Hum Ne Dil De Diya - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

हमने दिल दे दिया - अंक ३

     

अंश के साथ झगडे की बात लेकर मानसिंह जादवा का कार्यकर्ता जादवा सदन पहुचता है जहा पर मानसिंह जादवा और विश्वराम केशवा हाजिर थे और दोनों मिलकर कुछ फाइल्स देख रहे थे | कार्यकर्ता जादवा सदन में आकर वहा बझार में जो भी हुआ वो सबकुछ मानसिंह जादवा को बताता है |

     हम ठीक जो भी हुआ सही नहीं हुआ है वो जो कोई भी है उसे ढूढो और हमारे सामने हाजिर करो हम उसको दंडित करेंगे ... मानसिंह जादवा ने उस कार्यकर्ता से कहा |

     कार्यकर्ता अंश को पहचानता नहीं था और विश्वराम और मानसिंह जादवा भी नहीं जानते थे की जिसको दंडित करने की बात कर रहे है वो और कोई नहीं अंश ही है |

     जैसे ही मानसिंह जादवा और कार्यकर्ता के बिच संवाद पुर्ण होता है अंश खुद जादवा सदन पहुचता है |

     जय माताजी काका ... अंश ने जादवा सदन में प्रवेशते ही मानसिंह जादवा से कहा |

     अंश सदन में प्रवेश करते ही सबसे पहले विश्वराम केशवा को और मानसिंह जादवा को पैर छूकर प्रणाम करता है | अंश बचपन से ही जादवा परिवार के बिच पला बड़ा है और इसी वजह से जादवा परिवार का हर एक सदस्य अंश को अपने घर का बच्चा ही मानते है | अंश की आवाज सुनकर ख़ुशी, मानसिंह जादवा की पत्नी और सुरवीर की पत्नी अंश की आवाज सुनकर घर के जिस भी कोने में थे वहा से बहार आँगन में आ जाते है | ख़ुशी के साथ वीर की पत्नी दिव्या भी बहार आ पहुचती है | सभी की आखो में अंश को देखकर ख़ुशी झलक रही थी |

     आओ आओ मेरे लाल बहुत जल्दी आना हुआ तेरा काश अब तो तु बड़ा आदमी बन गया है तो वीर की शादी में थोड़ी ना आएगा ... मानसिंह जादवा ने अंश से कहा |

     वो कार्यकर्ता अंश को देखकर पहचान जाता है और मानसिंह जादवा को हकीक़त बताने की कोशिश करता है |

     नहीं काका एसा नहीं था आप जानते है मुझे में इतना स्वार्थी कभी हो सकता हु | आपके मुझ पर कितने उपकार है वो मेरे दुसरे साल के फाइनल एग्जाम थे और वहा कुछ पोलिटिकल प्रॉब्लम की वजह से मुझे घर से हवाईअड्डे पर आने के लिए कोई वाहन नहीं मिला और में अपनी फ्लाईट मिस कर गया और फिर कोई दुसरी फ्लाईट थी नहीं तो ... अंश के इतना बोलते ही उसके बिच में कार्यकर्ता अपनी बात रख देता है |

      मालिक यही है वो लड़का जिसने बिच बझार में नीच जात वाले को खाना दिया और हमारे कार्यकर्ताओ की धुलाई की ... उस कार्यकर्ता ने कहा |

      पक्का यही था ... विश्वराम केशवा ने कार्यकर्ता से पूछा |

      हा मालिक यही था पक्का ... कार्यकर्ता ने उत्तर में कहा |

      अंश यह सब सही है जो यह बोल रहा है ... मानसिंह जादवा ने उस कार्यकर्ता की तरफ इशारा करते हुए कहा |

      सच है काका पर जितना यह बोल रहा है उतना ही नहीं | हकीकत कुछ अलग है मै मानता हु की मैंने उनको खाना दिया और आपके मतलब हमारे लोगो की धुलाई भी की पर उसके पीछे एक नैक इरादा था अगर आप भी वो जानेंगे तो आप भी मुझ पर गर्वित महसूस करेंगे ... अंश ने अपनी चातुर्यता का उपयोग करते हुए अपनी बात रखने की शुरुआत की |

