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अधूरी कहानी

स्वरा पूरी रात करवटें बदलती रही। नींद उस से कोसों दूर थी। आंखें बुरी तरह जल रही थीं। वह अपने दिलो दिमाग से सब कुछ निकाल देना चाहती थी, पर कामयाब नहीं हुई। पास की मस्जिद से अज़ान की आवाज़ से अंदाज लगाया कि चार बज गये हैं। वह शॉल लपेट कर बाहर लॉन में आ गई। अभी अंधेरा था बाहर। कुछ देर ओस में भीगी घास पर नंगे पांव चलती रही, मानो अपने अंदर की जलन-तपन शांत करना चाहती हो। अंदर आ कर देखा घड़ी का छोटा कांटा पांच को छू रहा था। वह हौले से दरवाजा उढका कर बाहर आ गई। सड़क पार एक बगीचा है, वह और आकाश प्रतिदिन छः बजे इस बगीचे में सैर करने आते हैं। अभी इक्का-दुक्का लोग थे वहां, कुछ नवयुवक कानों में टेलीफोन की तार लगाये दौड़ लगा रहे थे। एक जगह कुछ लोग एक समूह में खड़े होकर ठहाके लगा रहे थे, वह और आकाश इन्हें देख खुद भी मुस्कुरा देते पर आज उसे इन पर क्रोध आ गया, ये भी क्या तरीका है हंसने का ? जब तक मन खुश न हो ये सब बेकार है।

उसने एक चक्कर पूरा किया तब तक रोज दिखाई देने वाले कुछ परिचित भी आ चुके थे। वे पास से मुस्कुरा के निकले पर स्वरा ने अनदेखा कर दिया। दूसरा चक्कर भी उसने जल्दी कर लिया, और उसे पता ही नहीं चला वह फिर तीसरी बार उस रास्ते पर बढ़ चुकी थी। वह एक चक्कर में ही थक जाती है,

“बस आकाश, अब और नहीं चला जा रहा“ कह कर वह पास वाली बैंच पर बैठ जाती। “ऐसा करो तुम चले जाओ, वैसे भी इन दिनों तुम्हारा वजन बढ़ गया लगता है“ और आकाश मुस्कुरा कर चले जाते। पर आज उसे थकान का बिल्कुल भी एहसास नहीं हुआ। वह थक कर चूर होना चाहती थी। पसीने से तरबतर थी अंदर का लावा वाष्प बन कर भिगो रहा था। वह बगीचे के सबसे सूने कोने की बैंच पर बैठ गई। कुछ देर में धूप उसे कंधों को छूती हुई पैरों तक आ गई, वह उठ गई। उसे याद आया फोन तो घर पर ही छोड़ आई है, अच्छा किया, नही तो अब तक आकाश के बीसीयों फोन आ जाते। गेट खोलने पर लाॅन में आकाश अखबार पढ़ते दिखाई दिये, पास ही चाय की खाली प्यालियां पड़ी थीं। वह सीधे अंदर चली गई। आकाश अखबार में इतना डूबे थे कि उन्हें स्वरा के आने का पता ही नहीं चला। अंदर रसोई में पंखा और बत्ती जल रही थी, और दिन होता तो वह “बहुत लापरवाह है ये केसरी“ कह कर खुद ही बंद कर देती पर आज उसका दिमाग़ भक् से जल उठा, “केसरी, केसरी“ उसने जारे से आवाज लगाई, पिछले आंगन से केसरी लगभग दौड़ता हुआ आया,

“जी मैडम“

“ये पंखा, बत्तियां कब से जल रही है? कितनी बार समझाया है कि जब भी बाहर जाओ इन्हें बंद कर दो“ स्वरा के माथे पर पसीना छलछला आया, “कितना बिल आता है बिजली का ?“

केसरी मुंह खोले हमेशा शान्त रहने वाली स्वरा का यह रूप देखता रह गया।

“क्या बात है स्वरा“ आकाश उसकी ऊंची आवाज सुनकर अंदर आ गये थे, “भूल गया होगा“ बात अभी पूरी भी नहीं हुई और स्वरा

