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जीवन संगिनी

प्रेम धर्म का दूसरा नाम है। सच्चा प्रेम अमुल्य है। उसमे स्वार्थ नही होता। वह बदलता नही। वह शुद्ध और निर्मल होता है। वह सदैव बढ़ता है, कभी घटता नही। वह सहज होता है। प्रेम ऐसा ही होता है,लेकिन जिम्मेदारियों के आगे ये प्रेम गौण हो जाता है।
हां तुम कह सकती हो की मुझे प्रेम करने आया ही नहीं या मैं प्रेम करना जानता ही नही तो सुनो, प्रेमी से पहले मैं एक पुरुष हूं।
जिसे ये समाज आवारा, उज्जड्ड, निकम्मा, नकारा और आजकल तो लेटेस्ट है बेरोजगार इन्हीं नामो से संबोधित किया जाता है, तुम्हे लगता है कि मैं प्रेम में फिसड्डी हूं भाग रहा हूं तो हां मैं जिम्मेदारियों को चुन रहा हूं या यूं समझो की जिम्मेदारियां मुझे चुन रही है। मां की दवा, बाबूजी का बोझ, बहन की शादी, भाई की पढ़ाई, रिश्तेदारी, समाज, घर का छप्पर और आए दिन खराब फसल इतना सब कुछ सुबह से शाम लेकर चलना है बताओ इन सबसे कैसे मूह़ मोड़ लूं, यू ही एक झटके मे कैसे सब कुछ छोड़ दूं।
प्रेम से सराबोर प्रेमिका को हमेशा प्रेमी से समय की चाह होती है लेकिन मैं प्रेमी होने के साथ साथ एक पुरुष हूं ये तुम मत भूलना, पत्नी को जिम्मेदार पति की आकांक्षा होती है ऐसा नही की प्रेम नही, लेकिन प्रेमिका को हमेशा प्रेम ही।
तुम कहती हो कि मैं बहुत भावुक हूं तो हां हूं लेकिन सिर्फ तुम्हारे लिए,लेकिन जिम्मेदारियों में भावुकता नही बौद्धिकता की आवश्यकता होती है,प्रेम में वयस्क होना मुझे कभी आया ही नहीं।
प्रेम में में किशोरावस्था की तरह जीऊंगा सालों-साल
और तमाम बौद्धिक क्षमताओं के साथ जिम्मेदारियों डूबा रहूंगा। विस्मृतियों के स्थगन की चौखट पर स्मृति का नया दीप धर कर जो तुमने मुझमें प्रेम जगाया है मेरे अंदर के अंधेरे को तुमने मिटाया है भूलूंगा कभी नही ना तुम्हे ना तुम्हारे आलिंगन को, ना ही तुम्हारे निश्छल प्रेम को, पर मैं हारा हुआ हूं, समझना होगा तुम्हे, जाना होगा मुझे जिम्मेदारियों के गांव अपनी फसल बचाने क्योंकि मैं प्रेमी के साथ साथ एक पुरुष हूं।
जहां मोहब्बत वहा जुदाई तो बहुत आम बात हैं, क्योकि हर मोहब्बत करने वाले को अपनी मोहब्बत आसानी से नहीं मिलती। अब जाते जाते रुलाओगी क्या गले लगकर तड़पाओगी क्या,हमेशा खुश रहना बस इतना ही कह पाऊंगा। जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने क्या खूब भरा, तुम्हे भी चैन नहीं, तो मुझे भी सब्र नहीं।

प्रेम धर्म का दूसरा नाम है। सच्चा प्रेम अमुल्य है। उसमे स्वार्थ नही होता। वह बदलता नही। वह शुद्ध और निर्मल होता है। वह सदैव बढ़ता है, कभी घटता नही। वह सहज होता है। प्रेम ऐसा ही होता है,लेकिन जिम्मेदारियों के आगे ये प्रेम गौण हो जाता है।
हां तुम कह सकती हो की मुझे प्रेम करने आया ही नहीं या मैं प्रेम करना जानता ही नही तो सुनो, प्रेमी से पहले मैं एक पुरुष हूं।
जिसे ये समाज आवारा, उज्जड्ड, निकम्मा, नकारा और आजकल तो लेटेस्ट है बेरोजगार इन्हीं नामो से संबोधित किया जाता है, तुम्हे लगता है कि मैं प्रेम में फिसड्डी हूं भाग रहा हूं तो हां मैं जिम्मेदारियों को चुन रहा हूं या यूं समझो की जिम्मेदारियां मुझे चुन रही है। मां की दवा, बाबूजी का बोझ, बहन की शादी, भाई की पढ़ाई, रिश्तेदारी, समाज, घर का छप्पर और आए दिन खराब फसल इतना सब कुछ सुबह से शाम लेकर चलना है बताओ इन सबसे कैसे मूह़ मोड़ लूं, यू ही एक झटके मे कैसे सब कुछ छोड़ दूं।
प्रेम से सराबोर प्रेमिका को हमेशा प्रेमी से समय की चाह होती है लेकिन मैं प्रेमी होने के साथ साथ एक पुरुष हूं ये तुम मत भूलना, पत्नी को जिम्मेदार पति की आकांक्षा होती है ऐसा नही की प्रेम नही, लेकिन प्रेमिका को हमेशा प्रेम ही।
तुम कहती हो कि मैं बहुत भावुक हूं तो हां हूं लेकिन सिर्फ तुम्हारे लिए,लेकिन जिम्मेदारियों में भावुकता नही बौद्धिकता की आवश्यकता होती है,प्रेम में वयस्क होना मुझे कभी आया ही नहीं।
प्रेम में में किशोरावस्था की तरह जीऊंगा सालों-साल
और तमाम बौद्धिक क्षमताओं के साथ जिम्मेदारियों डूबा रहूंगा। विस्मृतियों के स्थगन की चौखट पर स्मृति का नया दीप धर कर जो तुमने मुझमें प्रेम जगाया है मेरे अंदर के अंधेरे को तुमने मिटाया है भूलूंगा कभी नही ना तुम्हे ना तुम्हारे आलिंगन को, ना ही तुम्हारे निश्छल प्रेम को, पर मैं हारा हुआ हूं, समझना होगा तुम्हे, जाना होगा मुझे जिम्मेदारियों के गांव अपनी फसल बचाने क्योंकि मैं प्रेमी के साथ साथ एक पुरुष हूं।
जहां मोहब्बत वहा जुदाई तो बहुत आम बात हैं, क्योकि हर मोहब्बत करने वाले को अपनी मोहब्बत आसानी से नहीं मिलती। अब जाते जाते रुलाओगी क्या गले लगकर तड़पाओगी क्या,हमेशा खुश रहना बस इतना ही कह पाऊंगा। जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने क्या खूब भरा, तुम्हे भी चैन नहीं, तो मुझे भी सब्र नहीं।