      मार-पिट वाली बात सुनकर कुछ देर के लिए जादवा सदन का माहोल गंभीर हो गया |

      तुने मार-पिट करना कब से सिख लिया अंश ... विश्वराम केशवा ने कहा |

      रुको विश्वा इसे अपनी बात पुरी कर लेने दो ... मानसिंह जादवा ने अंश को अपनी बात पुरी करने का मौका देते हुए कहा |

     मानसिंह जादवा का डर इतना था की उनके बिच कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता था इसी वजह से अंश के झूठ बोलने के बावजुद भी कार्यकर्ता अपनी दलील करने के वक्त की राह देख रहा था |

     मै जब बझार से गुजरा तो देखा की यह कार्यकर्ता लोग कोई बुढ्ढे आदमी से झगडा कर रहे है और वो भी किसी नीची जात की औरत के साथ खाने को लेकर और बार बार नीची जात नीची जात एसा चिल्ला भी रहे है और आस-पास भीड़ भी जमा हो रखी है और कितनो के हाथ में मोबाइल भी था अब सोचो काका अगर आपके किसी कार्यकर्ता का नीची जात एसा बोलते और उनपर अत्याचार करता वीडियो बहार वायरल हो जाए तो आपकी कितनी बदनामी हो शक्ति है और इसका आपके चुनाव पर कितना गहरा असर पड़ सकता है ... अंश ने अपनी बात को पुरी तरह से घुमाते हुए कहा |

    अगर एसा ही था मालिक तो हमको बता देता सीधा हमारे कार्यकर्ता को मारने की क्या जरुरत थी ... कार्यकर्ता ने बिच में बोलते हुए कहा |

    उसका भी काका में आपको कारण बताता हु | में तो वहा इन लोगो को समझा ही रहा था पर यह लोग हर बात को दादागिरी से ही समझाने की बात करते है अभी वहा पर अगर में इस मामले को ना निपटाता तो आज आपकी बहार भारी बदनामी हो जाती काका और इनको बोलो थोडा चुनाव के समय पर ध्यान रखे वरना यह लोग जिस तरह का बर्ताव कर रहे थे उससे तो आपके वोट कटेंगे क्योकी लोगो को यह माहोल दादागिरी वाला लगेगा ... अंश ने अपने चातुर्यता का सही उपयोग करते हुए कहा |

    पर मालिक ... कार्यकर्ता आगे कुछ बोले इससे पहले मानसिंह जादवा अपना पक्ष रख देते है |

    जो कुछ भी हुआ मुझे पता नहीं पर तुमने जो घटना बताई वो घटित कुछ इसी तरह से हुई थी जिस तरह अंश ने भी बताई और इसमें हमारी बदनामी हो सकती थी | हमारे कायदे कानुन सख्त है और रहेंगे लेकिन चुनावी समय पर इसे सबसे सामने लाने की जरुरत नहीं है इसलिए आईंदा जो भी करो सोच समझकर करो और अंश तुम भी एसे हमारे ही लोगो के साथ पंगे ना लिया करो तुम्हारी नियत अच्छी थी इस वजह से हम तुम्हे छोड़ रहे है | कायदे कानुन कोई भी तोड़ेगा उसे सजा जरुर मिलेगी चाहे वो हमारा बेटा ही क्यों ना हो ... मानसिंह जादवा ने पुरा मामला निपटाते हुए कहा |

     कार्यकर्ता इसके बाद कुछ भी बोले बिना वहा से चला जाता है |

     काका मामला आपकी आबरू का था और आप मेरे बाबा समान ही हो तो ... बड़ी ही मासूमियत के साथ अंश ने मानसिंह जादवा से कहा |

     मुझे तुझपर भरोसा है मेरे बच्चे ... अंश के गालो पर अपना हाथ फेरते हुए मानसिंह जादवा ने कहा |

     सारा संवाद चल ही रहा था तभी अंदर कमरे से बा बहार आते है और जोर से बोलते है |

     आ गया विश्वा का पिल्ला ... बा ने अपने बुढ़ापे के दर्द के साथ धीमे-धीमे बहार आते हुए कहा |

     बा के बहार आते ही घर की दुसरी सारी औरते अपने-अपने काम पर लग जाती है |

     अंश बा के पास जाता है और बा के पैर छुकर उन्हें प्रणाम करता है और बा का हाथ पकड़कर आँगन में जो झुला है वहा तक ले जाता है |

     जीते रहो जीते रहो और अपने कुल का नाम रोसन करो ... बाने झूले पर बेठते हुए अंश को आशीर्वाद के रूप में कहा |

     देख बेटा पढाई और पैसो के पीछे इतना मत भागो की सबंध नाम का विषय आपके जीवन से मिट जाए ... वीर की शादी में अंश के ना आने की बात करते हुए बा ने कहा |

     नहीं बा आपको आपका बच्चा एसा लगता है अभी मानकाका ने मुझपर इतना खर्चा किया है तो मेरा भी फर्ज है ना की में मानकाका को अच्छा परिणाम लाकर दु और में वहा पे एसा फस गया था की मेरे पास और कोई रास्ता बचा ही नहीं था बा ... अंश ने बा के पेरो के पास बेठते हुए कहा |

     अभी यह आया है तो पुरे घर को अपने लपेटे में ले लेगा ... रसोईघर की खिड़की से देख रही ख़ुशी ने कहा |

     लगा बेटा मख्खन लगा पर में तेरे बाप की भी माँ जैसी हु तुझे और विश्वा दोनों को खिलाकर बड़ा किया है मैंने... बा ने अंश से कहा |

     छोडो ना बा अभी आपका बच्चा हु जो हुआ उसे भूलते है और उसकी ख़ुशी में आपके लिए में लंडन की खास बनावटी चोकलेट लाया हु यह लीजिए ... अंश ने अपने थेले से चोकलेट का डिब्बा निकालते हुए कहा |

     मुझे यह सब ना दिया कर बेटा में इस घर में जरुर हु पर में एक शापित विधवा हु और मुझे यह सब खाना शोभा नहीं देता मान मुझे मंदिर जाना है गाड़ी भेज ... बा ने अपनी जगह से खड़े होकर कहा |

     जी बा आईए और चलिए विश्वराम हम लोग भी कंपनी चलते है बाकि का हिसाब किताब वही जाकर देखेंगे ... मानसिंह जादवा ने कहा |

     बा, मानसिंह जादवा और विश्वराम केशवा घर से चले जाते है और उनके जाते ही घर की सारी औरते अंश को मिलने के लिए बहार आ जाती है | अंश सबका लाडला था और एसा ही लगता था मानो जैसे अंश जादवा परिवार का ही लड़का हो |

     तुझे पता है फिर भी तु बा को अपने लपेटे में लिए बिना नहीं छोड़ेगा है ना ... ख़ुशी ने अंश की और आते हुए कहा |

     अब क्या करे आदत है ... अंश ने कहा |

     ख़ुशी और अंश बहुत अच्छे दोस्त थे जिसका पता जादवा परिवार के मर्दों को नहीं था पर औरते सब जानती थी क्योकी उनका दर्द अंश सही तरीके से समझता था | अंश मानसिंह जादवा की पत्नी और सुरवीर की पत्नी के पैर पड़ने के बाद जानबूझकर मजाक में ख़ुशी के पैर पड़ता है |

     दादीमा आशीर्वाद दे... अंश ने ख़ुशी की मजाक करते हुए कहा |

     ख़ुशी अंश को अपने पैरो से लात मारके अपनी भाभी को लेकर हवेली के अंदर वाली सीडी से होकर सदन की छत पर चली जाती है |

     तु फिर मुझे दादी बोला जा नहीं बोलना मुझे तेरे साथ में चली ... ख़ुशी ने जाते जाते कहा |

     अंश ने सबके चहरे देख लिए पर दिव्या का चहेरा अभी तक नहीं देखा था क्योकी दिव्या अभी तक घर में नयी थी इसलिए वो इस चीज से अंजान थी की किसके सामने घूँघट तानना है और किसके सामने नहीं |

     ख़ुशी और अंश का यह हर बार का पैतरा है जिससे ख़ुशी और अंश छत पर जाकर एक दुसरे से आराम से मिल सके | ख़ुशी और अंश के बिच बहुत गहरी दोस्ती थी | अंश और ख़ुशी के मित्र इसे दोनों का प्यारवाला संबंध ही समझते थे | ख़ुशी और दिव्या दोनों छत पर पहुचते है | दोड़कर उपर चढ़ने की वजह से दोनों की सास की रफ़्तार दो गुनी हो चुकी थी | दोनों के पीछे पीछे अंश भी दोड़कर छत पर पहुचता है और उसकी भी सास की रफ़्तार तेज हो चुकी थी | कुछ देर दोनों कुछ नहीं बोल पा रहे थे बस अपनी सास की रफ़्तार धीमी होने का इंतजार कर रहे थे |

