गाव से और इस गाव के झमेलों से दुर रखना चाहते थे | अंश की आखो में आशु अविरत बह रहे थे क्योकी उसने उसके जीवन में इतने भयानक वातावरण का अनुभव कभी नहीं किया था |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY