Shraap ek Rahashy - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

श्राप एक रहस्य - 24

अदिति से हॉस्पिटल में मिलने के बाद सोमनाथ चट्टोपाध्याय को ये पता चल चुका था, की घिनु ने अपनी कैसी बनावट ले ली है। वो आकार बदल सकता है, एक ही समय में दो या फ़िर शायद इस से भी ज़्यादा जगहों पर रह सकता है और वो बूढा हो सकता है,अगर उसे जवान शिकार ही ना मिले तब। वो घाटी से बाहर नहीं जा सकता क्योंकि उसकी सीमाएं वहीं तक है।

बहुत मुश्किल नहीं हुई थी उन्हें अस्पताल के अंदर जाने में। उनकी वेशभूषा और उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उन्हें किसी ने भी रोका नहीं। और अदिति जो अब तक मौन लेटी थी। उसके पास जाकर उन्होंने कहा था..:-

"मैं आपके पिता का पैगाम लेकर आया हूँ, आपको पता है एक माँ बाप के लिए उनकी सबसे बड़ी पूंजी क्या होती है..? उनके बच्चे, वे भले ही अपनी जान खो दे, लेकिन अपने बच्चे उन्हें बिल्कुल सुरक्षित चाहिए होते है। आपको पता है उस रात आपके पापा ने ख़ुद चाहा था कि आप उस राक्षस के सामने ना जाएं तभी तो वे गाड़ी में आपको अकेले छोड़कर वहां से भागने लगे थे। ताकि उस शैतान कि नज़र आप पर ना पड़े। आपने तो आपके माता पिता की सबसे बड़ी उपलब्धि को बचाया है। जिसके लिए आपके पिता और मां ने आपको धन्यवाद कहा है, अब आप सुरक्षित है। अपने भीतर के अपराधबोध से बाहर आइये, और उन सपनों को पुरा कीजिये जो आपके लिए आपके परिवार ने देखें थे। ये सबकुछ होना पहले से ही तय होता है गुड़िया, सबकुछ कैद होती है तारीखों में। आपने कुछ भी नहीं किया, नियति भी तो आख़िर कोई चीज़ होती है।"

अदिति जो अब तक ग़ौर से सोमनाथ चट्टोपाध्याय की बातों को सुन रही थी,अब वो फूटफूटकर रोने लगी थी। सामने ही बैठी उसकी दादी मुस्कुरा रही थी, लेकिन उनकी आंखें भी आंसुओ से सजीली हो गयी थी।

अदिति भी अब काफ़ी हद तक सामान्य थी। बहुत देर तक रोने के बाद अब वो शांत थी, लेकिन बीच बीच में उसे हिचकियां आ रही थी। बेहिसाब रोने के बाद आने वाली हिचकियां। इसके बाद ही उसने सोमनाथ चट्टोपाध्याय को घिनु से उसकी पहली मुलाक़ात की कहानी सुनाई थी।

सोमनाथ चट्टोपाध्याय जब अस्पताल से बाहर निकलने लगे तब पत्रकारों का एक बड़ा झुंड उनका ही इंतजार करते मिले, चूकिं अब तक ये बात जंगल में लगी आग की तरह फैल गयी थी कि अदिति ने अपनी कहानी एक बुज़ुर्ग को बता दी है। इसलिए सभी मिलकर अपने सवालों के साथ उनपर टूट पड़े थे। जवाब में उन्होंने बस इतना ही कहा था...." जवान लोगों को कहना घाटी से दूर रहे।"

बस फ़िर क्या था दूसरी सुबह फ़िर अखबारों में यहीं हेडलाइन्स भरे थे...." जवान लोग घाटी से दूर रहे"...!

"हा हा हा....ठठाकर हंस पड़े थे सोमनाथ चट्टोपाध्याय आज के अख़बार की एक झलक देखते ही। वाक़ई कॉपी पेस्ट करना कोई इन पत्रकारों से सीखें।

रात का वक़्त था। पुलिस की पहरेदारी फ़िर घाटी में बढ़ गयी थी। लेकिन इस बार भी अखिलेश बर्मन छुपते छुपाते घाटी में उसी कुएँ के पास जा पहुँचे थे। हां इस बार वे अकेले ही थे। उनके साथ सोमनाथ चट्टोपाध्याय नहीं थे। वे कुएं के पास खड़े थे, जहां इस वक़्त भयानक सन्नाटा था। आधी रात तक वे वहीं बैठे रहे लेकिन ना घिनु का अता पता था ना प्रज्ञा की रूह भी आज दिखी थी।