     कैसी है मेरी शेरनी ... अंश ने ख़ुशी से कहा |

     बिना मेरे कुत्ते के शेरनी कैसी हो सकती है ... ख़ुशी ने मजाक में कहा |

    बिना कुत्ते के अगर शेरनी की हालात बिगड़ जाए तो वो कुत्ता शरीर से कुत्ता हो सकता है पर जिगर से उसे शेर ही माना जाता है ... अंश ने कहा |

    वाह मेरे जुगाडू तेरे पास हर एक सवाल का जवाब है है ना ... ख़ुशी ने अंश की और आते हुए कहा |

    हां क्या करे इस गाव में गली गली में सवाल उठाने वाले ही है तो मुझ जैसा कोई उत्तर देने वाला भी तो होना चाहिए ना ... ख़ुशी को गले लगते हुए अंश ने कहा |

    दोनों एक दुसरे को कसके गले लग जाते है जैसे मानो बिछड़े प्रेमी बरसो के बाद मिले हो |

    अबे तेरे बदन में दबा के मार डालेगी क्या ... अंश ने मजाक के स्वर में कहा |

    अबे साले मर जा मेरे जैसी तुझे बदन में दबाके के मारने वाली और कहा मिलेगी कुत्ते ... ख़ुशी ने भी सामने मजाक करते हुए कहा |

    ख़ुशी और अंश का रिश्ता कैसा था वो ठीक से वही दोनों जानते थे पर हा जब भी दोनों मिलते तो दुनिया के सारे दुःख और गाव-समाज की सारी मर्यादा भूलकर हर एक लम्हे को जी लेते |

    अच्छा वो सब छोड़ में तुझे अपनी भाभी से मिलाती हु वीर भाई की दुल्हन अरे भाभी इसके सामने क्यों घूँघट तान रखा है यहाँ पे आप बिंदास हो सकते हो क्योकी हम जहा होते है साथ वहा ना तो कोई मर्यादा होती है और ना ही कोई दुःख बस एन्जॉय जिंदगी ... ख़ुशी ने अपनी भाभी से कहा |

    दिव्या अपना घूँघट अपने चहरे से हटा लेती है और पहली बार ठीक से दिव्या और अंश एक दुसरे को देख रहे थे | अंश मानो दिव्या की खुबसुरती में इतना खो गया था मानो जैसे उसने इतनी खुबसुरत लड़की कभी उसने देखी ही नहीं हो |

    जय श्री कृष्णा अंश भाई ... दिव्या ने अंश को कहा |

    आप मुझे भाई मत कहो खाली अंश कहो में छोटा हु आपसे और आप जैसी खुबसुरत महिला भाई बोले तो बेइज्जती हुई हो एसा लगता है ... अंश ने कहा |

    फिर से शुरू हो गया तु भाभी यह हरदम मजाक करता है पर हा इसकी एक बात बहुत अच्छी है यह जहा कही भी जिस किसी के पास भी होता है यह उसे दुखी कभी नहीं होने देता इसी वजह से इस घर की हर औरत अंश को बहुत प्यार करती है | आप तो जानते ही है हमारे यहाँ पर मर्यादा का चोला इतना भारी है की हमारा जीवन तो उसे सँभालने में ही चला जाता है दो पल की ख़ुशी हमें कभी नहीं नसीब होती पर जब भी अंश हमारे साथ होता है तो हम इस घर की औरते छुपकर हर एक मजे करते है जैसे गरबा खेलना, बहार का खाना खाना और बहुत कुछ | अंश को पापा ने बचपन से ही पढने के लिए बहार भेज दिया गया था लेकिन जब भी वो छुट्टी मनाने आता तो उस वक्त हमलोग पापा और भाई से छुपकर जिंदगी के सारे मजे लेते | में और अंश बहार घुमने भी जाते अगर एक वाक्य में कहू तो भाभी इस मर्यादा और रितरिवाज के चोले को कुछ देर हटाकर जीवन क्या है वो मुझे अंश ने ही बताया है ... ख़ुशी ने कुछ पल भावुक होकर कहा |