“आप ही बिगाड़ते हैं इसे“ कह कर पैर पटकती अंदर कमरे में चली गई।

“क्या बात है, तबीयत तो ठीक है तुम्हारी ?“ आकाश पीछे खड़े थे।

“हां ठीक हूँ“ संक्षिप्त सा उत्तर दे तौलिया उठा गुसलखाने में चली गई।

फिनायल, ब्रश उठाकर फर्श, दीवारें रगड़ने लगी मानो सब कुछ खुरच कर मिटा देना चाहती है। कुछ तो है जो उसे मथ रहा है, बस रोने-रोने का मन हो रहा है, जैसे किसी प्रिय वस्तु के खोने का भय समाया है। वह बस बहाना ढूंढ रही है। बहुत देर तक शाॅवर का ठंडा पानी सिर पर गिरता रहा, पानी की बूंदें माथे से ढ़लक कर आंखों पर बह रही थीं, और उसकी आंखें बंद थीं।

“कितनी देर और रहोगी स्वरा ?“ आकाश ने दरवाजा खटखटाया, “मुझे जाना है भाई“ उसने बिना कोई जवाब दिये पानी बंद कर दिया। बाहर आकर अलमारी खोल कर खड़ी हो गई। पिछले एक महीने से वह अपनी सबसे प्रिय साड़ीयां पहन रही है। वह साड़ीयां जिनकी प्रशंसा वह सबसे पा चुकी है। स्वरा सूती कलफ लगी साड़ी पहनती हे। साड़ी के साथ हलका मोतीयों का सैट पहन बालों को खुला छोड़ देती, और गोरे माथे पर काली बिन्दी उसका अपना अंदाज है। पर आज सब कपड़ों की तह के नीचे से खींच कर पुरानी साड़ी निकाली। बालों को इकट्ठा कर ऊपर लपेट लिया, बिंदी हाथ में उठा कर वापस रख दी। शीशे में गौर से देखा, कनपटियों पर सफेदी झलकने लगी थी। उसे आश्चर्य हुआ यह तो उसे दिखाई नहीं दिया, अपनी प्रशंसा से आत्ममुग्धा बनी हुई थी। क्या किसी के प्यार का एहसास मात्र किसी को अपनी वास्तविकता भुला देता है? उसे शर्म आने लगी, क्या समझने लगी थी खुद को ? वह यह कैसे भूल गई कि वह उम्र के उस मोड़ पर थी, जहां इसका ख्याल मन में लाना भी गुनाह है।

फोन पर नज़र डाली, कोई हलचल नहीं, मन और उदास हो गया।

“जल्दी से नाश्ता लगवा दो स्वरा“ आकाश कमीज के बटन बंद करते उसे पास आये, “किसी से झगड़ा कर के आई हो पार्क में ?“

“हां मैं तो हूँ ही झगड़ालू“ आवाज भर्रा गई, “हर किसी से बिना वजह उलझती रहती हूँ“

“क्या यार मजाक भी नहीं समझती हो“

रसोई में आकर देखा, केसरी परांठे सेक रहा था। उसने डरते डरते तिरछी नज़रों से स्वरा को देखा,

“क्या बना रहे हो ?“

“जी, परांठे“

“साहब ने कहा ?“

“नहीं वो मैंने सोचा...“

“अब तुम सोचोगे हमें क्या खाना है ?“ उबल पड़ी स्वरा “तुमसे कितनी बार कहा है कि साहब को परांठे सूट नहीं करते, हल्का नाश्ता दिया करो, पर तुम अपनी जिद पर हो।“ उसने गैस बंद कर उसके सामने दलिये का डब्बा पटक दिया, “बनाओ इसे“ केसरी शान्त स्नेही मालकिन का नया रूप देख अवाक था। डायनिंग टेबल पर खाली प्लेट परे सरका कर आकाश उठे, “मैं आज देर से लौटूंगा, विदेश से पार्टी आई है, उनके साथ मीटिंग है, खाना खाकर आऊंगा, तुम खाकर सो जाना, मेरे पास डुप्लिकेट चाबी है।“

पोर्च में गाड़ी स्टार्ट होते ही स्वरा ने गहरी सांस ली। अच्छा है आज वह बिल्कुल अकेली रहना चाहती है। उसने केसरी को एक कप ब्लैक काॅफी बनाने का आदेश दिया, और उसे पूरे दिन की छुट्टी दे दी। मुख्य दरवाजा बंदकर अपने बैडरूम में आ गई। सिर दर्द की गोली काॅफी के साथ निगल ली।

