Ishq a Bismil - 31 books and stories free download online pdf in Hindi

इश्क़ ए बिस्मिल - 31

उमैर की बात खत्म होते ही सनम वहाँ पर ठहर ना सकी, वह गुस्से में चलती हुई कार में आकर बैठ गई थी। उमैर वहीं पे खड़ा रह गया था। सूरज पूरा डूब चुका था और अब अंधेरे में चाँद अपनी मद्धम सी रोशनी को बिखेरने की कोशिश में लग गया था। वह जगह काफी सुंसान थी... आस पास उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था। झिंगुर(एक कीड़ा) की आवाज़ ने अलग ही शोर मचा रखा था उमैर अब और भी ज़्यादा मायूस हो चुका था। वह भी चलता हुआ कार में आ कर अपनी ड्राइविंग सीट संभल चुका था। कार स्टार्ट करने से पहले उसने सनम से कहा था।

“मुझे तुम से ये उम्मीद नहीं थी...।“ उसने सनम की तरफ़ देखे बग़ैर कहा था। उसकी नज़रें विंडस्क्रीन पर टिकी हुई थी।

“तुम्हे पता भी है उमैर तुमने अभी अभी क्या कहा है? मुझे भी तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।“ उसकी बात पर उमैर ने उसे देखा था ...वह रो रही थी।

“क्या कहा है मैंने? दूसरों के लिए तुम्हे छोड़ने की बात कही है क्या? बल्कि मैं तो तुम्हारी खातिर सब को छोड़ रहा हूँ मगर अफसोस मैं जिसके लिए सबको ठुकरा रहा हूँ वही मेरा साथ देने को तैयार नहीं है।“ उमैर की आँखों में जैसे कीर्चियाँ चुभी थी। उसके मान के टूट कर बिखरने की कीर्चियाँ।

“मुझे लगा था की तुम मुझे समझते हो मगर नहीं... मैं ग़लत थी।“ उसने भीगी आँखों से उमैर को देखा था। उसका चेहरा बिल्कुल बुझ सा गया था।

“बचपन में ही मेरे मोम डैड separate हो गए.... मुझे एक मुकम्मल परिवार नहीं मिला....एक घर नहीं मिला.... मैं दो कश्ती की सवारी थी...एक तरफ़ मोम थी तो दूसरी तरफ़ डैड....”उसके आँसुओं में तेज़ी आ गई थी। उमैर बिना कुछ कहे बस उसे सुने और देखे जा रहा था।

“तुम मिले तो मुझे लगा की मुझे एक परिवार मिल जायेगा.... माँ बाप का प्यार मिल जायेगा.... मेरा बचपन चाहे जैसा भी गुज़रा हो मैं बाकी की ज़िंदगी हर एक रिश्ते के साथ गुज़ारूंगी....लेकिन नहीं मेरी क़िस्मत में शायद सिर्फ़ महरूमियां ही लिखी हुई है।“ वो कहते कहते अपने हाथों में अपना चेहरा छुपा कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी थी। उमैर के दिल को कुछ हुआ था .... वह आगे बढ़ कर उस का सर अपने सीने से लगा कर उसके बालों को सहलाने लगा था।

“I’m sorry….I’m so sorry…. मैं सच में तुम्हें समझ नहीं पाया.... प्लिज़ मुझे माफ़ कर दो.... तुम जैसा चाहोगी वैसा ही होगा... Trust me…..मैं घर पे बात करूँगा। “ उमैर खुद को बोहत शर्मिंदा महसूस कर रहा था। उसकी आँसुओं का ज़िम्मेदार खुद को मान रहा था। आज वह दोनों पंद्रह दिनों के बाद मिले थे। सनम कितना खुश थी... लेकिन उमैर ने ख्वामख्वा में उसे रुला दिया था। हाँ माना वह बोहत परेशान था मगर ज़रूरी तो नहीं थी की वह अपनी परेशानी अपने प्यारों तक पहुंचा कर उसे भी परेशान करे.... उमैर यही सब सोच सोच कर खुद को कोस रहा था।


आसिफ़ा बेगम कल घर ही नहीं आई थी, पार्टी ख़त्म होने के बाद अपने मायके चली गई थी और अब शाम में उनकी वापसी हुई थी। नसीमा बुआ ने उन्हें कल की सारी बात बता दी थी और अब उनका गुस्से से बुरा हाल हो रहा था। नसीमा बुआ के हाथ अरीज का बुलावा भेजा था। अरीज आज भी सफाई में लगी हुई थी क्यूँ की कल उसने पूरी सफाई नही की थी।

“आप को बेगम साहिबा ने बुलाया है।“ उसकी बात पर अरीज के हाथ रुके थे, उसने एक गहरी सांस ली थी और फिर नसीमा बुआ के पीछे चल पड़ी थी। जैसे कोई मुजरिम सिपाही के पीछे चलता है, और अदालत में खड़ा कर दिया जाता है।

आसिफ़ा बेगम अपने नर्म बिस्तर पर आराम फरमा रही थी जब नसीमा बुआ ने उनके रूम का दरवाज़ा खटखटाया... उन्होंने अंदर आने की इजाज़त दी और नसीमा बुआ को अरीज को उनके पास छोड़ कर कमरे से जाने को कहा।

