Dani ki kahani - 34 books and stories free download online pdf in Hindi

दानी की कहानी - 34

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बच्चे दानी से बहुत सी बड़ी-बड़ी बातें भी करते रहते थे | उन बच्चों में सभी उम्र के बच्चे होते| कई बार बच्चे दानी से बहुत सी बड़ी बड़ी बातें पूछ बैठते जो दानी को उन्हें समझानी ज़रा मुश्किल ही हो जातीं फिर भी वे कोशिश करतीं कि उन्हें समझा सकें |

" दानी ! मेहनत बड़ी या भाग्य ? समझ में नहीं आता !" सौम्य ने उस दिन पूछा |

एक बच्चा कुछ पूछता तो सारे बच्चे उसके साथ दादी के पास आकर खड़े हो जाते और ऐसे समझने की कोशिश करते मानो सब समझ जाएँगे | इसीलिए दानी का मन होता कि जितनी सरल, सहज भाषा में बच्चे समझें, वे उन्हें समझाने को कोशिश करतीं |

"देखो, तुम्हें एक बात बताती हूँ ----तुम्हें याद है कुछ दिन पहले तक हम चार रास्ते पर एक चाट की दुकान पर चाट खाने जाते थे ---?"

"जी,दानी ,मुझे याद है | अब हम क्यों नहीं जाते दानी ?"

"उन्होंने यहाँ से दुकान बंद करके कहीं और खोल ली है न !" कम्मो दीदी बोलीं |

"तब यह भी याद होगा कि जब भी हम उसके पास चाट खाने जाते तो ऐसा लगता कि वह हमारा ही इंतज़ार कर रहा है । बहुत गप्पें मारता था वह, हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। कई बार मैंने उसे कहा कि भाई देर हो जाती है, जल्दी चाट लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नहीं होती थीं । एक दिन अचानक उसके साथ मेरी कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।*

* मैंने उससे पूछा कि आदमी के लिए कर्म अधिक शक्तिशाली है या भाग्य ?" मैं उसकी परीक्षा लेना चाहती थी

*उसने जो जवाब दिया उसके जबाब को सुन कर मैं आश्चर्यचकित रह गई । वह चाट वाला मेरे से कहने लगा आपका किसी बैंक में लॉकर तो होगा.?*

*मैंने कहा हाँ, तो उस चाट वाले ने मेरे से कहा कि उस लॉकर की चाबियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लॉकर की दो चाबियाँ होती हैं। एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास। आप के पास जो चाबी है वह है कर्म या परिश्रम और मैनेजर के पास वाली चाबी है वह है भाग्य।*

*जब तक दोनों चाबियाँ नहीं लगतीं लॉकर का ताला नहीं खुल सकता। आप कर्मयोगी पुरुष हैं और मैनेजर भगवान! आपको अपनी चाबी भी लगाते रहना चाहिये। पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगा दे। कहीं ऐसा न हो कि भगवान अपनी भाग्यवाली चाबी लगा रहा हो और हम परिश्रम या कर्म वाली चाबी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये।*

" इसका मतलब क्या हुआ दानी?" ट्विंकल ने पूछा ;

"इसका मतलब ये हुआ कि हमें कर्म या परिश्रम करते रहना चाहिए ,न जाने कब ऊपर वाला मैनेजर भाग्य की चाबी लगा दे और हम कर्म न करें तो हमारे हाथ में कुछ भी न रहे |"

*यानि हमें काम करते रहना चाहिए ,भाग्य भरोसे रहकर अपने लक्ष्य से दूर नहीं होना चाहिए - बस*।

"हाँ,ठीक समझे हो बच्चों ---" दानी ने कहा | उन्हें बच्चों के सकारात्मक चेहरे देखकर बड़ी तसल्ली हुई थी |

 

डॉ प्रणव भारती