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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 29

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

29


अब तक आपने पढा ...
भोला सिंह सिधवा गांव का बङा अमीर सरदार है जिसके खेत गाँव में दूर दूर तक फैले हैं । बङी सी हवेली है । कई गाय भैंसे हैं । सुंदर और समझदार बीबी बसंत कौर है । नौकर चाकर हैं । दिल बहलाने के लिए और घर के छोटे मोटे काम करने के लिए केसर है । घर में धन दौलत की कोई कमी नहीं है । कमी है तो बस एक कि शादी के बीस साल बीत जाने पर भी उसके कोई औलाद नहीं है । वह आजकल उदास रहने लगा है । उसकी इस कमजोरी का फायदा उठाते हैं गाँव कम्मेआना के दो भाई चरण सिंह और शरण सिंह । वे एक ट्रैक्टर और आठ लाख रुपए लेकर अपनी तीस बत्तीस साल की बहन जयकौर भोला सिंह से ब्याह देते हैं । न हींग लगी न फटकरी और रंग चोखा चोखा । दो तीन घंटे के भीतर इन दोनों की शादी की सारी रसमें पूरी हो जाती हैं और जयकौर दुल्हन बन कर भोला सिंह के साथ हवेली में आ गयी । यहाँ आने के बाद उसे पता चलता है कि भोला सिंह पहले से शादी शुदा है और उसकी बीबी घर में है । भोला सिंह की सारी रात बसंतकौर को मनाने में बीतती है । जयकौर वह सारी रात आंगन में बिछी एक चारपाई पर बैठ कर रोते हुए काट देती है ।
अब आगे ...

 

