Ishq a Bismil - 38 books and stories free download online pdf in Hindi

इश्क़ ए बिस्मिल - 38

आज रात ही ज़मान खान वापस घर आ गए थे और आते ही उन्होंने सब से पहले अरीज और अज़ीन को देखने उसके रूम गए थे। उन्हे देखते ही अरीज उन्हे सलाम कर के उनके सीने से जा लगी थी जैसे एक बेटी को उसके बाप के आने की ख़ुशी होती है ठीक वैसे ही।

“मैंने आपको बोहत मिस किया।“ अरीज उनसे अलग होते ही कहने लगी थी।

“मेरा भी पूरा ध्यान आप दोनों की तरफ़ ही लगा हुआ था। कैसी है आप?... मेरे पीछे आपको किसी ने तंग तो नहीं किया?” वह थोड़ा संजीदा हो कर पूछ रहे थे।

“बिल्कुल भी नहीं... बल्कि मैं तो आपका बोहत बोहत शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ.... “ अरीज की आँखों में जैसे लौ जल रही थी। ज़मान खान उसे खुश देख कर निहाल हुए जा रहे थे।

“शुक्रिया किस लिए?” वह हैरानी से मुस्कुराते हुए पूछ रहे थे।

“सभी चीज़ों के लिए।“ अरीज उनका हाथ पकड़ कर अब उसका बोसा ले रही थी।

“शुक्रिया कैसा मेरा बच्चा? ये तो मेरा फ़र्ज़ था।“ उन्होंने अरीज के सर पर हाथ रखा था।

“आप से एक चीज़ माँगू बाबा?” अरीज ने अभी भी उनका हाथ थामा हुआ था।

“तुम्हे मांगने की ज़रूरत नहीं है बल्कि तुम्हारा पूरा हक़ है की तुम ज़िद कर के मुझ से अपनी फरमाइशें पूरी करवाओ।“ उनकी बात पर अरीज काफी इमोशनल हो गई थी। पिछले दो सालों से उसने कोई फरमाइशें ही कहाँ की थी। फरमाइशों का दौर तो सिर्फ माँ और बाप के ज़माने तक ही सीमित रहता है।

“बाबा रहने के लिए मुझे वो स्टोर रूम चाहिए, मैं इस कमरे में नहीं रहना चाहती।“ उसने बड़ी आस लेकर कहा था मगर उसकी इस फ़रमाइश पर ज़मान खान थोड़ा बुझ से गए थे। अरीज उनके जवाब के इंतज़ार में उनका मूंह देख रही थी।

“क्या हुआ बाबा?” जब ज़मान खान कुछ नहीं बोले तो उसे पूछना पड़ा। वह उनकी चुप्पी से परेशान हो गई थी।

“बेटा आपको उमैर के कमरे में ही रहना चाहिए....इस रिश्ते में तेरा मेरा जैसा कुछ नहीं होता...जो उसका है वो आपका है।“ थोड़ी देर खामोश रहने के बाद उन्होंने कहा था। उन्हें समझ नही आ रहा था की अरीज को कैसे संझायें।

“मुझे पता है आपको मेरी ये फरमाइश अच्छी नही लगी होगी मगर बाबा हम हर जगह जबरदस्ती नहीं कर सकते... कुछ चीज़ें हमें वक़्त के हांथों में सौंप देना चाहिए...जो मेरे नसीब में है वो मुझ से कोई नहीं छीन सकता... आज या कल वो मुझे मिल ही जायेगा और जो मेरे नसीब में नहीं है वो चाहे पूरी दुनिया भी मिल कर मुझे देने की कोशिश कर ले वो मुझे कभी नहीं मिल सकता।“ अरीज उन्हे किसी टीचर की तरह समझा रही थी और ज़मान खान यहाँ पे एक छोटे बच्चे की तरह सब समझने की कोशिश कर रहे थे। जब अरीज अपनी बात कह कर चुप हुई तो थोड़ी देर खामोशी छा गई। फिर ज़मान खान ने कुछ सोच कर कहा था।

“तुम्हे नहीं पता वो स्टोर रूम कभी इब्राहिम का कमरा हुआ करता था।“ वह जैसे कहीं गुज़रे हुए वक़्त में खो से गए थे। “इब्राहिम के जाने के बाद छोटे बाबा ने उसकी सारी चीजों को जलानी चाही थी मगर मैं और मेरी अम्मी ने उन्हें धमकी दी की अगर उसकी चीजों को जलानी है तो उस के साथ हमें भी जलानी होगी... तब जा कर वह माने थे, वरना आज उसकी निशानी के तौर पे सिर्फ तुम और अज़ीन ही रहती।“ ज़मान खान खोये खोये से कहते कहते हँस पड़े थे। “तो उन्होंने भी एक शर्त रख दी की उसके कमरे को हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए।“ उन्होंने एक ठंडी सांस भरी थी। फिर अरीज को देखा था।

अरीज उन्हें बड़े गौर से सुन रही थी जैसे की उसकी आँखों के सामने वह सारा मंज़र किसी फिल्म की तरह चल रहा हो।