पलंग पर बैठ फोन उठाया, कुछ भी नजर नहीं आया, बहुत निराश हो गई, “मत करो बात, अड़े रहो“ कह कर फोन पटक दिया और तकिये में मुंह दबा कर फूट फूट कर रो पड़ी। मन में दबा गर्म लावा आंखों के रास्ते तकिया भिगोने लगा। सवेरे से जो बहाना सोच रही थी, उसे मिल गया था।

कुछ देर बाद स्वस्थ हुई, कुछ रोने से और कुछ सरदर्द की गोली का असर हुआ था, वह तकियों पर पीठ टिका कर बैठ गई। क्या हरकतें कर रही थी वह! एक षोडशी की तरह, क्या उसकी वय की महिलाओं को यह शोभा देता है ? पर क्या उसने सोच समझ कर किया सब ? बस एक सम्मोहन के जाल में उलझ गई। अगले ही पल उसने अपने आप को पूछा, क्या वह खुद नहीं इस में उलझना चाहती थी ? वह आंखें बंद किये चलती गई।

पिछले महीने स्वरा की प्रिय सखी मंजरी का फोन आया था, “हाय स्वरा, कैसी हो?“ मंजरी की आवाज़ से खिल उठी थी स्वरा, पर,

“तुम्हे क्या, मैं कैसी भी हूं“ स्वरा ने रूठने का नाटक किया।

“नाटक मत करो“, मंजरी हंस कर बोली, “मैं मना लूंगी तुम्हें“,

“सुनो, तुम सागर को जानती हो न, मेरा कज़न“

“हां, जानती हूँ स्वरा तुरंत बोल उठी“, “क्या हुआ उसे ?“

“हुआ कुछ नहीं मेरी अम्मा“ मंजरी इतनी ही बेतकल्लुफी से बात करती थी, “वह इस रविवार को किसी निजी काम से जबलपुर आ रहा है, तुमने जो साड़ीयां मंगवाई थी वो उसके साथ भिजवा रही हूँ“ स्वरा खुश हो गई, पर उसे याद आया कि इस रविवार को तो वह शहर में नहीं होगी, आकाश की बहिन के नवनिर्मित मकान का गृह प्रवेश है, कानपुर, उसने मंजरी से माफी मांगी,

“ठण्ड रख यार“ मंजरी ने समझाया, “सब कुछ साथ-साथ चलता है, तुम रूक नहीं सकती, पर सागर अभी भी दीवाना है तुम्हार“, स्वरा ने चारों तरफ नज़र घुमा कर देखा आकाश तो नहीं हैं कहाँ आस-पास “कहोगी तो तुम्हारे इंतजार में धूनी रमा के बैठ जायेगा“ और दोनों खिलखिला कर हंस पड़ी। स्वरा और मंजरी लखनऊ के हजरत गंज सरकारी विद्यालय में कई वर्ष पढ़ाती रही हैं। दोनों की दोस्ती अन्य सखियों में ईष्र्या का विषय थी। सागर, मंजरी का भाई स्वरा को कई बार उसके घर छोड़ने गया था। उसकी मुग्ध दृष्टि वह कई बार महसूस कर चुकी थी, लेकिन उसे किशोरावस्था का सम्मोहन समझ अनदेखा कर देती थी।

सोमवार को कानपुर से लौटते ही स्वरा ने केसरी से सागर के बारे में पूछा, उसने गुलाबी रंग के कागज में लिपटा एक पैकेट ला कर थमा दिया। उसने जल्दी से पैकेट खोला, खुलते ही उसके मुंह से बरबस “वाह“ निकल गया। काला और गुलाबी रंग सदा से उसके प्रिय रहे हैं। दोनों साड़ीयों पर कलाकार ने कमाल का कशीदा किया था। उसने फोन उठा कर मंजरी पर धन्यवाद की बौछार कर दी, “यह काले रंग की साड़ी सागर ने पसंद की है तुम्हारे लिये“ मंजरी ने धीमे स्वर में बताया, तो स्वरा के होठों पर मंद स्मित उभर आया।

अगले दिन शाम को लाॅन में बैठी आकाश का इंतजार कर रही थी कि फोन बज उठा “हलो, स्वरा जी बोल रही हैं ?“ उसके हां बोलने से पूर्व ही “मैं सागर, लखनऊ से“ अधीरता से बोला था सागर...

