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दीवाली का प्रकाश

दीवाली का प्रकाश

हर साल की तरह इस साल भी हल्की-हल्की सर्दी लेकर दीवाली का आगमन हुआ, पर कुछ अलग, क्योंकि इस बार की दीवाली मैं आप सब के साथ मनाने वाला हूँ, इस किस्से का नाम “दीवाली का प्रकाश” मैंने इसलिए रखा है क्युकि इस दीवाली के प्रकाश ने ही मुझे कुछ किस्से आपसे बाँटने के लिए प्रेरित किया है. जिसे मैं दीवाली के किस्से से ही शुरू कर रहा हूँ. दीवाली हर वर्ष सभी के जीवन को प्रकाशित करती है. उस प्रकाश को जीवन में शामिल कर पाना या ना कर पाना, ये हमारे हाथ में ही है. मैंने भी कई दीवाली यूँ ही गुजार दीं, जैसे सब गुजारते हैं. पर इस दीवाली आप तक कुछ पहुचाने का प्रयास कर रहा हूँ .हालाँकि ये सब आप तक दीवाली के बाद पहुचेगा , पर मुझे लगता है इसे आप अपने जीवन में बीती कई दीवालियों के अंशों से जोड़ पायेंगे , क्योंकि ये भी आप की तरह ही एक आम इंसान का ही किस्सा है, कहानी नहीं. तो चलिए शुरु करते है. 

दीवाली की तैयारी दीवाली की छुट्टियों से पहले ही प्रारंभ हो जाती है, इस बार छुट्टी भी दो दिन पहले से ही हो गयी क्योंकि शनिवार और रविवार दीवाली से ठीक पहले थे . हर घर की तरह साफ़ सफाई, घर के पुराने ख़राब सामन कबाड़ी वाले को देकर मिलने वाले पैसों से खुश होना, नयी तरह से घर को सजाने के लिए नए प्लान बनाना और फिर उन्हें धरातल पर उतारना, मिठाइयाँ और नमकीन बनाना, बच्चों का पटाको की लिस्ट बनाना. यही सब होता है हर घर में. हमने भी यहीं से शुरू किया.

घर को इस बार नया रूप देने के लिए पेंट कराने का प्लान बना क्योंकि 5 साल पहले जब से घर बना है पेंटिंग का काम नहीं हुआ था. पर पेंटर से पेंटिंग का खर्चा सुनकर घर का बाहरी हिस्सा जैसे बैठक, रसोई और डायानिग हाल ही पेंट करवाए जाने का निर्णय हुआ. पेंट का चयन कर पेंटर को अगले दिन ही आने को और एक दिन में ही यह काम निपटाने का निर्देश दे दिया गया. पेंट से पहले बैठक में कुछ वालपेपर, जो ३ साल पहले बड़ी मेहनत से एक दिन और एक रात ख़राब कर लगाये थे, जिन्होंने बहुत तारीफें भी पायी थीं, उनको हटाने का वक्त आ गया था. बड़े ही भारी मन से उन्हें खुद ही हटाया, क्युकि उनसे भावनायें जुडी थी. कई बार विश्वास ही नहीं होता था कि इन्हें मैंने खुद सोच कर इतने व्यवस्थित तरह से लगाया है कि हर कोई यही पूछता कि किससे लगवाया है, हमें भी ऐसे ही लगवाना है. तब लगा था कि ये काम करके भी पैसे कमाए जा सकते है. परन्तु अंततः दीवार से वॉलपेपर की तरह यह विचार भी मेरे मन से उतर गया और अगले ही दिन पेंटर ने पेंट का काम शुरू कर शाम तक  पूरा कर दिया.

