Kamwali Baai - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

कामवाली बाई--भाग(५)

गीता का दिमाग़ हिल चुका था, डेनियल और हर्षित के बीच के सम्बन्ध को जानकर,वो अब मिसेज कुलकर्णी के घर काम पर जाती थी तो उसे हर्षित के बारें में सोचकर कुछ अज़ीब सा लगता था,अब वो हर्षित से उस तरह से बात नहीं करती थी जैसा कि पहले किया करती थी,ये बात हर्षित ने भी नोटिस की थी कि अब गीता उससे पहले की तरह बातें नहीं करती थीं,एक दिन जब गीता उसके कमरें मेँ खाना देने गई तो उसने गीता से पूछ ही लिया....
क्या बात है गीता?आजकल तुम मुझसे पहले की तरह बात नहीं करती,
भइया!ऐसी कोई बात नहीं है,गीता बोली।।
कोई बात तो है,तभी तो तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रही हो,हर्षित बोला।।
भइया!ऐसा कुछ भी नहीं है,गीता बोली।।
तुम भी अपने भाई से गैरों की तरह व्यवहार करने लगी,हर्षित ये कहते हुए रूआंँसा सा हो उठा,
नहीं!भइया!ऐसा कुछ नहीं है,गीता बोली।।
मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हें मेरे और डेनियल के रिश्ते के बारें में पता चल गया है,हर्षित ने पूछा।।
ये सुनकर फिर गीता कुछ ना बोल सकी,उसकी चुप्पी देखकर हर्षित बोला....
तो फिर मेरा अन्दाज़ा सही निकला,तुम भी मुझे औरों की तरह घटिया और वाहियात समझती हो,यही तो सब अपने मन की बात करते हैं लेकिन मेरे मन की बात कोई नहीं समझता,तुम भी नहीं गीता!,हर्षित बोला।।
भइया!जिस बात को समाज और बड़े गलत कहते हैं तो वो गलत ही होता है,गीता बोली।।
तब हर्षित बोला....
लेकिन गीता!मुझे लड़कियांँ अच्छी नहीं लगतीं तो मैं क्या करूँ?पता है जब मैं बहुत छोटा था तो मैनें ये बात माँ से कही थी,लेकिन उन्होंने मेरी इस बात को मज़ाक में ले लिया,लेकिन जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया तो मुझे लड़को से दोस्ती करना अच्छा लगने लगा,लेकिन तब मेरे दिल की बात समझता कौन?जब माँ बाप को बच्चे का दोस्त बनना चाहिए तो उन्होंने मुझे खुद से दूर कर दिया,बोर्डिंग में पढ़ाई के लिए डाल दिया ताकि उनके काम में कोई अवरोध उत्पन्न ना हो और वें और भी रूपया कमा सकें,
ये रुपया उन्होंने मेरे लिए ही कमाया है ना लेकिन ये रूपया मेरे किस काम का जब मैं दिल से खुश नहीं हूँ,वो मेरी शादी सोनिया से करना चाहतीं हैं लेकिन वो ऐसा करके मेरी और सोनिया दोनों की जिन्दगी खराब कर रहीं हैं,शादी के बाद सोनिया को पता चला कि मुझे उसमें कोई इन्ट्रेस्ट नहीं है तो सबकी जिन्दगी में तूफान आ जाएगा,लेकिन मेरी माँ मेरी बात समझने को तैयार ही नहीं,मैं केवल डेनियल को चाहता हूँ और उसके साथ ही खुश रह सकता हूँ,
लेकिन ये रिश्ता बेमेल है,प्रकृति के खिलाफ है,समाज में ऐसा नहीं होता भइया!गीता बोली।।
तो तुम्हारे कहने का मतलब है कि मैं सच में गलत हूँ,हर्षित बोला।।