“हां, सागर, मैं स्वरा बोल रही हूँ“ वह स्वरा के लिये अपरिचित नहीं था, “माफ करना, तुम आये और मैं तुम्हारा सत्कार न कर सकी“

“कोई बात नहीं, मैं तो आता रहता हूँ जबलपुर“, हंस कर बोला था, “किसी भी दिन आ जाऊंगा। वो साड़ीयां पसन्द आई आपको ?“ कुछ झिझकते हुए पूछा। “कमाल है, मैं तो फिदा हो गई काले रंग की साड़ी पर, कितनी सुंदर है“ फिर हंस कर कहा “मुझे मंजरी ने बताया था कि वह तुम्हारी पसंद है, थैंक्स ए लाॅट सागर“

“जहे नसीब“ सागर की आवाज़ में खुशी दब नहीं रही थी। दो दिन बाद फिर सागर का फोन आया। उस दिन बात मंजरी से शुरू होकर लखनऊ की तहजीब, मौसम और खाने पर आकर खत्म हो गई। कुछ देर खामोशी छाई रही, फिर सागर ने कहा, “आपको पता है, मैं आपको बहुत पसंद करता हूँ“

“सच में ?“ हंस पड़ी स्वरा उसके बचकानेपन पर “पहले तो नहीं बताया कभी, जब मैं लखनऊ में थी“

“हिम्मत ही नहीं हुई, आपसे डर लगता था, बस मंजरी दीदी के साथ दूर से आपको देख लेता था।“

स्वरा का दिल तेजी से धड़क उठा, उसने ऐसी बातें कभी सुनी नहीं थी। उसे शर्म सी महसूस हुई, सागर तो उस से उम्र में बहुत छोटा है। स्वरा ने फिर उस से आकाश के आने का कह कर क्षमा मांग कर फोन बंद कर दिया।

उस दिन स्वरा के कानों में सागर के स्वर गूंजते रहे, वह ड्रैसिंग टेबल के कांच में खुद को हर कोण से देखती रही, फिर विचार को झटक दिया। अगले पांच-छः दिन सागर का कोई फोन नहीं आया तो उसने अंदाज लगाया कि उसके पिछले फोन में आधी बात बहाने से काट दी थी, शायद बुरा लगा हो उसे। पर शनिवार दोपहर को फिर सागर का नाम फोन पर देख कुछ देर सोचती रही कि फोन उठाये या नहीं, पर फिर उठा लिया,

“स्वरा“ आज सागर ने उसके नाम के साथ “जी“ नहीं लगाया, “मैं सागर“ स्वरा ने सोचा कि उसे बिना कारण डांटना उसके मन के भय को पुख्ता करना है, उसने हंसकर कहा,

“क्या बात है सागर, सब ठीक है ?“

“वो बात यह है, स्वरा, कि तुमसे बात नहीं होती जिस दिन, वह दिन नहीं निकलता“ एक बेसब्र आशिक की आवाज थी,

“देखो सागर,“ स्वरा ने अपना स्वर थोड़ा कड़ा किया, “तुम मुझ से उम्र में बहुत छोटे हो, और मंजरी के भाई हो तो मैं तुम से बात करती हूँ“ थोड़ा रूकी ही थी कि “हां, मैं भी तो बात ही कर रहा हूँ“ सागर एक दम से बोल उठा, “क्या मैंने तुमसे कुछ गलत कहा ? मुझे तुमसे बात करना अच्छा लगता है बस! अगर कुछ गलत कहूं तो सरकारी स्कूल की बहिनजी बन कर डांट देना“ सागर ने भोलेपन से कहा कि स्वरा को हंसी आ गई।

अब सागर हर दूसरे दिन स्वरा को फोन करता। पर शालीनता बनाये रखता। गज़ब का सैंस आॅफ ह्यूमर था उसका। उसकी बातों का अंदाज, हाजिर जवाबी और मजाक से उसकी शान्त जिन्दगी गुलजार हो गई।

