Mere Ghar aana Jindagi - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरे घर आना ज़िंदगी - 18


(18)

मकरंद एकबार फिर कंस्ट्रक्शन साइट पर गया था। वहाँ उसने पता करने की कोशिश की थी कि उसकी बिल्डिंग का काम कब आगे बढ़ेगा। पर इस बार भी वही घिसा पिटा जवाब मिला था। बातचीत चल रही है पर कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा है। वहीं उसकी मुलाकात अपने जैसे ही एक भुग्तभोगी पांडे जी से हो गई। उन्होंने रिटायरमेंट के बाद इस प्रोजेक्ट में फ्लैट खरीदने का मन बनाया था। पर उनका पैसा फंस गया था। फ्लैट मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं दिख रही थी। पांडे जी ने बहुत दुखी स्वर में कहा,
"पत्नी को जीवन भर किराए के मकान में रखा था। बड़ा अरमान था कि एक दिन अपने मकान में रहेंगे। रिटायरमेंट पर जो पैसा मिला यहाँ लगा दिया। पर पत्नी अपनी इच्छा दिल में दबाए हुए दो महीने पहले ही इस दुनिया को छोड़कर चली गई। अब यहाँ रहने की खास इच्छा नहीं रही है। लेकिन इतना पैसा लगाया है तो पूछने चला आता हूँ कि क्या हो रहा है।"
पांडे जी की कहानी सुनकर मकरंद को उनसे सहानुभूति हुई। उसने भी उन्हें आपबीती सुनाई। कुछ देर तक दोनों में बाते हुईं। पांडे जी ने सुझाव दिया कि क्यों ना सभी भुग्तभोगी लोगों से संपर्क करके एक ग्रुप बनाया जाए। उसके बाद सब मिलकर काम शुरू करने का दबाव डालें। उन्होंने इस काम का दायित्व खुद पर ले लिया। मकरंद से उसका नंबर ले लिया कि जल्दी ही वह एक ग्रुप बनाकर उसमें उसे जोड़ लेंगे।