लेकिन आपके माँ बाप के भी तो कुछ अरमान होगें,आखिर आप उनकी इकलौती सन्तान हैं,गीता बोली।।
तो क्या करूँ मैं?उनके अरमानों की खातिर अपने अरमानों का गला घोंट दूँ,हर्षित बोला।।
तो क्या आप हमेशा डेनियल के साथ ही रहेगें,आपकी आगें की जिन्दगी कैसी होगी?जरा आप खुद ही सोचकर देखिए,जिन्दगी को बढ़ाने के लिए बच्चे चाहिए होते हैं,आपकी वंशबेल तो आप पर आकर ही खत्म हो जाएगी,ये तकलीफ़ आपके माँ बाप देख नहीं पाऐगें,गीता बोली।।
तो हम दोनों एक बच्चा गोद ले लेगें,हर्षित बोला।।
ये बहुत ही बेहूदा विचार है और मैं आपसे सहमत नहीं हूँ,गीता बोली।।
तो तुम्हें भी मेरा और डेनियल का रिश्ता पसंद नहीं,हर्षित बोला।।
बिल्कुल नहीं,गीता बोली।।
तुम मेरी बहन होकर ऐसा कह रही हो,हर्षित बोली।।
बहन हूँ तभी आपका भला चाहती हूँ गैर होती तो आपको आँखों के सामने कुएँ में गिरता देख कुछ ना बोलती,गीता बोली।।
ठीक है तो तुमने भी मेरा साथ छोड़ दिया,हर्षित बोला।।
ना भइया!साथ नहीं छोड़ा,जो आपके लिए सही है मैं आपको वही सलाह दे रही हूँ,गीता बोली।
और उस दिन हर्षित की गीता के साथ बहुत बहस हुई,इतनी बहस हुई कि गीता गुस्से से उस घर का काम छोड़कर चली आई,फिर दोबारा लौटकर उस घर में ना गई,मिसेज कुलकर्णी ने अपने ड्राइवर को भेजकर गीता से उनके घर आने को भी कहा लेकिन अब उसका उस घर से मन उचट गया था और वो दोबारा उस घर में ना गई,
ऐसे ही दो तीन महीनें बीतें,सावन आ गया और सावन में रक्षाबंधन का त्यौहार आया,गीता वैसे तो अपने भाई के लिए राखी ना खरीदती थी लेकिन इस बार वो राखी खरीदने गई और उसने दो राखियाँ खरीदीं एक अपने भाई मुरारी के लिए और दूसरी हर्षित के लिए,
राखी वाले दिन उसने नया सलवार कमीज पहना और दोपहर तक राखी की थाली लेकर अपने का इन्तज़ार करती रही लेकिन मुरारी घर ना लौटा,अब गीता का मन खराब हो गया इसलिए वो अपनी माँ से बोली....
माँ! क्या मैं मिसेज कुलकर्णी आण्टी के घर चली जाऊँ हर्षित भइया को राखी बाँधने?
कावेरी बोली,
मुझसे क्या पूछती है तेरा भाई है तो जाकर बाँध आ राखी।।
गीता खुशी खुशी मिसेज कुलकर्णी के घर पहुँची,डोरबेल बजाई तो मिसेज कुलकर्णी ने दरवाज़ा खोला और गीता को सामने देखकर बोलींं....
तू! इतने दिनों बाद ,आजा ....अंदर आजा.....
गीता ने पहले नमस्ते की फिर अंदर पहुँची और बोली....
आज राखी है,हर्षित भइया मुझे अपनी बहन मानते हैं इसलिए राखी बाँधने आई हूँ,कहाँ है वें?उन्हें बुला दीजिए?
मिसेज कुलकर्णी तो कुछ ना बोलींं लेकिन इतने में मिस्टर कुलकर्णी अपने कमरें से बाहर आ कर बोलें.....
बेटी!अब तेरा भाई इस दुनिया में नहीं रहा,हमारी जिद़ उसे खा गई...
क्या कह रहे हैं अंकल जी?गीता ने आश्चर्य से पूछा....
हाँ!बेटी !ये सच है,मिसेज कुलकर्णी बोलींं....
लेकिन ये सब अचानक कैसें हो गया?गीता ने पूछा...
तब मिसेज कुलकर्णी बोलींं....