“एक दिन के लिए मैं घर से क्या गई तुम ने तो अपना पासा ही पलट दिया...मेरे हुक्म को भूल कर मेरे बेटे के साथ घूमने फिरने निकल गई...लोग पहले डोरे डालते है... फँसाते है फिर शादी करते है... मगर तुम्हारा तो लेवल ही उल्टा है.... तुमने सबसे पहले मुश्किल काम को अंजाम दिया... शादी कर ली... और अब मेरे बेटे पर डोरे डाल रही हो... उसे फांस रही हो।“ आसिफ़ा बेगम अपने बिस्तर से उठ कर चलती हुई उसके पास आई थी और बड़े नफ़रत और हिकारत से उस से बात कर रही थी। अरीज ने अपनी नज़रें आज नीचे नहीं की थी बल्कि वह उनके आँखों में आँखें डाल कर उन्हें देख रही थी साथ ही अपने होंठो को भीजे हुए थी।

मुझे लगता है तुम्हें मेरी कल की बात समझ नहीं आई थी.... तुम खुद ही अपना अंजाम बोहत बुरा कर रही हो..... तुम्हे शायद बिल्कुल अंदाज़ा नहीं है की मैं क्या कर सकती हूँ तुम्हारे साथ....” वह आगे और भी कुछ कहने वाली थी मगर अरीज ने उन्हे चुप करा दिया था।

“मुझे बिल्कुल अंदाज़ा है आप क्या कर सकती हैं ....अगर मैंने अंकल से कुछ कहा तो आप अज़ीन को नुकसान पहुंचा सकती हैं और मेरा भी बुरा हाल कर देंगी...मगर एक बात मेरी भी सुन लीजिए....मैंने अपनी ज़िंदगी की परवाह तभी करना छोड़ दी थी जब मैं यतीम हुई थी...मेरे जीने की वजह, मेरी ज़िंदगी का कुल सरमाया मेरी अज़ीन हैं, अगर उसे कुछ हो जायेगा तो मैं ऐसे ही अपने होश खो बैठूंगी और आप जानती हैं बिना होश ओ हवास के इंसान कुछ भी कर सकता है....तो आप अब मेरी फ़िक्र छोड़ें।“ वह बिना अपनी पलक झपकाए किसी रोबोट की तरह, सपाट चेहरा लिए, बिना डरे आसिफ़ा बेगम की आँखों में आँखें डाले कह रही थी। आसिफ़ा बेगम उसकी जुर्रत पर हैरान रह गई थी। उनका बस नहीं चल रहा था की अरीज की इस जुर्रत पर उसके चेहरे पर तमाचों की बरसात कर दे।

“तुम मुझे डरा रही हो?” आसिफ़ा बेगम ने गुस्से में दहाड़ा था और जब्र करते हुए अपने दांत पीसे थे। उनके कमरे में आता हुआ उमैर वहीं दरवाजे पर रुक गया था। चूंकि अरीज की पीठ दरवाजे की तरफ़ थी सो वह उमैर को नहीं देख सकती थी मगर आसिफ़ा बेगम ने उसे देख लिया था।

“मैं आपको क्यूँ डराउंगी? आप तो पहले ही बोहत डरी हुई हैं की मैं आपके बेटे को आपसे दूर कर दूँगी...उन्हें आपसे छीन लूंगी मगर शायद आपको पता नहीं हैं की जितनी ज़बरदस्ती उनके साथ अंकल ने इस निकाह के लिए किया है उतनी ही जबरदस्ती मेरी ज़िम्मेदारियों ने मेरे साथ की हैं.... इसलिए ये निकाह...निकाह नहीं जबरदस्ती का सौदा है....और आप प्लिज़ घबराए नहीं.... मुझे आपके बेटे में कोई दिलचस्पी नहीं हैं बल्कि मैं तो अब उनसे नफरत करने लगी हूँ।“ अरीज अभी भी उसी कैफ़ियत में बोले जा रही थी जैसे उसे अपना होश ही ना हो। आसिफ़ा बेगम को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ था की अरीज ने ये सब कुछ अपने मूंह से कहा था। वह उसे बेयकिनि से देखती रह गई उसके बाद उन्होंने अरीज के पीछे दरवाज़े पर खड़े उमैर के चेहरे का ज़ाविया देखा। उमैर ने अपने जबड़े को सख़्ती से भिन्जा हुआ था... जैसे उसने खुद पर जब्र किया हुआ हो।

एक आग सी लहर थी जो उमैर के तन ओ बदन से होकर गुज़रि थी। आप लाख दफा बोल सकते है की आपको किसी से नफ़रत है मगर खुद की ज़ात के लिए नफ़रत का लफ्ज़ बर्दाश्त करना बोहत मुश्किल होता है। दरवाज़े पर खड़ा उमैर बुत जैसा जम गया था। उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था की कल रात वो इसी लड़की को सोच सोच कर रात भर सो ना सका था... उसकी कही हुई बात उसके कानों में गूंजती रही थी... वह पूरी रात उसकी फ़िक्र में टहलता रहा था और अभी वही लड़की उस से नफ़रत करने का दावा कर रही थी।

वह नही कह रहा था की अरीज उस से मोहब्बत करे या फ़िर उसे पसंद करे....मगर नफ़रत?.... ज़्यादती तो उमैर के साथ हुई थी मगर यहाँ मज़लूम कोई और बन कर खड़ा था।


यहाँ पर कौन मुजरिम था और कौन मज़लूम?...

किसके साथ ज़्यादती हुई थी?.... अरीज के साथ या उमैर के साथ?

अरीज को क्या ये सब बोलना चाहिए था?....

उमैर का अगला कदम अब क्या होगा?....

जानने के लिए मेरे साथ बने रहें और पढ़ते रहें