मकरंद घर लौटकर आया तो नंदिता ने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया। उसने बताया कि आज उसके मम्मी पापा उन लोगों से मिलने आने वाले हैं। नंदिता के मम्मी पापा पहली बार उसके घर आ रहे थे इसलिए वह बहुत उत्साहित थी। मकरंद भी खुश था। नंदिता के परिवार में वह अपना परिवार देखता था। वह नंदिता के साथ मिलकर उन लोगों के स्वागत की तैयारियां करने लगा।
आज घर का माहौल बहुत खुशनुमा था। नंदिता के पापा बड़ी मज़ेदार बातें कर रहे थे। सब खूब हंस रहे थे। मकरंद ने पहली बार अपने घर में ऐसा माहौल देखा था। नहीं तो उसके घर में वह और नंदिता ही थे। दोनों आपस में कुछ बातें कर लेते थे। अधिकांशतः तो घर में शांति रहती थी। लेकिन आज ऐसा लग रहा था कि जैसे घर की दीवारें भी ठहाके लगा रही हैं।
डिनर के बाद नंदिता अपनी मम्मी के साथ बेडरूम में बैठी थी। मकरंद उसके पापा के साथ लिविंग रूम में था। नंदिता के पापा ने एक नज़र कमरे पर डालते हुए कहा,
"फ्लैट छोटा है। कोई गेस्ट आ जाए तो तुम लोगों को दिक्कत होगी।"
मकरंद ने कहा,
"वैसे गेस्ट के लिए एक छोटा सा रूम है। पर आप सही कह रहे हैं। दरअसल अभी इससे बड़े फ्लैट का किराया अफोर्ड नहीं कर पाता। इसलिए यही किराए पर लिया था।"
नंदिता के पापा ने कुछ नहीं कहा। मकरंद ने अपनी बात आगे बढ़ाई,
"मैंने एक फ्लैट बुक करा रखा है। इससे बड़ा है। लेकिन कुछ कारणों से आधे में उसका काम रुक गया। नहीं तो अब तक अपने फ्लैट में शिफ्ट करने की सोच रहे होते।"
नंदिता के पापा ने कहा,
"कल बच्चा बड़ा होगा। एक कमरा तो उसे ही चाहिए होगा। फिर गेस्ट रूम भी होना चाहिए।"
"जी सही कहा आपने। सोचा तो यही है कि आगे चलकर और भी बड़ा घर लूँगा। पर सारा प्लान बिगड़ गया। फ्लैट का काम रुक गया। फिर अचानक बच्चे की खबर मिली। फिर भी कोशिश रहेगी कि बच्चे की ज़रूरतें पूरी कर सकूँ।"
नंदिता के पापा कुछ देर चुप रहे। कुछ सोचकर उन्होंने कहा,
"तुम्हारा परिवार होता तो उनसे मदद मिल जाती। पर वह तो संभव है नहीं। अकेले ही सबकुछ करना होगा।"
मकरंद को उनकी यह बात अच्छी नहीं लगी। पर उसने बड़ी शालीनता से जवाब दिया,
"घर परिवार होता तो बहुत मायनों में अच्छा होता। परिवार तो मेरा है नहीं लेकिन मुझे कोई परेशानी नहीं है। अपनी ‌और अपने परिवार की ज़िम्मेदारी उठाने के लायक तो हूँ।"
नंदिता के पापा को महसूस हुआ कि उसे बात बुरी लगी है। उन्होंने कहा,
"तुम्हारी काबिलियत पर कोई संदेह नहीं है। मैं कहना यह चाहता हूँ कि नंदिता हमारी इकलौती संतान है। तुम हमारे बेटे जैसे हो। हमारा सबकुछ नंदिता का है। हमारा घर तो अच्छा खासा बड़ा है। अगर तुम और नंदिता हमारे साथ रहने लगो तो तुम लोगों को हमारा साथ मिल जाएगा और हमें तुम लोगों का।"
मकरंद के लिए यह प्रस्ताव चौंकाने वाला था। वह आश्चर्य से नंदिता के पापा को देख रहा था। नंदिता के पापा ने कहा,
"मैं मानता हूँ कि अचानक यह प्रस्ताव सुनकर तुम सोच में पड़ गए हो। मैं भी तुमसे एकदम से कोई फैसला लेने को नहीं कह रहा हूँ। नंदिता की मम्मी भी उससे यही बात कर रही होंगी। तुम दोनों आराम से इस विषय में सोच लेना।"
मकरंद अभी भी प्रस्ताव सुनकर अचंभित था। नंदिता के पापा ने उठते हुए कहा,
"देखूँ उन लोगों की बात खत्म हुई या नहीं। देर हो रही है। घर भी जाना है।"
उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज़ लगाई। वह नंदिता के साथ बाहर आईं। नंदिता भी गंभीर लग रही थी। इससे लग रहा था कि उसकी मम्मी ने भी वही बात की थी। नंदिता के मम्मी पापा उन लोगों से विदा लेकर चले गए।