जयकौर भोला सिंह को अभी दो चार और बातें सुनाना चाहती थी पर भोला सिंह ने जो इतनी बङी सच्चाई उसे सुनाई , उसे सुन कर वह रोने के सिवाय और क्या कर सकती थी । इसलिए वह रोती रही । भोला सिंह उसे उसी तरह रोते छोङ कर बाहर निकल गया । उसे बाहर जाते देख कर बसंत कौर ने आवाज दी – अब चाय तो पीता जा । यह सुच्चे मुँह सवेरे सवेरे कहाँ चल दिया अब ।
पर भोला सिंह ने बसंत कौर की पुकार सुनी अनसुनी कर दी और सिर झुकाए बाहर निकल गया । बाहर सङक पर कई लोग आ जा रहे थे । कोई खेत की ओर जा रहा था तो कोई जंगल पानी से दातुन करता हुआ लौट रहा था । सामने से आते पप्पू ने उसे टोका – ससरीकाल बाई । तूने तो चुपचपीते ब्याह करवा लिया । जरा सी भी भाप नहीं निकाली । हमें भी ले जाता बरात में तो नाच के टांगे सीधी कर लेते । थोङा मिठाई का टुकङा हम भी खा लेते ।
भाई ले तो तब जाता जब पहले से तय होता , अचानक ही हो गया यह सब ।
उसके बाद तो उसे जो भी मिला , सबकी आँखों में आश्चर्य के साथ साथ ईर्ष्या साफ साफ दिखाई दे रही थी । सबने उसे बधाई दी । इस उम्र में नयी दुल्हन लाने के लिए उसकी पीठ थपथपाई । एक दो हमउम्र रिश्ते के भाईयों ने मजाक मजाक में कह दिया – कमाल है भाई । एक साथ तीन तीन बीबियां । कैसे सम्हालते हो भाई । यहाँ तो तेरी इकलौती भाभी ही सम्हालनी मुश्किल हो जाती है ।
भोला सिंह ने मुस्करा कर जवाब टाल दिया । कैसे बताए कि पहली ही रात उस पर कितनी भारी पङी है ।
वह चलता रहा , चलता रहा जब तक थक कर चूर नहीं हो गया । पर अब वह जाए तो कहाँ जाए । बिना बताए ही उसके ब्याह की खबर सारे गाँव में फैल गयी है । हर कोई मजे ले रहा है । उसका मजाक बना रहा है । उधर घर में बसंत कौर चंडी का रूप धारण किए है । कुछ बात कहने सुनने को तैयार ही नहीं है । उसकी मजबूरी समझ ही नहीं रही । जयकौर को अलग शिकायतें हैं । वह अलग रो रही है और सवाल केसर की आँखों में भी कम नहीं हैं । वह खुद न रोती है न बोलती है पर उसकी आँखें बहुत कुछ कह देती हैं और इस समय उसकी आँखों में हजाक शिकायतें और लाखों सवाल हैं । इन सबको वह कैसे समझाएगा । कहाँ फंस गया वह । सच में यह तीन तीन औरतें उसके नाक में दम करके मानेंगी ।
वह दो तीन घंटे इधर उधर भटकता रहा । आखिर थकहार कर घर लौटा । वहाँ चरण सिंह पग फेरे के लिए जयकौर को लेने आया हुआ था । जयकौर भाई से लङ रही थी – भाई मैं इतना बोझ हो गई थी क्या कि इस तरह से बोझ उतारा । कहाँ लाकर पटक दिया आप सबने मिल कर ।
मेरी शादी ही करनी थी तो कोई और नहीं मिला तुम्हे । यहाँ तो घर में दो दो औरतें पहले से है ।
चरण उसे खींच कर कमरे में ले गया ।
पागल हुई है क्या जो इस तरह से चिल्ला रही है । देखती नही कितनी बङी हवेली है । खेत हैं , खलिहान हैं । कुछ सोच कर ही तेरी शादी यहाँ की है । अमीर आदमी है । कोई आस औलाद नहीं है । तू यहाँ मौज से सरदारनी बनके रहना । राज करना । एक औलाद हो गयी तो भोला सिंह तुझे सिर आँखों पर बैठा कर रखेगा ।
जयकौर के मन में रात की बात आई । भोला सिंह ... और सिर आँखों पर ... सारी रात यहाँ चारपाई पर बैठ कर काटी है उसने । सवालों और आँसुओं से स्वागत हुआ था उसका हवेली में । यह बङी हवेली उसके किस काम की ।
बङे भाई का लिहाज करके वह इस बात पर चुप लगा गई ।
चऱण सिंह ने उसे चुप देखा तो उसका हौंसला बढा – देख बहना । यह सब संयोग की बातें हैं । जब जहाँ लेख लिखे होते हैं , वहीं रिश्ते होते हैं । रिश्ते धुर आसमान में तय होते हैं । हमें सारी जिंदगी निभाने पङते हैं ।
भाई मुझे इस घर में नहीं रहना । मुझे सरदारनी नहीं कहलवाना । मैं तो तेरे साथ ही चलूंगी । वहाँ अपने भतीजे भतीजियों के साथ रहूंगी । तेरे घर का धंधा करूंगी । दो रोटी दे दिया करना । खा कर पङी रहूँगी ।
यह सब सुनने और करने के लिए मैं यहाँ नहीं आया । तुझे पगफेरे के लिए लेने आया था । रसम होती है पर अब तू रह यहीं । मैं तुझे ले कर कहीं नहीं जा रहा । एक बार शादी हो चुकी । पूरे गाँव के सामने लावां फेरे हुए हैं । कोई मजाक नहीं हुआ कि तू सब छोङ के चल देगी ।
और वह उसे रोते बिलखते छोङ कर वापिस चला गया । चारपाई पर एक लड्डू का डिब्बा और दो दर्जन केले पङे जयकौर का मुँह चिढा रहे थे ।
बसंत कौर चाय उबाल रही थी । चरण सिंह को बाहर की ओर जाता देख वह बाहर आई । जब तक वह बाहर की दहलीज तक पहुँचती , चरण सिंह सङक का मोङ मुङ कर नजर से ओझल हो चुका था ।

 

बाकी फिर ...