मैंने उससे सोनिया से शादी करने की जिद की,लेकिन वो तैयार ही नहीं हो रहा था,वो तो डेनियल के साथ रहना चाहता था,फिर एक दिन मैं डेनियल के पास गई और उसे मुँहमाँगे रूपए देकर बोलीं कि तुम मेरे बेटे से दूर रहों,उसका पीछा छोड़ दो,चाहों तो मैं तुम्हारा विदेश भेजने का इन्तजाम भी कर दूँगी लेकिन तुम हर्षित के आस पास भी नहीं फटकोगें,रूपए देखकर डेनियल के मन में लालच आ गया और वो हर्षित को छोड़ने को राज़ी हो गया,मैनें उसे अपने खर्च पर विदेश भी भेज दिया ये बात हर्षित के किसी दोस्त ने उसे बता दी और हर्षित को डेनियल का धोखा पसंद नहीं आया,वो पहले से टूटा हुआ था और भी टूट गया,ऊपर से हम उसके माँ बाप होकर भी उसे ना समझ सकें तो उसने छत पर से नीचें कूदकर आत्महत्या कर लीं.....
मेरी जिद़ के कारण वो हमसे दूर चला गया,गीता!सब गलती मेरी है मैनें क्यों एक माँ होकर उसके दर्द को नहीं समझा,रूपया कमाने के चक्कर में मैं ने उसे अपने आपसे दूर रखा और आज देखों वो खुद ही रूठकर हमसे दूर चला गया और इतना कहकर मिसेज कुलकर्णी फूट फूटकर रोने लगी।।
उनका रोना देखकर गीता की आँखों से भी आँसू बह निकले और उसने मिसेज कुलकर्णी से पूछा....
क्या मैं उनके कमरें में जा सकती हूंँ?
हाँ!बेटा!जाओ,इसमें पूछने वाली क्या बात है?मिस्टर कुलकर्णी बोलें....
फिर गीता धीरे से उठी और हर्षित के कमरें गई,जहाँ उसकी तस्वीर पर फूलमाला चढ़ी हुई थी,वो उस तस्वीर के सामने जाकर बोली....
मुझे माँफ कर दीजिए,हर्षित भइया!मैनें भी आपको नहीं समझा और उसने वो राखी जो उसे बाँधने के लिए लाईं थीं वहीं उसकी तस्वीर के सामने रख दी और आँखों में आँसू लिए हुए मिसेज कुलकर्णी से बोली......
अच्छा!आण्टी!अब मैं जाती हूँ!!
और फिर उसने बाहर आकर अपने आँसू पोछें लेकिन आँसू हैं कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे,वो रास्ते पर आँसू पोछती रही और ये सोचती रही कि....
इन्सान क्यों ऐसा है?किसी को कुछ चाहिए....तो किसी को कुछ चाहिए,आखिर क्या पाया मिसेज कुलकर्णी ने अन्त में इतना रूपया कमाकर,अगर रूपया ना कमाकर थोड़ा वक्त वो अपने बेटे के साथ बितातीं तो शायद ऐसी नौबत ना आती,बेटा नहीं रहा तो रूपया किस काम का,वो रूपया उन्होंने बेटे के लिए ही तो कमाया था,अब वें आगें क्या करेंगीं मैं ये नहीं जानती ,मैं तो बस इतना जानती हूँ कि उनके जीवन में जब खुशियों के पल आएं थे उन्होंने उसे भरपूर नहीं जिया,वो शायद खुशियों के लिए ही रूपया कमा रहीं थीं,लेकिन अब उनकी सबसे बड़ी खुशी उनसे दूर चली गई तो अब रूपया किस काम का.....
ये सोचते सोचते गीता कब घर पहुँच गई उसे पता ही नहीं चला और जाकर कावेरी की गोद में सिर रखकर फूट फूटकर रोते हुए बोली.....
माँ!हर्षित भइया ने आत्महत्या कर ली।।
ये सुनकर कावेरी को भी बहुत बुरा लगा और वो बिस्तर पर लेटकर अपने बेटे मुरारी के बारें में भी सोचने लगी....