धनतेरस से दीवाली की शुरुआत होती है. आ गयी धनतेरस. थोड़ी बहुत साफ़ सफाई और मिठाई, नमकीन बनते-बनते शाम हो गयी और धनतेरस पर बाजार से कुछ नया सामान लाया जाता है. तो शाम होते होते बाजार से सजावट और पूजा का सामान, दिए, पटाके लाये जाने का कार्यक्रम बन गया, पूरा परिवार गाड़ी में सवार हो पहुच गया बाजार. खरीददारी कर छुटपुट कुछ खा-पीकर सब घर आ गए.

कुछ दिन पहले बैठक को नया रूप देने के लिए दो हिरन के जोड़े का एक बड़ा वॉलपेपर ऑनलाइन आर्डर कर दिया था. जिसे दीवाली के बाद आना था पर वह भी दीवाली हमारे घर ही हमारे साथ मनाने की जल्दी में पहले ही आ गया, पर ये क्या? जो वॉलपेपर मंगाया था ये वो तो नहीं है. ये तो गणपति का विश्राम मुद्रा में एक अद्भुत वॉलपेपर था और वो भी धनतेरस को, हमारी धनतेरस तो मन गयी. लक्ष्मीजी के स्वामी स्वयं पधारे धनतेरस पर. मेरा बेटा जो सात साल का है उसके सबसे प्रिय भगवान भी गणपति हैं, उसकी वजह से हम हर साल घर में गणपति भी बिठाते है. वो भी यह वॉलपेपर देख कर अति प्रसन्न हो गया. रात हो गयी थी, बेटा बैठक में ही सो गया. उसे खुश करने के लिए मैं और मेरी 12 साल की बेटी ने मिलकर उस वॉलपेपर को बैठक की दीवार पर लगा दिया, जिससे बैठक की शोभा और अधिक बढ़ गयी, यह देखने मैंने अपनी धर्मपत्नी को रसोई से बुलाया, जो मिठाइयाँ बनाने में व्यस्त थी. उसे भी यह बहुत भाया. सुबह जब बेटा उठा, उसने उसकी आँखे खुलते ही वॉलपेपर दीवार पर लगा देखा तो एक प्यारी सी मुस्कान और आँखों में चमक देखने लायक थी. जिसे देख हमारी रात की मेहनत सफल हो गयी.

आज दिन था नरक चौदस का, जिसे राजस्थान में रूप चौदस भी कहते हैं, मेरा जन्म हुआ उत्तर प्रदेश में, वहां नरक चौदस ही कहते है. पर रहता हूँ राजस्थान में, इसलिए रूप चौदस भी एक नाम है इससे परिचय हुआ. मेरा मानना है नाम कुछ भी रख लो, ये सिर्फ सोचने का नजरिया है. दोनों का अर्थ एक ही है. उत्तर प्रदेश में बड़ों से सुना है कि इस दिन नहाना, साफ़ सफाई करना बहुत जरूरी है, नहीं तो नरक में जाना पड़ेगा. इसलिए नरक चौदस या फिर राजस्थान के दृष्टीकोण से सजना सवरना आवश्यक है इस दिन इसलिए रूप चौदस, दोनों में भाव एक ही है, घर-बाहर और तन-मन की सफाई और सजावट. आज हम सभी ने घर के बचे हुए कोनों को भी साफ़ किया, फिर दिन में बची हुई मिठाई और नमकीन बनाये जाने का कार्य संपन्न हुआ जिसमे गुजिया विशेष थी, वैसे तो उत्तर प्रदेश में गुजिया होली पर ही बनती हैं. पर हम तो हैं राजस्थान में, और गुजिया मेरे बेटे को अति प्रिय है. इसलिए दीवाली पर भी मेरी धर्मपत्नी जरूर बनाती है. ताकि छोटे उस्ताद यानी मेरा बेटा जी भर के खा सकें. शाम को बिधि-बिधान से पूजन हुआ और बच्चो ने दीवाली की शुरुवात पटाके फोड़ कर की.

यह प्रारंभ है मेरे किस्सों की माला का

“शुभ दीवाली” पढ़ें अगले अंक में.......