“बस करो सागर“, सागर के किसी मजाक पर स्वरा को हंसी का दौरा पड़ता, “हंसा नहीं जा रहा, मर जाऊंगी“

सागर को स्वरा की आंखों का रंग पता था, और यह भी कि वह हील्स नहीं पहनती। और तो और मंजरी दीदी के जन्मदिन पर जो काली साड़ी पहनी थी उसके बार्डर पर पत्तियां बनी हुई थी। बस इतनी जानकारी बहुत थी किसी भी औरत को प्रभावित करने के लिये।

आकाश एक महत्वाकांक्षी व्यवसायी थे। एक छोटी बीमारी में उनकी पत्नी का निधन हो गया था, एक किशोर पुत्री के पिता थे। स्वरा के विवाह में किसी कारण विलम्ब हो रहा था तो परिस्थितियां ऐसी बनी कि वह आकाश से विवाह कर पत्नी से पहले मां बन गई। आकाश अपनी दिवंगत पत्नी के साथ नवविवाहित होने का सुख भोग चुके थे, स्वरा तक आते-आते उनके कोष का सारा प्रेम खर्च हो चुका था। और वे पति से अधिक पिता के रूप में खुश थे। स्वरा कुछ भी पहने ओढ़े उन्होंने कभी नज़र भर कर उसे देखा तक नहीं था। बिना मां की पुत्री की परवरिश करते वह स्वयं आत्मनिर्भर हो गये थे स्वरा का मन करता कि वह आकाश के लिये कुछ करे, शुरू में जब आकाश नहाने जाते तो वह अलमारी से उनके कपड़े निकाल देती। मोजे, रूमाल, घड़ी वाॅलैट गाड़ी की चाबी सब मेज पर रख देती।

“देखो स्वरा“ एक दिन आकाश ने उसे कह ही दिया “मुझे किसी दूसरे पर निर्भर रहना पसंद नहीं है, सो प्लीज डोन्ट बाॅदर फाॅर मी“। पुत्री का विवाह विदेश में बसे व्यवसायी के पुत्र के साथ कर दिया। स्वरा बहुत अकेलापन महसूस करती थी। आकाश सुबह उठते ही फोन काॅल लेते रहते, स्वरा अकेले ही चाय पी लेती जबकि उसे अकेले चाय पीना एक सजा के समान था। जिस दिन आकाश घर पर होते उस शाम केसरी की खीरा-प्याज काटते, आइस बाॅक्स में बर्फ के टुकड़े रख, सोड़े की बोतल ट्रे में रखते देख समझ जाती कि अब आकाश देर रात तक स्टडी में बैठ गिलास पर गिलास खाली करते जायेंगे और भुने हुए काजू-चिप्स से पेट भर कमरे में आ पलंग पर औंधे मुंह सो जायेंगे। स्वरा उस दिन भी नितान्त अकेली रह जायेगी। आकाश की पुत्री शिल्पी का फोन आता तो वह खुश हो जाती पर उसकी बातों में सिर्फ आकाश का जिक्र होता “आप पापा का अच्छे से ख्याल रखें मुझे उनकी बहुत फिक्र होती है, दवा समय पर ले रहे हैं न! उनकी डाइट में प्रोटीन बढ़ा दीजिये, और हां, स्टडी में ज्यादा देर तक न बैठने दें, समझ रही हैं न मेरा इशारा।“ उसके लिये एक शब्द भी न होता, मानो स्वरा को आकाश की देखभाल के लिये रखा हो।

ऐसे में सागर का फोन आना स्वरा के दिल रूपी खामोश रेगिस्तान की रेत पर हवा से लहरें बनने के समान था। अब उसे सागर के फोन का इंतजार रहता। एक घंटी पर ही किसी किशोरी की सी चपलता से फोन उठा लेती, “हैलो“ आवाज संयत रखती कहीं सागर को उसकी उत्सुकता का आभास न हो जाये।