    अरे नहीं यह सब झूठ है दिव्या जी यह तो क्या है काकी ने जब यह पेट में थी तो वो ड्रामे वाली सीरियल बहुत देखली थी इसलिए इसे एसे ड्रामे करने की आदत सी हो गई है और कुछ नहीं ... अंश ने फिर ख़ुशी की बातो का मजाक उड़ाते हुए कहा |

    अंश का स्वभाव एसा ही था वो जहा कही भी हाजिर होता वहा सभी को खुश रखता | दिव्या भी अंश की बाते सुनकर हसने लगती है |

    आप दोनों एक दुसरे को प्यार करते हो ... दिव्या ने अपने मु से पहले शब्द निकालते हुए कहा |

    ख़ुशी इस बात का कोई भी उत्तर दे इससे पहले अंश उत्तर दे देता है |

    नहीं दिव्याजी सबको एसा लगता है पर एसा है नहीं हम दोनों सिर्फ दोस्त है और वो भी बचपन के | एक दुसरे के साथ बहुत सुख दुःख की एसी बाते की है जो हम दोनों के बारे में हम दोनों के सिवा कोई नहीं जानता ... अंश ने प्यार से ख़ुशी की तरफ देखकर दिव्या का उत्तर देते हुए कहा |

    बहुत नौटंकी इंसान है भाभी यह और तु भाभी बोलाकर यह क्या दिव्याजी दिव्याजी ... ख़ुशी ने फिर से अंश की खिचाई करते हुए कहा |

    क्यों इतनी खुबसुरत औरत को भाभी बुलाना उस औरत का अपमान करने के बराबर है तु अच्छी नहीं दिखती तो तुझे लोग भाभी कहते होंगे इसलिए तु हर एक औरत को भाभी के नाम से बुलवाएगी साली चुडेल ... अंश ने सामने और खिचाई करते हुए कहा |

    अंश की यह बात सुनकर ख़ुशी अपनी चप्पल निकालकर अंश मारने के लिए दोड़ती है | दोनों जब एक दुसरे के साथ होते थे तो एसे ही एक दुसरे की खिल्ली उड़ाते और लड़ते झगड़ते | दिव्या दोनों को बड़े प्यार से देख रही थी और कुछ पल के लिए वो भी इस वातावरण में अपनी सारी तकलीफे और मर्यादा का चोला भूल चुकी थी और बस उन दोनों में अपने आप को खोज रही थी | अंश और ख़ुशी को लड़ते देख उसे भी अपना बचपन दिख रहा था जहा दिव्या भी किसी लड़के के साथ एसी लड़ाई कर रही थी | दिव्या की स्मृती में वो लड़का कौन था वो तो दिव्या ही जाने पर बात बहुत पुरानी थी जब दिव्या स्कूल में थी जिसके पन्ने भी आगे कहानी के साथ जरुर खुलेंगे |

   फिर अंश ख़ुशी के साथ लड़ता झगड़ता निचे चला जाता है और कुछ देर सुरवीर की पत्नी और ख़ुशी के माता की इर्द-गिर्द दोनों लड़ाई झगडा करते है और फिर अंश जादवा सदन के मुख्य द्वार से होते हुए बहार निकल जाता है |

    यह लड़का नहीं सुधरेगा जहा कही भी हो सबको खुश रखता है ... रसोई घर के काम करते हुए मानसिंह जादवा की पत्नी ने कहा |

    दिलीप सिंह यानी अंश के तिन दोस्त चिराग, पराग जिसको दोस्त प्यार से गुटखा बुलाते है क्योकी उसके मु में २४ घंटे गुटखा भरा हुआ रहता और तीसरा दोस्त अशोक और उसी अशोक के पिता दिलीप सिंह | अशोक के लिए शादी की बात आई हुई थी और अशोक ने अपने पिता से शादी के लिए किसी कारण से मना किया था तो दिलीप सिंह ने उसके दोनों दोस्तों को बुलाया और अशोक को समजाने के लिए दिलीप सिंह दोनों दोस्त को समजा रहे थे | दिलीप सिंह मानसिंह के ट्रांसपोट वाले व्यापार को संभालता था और दिखने मै भी काफी डरावने दीखते थे और इसी वजह से चिराग और पराग दिलीप सिंह के सामने एक-दम सिकोड़कर बेठे हुए थे |