वे अब घर लौटना चाहते थे। वे उठे और एक बार चारों तरफ़ नजरें घुमाई....दाएं, बाएं, सामने और अपने पीछे। चौककर वे चार कदम पीछे घिसक गए। वो वहीं खड़ा था....ठीक उनके पीछे। बिल्कुल शांत। एक मध्यम आकार का था वो जैसे कि कोई पन्द्रह सोलह वर्ष का लड़का होगा। लेकिन बहुत भयानक डरावनी काया थी उसकी। पूरे शरीर मे फफोले जैसा कुछ था। अजीब से घाव, जिनमें से कुछ चिपचिपा पदार्थ भी रिस रहा था। उसके होंठ सामान्य से बड़े थे...और लगता था जैसे वो झूल रहे हो। बीच बीच मे वो अजीब तरह से हिचकियां लेता और इसके साथ ही उसके उन्हीं फफोले घाव में से अनगिनत कीड़े बाहर निकल जाते और इधर उधर भिनभिनाते हुए उड़ने लगते।

वो एकटक अखिलेश बर्मन को ही देख रहा था। जो कि पसीने से तरबतर थे। फ़िर उन्होंने ही पूछा.....

"तू...तुम वहीं हो ना जिसने जावेद को मेरे पास भेजा था..?"

"कौन जावेद..." एक भारी आवाज़ थी ये जो घिनु कि ही थी।

"वहीं जिसे तुमने कहा था, मेरे बेटे को ढूंढने के लिए।"

"कौन है तुम्हारा बेटा..?"

"वहीं जिसे कितनी भी चोटें लगे वो रोता नहीं.."

..." अच्छा तो वो तुम्हारा बेटा था, और क्या नाम बताया हा, जावेद ने तुम्हें ढूंढ भी लिया था...?"

"अ...हा...हा वो आया था न मेरे पास मेरे बेटे को ढूंढने।"

"ओह इसका मतलब बेचारा बेमौत ही मारा गया। लेकिन तुम यहाँ क्यों आये हो..?"

"मैं जानना चाहता हूँ, वो कौन था..? और तुम उसे क्यों ढूंढ रहे थे। क्या रिश्ता था तुम दोनों का..?"

"अच्छा पहले मुझे ये बताओ तुम्हारे बेटे की मौत कैसे हुई..?"

"वो सीढ़ियों से गिरकर मर गया। आंखें चुराते हुए अखिलेश जी ने बेहद आहिस्ते आवाज़ में कहा"।

..." झूठ....वो ऐसे मर ही नहीं सकता। तूम शायद उसके मौत की असली वजह जानते ही नहीं होंगे। उसे सिर्फ़ एक चीज़ मार सकती थी, वो है धोखा, छल या बेईमानी। जरूर उसे किसी ने सीढ़ियों से धक्का दिया होगा। उसका ही कोई अपना...याद करो उसकी मौत के वक़्त उसके पास कौन था...?"

" वो मैं ही था..." रुकी हुई साँसों को थामकर अखिलेश बर्मन ने कहा। " हा वो मैं ही था, मैंने ही उसे सीढ़ियों से नीचे धक्का दे दिया था। ताकि बस मुक्त हो जाऊं मै उस से। मैंने ये बात किसी को नहीं बताई, मुझे डर था ये बात जब दुनियां जानेगी तो क्या वो यक़ीन कर पायेगी की एक पिता ऐसा कर सकता है। मेरी पत्नी ने ऐसा करते हुए मुझे साफ़ साफ़ देख लिया था इसलिए तो वो मेरे जान के पीछे हाथ धोकर पड़ गयी है। वो तो अच्छा है कि उसकी हरकतें पहले से ही पागलों वाली हो गयी थी,इसलिए कोई उसकी बात पर यक़ीन नहीं कर रहा है। लेकिन ये बात तुमने कैसे जाना...?"


"हहहहहह...क्योंकि उसके जन्म की वजह और मेरा जन्म होना दोनों एक ही चीज़ थी।"

"और दोनों की मौत की भी एक वजह हो सकती है। वो है धोखा...!!" मन ही मन बुदबुदा रहे थे अखिलेश जी। ये वहीं शब्द थे जिसने घिनु ने अधूरा ही छोड़ दिया था। शायद वो नहीं चाहता था कोई ये जान सकें कि उसे कैसे ख़त्म किया जा सकता है....!!!!!

शायद वो जाल में फंसने वाला ही था।

क्रमश :- Deva sonkar