इन दिनों स्वरा फिर से एक नवयुवती बन गई थी।, अपने बालों का चेहरे का विशेष ध्यान रखने लगी थी। अक्सर शाम को झूले पर बैठ गुनगुनाने लगी थी। केसरी की गलतियां भी अब मुस्कुरा कर नज़रअंदाज कर देती। एक दिन आकाश ने पूछ ही लिया, “स्वरा इन दिनों कौनसा टाॅनिक ले रही हो? उसे गौर से देखते, “तुम्हारे चेहरे की रंगत और आखों का कालापन गज़ब का कंट्रास्ट पैदा कर रहा है“ तुमने इससे पहले देखा ही कब है आकाश। तुमने जिस पौधे की उपेक्षा की थी वह सागर के प्यार रूपी बूंदो से फिर लहलहा उठा है।

कभी कभी स्वरा को लगता कि वह गलत दिशा में जा रही है। वह सागर को कुछ कहना चाहती, “सुनो सागर, मुझे तुम से कुछ कहना है...“ बात पूरी भी नहीं हुई, उस से पहले बोल उठा, “देखो स्वरा, तुम चाहे मुझसे कितनी दूरी बनाने की कोशिश करो, मैं तुम्हें बुलाता रहूंगा“

“नहीं सागर, तुम मुझसे उम्र में बहुत छोटे हो, तो इस तरह का व्यवहार मुझे शोभा नहीं देता“ “तो क्या हुआ ?“ वह उसकी दलील खारिज कर देता, “जानती हो न प्यार एक कोमल एहसास है, हम जिस से प्यार करते हैं उसकी कोई कमी नजर नहीं आती, “प्यार में डूबी आवाज में सागर कहता, “सिर्फ वही नजर आता“ और स्वरा बेबस हो जाती।

पिछले कुछ दिनों से स्वरा को लग रहा था कि सागर अब मजाक-मजाक में सीमा का उल्लंघन करने लगा है। यदा-कदा द्वियअर्थी शब्दों का प्रयोग करने लगा है, जिसे वह अनसुना कर देती। उसे लगा कि सागर उसकी दी हुई आजादी का गलत प्रयोग कर रहा है। वह उसे से एक अधीर प्रेमी की तरह बातें करता, उस समय स्वरा भी सम्मोहित सी रहती। पर जब उस प्रभामंडल से बाहर आती तो उसे शर्म आती कि वह कैसे नहीं रोकती यह। लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वह गलत कर रही है। सागर और उसकी उम्र के बीच एक लंबा फासला है, यह सागर भी जानता है। कहीं वह उसकी भावनाओं से खेल कर खुद का मनोरंजन तो नहीं कर रहा ? इस युग में “प्लैटोनिक प्यार“ नहीं होता। पुरुष और महिला की दोस्ती बिना किसी स्वार्थ के हो ही नहीं सकती। सागर आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी है, इसकी बातों से कोई भी युवती प्रभावित हो सकती है क्या इसे इसकी हम उम्र प्रेयसी नहीं मिली होगी ?

हो सकता है वह किसी प्रेमिका से संबंध टूटने पर उस से बदला ले रहा हो। कोई सुनेगा तो उस पर हंसेगा। उसे याद आया कि स्कूल में उनके साथ उर्दू की अध्यापिका शाहिदा बानो का पति, जो उनसे तेरह वर्ष छोटा था, उन्हें लेने आता तो दरबान हेमसिंह आ कर कहता, “शाहिदा दीदी, आपका बेटा आपको लेने आया है“ और मूंछों में मुस्कुराता रहता। वह क्या आकाश के विश्वास को घात नहीं लगा रही ?

फिर उसने निर्णय लिया कि वह अब इस सिलसिले का यही पटाक्षेप कर देगी। अपने मन को बहुत मजबूत किया, पर ज्यों ही फोन के पर्दे पर सागर का नाम चमकता, वह लाख दिल पर पत्थर रखती, उसके चेहरे पर मुस्कान आ ही जाती। दुनिया में ऐसी कौनसी गतयौवना होगी जिसे खुद के लिये किसी की नज़रों में दीवानापन देख कर खुशी न होगी। क्या करे, समझ नहीं आ रहा था। इतने दिनों तक जिस रूमानी संसार में सुख पा रही है, उसके जादू से बाहर आयेगी तो बहुत तकलीफ और दर्द होगा, पर कल को सागर को अपनी गलती का अहसास हो, और वह उस से संपर्क तोड़ ले तो क्या वह अपनी ही नज़रों में नहीं गिर जायेगी ? नहीं, वह खुद से शर्मिंदा होकर जी नहीं पायेगी। बहुत सोच विचार कर आखिर उसने फैसला कर लिया कि वह सागर से स्पष्ट कह देगी, पर बहुत मुश्किल होगा, दर्द तो उसे होगा, क्योंकि मन के किसी कोने में सागर ने जबर्दस्ती घर बना लिया है, यकीनन वह उसे एक दो बार मनाने की कोशिश करेगा, प रवह बेरूखी दिखायेगी तो शायद वह भी नाराज हो जाये। इस से दोनों के मन में नफरत का भाव आ जायेगा, और सब कुछ समाप्त हो जायेगा।