   तुम लोगो को क्या लगता है की अशोक को शादी करनी चाहिए या नहीं... अपनी आखो का आकार बड़ा करते हुए कहा |

   जी जी जरुर करनी चाहिए, अगर बड़े कुछ सोचते है तो हमारे भले के लिए ही सोचते है आप ने सोचा है तो उसको शादी जरुर करनी चाहिए ... चिराग और पराग ने बारी बारी डर के मारे दिलीप सिंह को पसंद आए एसा उत्तर देते हुए कहा |

   तो फिर अंदर जाओ और अपने दोस्त को मनाओ जाओ ... दिलीप सिंह ने दोनों को कहा |

   दोनों अंदर अशोक के पास रूम में जाते है जहा अशोक अपना बिगड़ा हुआ मु लेकर एक कोने में बेठा हुआ था |

   बे साले शादी कर लेना तेरा बाप हम दोनों की मार रहा है ... पराग ने कहा |

   अबे साले गुटखा तु न गुटखा खा मेरा दिमाग मत खा मेरी परिस्तिथि मुझे ही मालुम है ... अशोक ने कहा |

   हा पर तेरा बाप तो हमें फसा रहा है ना बहार बम्बू लेकर बेठा है अगर तु नहीं माना तो पता नहीं कहा कहा घुसायेगा... चिराग ने कहा |

   तीनो के बिच संवाद चल ही रहा था तभी अंश का फोन चिराग के फोन पर आता है |

   हा बोल अंश ... चिराग ने कहा |

   अबे किसी ने बम्बू कर दिया हो एसे क्यों बात कर रहा है ... अंश ने कहा |

   बम्बू ही कर दिया है इस अशोक के बाप ने साला यह शादी के लिए मना कर रहा है और इसका बाप हमारे पीछे बम्बू लेकर पड़ा है और तु तेरा क्या है बिदेश में बैठकर मजे ले ... चिराग ने कहा |

   अबे नंबर तो देख लिया कर इंडिया से फोन कर रहा हु और वो भी बग्वा से ... अंश ने कहा |

   बे तु बग्वा में है बे अंश तु जल्द से जल्द यहाँ आ और हमें इस मुसीबत से निकाल इसका बाप तेरे बाप के निचे काम करता है तो तेरी बात नहीं टालेगा ... चिराग ने हड़बड़ी में कहा |

   अबे मेरे पापा को सही से बुला उन्होंने बम्बू नहीं किया है और आता हु में ... अंश ने कहा |

   सॉरी भाई तु आना जल्दी से ... चिराग ने फ़ोन रखते हुए कहा |

   अंश अशोक के घर पहुचता है और फिर चारो दोस्त मिलते है और अंश की परेसानी सुनते है |

   अबे तु शादी के लिए मना क्यों कर रहा है शादी कर लेना मिल रही है तो मना क्यों कर रहा है ... अंश ने अशोक से कहा |

   अरे अभी कर लु लड़की कौन है कैसी है यह तो पता होना चाहिए ना | ना तो लड़की का फोटो था और वहा देखने गया तो बड़ा घूँघट पहनकर आई थी और बात करने की तो हम में सुविधा है नहीं कैसे शादी कर लु | बिना देखे बात करे लड़की से शादी कैसे कर लु और मेरा बाप आज ही के आज उत्तर मांग रहा है हा या ना समय मिले तो हम भी लड़की के बारे में कुछ जान ले यार अंश कुछ करना कम से कम मेरे बाप से उत्तर के लिए समय तो मांग ले ... अशोक ने कहा |

   ठीक है चल मै कुछ चक्कर चलाता हु वैसे भी इंसान को अपनी बातो में फ़साने में अपुन कलाकार है ...अंश ने कहा |

   चारो दोस्त बड़ी हिम्मत के साथ दिलीप सिंह के पास जाते है |

   अरे आओ अंश कैसे हो कब आए ... दिलीप सिंह ने चारो को उसके सामने बेठने का कहते हुए कहा |