मुरारी भी तो आजकल अपने मन का हो गया है किसी की बात नहीं मानता,नशे के लिए ही वो कोई काम करता है ,जब दो चार दिन के नशे के लिए पैसे इकट्ठे हो जाते हैं तो काम छोड़ देता है,कई कई दिनों तक घर नहीं आता,कावेरी को उसकी बहुत चिन्ता रहती है,सुना है आजकल वो चकले वाली हुस्ना के यहाँ जाने लगा है,दिनभर वहीं तो पड़ा रहता है,हुस्ना का तो काम यही है कि भोले भाले लोगों को अपने चंगुल में फाँसकर उनके पैसें हड़पना,सब कहते हैं कि वो मुरारी से उम्र में बड़ी भी है....
अब की बार आने दो मैं उससे पूछूँगी कि वो हुस्ना के पास क्यों जाता है?अगर तू कहें मैं कोई अच्छी सी लड़की देखकर तेरी शादी कर दूँ,शायद बहु आने से मुरारी सुधर जाएं,नशा करना भी छोड़ दें,कावेरी ये सब सोच ही रही थी तभी दरवाजा खुलने की आवाज़ आई उसने देखा कि मुरारी आया है जो कि नशे में था,मुरारी को देखकर कावेरी ने उससे खुश होकर पूछा....
आ गया तू!
क्यों मैं घर नहीं आ सकता क्या?मुरारी बोला।
तू घर रोज़ नहीं आता ना!इसलिए मैनें पूछा,कावेरी बोली।।
तो मत पूछा करो,मुझे जरूरत नहीं है किसी की,मुरारी बोला।।
हाँ!अब तुझे हुस्ना जो मिल गई है,तो तुझे हमलोगों की क्या जरूरत,कावेरी गुस्से से बोली...
वो तुम लोगों से तो अच्छी है,मुरारी बोला।।
अच्छा तो अब बाहर वाली हम लोगों से अच्छी हो गई,कावेरी बोली।।
हाँ!कम से कम मेरा दर्द तो समझती है,मुरारी बोला।।
तो क्या हम तेरा दर्द नहीं समझते?कावेरी ने पूछा।।
नहीं!अगर समझते होते तो तुम लोंग उस वक्त मेरा साथ देते जब गौरी की बात मैनें तुम लोगों से बताई थी,मुरारी बोला।।
वो बहुत अमीर लोंग थे बेटा! हम उनसे नहीं जीत सकते थे,कावेरी बोली।।
लेकिन पुलिस में शिकायत दर्ज तो करा सकते थे ना! कम से कम उसके परिवार का घिनौना चेहरा तो सबके सामने आ जाता,मुरारी बोला।।
लेकिन उसके घरवालों ने तुझे जान से मार डालने की धमकी दी थी,कावेरी बोली।।
तो क्या होता मैं भी अपनी गौरी की तरह मर जाता,मुरारी बोला।।
ऐसा ना बोल बेटा!!हम सब तुझे प्यार करते हैं?कावेरी बोली।।
लेकिन मैं गौरी से प्यार करता था और वो भी मुझे चाहती थी,मुरारी बोला।।
लेकिन बेटा उसके घरवाले तो नहीं चाहते थे ना कि तू गौरी से मिले,तभी तो उन्होंने गौरी को घर के भीतर कैद़ करके रखा था,कावेरी बोली।।
लेकिन वज़ह कुछ और थी उसे घर में कैद करने की,मुरारी बोला।।
वो वज़ह तो तूने मुझसे कभी नहीं बताई,बस ये कहा कि उसके घरवाले नहीं चाहते कि तू उससे मिलें क्योंकि वो एक विधायक की पोती है और तू एक कामवाली का बेटा,कावेरी बोली.....
माँ!तुमने कभी वज़ह जानने की कोशिश ही नहीं की तो क्या बताता?मुरारी बोला।।
तो आज बोल दे बेटा!मैं सब सुनूँगी लेकिन तू ये रातों को यहाँ वहांँ भटकना छोड़ दे,नशा करना छोड़ दे,कावेरी बोली....
नशा तो मैनें गौरी के जाने के बाद शुरु किया क्योंकि उसे मैं न्याय नहीं दिलवा सका इसका मुझे बहुत पछतावा है,मुरारी बोला।।
मुझे बता आज कि उसके साथ क्या हुआ था?मैं सब सुनूँगी,कावेरी बोली.....
फिर मुरारी ने गौरी के बारें बोलना शुरु किया.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....