सागर को स्वरा के व्यवहार में कुछ ठण्डापन महसूस हुआ तो उसने पूछ ही लिया “बदले-बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं“ हंस कर बोला सागर, “क्या गलती हो गई मुझसे?“

बस, स्वरा यही पिघल गई, पर फिर भी अपने को बहुत संयत कर बोली, “सागर, मैं सोचती हूँ कि हम बहुत गलत रास्ते पर चल रहे है।“

“गलत ? क्या गलत कर रहे हैं ? सागर के स्वर में तेजी थी“, जीने के लिये छोटी छोटी खुशियां ढूंढ़ना क्या गलत है ? किसी से मन की बात कह अपना दिल हल्का करना गलत है ? किसी से बात कर मुस्कुराना गलत है ? “सागर ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।“

“तुम भी जानते हो, यह मृगमारीचिका है, कुछ भी हासिल नहीं होने वाला“ स्वरा रूकी

“तो हमें क्या करना चाहिये मदाम ?“ सागर के लहजे में तल्खी झलक रही थी।

“हमें अब यह सिलसिला बंद कर देना चाहिये“ स्वरा को लगा कि सागर हमेशा की तरह मनायेगा, कहेगा, “स्वरा मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकूंगा, तुम नहीं जानती, कितना प्यार करता हूँ तुमसे“ पर नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ।

“जैसी तुम्हारी मर्जी“ और उधर खामोशी छा गई। कुछ दिन बीत गये, स्वरा को पूरी उम्मीद थी कि सागर फिर से फोन करेगा “स्वरा, इतनी कठोर मत बनो, नहीं रह सकता तुम्हारे बिना“ पर उसने फोन नहीं किया। सागर ने स्वरा के मन को ठेस पहुंचाई थी, वह मानिनी अब अपनी उपेक्षा स्वीकार नहीं कर पा रही थी। उसे विश्वास हो गया कि सागर वास्तव में अपना समय व्यतीत कर रहा था। पर उसे मन के किसी कोने में अभी भी उम्मीद थी। बार-बार फोन को उठाकर देखती, बैटरी तो नहीं खत्म हो गई, नहाने जाती तो फोन साथ ले जाती, कभी उसकी आवाज बढ़ाती, ऐसा न हो उसे कुछ सुनाई न दे।

किसी संदेश की घंटी बजती तो तुरंत फोन उठाती पर वहां कुछ और देखकर निराश हो जाती। पर आज अंतिम बार सागर की खामोशी देख अपने फैसले को स्वीकार कर लिया। सही किया उसने, इस से पहले सागर उससे दूरी बनाकर अपमानित करता, अच्छा हुआ उसने ही इस पर विराम लगा दिया। मन हल्का हो गया था।

घड़ी में देखा, संध्या के सात बज चुके थे। कमरे से बाहर आकर देखा पूरे घर में अंधेरा था, उसने सारी बत्तियां जला दीं। मंदिर में दिया जला दोनों हाथ जोड़ माथे से लगा लिये। सवेरे से जो तूफान उसके मन में उठा था वह शान्त हो गया था।

उसने फोन पर एक नज़र डाली, कहीं कुछ भी नहीं था। संपर्क सूची में से सागर का नाम और फोन नंबर निकाला, दो मिनट रूकी और कांपते हाथों से नंबर के नीचे “ब्लॉक“ शब्द पर जोर से अंगुली दबा दी।

 

आशा पाराशर

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