नंदिता और मकरंद दोनों ही चुप बैठे थे। दोनों के मन में एक ही बात चल रही थी। लेकिन इंतज़ार कर रहे थे कि दूसरा उसकी चर्चा छेड़े। मकरंद जब कुछ नहीं बोला तो नंदिता ने बात शुरू की। उसने कहा,
"पापा ने तुमसे बात की होगी। तुम क्या सोचते हो इस विषय में।"
मकरंद ने उसके सवाल के जवाब में एक सवाल किया,
"नंदिता तुम्हें मेरी काबिलियत पर भरोसा है।"
नंदिता ने आश्चर्य से कहा,
"यह कैसी बात कर रहे हो ? तुम पर भरोसा करके ही तो मैंने पापा की नाराज़गी के बावजूद तुमसे शादी की थी। पर इस सवाल का उस बात से क्या संबंध है।"
"संबंध है नंदिता। उन्होंने तुम्हेंं माफ कर दिया है। इसलिए मुझे भी अपनाना पड़ा। पर उन्हें अभी भी मेरी योग्यता पर शक है।"
यह तर्क नंदिता को पसंद नहीं आया। उसने कहा,
"ऐसा क्यों लगा तुम्हें ?"
"इसलिए क्योंकी उनका प्रस्ताव इसी तरफ इशारा करता है। पहले उन्होंने छोटा घर होने की बात कही। फिर बोले कि मेरा परिवार होता तो वह लोग मदद कर देते। उसके बाद बोले कि मैं तुम्हारे साथ उनके घर रहने चला जाऊँ। उन्हें लगता है कि मैं तुम्हें एक खुशहाल ज़िंदगी देने के लायक नहीं हूँ।"
मकरंद की बात सुनकर नंदिता को लगा कि उसके पापा के प्रस्ताव से उसे चोट पहुँची है। उसे यकीन था कि उसके पापा का यह मतलब नहीं हो सकता है। उसने मकरंद को समझाते हुए कहा,
"मुझे पूरा विश्वास है कि पापा तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहते थे। फिर भी मैं जानती हूँ कि तुम्हें ठेस पहुँची है।‌"
उसने मकरंद का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा,
"मुझे पूरा यकीन है कि तुम मुझे हर वह खुशी दोगे जो मुझे चाहिए।"
मकरंद ने अपना हाथ छुड़ाकर कहा,
"तो फिर आगे इस विषय में कोई बात नहीं करनी है। तुम धीरे से अपने मम्मी पापा को समझा देना कि ऐसा नहीं हो सकता है।"
यह कहकर मकरंद उठा। मेनडोर खोलते हुए बोला,
"कुछ देर ताज़ी हवा खाने जा रहा हूँ।"
मकरंद चला गया। नंदिता सोच में डूब गई। अपनी मम्मी से जब उसने यह प्रस्ताव सुना था तो पहले उसकी प्रतिक्रिया भी यही थी कि ऐसा कैसे हो सकता है। लेकिन फिर उसकी मम्मी ने समझाया कि इसमें कोई गलत बात नहीं है। नंदिता और मकरंद को बड़ों के मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी और उन लोगों को अपने बच्चों का साथ मिल जाएगा। यह बात नंदिता को ठीक लगी थी। उसने सोचा था कि धीरे से मकरंद को समझा कर मना लेगी। लेकिन मकरंद तो कुछ सुनने को ही तैयार नहीं था।

योगेश उस फोटो फ्रेम को देख रहे थे जो नंदिता ने उन्हें उपहार में दिया था। उसे देखकर उनका मन नंदिता के लिए प्यार और अपनेपन से भर गया था। जिन दिनों वह अस्पताल में थे सुदर्शन के अलावा नंदिता ही थी जो उनसे मिलने आती थी। जब भी आती थी अपनी मुस्कान और मीठी बातों से अस्पताल के बोझिल माहौल को हल्का कर देती थी। फोटो फ्रेम को देखते हुए उन्होंने अपने आप से कहा,
"इस दुनिया में जहाँ अपने भी पल्ला झाड़ लेते हैं वहाँ नंदिता जैसे लोग भी हैं। जो कोई रिश्ता ना होते हुए भी दिल के नज़दीक रहते हैं। भगवान उसे हमेशा खुश रखे।"
उनके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। उन्होंने दरवाज़ा खोला। उनका हेल्पर था। उसने योगेश से कहा,
"अब खाना खा लीजिए। दवाएं भी लेनी हैं।"
योगेश ने बिस्तर पर बैठी उर्मिला का हाथ पकड़ कर उठाया। उन्हें खाने के लिए ले गए। जब वह उन्हें डाइनिंग टेबल पर बैठाने लगे तो उर्मिला ने कहा,
"जाकर विशाल को बुला लाऊँ। पढ़ाई के आगे इस लड़के को भूख भी नहीं लगती है।"
योगेश ने उन्हें डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठाकर कहा,
"उसे खाना खिला दिया है अब तुम खाओ।"
उन्होंने प्लेट लगाई। एक कौर तोड़ा और उर्मिला की तरफ बढ़ा दिया। उर्मिला ने उनके हाथ को परे करते हुए प्लेट अपनी तरफ खींच ली। उसके बाद कुछ देर तक असमंजस में उसे देखती रहीं।