   बस काका आप जैसो के आशीर्वाद से एक-दम मजे में | मैने अभी अभी जो शुभ समाचार सुने है वो सही है काका अशोक की शादी के ... अंश ने दिलीप सिंह के लिए जाल बिछाते हुए कहा |

   हा पर तेरा दोस्त उत्तर कहा दे रहा है ... दिलीप सिंह ने कहा |

   यह गलत है अशोक आज के ज़माने मै पहले तो एसे पिता मिलना ही मुश्किल है जो अपने लड़के की राइ मांग रहे हो वरना किसको अपने बेटे की पड़ी है | एसे कुछ ही बाप दुनिया में होते है अंश अपने बाप की बात मान ले अगर तुझे चाहिए तो तुझे २-४ दिन का समय भी दे सकते है ... अंश ने मुद्दे की बात पर आते हुए कहा |

   तीनो दोस्त मन ही मन अंश की बात सुनकर खुश हो रहे थे की अंश काम कर लेगा |

   नहीं नहीं में समय नहीं दे सकता में उनको बोल चुका हु की आज उनको उत्तर दे दूंगा ... दिलीप सिंह ने कहा |

   वो भी सही है अंकल जबान की भी कोई किंमत होती है ... अंश ने फिर से बात घुमाने की कोशिश करते हुए कहा |

      अबे यह बचा रहा है या मरवा रहा है ... अशोक ने छुपके से चिराग के कान में कहा |

   नहीं नहीं यह कुछ तो जुगाड़ करेगा ... चिराग ने कहा |

   देखो काका आपकी वो बात सही है लेकिन इसमें नुकशान आप ही को होगा क्योकी अभी से आप लड़की वालो का सुनने लगोगे तो फिर आपका स्टेटस क्या रहेगा वहा की लड़के वालो ने बिना भाव खाए ही उत्तर दे दिया मतलब लड़के को मिल नहीं रही होगी क्या एसे कई सवाल हो सकते है पर अगर आप ४-५ दिन रुको और बाद उनको उत्तर दो तो उनके उपर अपना इम्प्रेसन पड़ता है की बड़े लोग लगते है | में आपको समजाता हु अभी वो जो गोरे होते है बिदेश में उनकी मांग इतनी ज्यादा क्यों होती है ... अंश ने बातो की चाल मे दिलीप सिंह को फसाते हुए कहा |

    क्यों होती है ... दिलीप सिंह ने कहा |

    क्योकी वो किसी को भी ना तो आसानी से उत्तर देते है और ना ही मिलते है तो उनकी कदर ज्यादा होती है बाकी वो भी उतने काम में नहीं होते काका पर अपनी किंमत बढ़ाने के लिए वो यह सब करते है में वहा जाके यह सब सिखा ना काका बाकी आप बड़े हो आपको इसकी मुझसे तो ज्यादा समज है और मुझे पता है आप एसा कोई फेसला नहीं लोगे जिससे आपकी किमत कही पे कम हो... अंश ने बातो के जाल में दिलीप सिंह को फसाते हुए कहा |

    साले ने अब फसा दिया ... मु में गुटखा भरकर किसी को समज ना आए एसे पराग ने कहा |

    क्या बोला बे तु ... दिलीप सिंह ने पराग की बात सुनकर कहा |

   पराग सबसे पहले अपना गुटखा बहार थुक आता है और बाद में बोलता है |

   नहीं में कह रहा था की यह काका को क्या सिखाएगा काका को सब मालुम ही है वो एसे वेसे थोड़ी जवाब देंगे है ना काका ... पराग ने अपने बचाव के तौर पर कहा |

   हा हा कदर तो होनी चाहिए सही है और फिर मेरे पास काम भी तो इतना है चलो बोल दूंगा पर इसको शादी करनी है और मनाने की जिम्मेवारी तुम्हारी है ... इतना बोलकर दिलीप सिंह वहा से चले जाते है |

   यार तेरा बाप इतना बेवकूफ है ... अंश ने जाते हुए दिलीप सिंह की तरफ देखकर अशोक को कहा |

   वो जो भी हो वाह अनशिया बचा लिया तुन्हें ... चिराग ने कहा |

   ए भाई गोठ्वाई गया से भाई गोठ्वाई गया से ... पराग गुजराती गाना अपने मु से गाता है ( भाई की सगाई हो गई है गाने का मतलब ) और अशोक के सिवा सभी दोस्त नाचने लगते है |