“ठीक है तुम उस कमरे को फ़िर से आबाद कर देना... इब्राहिम को अच्छा लगेगा।“ उनकी आँखे नम हो गई थी। “मैं नसीमा से कह दूंगा उस कमरे की अच्छी तरीके से सफाई करवा देने।“ उनकी इस बात पर अरीज चुप रही वह उनसे ये नही कहना चाहती थी की उसने खुद उस रूम की सफाई कर दी है लेकिन उस रूम मे रहने की इजाज़त मिलने पर वह काफी खुश हो गई थी। उसे पहले दिन से इस घर में कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन आज उसे घर के उस कोने में जैसे जन्नत मिल गया था। जो बरसों से विरान पड़ा था. .. अरीज उसे आबाद करने चली थी। उसके बाबा की बची ज़िंदगी वह वहाँ जीने चली थी।

“अज़ीन!... मेरा छोटा बच्चा कैसा है? उसे चुप चाप टी वी के सामने बैठा देख ज़मान खान ने पूछा था। और साथ ही उसके सर का बोसा भी लिया था।

“अल्हुमदुलीलाह! मैं ठीक हूँ! आप कैसे है?” प्यारी सी अज़ीन ने मुस्कुरा कर कहा था।

“मैं भी अच्छा हूँ। चलो चलते है नीचे सब साथ मे मिल कर dinner करते है।“ उन्होंने कहा था और अज़ीन को अपनी गोद में उठा लिया था।

उन्हें अपने साथ लेकर डाइनिंग रूम में भी आ गए थे। अरीज थोड़ा घबराई हुई थी जब की अज़ीन की खुशियों का कोई ठिकाना ही नहीं था। ज़मान खान के आने पर अरीज से ज़्यादा अज़ीन खुश थी। शायद अब उसे ढंग का खाना खाने को मिलेगा।

सोनिया की थकन अभी तक नहीं निकली थी, उपर से आज तो उसका दिन भी बोहत बुरा ग़ुज़रा था जैसे पुरा का पुरा पहाड़ उसके सर पर टूट पड़ा था इसलिए वह तो अपने कमरे से ही नही निकली थी। हदीद ज़मान खान और अज़ीन दोनों की एक साथ मौजूदगी से थोड़ा घबरा गया था। उसे डर था की कहीं अज़ीन ने झूले से धक्का देने वाली बात ना उन्हे बता दी हो। वह इसी डर से इतने दिनों से अपनी नानी के घर मे पड़ा हुआ था। आसिफ़ा बेगम उन दोनों बहनो को एक साथ अपने डाइनिंग टेबल पर देख कर अंदर ही अंदर सांप की तरह बल खा रही थी तो दूसरी तरफ़ उमैर ने अरीज को देख कर अपने पहलु बदले थे।

ज़मान खान ने उमैर की बगल वाली कुर्सी खींच कर अरीज को बैठने को दी थी। अरीज थोड़ा घबरा गई थी इसलिए आगे नहीं बढ़ रही थी।

“अरीज मैं कह रहा हूँ ना आपसे?....आइये और यहाँ आकर बैठिए...आज से रोज़ आप यहीं पर बैठा करेंगी।“ अरीज डरते डरते उमैर के बगल में बैठ गई थी।

“वेरी गुड! That’s like a good girl.” उमैर ने फिर से अपने पहलू बदले थे उसका बस नही चल रहा था की खाने की मेज़ से ही उठ जाए मगर वह अभी कोई तमाशा नही करना चाहता था। इसलिए बर्दाश्त का दामन थाम कर बैठा था।

“अज़ीन आप यहाँ हदीद के साथ बैठ जाओ।“ उन्होंने एक और फरमान जारी किया था। अज़ीन हदीद से थोड़ा डर रही थी मगर हदीद तो उस से भी ज़्यादा डरा हुआ था। डर के मारे दोनों का गला सूख गया था। अज़ीन ने अपनी खुश्क होती हलक को अपने थूक को निगल कर तर किया था जब की हदीद ने पानी का ग्लास उठा लिया था। उमैर अपने छोटे भै का तमाशा बड़े गौर से देख और सब समझ भी रहा था। थोड़ी देर के लिए ही सही वह अपने बगल में बैठी अरीज को भूल गया था।

“अरे तुम डर क्यों रही हो? आओ यहाँ... चलो हम दोनों दोस्ती कर लेते है... मैं हदीद हूँ। और तुम?” उसने अज़ीन के डर को दूर करने के लिए ऐसा कहा था। उसे डर था की कहीं डरते डरते वह उसके बाबा से ये ना कह दे की वह हदीद के साथ नहीं बैठेगी क्योंकि उसे हदीद से डर लगता है, ये चोट उसी ने उसे दी है। फिर जो हदीद के साथ ज़मान खान करते उसे सोच कर ही हदीद की रूहें काँप जा रही थी।

डर कोई बुरी चीज़ नहीं होती है... ये कभी कभी वो सारे काम करवा लेती है जो एक दिलेर इंसान भी नहीं कर पता।

डर की बोहत अलग अलग मिसालें होतीं है।

एक डर खुदा से होता है जो आपको गुनाहों से रोकता है

और एक डर इंसानों से होता है जो आपको बाग़ी बनने से रोकता है।

क्या होगा अज़ीन और हदीद का रिश्ता?

डर वाला या फिर दोस्ती वाला?

क्या होगा जब अरीज रहने लगेगी अपने बाबा के कमरे में?

जानने के लिए बने रहे मेरे साथ और पढ़ते रहें इश्क़ ए बिस्मिल