   अबे चुप सालो अभी बला टली नहीं है अभी उस लड़की के बारे में जानना बाकी है और अगर उसमे कुछ इधर उधर निकला तो प्रॉब्लम तो वही का वही है ना ... अशोक ने सबको नाचने से रोकते हुए कहा |

   तु चिंता छोड़ यह तेरा भाई है ना लड़की का नाम बता और गाव का नाम बड़ा कुछ ही घंटो में उसकी कुंडली लाकर तेरे हाथो में रख दूंगा ... अंश ने कहा |

   नाम है प्रेमिला और वो अपने पास वाला गाव भिड़ा की है पुरषोत्तम गेडा की लड़की है... अशोक ने कहा |

   भिड़ा गाव और नाम प्रेमिला ...सोचते हुए अंश ने कहा |

   यार यह तो वीर की शादी जिससे हुई है वो भी तो वही की है ना भिड़ा गाव की ... चिराग ने अपना दिमाग चलाते हुए कहा |

   हो तो वो थोड़ी इसको आके सब बता के जाएगी वो मानसिंह जादवा के घर की बहु है ... पराग ने कहा |

   वो नहीं आ सकती पर में तो वहा जा सकता हु ना ख़ुशी के जरिए ... अंश ने कहा |

  यार अंश अभी तु भी ख़ुशी से शादी कर ही ले हम दोनों साथ में डुबते है ...अशोक ने कहा |

  बेटा ख़ुशी ना मेरी दोस्त है और यह शादी तुम करो हम तो नंगे ही अच्छे है मतलब कुवारे ... अंश ने कहा |

  तु अंश ध्यान रखना गाव में यह खबर धीरे धीरे फेलती जा रही है की तेरी और ख़ुशी के बिच चक्कर चल रहा है ... पराग ने कहा |

  वो जो भी हो लेकिन सही में तो चक्कर नहीं चल रहा है ना और में किसी से डरता नहीं हु ... अंश ने कहा |

 अंक ३ मृत्यु 

    ख़ुशी और अंश बहुत ही अच्छे दोस्त थे और दोनों का एक दुसरे से वर्तन मानो एसा था जैसे दो प्रेमी हो | देखने वाले सबको यही लगता की दोनों एक दुसरे के प्रेम में है पर एसा कुछ है भी या नहीं इसकी पुष्टि दोनों में से कभी किसी ने नहीं की है |

    एक तरफ अंश जादवा सदन में ख़ुशी बिखेर रहा था वही दुसरी और एक बड़ा संकट जादवा सदन की और आन पड़ा था | देखते है वो घटना जिसे देखकर विष्णु और पवन की आखे और मु दोनों खुले के खुले ही रह गए |

    दोनों मिलकर मोटर-साईकल खड़ी करते है लेकिन दोनों का ध्यान सामने की और ही था जहा पे कई लोग इकठ्ठा हुए थे और एक अकस्मात को देख रहे थे | पवन और विष्णु को अकस्मात का दृश्य पुरा तो नहीं दिख रहा था लेकिन उनको वीर जादवा की कार जरुर दिख रही थी | दोनों अपनी मोटर-साईकल वही पर खड़ी करके आगे उस भीड़ की और बढ़ते है | दोनों की धड़कने तेज रफ़्तार पकड़ रही थी | दोनों अपनी तेज धड़कन और दबे पाँव के साथ आगे बढ़ रहे थे | दोनों के दिमाग में यह शंका स्थान ले रही थी की कही यह अकस्मात वीर जादवा का तो नहीं हुआ है क्योकी कार उसी की थी | दोनों भीड़ के बिच घुसते है और देखते है तो उन्हें वही दीखता है जो वे अभी तक सोच रहे थे |

    कार पुरी तरह तूट चुकी थी और वीर जादवा अभी तक कार में ही था और उसके पुरे बदन से खुन निकल चुका था और उसकी कार में ही मृत्यु हो चुकी थी |

TO BE CONTINUED NEXT PART…     

।। जय श्री कृष्णा ।।

।। जय कष्टभंजन दादा ।।

A VARUN S PATEL STORY